Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मूलम् - सुतमेयमेवमे गेसिं इत्थीवेदेइ हु सुक्खायं । ऍपिता वदिता त्रि अर्जुवा कम्र्मुणा अंवकरेंति ॥२३॥ छाया -- श्रुतमेतदेवमेकेषां स्त्रीवेद इति हु स्वाख्यातम् ।
Raat ता उक्त्वाऽपि अथवा कर्मणा अपकुर्वन्ति ॥ २३॥ अन्वयार्थः - (एयं) एतत् ( एवं ) एवम् (सुतं ) श्रुतं यत् स्त्रीसंपर्क महादोषायेति तथा (गेसिं) एकेषां वैशिकादिकानां (सुयवखायं) स्वाख्यातम् - सुष्ठु कथनं (इत्थीवेदेइ) स्त्रीवेद इति एषां स्त्री वेदविदां स्त्राख्यातमिति (ता) ता:= स्त्रियः ( एवं वदिवि) एवमुक्त्वापि (अदुवा ) अथवा तथापि (कम्मुणा करेंति) कर्मणा अपकुबन्तीति- विपरीतमाचरन्तीति ॥२३॥
सूत्रकृताङ्गसूत्रे
शब्दार्थ - - ' एवं - एवम्' इस प्रकार 'सुतं श्रुतम्' स्त्री संपर्क महादोषजनक है ऐसा मैंने सुना है तथा 'एगेसिं एकेषां' कोई कोई का 'सुक्खायं - स्वारुपातम्' सम्पक कथन है 'इस्थीवेदेद्द-स्त्रीवेद इति' कामशास्त्र का यह कथन है कि 'ता-ता:' स्त्रियः 'एवं वदित्ता विएवमुक्त्वापि' अब मैं ऐसा नही करूंगी ऐसा कहती है 'अदुवा अथवा ' तो भी 'कम्मुणा अवकरेति कर्मणा अपकुर्वन्ति' उससे विपरीत आचरण करती हैं ||२३|
अन्वयार्थ - हमने ऐसा सुना है कि स्त्रियों का सम्पर्क महान् दोष का कारण होता है। किन्हीं वैशिक आदि का ऐसा कहना है कि 'अब मैं इस प्रकार का पाप नहीं करूंगी' ऐसा कह कर भी पुनः विपरीत आचरण करती हैं ||२३|
स्त्रियांना संपर्क महादोषावड छे, तेभ में
शब्दार्थ –'एवं- एवम्' आ रीते 'सुतं श्रुतम्' सांलज्यु छे. अर्थात् सांभज्यु' छे तथा 'एगेसि - एकेषां ' उथन छे ! 'ता- ताः' स्त्रीओ 'एवं उरीश नहीं' मेवु' हे छे. 'अदुवाअपकुर्वन्ति' . उथनथी ही न
अर्ध 'सुयवखायं - स्त्राख्यातम्' सभ्य वदित्ता वि-एवमुक्त्वा पि' हुवे पछी साम अथवा ' ते 'कम्मुणा अवकरेति कर्मणा રીતનું આચરણ કરે છે. રા
સૂત્રા—અમે એવુ' સાંભળ્યુ છે કે સ્ત્રીઓને સપર્ક મહાન દોષના કારણુ રૂપ અને છે. કોઇ કોઇ સ્રિએ એવું કહે છે કે હવેથી હું એવુ* દુષ્કૃત્ય નહી' કરું,' પરન્તુ એવુ· વચન આપ્યા બાદ પણ તેએ વિપરીત આચરણ જ કરતી રહે છે. ારા
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨
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