Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४८१ प्रवर्तित सर्वधर्मातिशायिनो धर्मस्य काश्यपगोत्रो भगवान् महावीरस्वामी नेतेव नेता सर्वजीवानां तादृशाऽनुत्तमधर्मे प्रवर्तनाद् भवतीति भावः ॥७॥ मूलम्-'से पन्नयाँ अक्खयसागरे वा महोदही वावि अणंतपारे।
अणाइले वा अकसाई भिक्खू संकेव देवाहिवई जुइमं ॥८॥ छाया-स प्रज्ञयाऽक्षयसागर इव महोदधिरिवापि अनन्तपारः।
___ अनाविलो वा अपायी भिक्षुः, शक्र इव देवाधिपति र्युतिमान ॥८॥ काश्यपगोत्रीय भगवान महावीर स्वामी हैं, क्योंकि वे समस्त जीवों को उस अनुत्तम धर्म में प्रवृत्त करते हैं ॥७॥ 'से पन्नया' इत्यादि।
शब्दार्थ-से-सः' वह भगवान् महावीर स्वामी 'सागरेवा-सागर इच' समुद्र के समान 'पन्नया-प्रज्ञया' बुद्धि से 'अक्खए-अक्षयः' अक्षय है 'महोदही वाधि-महोदधिरिव' स्वयंभूरमण समुद्र के समान 'अणंतपारे-अनन्तपार:' अपार प्रज्ञा वाले हैं 'अणाइले बा-अनाविलोवा' जैसे समुद्र का जल निर्मल है उसी प्रकार भगवान् निर्मल प्रज्ञावाले है 'अकसाई-अकषायी' भगवान् कषायों से रहित हैं और 'मुक्के-मुक्तः' ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों से रहित हैं 'सक्केव-शकइव' भगवान् इन्द्र के समान' देवाहिबई-देवाधिपतिः' देवताओं के अधिपति हैं 'जुइम-द्युतिमान्' तथा अत्यन्त तेजवाले हैं ॥८॥ કાશ્યપ ગોત્રીય મહાવીર સ્વામીને સર્વશ્રેષ્ઠ ગણવામાં આવે છે, કારણ કે તેઓ સમસ્ત જીવેને તે અનુપમ ધર્મમાં પ્રવૃત્ત કરે છે. ૭
'से पन्नया' त्यहि
Avat:-से-सः' ते मान महावीर स्वामी 'सागरे वा--सागर इव' समुद्र समान ‘पन्नया-प्रज्ञया' भुद्धिथा 'अक्खए-अक्षयः' अक्षय छ 'महोदहीवावि-महोदधिरिव' स्वयंभूरभा समुद्रना समान 'अणंतपारे-अनन्तपारः' सपा प्रज्ञा पामा छ 'अणाइले वा-अनाविलो वा' रेभ समुद्रनु पनि छ तर प्ररे मापन निमर प्रज्ञा छ 'अकसाई-अकषायी' लगवान् पायी थी २हित छ भने 'मुक्के-मुक्तः' ज्ञानावरणीय पोरे ४२ था शहत छ ‘सक्केव-शक इव' मावान् छन्द्रना समान 'देवाहिवई-देवाधिपतिः' पितामान अधिपती छे 'जुईमं-द्युतिमान्' तथा अत्यात तेrand. In
શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨