Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ४ उ. २ स्खलितचारित्रस्य कर्मबन्धनि० २८१
कृशः काणः खंना श्राणरहितः पुच्छविकलः, क्षुधाक्षामो जीणे: पिठरककपालादितगल ।
व्रणैः पूक्लिन्नैः कृमिकुलशतैराविलतनुः, __शुनीमन्वेति वा हतमपि च हन्त्येव मदनः ॥१॥इति।गा. १॥ भोगासक्तमनसां यादृशी विडंबना विलसति, तां दर्शयितुं सूत्रकारउपक्रमते-'अह' इत्यादि। मूलम्-अह तं तु भेदमावन्नं मुच्छियं भिक्खं कॉममतिवटुं।
पलिभिदिया णं तो पच्छा पांदुख मुंद्धि पर्णति॥२॥ छाया-अथ तं तु भेइमा पन्नं मूछित भिक्षु काममतिवर्तम् ।
परिभिद्य खलु ततः पश्चात् पादावुकृत्य मुनि प्रघ्नन्ति ॥२॥ (पीप) से भरे हुए घावों एवं बिलबिलाते हुए सैकडों कीडों से व्यास शरीर वाला कुत्ता भी कुतिया के पीछे पीछे फिरता है। यह काम, मरे हुए को भी मारने में कोई कसर नहीं रखता ॥१॥
जिनका मन भोगों में आसक्त है उन्हें जैसी विडम्बना होती है, उसे दिखलाने का सूत्रकार उपक्रम करते हैं-'अहत' इत्यादि ।
शब्दार्थ--'अह-अर्थ' इसके अनन्तर 'भेदमावन्नं-भेदमापन्नम्' चारित्रसे भ्रष्ट 'मुच्छियं-मूछितम्, स्त्री में आसक्त 'काममतिवडंकाममतिवर्तम्' विषय भोगों की इच्छाधाले 'तं तु-तंतु' उस 'भिवखंभिक्षुम्'साधुको वे स्त्री पलिभिदिया परिभिद्य' अपने वशवर्ती जानकर 'तो पच्छा-ततः पश्चात् पीछे 'पादुद्धटु-पादाघुद्धृत्य'अपना पैर उठाकर 'मुद्धि-मून्धि' उसके शिर पर 'पहणति-प्रघ्नन्ति' प्रहार करती हैं ॥२॥ પર નીકળી રહ્યું છે, અને જેને ઘાવમાં કીડાઓ ખદબદી રહ્યા છે એ બૂઢે કૂતરો પણ કામાસક્ત થઈને કૂતરીની પાછળ પાછળ ફર્યા કરે છે. આ કામવાસના મરેલાને પણ મારવામાં કઈ કચાશ રાખતી નથી.” | ૧
જેમનું મન ભેગમાં આસક્ત હોય છે, તેમને કેવી કેવી વિટંબણાઓ सन ४२वी ५ छ, ते सूत्रा२ ४८ ४२ छ-'अह ते' त्याह
शा-'अह-अथ' सागमाच्या पछी 'भेदमावन्ने-भेदमापन्नम्' यात्रियी 2 'मुच्छियं-मूरिछनम्' सीमा मास 'काममतिवट्ट- काममतिवर्तम्' विषय सोगानी छापा 'तं तु-तं तु' से 'भिक्खु-भिक्षुम्' साधुन ते श्री 'पलिभिदिया-परिभिद्य' पाताने १२ 22a oneीन 'तो पच्छा' ततः-पश्चात्' ते पछी 'पादुद्धटु-पादावुद्धृत्य' पोताना ५गना 'मुद्धि-मूर्ध्नि' तेना भरत ५२ 'पहणंति-प्रध्नन्ति' प्रहार रे छे. ॥२॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨