Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 3
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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चकवट्टि (ण) अभिधानराजेन्द्रः।
चक्कवाह (ए) "चवं उत्तं वंडो, तिमि वि एया वामतुल्ला।
वरसहस्साणुजायमग्गा, चनसाहसहस्सपवरजुवतीणयणचम्मं दुहत्थदीहं, वत्तीसं अंगुलाई असी।
कंता, रत्ताभा, पउमपम्हकोरंटगदामचंपगसुतत्तबरकणकचवरंगुलो मणी पुण, तस्स चेव होने वित्थियो ।
निघसवमा, सुजायसव्वंगसुंदरंगा, महग्यवरपट्टणग्गयविचउरंगलप्पमाणा, सुवमवरकागणी नया" || स्था० ७ ठा। " एगमेगस्स रणं रनो चाउरंतचक्कट्टिस्स सत्त पंचेंदि
चित्तरागएपीपएणीनिम्मियजुगलवरचीणपट्टकोसेजसोयरयणा पत्ता । तं जहा-सेणावश्रयणे गाहावश्रयणे बह- णीसुत्तकावजूसियंगा, वरसुरजिगंधवरचुम्मवासवरकुसुमश्रयणे पुरोहियरयणे इत्थिरयणे प्रासरयणे हस्थिरयणे " भरियसिरया, कप्पियच्छेयायरियसुकयरश्दमालकमगंगयसेनापतिः सैन्यनायको, गृहपतिः कोष्ठागारनियुक्तः, वकिः
तुमियवरनूसणपिणछदेहा, एकावलिकंठसुरइयवच्छ, पालंसूत्रधारः, पुरोहितः शान्तिकर्मकारीति चतुर्दशाप्येतानि प्रत्येकं यकसहस्राधिष्ठितानीति । स्था०७ ग० । अनु०।
वपलंवमाणामुकयपमनत्तरिजमुद्दियापिंगलं गुन्निया, उज्जचक्रवर्तिनां वादयः
लनेवत्यरइयचिसगविरायमाणा, तेएण दिवाकरो न दित्ता, "सब्वे वि एगवन्ना, निम्मलकणगप्पहा मुणेयब्वा । सारयनवत्थणियमहरगंजीरणिघोसा उप्पमसमत्तरयणक्वंमभरहसामी, तेसि य माणं अश्रो वुच्छ ।। 55 ॥ चक्करपणपहाणा, नवनिहिपणा समिछकोसा, चाउरंता पंचसय अपंचम, छायालीसा य अरूधणुअंच।
चानराहिं सेणाहिं समाजाइज्जमानमग्गा, तुरगपतीगयपती इगुवालधणुस्सऽद्धं, च चउत्थे पंचमे चत्ता ।। ६
रहपती नरपती विपुलकुलवीसुयजसा सारयससिसकपणतीसा तीसा पुण, अछाबीसा य वीस य धरणि । पारस पारसेव य,अपच्छिमो सत्त य धणूणि"IROIR०१० लसोम्पवयणा, सूरतिबोकनिग्गयपभावलघसद्दा, समत्तभचक्रवर्तिनां स्त्रियः
रहा हिवा, नरिंदा, ससेमवणकाणणं च हिमवंतसागरंतं धरा पपसिंवारसएहं,चक्कवट्टीणं चारस शत्थिरयणा होत्था।तं जहा. जोत्तण भरहवासं जियसत्तू पवररायसिंहा पुवकडतवपना"पडमा होह सुभद्दा,भद सुणंदा जया यविजया य॥ वा निविट्ठसंचियमुहा, अणेगवाससयमानम्वंतो नजाहि य किएहसिरी सूरसिरी, पउमसिरी वसुंधरा देवी। लच्चिई कुरुमई, इत्थीरयणाण णामाई" ॥ स.।
जणवयपहाणाहिं सालियंता,अतुझसद्दफरिसरसरूवगंधे य
अणुनविता ते वि उवणमंतिमरणधम्मं वितित्ता कामाएं। चक्रवर्तिनां स्त्रीषु सन्तानःचक्री वैक्रियं रूपं त्यक्त्वा स्त्रियं नुनाक्ति,तबसन्तानं स्यान्न वेति? चक्रवर्तिनः राजातिशयाः ससागरां भुक्त्वा वसुधां माएडप्रश्ने,उत्तरम्-चक्रिणो वैक्रियशरीरेण सन्तानोत्पत्तिर्न सजाव्यते, लिकत्वं च तुक्त्वा भरतवर्ष चक्रवर्तित्वे अतुलान् शब्दादींश्चाकिं त्वौदारिकेणैव,केवसं ते वैक्रियशरान्तर्गता इति न गर्भाधा- नुभूयोपनमन्ति मरणधमेमवितृप्ताः कामानामिति संबन्धः। महेतव इति प्रज्ञापनावृत्तिवचनात् । या च शिक्षादीत्यादीनां।सू.
किंविधास्ते इत्याद-सुरनरपतिभिः सुरेश्वरनरेश्वरैः सत्कृताः र्यादेरुत्पत्तिः श्रूयते,तत्रापि समाधानान्तरमस्ति, तश्चेदम "वैकि- पूजिता ये ते तथा । के श्वानुनूता इत्याह-सुरवरा श्व देवपेभ्यः सुरानेभ्यो, गों यद्यपि नोनवेत् । तदा नीतीदारिकाङ्ग प्रवराइव,की-देवलोके स्वर्ग तथा भरतस्य नारतवर्षस्य सम्बधातुयोगात्तु संभवी"।१। श्त्यादिमद्ववादिप्रबन्धे । ही०२प्रका। निधनां नगानां पर्वतानां नगराणां करविरहितस्थानानां सहनैचकवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवर व्व देवलोए भरहनग
निगमानां वणिजनप्रधानस्थानानां जनपदानां देशानां पुरव. णगरनिगमजणबयपुरवरदोणमुहखेमकब्बडममवसंवाहप-.
राणांराजधानीरूपाणांद्रोणमुख न जलस्थनपथयुक्तानां खेटा.
नांधूलीप्राकाराणां कर्वटानां कुनगराणां ममम्पानां दूरसंस्थित. दृणसहस्समंमियं थिमियमेयणियं एगच्चत्तं ससागरं भुंजि- सन्निवेशान्तराणां संवाहाना रक्षार्थ धान्यादिसंवहन वितकण वसुहं नरसीहा नरवती नरिंदा नरवसहा मरुयवस- पुर्गविशेषरूपाणां पत्तनानां च जलपथस्थलपथयोरकतरयुजकप्या अन्नहियं रायतेयनच्छीए दिप्पमाणा सोमा रा
क्तानां मरिमता या सा, तथा, तां स्तिमितमेदिनीकां निर्मयत्वेन
स्थिरविश्वनराश्रितजनाम् एकमेव छत्रं यत्र एकराजत्वात् सा यत्रसतिलगा रविससिसंखवर चक्कसोत्थियपमागजवमच्छकु
एकन्छना ता ससागरा तां तुक्त्वा पालयित्वा वसुधां पृथिवीं म्मरहवरजगभवणविमाणतुरंगतोरणगोपुरमणिरयणनंदि
भरतार्कादिरूपां,माण्डलिकत्वेन एतश्च पदद्वयमुत्तरत्र “हिमवं. यावत्तमुसलनंगासुरइयवरकप्परुक्खमिगवतिभद्दासणसुर- तं सागरंतं धीरा भोतूण जरहवासमिति" समस्तभरतक्त्रविथजबरमनमसरियकुंडलकुंजरवसभदीवमंदरगुरुलज्मय
भोक्तृत्वापेकया भणनादवसीयते, नरसिंहाः सूरत्वात् नरपतयः इंदकेनदप्पणअट्ठावयचाववाणनक्खत्तमेहलवीणाजुगछत्त
तत्स्वामित्वात्, नरेन्जाः तेषां मध्ये ईश्वरत्वात्, नरवृषनाः गुणैः
प्रधानत्वात्, मरुवृषभकल्पा वा देवनाथभूताः मरुजवृषनदामदामिणिकमंडलुकमलघंटावरपोतसुचीसागरकुमुदागरम
कल्पा वा मरुदशोत्पन्नगवनूता अङ्गीकृतकार्यभारनिर्वाहकगरहारगागरनेउरणगणगरवश्किम्मरमयूरवररायहंससार- स्वात,अज्याधिकमत्यर्थ राजतेजोलम्या देदीप्यमानाः,सौम्या: सचकोरचक्कवागमिहुणचामरखेडगपर्वासगविपचिवरतालि
अदारणा नौरुजा बा, राजवंशतितकास्तन्मएडनभूताः, तथा यंटसिरियाजिसेयमेयणिखग्गंकुसविमनकासभिंगारवद्धमा- |
रविशश्यादीनि वरपुरुषअक्षणानि येषां ते तथा, रविशशी, शो
वरचक,स्वस्तिकं,पताका,यबो, मत्स्याश्च प्रतीताः,कूर्मः, कच्छपः, एगपसत्थउत्तमविनत्तवरपुरुसमक्खणधरा, बत्तीसराय- रथवरः प्रतीतो.जगो योनि,भवनं जवनपतिदेवावासो, विमानं
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