________________
मुक्ति का मार्ग | ३३ चारित्र | इन तीर्थों का समुचित रूप ही मुक्ति का वास्तविक उपाय एवं साधन है ।
कुछ विचारक भारत के अध्यात्मवादी दर्शन को निराशावादी दर्शन कहते हैं । भारत का अध्यात्मवादी दर्शन निराशावादी क्यों है ? इस प्रश्न के उत्तर में उनका कहना है कि वह वैराग्य की बात करता है, वह संसार से भोगने की बात करता है, वह दुःख और क्लेश की बात करता है । परन्तु वैराग्यवाद और दुःखवाद के कारण उसे निराशावादी दर्शन कहना कहाँ तक उचित है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है । मैं इस तथ्य को स्वीकार करता हूँ कि अवश्य ही अध्यात्मवादी दर्शन ने दुःख, क्लेश और बन्धन से छुटकारा प्राप्त करने की बात को है । वैराग्य- रस से आप्लावित कुछ जीवन-गाथाएँ इस प्रकार की मिल सकती हैं, जिनके आधार पर अन्य विचारकों को भारत के अध्यात्मवादी दर्शन को निराशावादी दर्शन कहने का दुस्साहस करना पड़ा । किन्तु वस्तु-स्थिति का स्पर्श करने पर ज्ञात होता है कि यह केवल विदेशी विचारकों का मतिभ्रम मात्र है । भारतीय अध्यात्मवादी दर्शन का विकास अवश्य ही दुःख एवं क्लेश के मूल में से हुआ है, किन्तु मैं यह कहता हूँ कि भारतीय दर्शन ही क्यों, विश्व के समग्र दर्शनों का जन्म इस दुःख एवं क्लेश में से ही होता है । मानव के वर्तमान दुःखाकूल जीवन से ही संसार के समग्र दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ है । इस तथ्य को कैसे भुलाया जा सकता है, कि हमारे जीवन में दुःख एवं क्लेश नहीं है । यदि दुःख एवं क्लेश है, तो उससे छूटने का उपाय भो सोचना ही होगा । और यही सब कुछ तो अध्यात्मवादी दर्शन ने किया है, फिर उसे निराशावादी दर्शन क्यों कहा जाता है ? निराशावादी वह तब होता, जबकि वह दुःख और क्लेश की बात तो करता, विलाप एवं रुदन तो करता, किन्तु उसे दूर करने का कोई उपाय न बतलाता । पर बात ऐसी नहीं है । अध्यात्मवादी दर्शन ने यदि मानव-जीवन के दुःख एवं क्लेशों की ओर संकेत किया है, तो उसने वह मार्ग भी बतलाया है जिस पर चलकर मनुष्य सर्व प्रकार के दुःखों से विमुक्त हो सकता है । और वह मार्ग है -- त्याग, वैराग्य, अनासक्ति और जीवन-शोधन का ।
अध्यात्मवादी दर्शन कहता है कि- दुःख है, और दुःख का कारण है । दुःख अकारण नहीं है क्योंकि जो अकारण होता है उसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता, किन्तु जिसका कारण होता है, यथावसर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org