Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 671
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ८ उ.१ वीर्यस्वरूपनिरूपणम् आरतः-इहलोके मुखार्थम् 'परओ' परत:-परलोकाय परलोकमुखाय वा 'दुहा वि' द्विधापि-स्वयं करणेन, परकारणेन च । स्वयमाचरन्ति परद्वारा कारयान्त च । रागद्वेषान्धःपुरुषो मनोवाकायैः, तथा शरीरशक्त्यभावे वचनेन, केवलमनसा वा, ऐहिकपारलौकिकयो द्वयोरेव कृते प्राणिघातं स्वयं करोति पराध कारयतीति भावः ॥६॥ हिंसाजनितपापस्य फलं दर्शयति-'वेराइं कुबई वेरी' इत्यादि। मूलम्-वेरोई कुव्वई 'वेरी, तो वेरोहिं रज्जई। पावोगा य आरंभा दुक्खफासा य अंतसो ॥७॥ छाया-वैराणि करोति वैरी ततो वेरैः रज्यते । पापोपगाश्च आरम्भा दुःखस्पर्शाश्च अन्तशः ॥७॥ इस विषय में काल शौकरिक का उदाहण प्रसिद्ध है । वे इस लोक के सुख के लिए और परलोक के सुख के लिए दोनों प्रकार से अथात् स्वय घात करके और दूसरों से घात करवा कर प्राणियों की हिंसा करते हैं। आशय यह हैं कि राग और द्वेष से अन्धा पुरुष मन, वचन, काय से और शारीरिक शक्ति न हो तो सिर्फ वचन से या केवल मन से, इस लोक और परलोक के लिए स्वयं जीववध करता है आर दूसरों से भी करवाता है ॥६॥ ____ अब हिंसा जनित पाप का फल दिखलाते हैं'वेराई कुव्वई वेरी' इत्यादि । शब्दार्थ--'वेरी वेराई कुव्वह-वैरी वैराणि करोति' जीवघात करने આ સંબંધમાં કાલશકરિકનું ઉદાહરણ પ્રસિદ્ધ છે. તેઓ આ લેકના સુખ માટે અને પરલોકના સુખ માટે બને પ્રકારથી અર્થાત્ સ્વયં વાત કરીને તથા બીજાઓથી ઘાત કરાવીને પ્રાણિયોની હિંસા કરે કરાવે છે. કહેવાને હેતુ એ છે કે–રાગ અને દ્વેષથી આંધળા બનેલ પુરૂષ મન, વચન અને કાયા (શરીર) થી અને શારીરિક શક્તિ ન હોય તે કેવળ વચન માત્રથી અથવા કેવળ મનથી આ લોક અને પરલોક માટે રવયં જીવોની હિંસા કરે છે, અને બીજાઓ પાસે પણ હિંસા કરાવે છે. ૬ हवे हसायी थना। पापनु ३० मतावे छ.- वैराई कुच्चई वेरी' या श ---'वेरी वेराई कुवई-वैरी वैराणिं करीति' पनी यात ४२पाषाण। શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૨

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