Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे एवमुक्तासती नो आद्रियते नो परिजानाति अनाद्रिमाणा-अनादरं कुर्वती, अपरिजानाना=अनवबुध्यमाना धारिणी देवी तूष्णीका संतिष्ठते। ततःअङ्गपरिचारिका दासचेटयो धारिण्या देव्या अनाद्रियमाणाः अनादरं प्राप्ताः अपरिज्ञा. यमानाः परिचयमप्राप्ताः 'तहेव' तथैव 'संभताओ' संभ्रान्ताः, धारिणी देवीमप्रसन्नां विलोक्य भयोद्विग्नाः सत्यः, धारिण्या देव्या अंतिकात प्रतिनिष्कामन्ति-निर्गच्छन्ति । प्रतिनिष्क्रम्य निर्गत्य, यत्रैव श्रेणिको राजा तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य करतलपरिगृहीतं 'जाव' यावत-दशनखं शिर आवते मस्तकेऽ परियाणाइ) इस तरह उन आभ्यंतरिक अंगपरिचारिकाओ तथा दास चेटियों द्वारा दो तीन बार पूछने परभी उस धारिणी देवीने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और न उनकी ओर कुछ ध्यान दिया (अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया संचिट्ठइ) केवल अपेक्षा किये हुए अपरिचित हुई जैसी चुपचाप ही बैठी रही (तएणं ताओ अंगपडियारि यओदासचेडियाओ धारिणीए देवीए अणाढाइजमाणीओ अपरिजाणिजमाणीओ तहेव समंनाओ समाणीओ धारिणीए देवीए अंतियाओ पडिनिकरवमंति) इस तरह की उस धारिणीदेवी की स्थिति जब उन अंगपरि चारिकाओं तथा दासचेटियोने देखी तो बे उसके पास अपनेको अनादत देखती हुई चिना कुछ कहे ही अपरिज्ञात अवस्था में भय से त्रस्त होक बाहर चलीआई (पडिनिक्ख मित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ)
और बाहर आकर वे वहां गई जहां राजा श्रेणिक थे। (उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव कटु जएणं विजएणं वद्धाति) आकर उन्होंने दास चोडियाहिं दोच्चपि तच्चपि एवंवुत्ता समाणी णो अढाइ णो परियाणाइ) આમ બે ત્રણ વખત પૂછવા છતાં પણ તે ધારિણીદેવીએ તેમને કંઈ પણ જવાબ
यो न अने पY गायु न. (अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया संचिट्टइ) PictY ने तेमानी उपेक्षा ४२ती ते युपया५ मेसी २डी (तएणं ताओअगपडियारियाओ दासचेडियाप्रो धारिणीए देवीए अणाढाइज्जमाणीभो अपरिजॉणिजमाणी) तहेव समंताओ समाणीओधारिणीए देवीए अतियाओ पडिनिवखमंति) धारिणीवानी मावी (वयित्र स्थिति ने मपरियाરિકાઓ અને દાસ ચેટિકાઓ પોતાની જાતને ઉપેક્ષિત થએલી જાણીને કંઈ પણ કહ્યા વગર રાણની દુર્બળતાના કારણને જાણ્યા વગર ભયગ્રસ્ત થતી બહાર આવતી રહી. (पडिनिक्खमित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ) महार मावीन तेसो श्रेणि शत पासे . (उवाच्छित्तिा करयलपरिग्गहियं जाव कटु
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧