Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 679
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ८ उ. १ वीर्यस्वरूपनिरूपणम् अन्ययार्थ:- (दविए) द्रव्यः-मुक्तिगमनयोरयो भव्यः (बंधणुम्मुक्के) बन्धनात्-कषायात्मकादुन्मुक्तो रहितः (सचओ छिनबंधणे) सर्वतरिछत्रबन्धनः (पावकं कम्म) पापकं कर्म (पणोल्ल) प्रणुद्य-अपनीय (अंतसो सल्लं कंतति) अन्तशः-अन्ततो गत्वा शल्यं शेष कर्म कृन्तति-अपनयतीति ॥१०॥ टीका-'दयिए' द्रव्यो-मुक्तिगमनयोग्यो मुनिः-'द्रव्ये भव्ये' इति वचनात द्रव्यपदं मुक्तिगमनयोग्यं महात्मानमुपस्थापयति । अथवा-रागद्वेषरहितत्वात् द्रव्यभूतो द्रव्यस्वरूपतां गतः सर्वथा कषायैः रहितः । यथा पाषाणादि दिव्यं रागद्वेषरहितं भवति, तद्वत् यो रागद्वेषरहितः स द्रव्य इव द्रव्यः कथ्यते । अथवा वीतराग इव वीतरागः, ईषत्कषायवान् । तथोक्तम् ___ 'कि सक्का बोत्तुं जे सरागधम्ममि कोइ अकसाई। संते वि जो कसाए निगिण्हइ सोऽपि तत्तुल्लो' ॥१॥ अन्वयार्थ--मुक्तिगमन के योग्य, कषाय रूप बन्धन से रहित, सब प्रकार के संशयों से रहित भव्य जीव पापकर्मो को हटाकर अन्ततः शल्य को अर्थात् शेष रहे कर्मों को काट डालता है ॥१०॥ टीकार्थ--जो मुक्तिगमन के योग्य हो वह 'द्रव्य' कहलाता है। क्योंकि-'द्रव्यं च भव्ये' ऐसा कहा गया है। अतएव यहाँ 'द्रव्य' पद का अर्थ है-मोक्षगमन करने योग्य महात्मा। अधया रागद्वेष से रहित होने के कारण जो द्रव्य स्वरूप को प्राप्त हो अर्थात् सर्वथा निष्कषाय हो, वह भी 'द्रव्य' कहलाता है। या जो वीरता के समान वीतराग अर्थात् अल्पकषायवान् हो, उसे भी द्रव्य कहते हैं। कहा भी है'किं सक्का चोत्तु जे' इत्यादि । અન્વયાર્થ–મુક્તિ માં જવાને યોગ્ય, કષાયરૂપ બંધનથી રહિત, દરેક પ્રકારના સંશો વિનાના ભવ્ય જીવે પાપ કર્મને હટાવીને અન્તતઃ શલ્યને અર્થાત્ બાકી રહેલા કર્મોને છેદી નાખે છે. ૧૦ ટીકાર્ય–જેઓ મુક્તિમાં જવાને ગ્ય થયેલા હોય તે “દવ્ય” કહે. वाय छे. भ3-'द्रव्य च भव्ये' मा प्रमाणे हेस छे. महियां द्रव्य पहनी અર્થ મોક્ષમાં જવાને ગ્ય મહાત્મા આ પ્રમાણે થાય છે, અથવા રાગદ્વેષ વિનાના હોવાના કારણે જેઓ દ્રવ્યના સ્વરૂપને પ્રાપ્ત કરે અથત સર્વથા કષાય વિનાના હોય તે પણ “દ્રવ્ય' કહેવાય છે, અથવા જે વીતરાગની સરખા વીતરાગ અર્થાત અલ્પ કષાયવાળા હોય તેને પણ દ્રવ્ય કહે છે. કહ્યું પણ छ -'कि सका वोत्तुं जे' त्या શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728