Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 680
________________ ( छाया - - किं शक्या वक्तुं धत् सराग धर्मे कोऽप्यकषायः । सतोपि यः कषावात् निगृह्मति सोऽपि तत्तुल्यः ॥ १ ॥ ( समवनै यः स्थितः, षष्ठसप्तमगुणस्थानवान् किं कश्वित् कषायर हितो भवति किमिति प्रश्नः भवतीत्युत्तरम् कषायस्य विद्यमानत्वेऽपि यः कषायम् उदमत निवर्तयति सोऽपि वीतरागसदृश एवेति भावः ॥ , सूत्रकृतागसूत्रे } 9 किं स्वरूपोऽयं द्रव्यस्तत्राह - 'बंधणुम्मुक्के' बन्धनोन्मुक्तः बन्धनात् कषायस्वरूपात् उन्मुक्तो रहित इति बन्धनोन्मुक्त । कर्मस्थितिजनकत्वात् कषायाः कर्मबन्धनशब्देनोक्ता भवन्ति । तथोक्तम्- 'बंध हिईकसायवसा' बन्धस्थितिः कषाययशा-बन्धस्थितिः कषायाधीनेत्यर्थः । तथा-'सय्यओ छिनबंधणे' सर्वतः - सर्वप्रकारेण छिन्नं-नाशितं बन्धनं येन स सर्वतश्छिन्नबन्धनः । सर्वप्रकारेण नाशित्तकषायः । तथा-'पाचकं' पापकम् 'कम्मं' कर्म - ज्ञाना चरणीयादिकमष्टविधम् 'पगोल' प्रणुय - विनाश्य, 'सरल' शल्यम् -‍ - शरीरे त्रुटित जो सरागधर्म में अर्थात रागयुक्त अवस्था में (छठे सातवें गुणस्थान में) वर्त्तमान है, उसे भी क्या अकषायी कहा जा सकता है ? इसका उत्तर यह है कि सत्ता में विद्यमान कषायों का भी जो निग्रह करता है, वह भी वीतराग या अकषायी कहा जा सकता है । ऐसा 'द्रव्य' महात्मा किस प्रकार का होता है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं-वह बन्धनों से विमुक्त होता है कषाय कर्मस्थिति के जनक है, अतएव कर्मबन्धक कहलाते हैं । कहा भी है कि कर्मों में जो स्थिति पड़ती है, वह कषाय के कारण ही पड़ती है। इसके अतिरिक्त वह 'छिन्नबन्धन' होता है अर्थात् उसके बन्धन - कषाय सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। वह ज्ञानावरणीय आदि पपकर्मों को दूर करके, જેએ સરાગ ધર્મોમાં અર્થાત્ રાગયુક્ત અવસ્થામાં (છઠ્ઠા સાતમા ગુણસ્થાનમાં) વત માન છે, તેને પણ શુ' અકષાયી કહેવાય છે ? આ પ્રશ્નને ઉત્તર એવો છે કે-જેએ સત્તામાં રહેલ કષાયૈાના પણ નિગ્રહ કરે છે. તે પણ ચીતરાગ અથવા અકષાયી કહી શકાય છે. શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨ આ પ્રકારના ‘દ્રવ્ય' મહાત્મા કેવા પ્રકારના હાય છે? આ પ્રશ્નના उत्तर आये छे-ते धनोथी विभुक्त (छूटेला) होय छे. उपाय - अर्भ स्थितिना ઉત્પત્તિ રૂપ છે. એટલા જ માટે ક` ખ'ધન કહેવાય છે. કહ્યું પણ છે કેકમેાંમાં જે સ્થિતિ આવે છે, તે કષાયના કારણે જ આવે છે, તે સિવાય તે છિન્નખ ધન' હોય છે. અર્થાત્ તેના બંધન-કષાયા સર્વથા નાશ પામે

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