Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 644
________________ ६३२ सूत्रकृताङ्गसूत्रे % 3D सम्पति साधुकल्पमाहमूलम्-अण्णातपिंडेणऽहियासएज्जा, जो पूर्यणं तवसा आवहेज्जा। सद्देहिं रूवेहिं असजमाणे, सव्वेहि कॉमहिं विणीय गेहिं ॥२७॥ छाया-अज्ञातपिण्डेनाऽधिसहेत, न पूजनं तपसाऽऽवहेत् । शब्द रूपै रसज्जन् सर्वैः कामैः विनीय गृद्धिम् ॥२७॥ अन्वयार्थः---यत एवमतः साधुः (अण्णातपिंडेण अहियासएज्जा) अज्ञातपिण्डे. नाज्ञातपिण्डद्वारा अधिसहेत संयमयात्रा निर्वहेत् (तवसा पूयणं णो आवहेज्जा) तपसा पूजनं स्वकीयसत्कारं नाव हेत् नो ब्रूयात् (सद्देहिं रूवेहिं असज्जमाण) साधु का आचार बताते हैं-'अण्णातणिंडेणऽहियास एजा' इत्यादि। शब्दार्थ--'अण्णातपिंडेण अहियासहेजा-अज्ञातपिण्डेन अधिसहेत' साधु अज्ञातपिण्डके द्वारा अपना निर्वाह करे 'तवसा पूयणं णो आवहेज्जा-तपसा पूजनं न आवहेत्' और तपस्या के द्वारा पूजा की इच्छा न करे 'सद्देहिं रूपेहिं असज्जमाणे-शब्दैः रूपैः असज्जन्' तथा शब्द और रूपमें आसक्त न होताहुआ 'सव्वैहि-सर्वेः' सभी 'कामेहि-कामः' विषय रूपी कामनाओं से 'गेहि-गृद्धिम्' आसक्तिको 'विणीय-विनीय दूर करके संयमका पालन करें ॥२७॥ अन्वयार्थ-साधु अज्ञातपिण्ड के द्वारा संयम यात्रा का निर्वाह करे । तपस्या के द्वारा सत्कार सन्मान की अभिलाषा न करे। मनोज्ञ वे सूत्रा२ साधुना माया मताव छ-'अण्णातपिंडेणऽहियासएज्जा' Aven-'अण्णातपिं डेण अहियासज्जाए - अज्ञ तपिण्डेन अधिसहेत' साधु भज्ञात' द्वारा पोताना निर्वाह रे 'तवसा पूयणं णो आवहेज्जा-तपसा पूजनं न आवहेत्' तया त५२य। द्वा२१ पूजनी ४२छ। न. २ 'सद्देहि रूवेहि असज्जमाणे-शब्दैः रूपैः असज्जन्' तथा श६ भने ३५मां भासत थय। विना 'सव्येहि-सर्वैः' मा ४ 'कामेहि-कामैः' विषय३पी मनापाथी 'गेहि-गृद्धिम्' मासतिने 'विणीय-विनीय' २ उरीने सयभनु पासान २ ॥२७॥ સૂત્રાર્થ–સાધુએ અજ્ઞાત પિંડ દ્વારા સંયમયાત્રાને નિર્વાહ કરે જોઈએ. તપસ્યાઓ દ્વારા સરકાર સન્માનની ઈચ્છા કરવી જોઈએ નહીં, શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨

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