Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 3
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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। १२४२) अभिधानराजेन्दः ।
चेइय
चेय
हिछिमात्रा नबगेविजा विजयाईणि पंचाणुत्तरमाईणि । हियक्खपडिसेयाई कणगामया पाया कणगामया गोफा एपसु विमाणाणि पत्तेय
कणगामईओ जंघाओ कणगामया जाण कणगामया करू "वत्तीसट्टावीसा, वारस चउरो य सयसहस्सा।
कणगामईश्रो गायलट्ठीओ तवाणिज्जमईओ नाभीयो रि. पारेण बंजनोगा, विमाणसंखा नवे एसा ॥ पंचासचत्तछचे-व सहस्सा बंतसुक्कसहसारे ।
हमईयो रोमराजीओ तवणिजमया चूचुआ तवणिजमया सयचउरो आणयपा-णपसु तिन्नारगच्चुयए ।।
सिरिवच्छा कणगामईयो गीवाओ कणगामईओ वाहासक्कारसत्तरं हि-हिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए ।
ओरिद्वामए मंसू सिलप्पवानमया ओट्ठा फलिहमया दंता सयमेयं वरिमप, पंचेच य अणुत्तरविमाणा ॥
तवाणिज्जमईश्रो जीहाओ तवणिज्जमया तालुश्रा कणगमईसवांगचुलसिसयसह-ससत्तएनई भवे सहस्साई। तेवीसं च विमाणा, विमाणसंखा नवे पसा" ॥
ओ नासाो अंतो लोहियक्खपमिसे याओ अंकामयाई अतदा प्रदोलोए मेरुस्स उत्तरदाहिणश्रो असुराश्या दस
छीणि अंतोलोहियक्खपरिसेग्राईपुनकम यो दिहीनिकाया । तेसु विभवणसंखा
यो रिहामईयो तारगाो रिट्ठामयाई अच्छिपत्ताई रि"सत्तेवय कमीश्रो. हवंति वावत्तरि सयसहस्सं । हामईयो जमुहाओ कणगामया कवोलाकणगामया सवणा जावंति विमाणाई, सिहायतणाइतावति" ॥
कणगामया णिडाला वइरामईओ सीसघमीनो तवणिज. तहा तिरियलोगो, तत्य जिनायतनानि
मईओ केसंतकेसनूमीश्रो रिट्टापया उवरि मुद्धया, तासिणं "नंदिसरे वावन्ना, जिपहरा सुरगिरीसु तह असीई। कुंभलनगमणुपुत्तर-रूअगवनपसु चस चउरो॥
जिणपडिमाणं पच्चिओ पत्तेयं पत्तेयं उत्तधारगपमिमाओ नसुयारेसु चत्तारि, असीह वक्खारपव्ययेसु तहा। पत्ताओ,ताओणं उत्तधारपफियाओ हिमरययकुंदंदुप्पगावेब सत्तरिसय, तीसं वासहरसेनेसु ॥
साई कोरिटमवदामा धवलाई आतपत्ताई सलीनं ओहारमावोसं गयदंतेस , इसजिणजवणाइ कुरुनगवरेसुं। एवं च तिरियसोप, अमवमा टुति सयचउरो॥
णीओ ओहारेमाणीओ चिति, तासि णं जिणपमिमा वंतरजोइसिसाणं, असंखसंखा जिनालयाई वा।
उनो पासिं पत्तेयं पत्तेयं चामरधारगपमिमाओ पात्ताओ, गामागरनगराई, पपसु कया बहू संति॥
ताओणं चामरधारगपमिमानो चंदप्पहवेरुवियनाणामाणएयं च सासयासा-सया बंदामि चेइआई ति।
कणगरयणविमलमहरिहतवाणिज्जुज्जाविचित्तदंमाओ चिइत्थ पर्दसम्मि ठिो , संता सत्य पदेसम्मि " ॥
द्वियायो प्रखंककुंददगरय अमयमहितफेणपुंजर्मनिकासाकति समस्तद्रव्याहद्वन्दनादिवेदकगाथासमासार्थः।
श्रो मुटुमरययदीहवालाओ धवलाओ चामराम्रो सनीलं अत्र जिनप्रतिमानां यद् अव्याहत्वमुक्तं, तद्भावाऽईत्परिक्षानहेतु
ओहारेमाणीओ २ चिट्ठति । तासि णं जिणपमिमाणं मतामधिकृत्य,अन्यथा तासांस्थापनाजिनत्वात् । कश्चिदाह-पत. त् श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रं न गणधरकृतं, किंतु धावककृतम्। तत्रापि
पुरओ दो दो नागपडिमानो जक्खपडिमाओ तू"तस्स धम्मस्स" इत्यादिगाथादशक केनचिदर्वाचीनेन किप्तमि
तपमिमामो कुंमधारपमिमाओ विणोणयाश्रो पंजलिपुत्यादि निर्बीजम्, सहसाझातकथने तीर्थकरादीनां महाशातना- मानो (पायवमियाओ) सन्निक्खित्तानो चिट्ठति । सबरप्रसङ्गात् । न हि क्वाप्येतस्सूचकं प्रवचनमुपसभामहे । न चाविच्छि- ययामईओ अच्छाओ साहाओ लएडाओ घट्ठाओ मट्ठाअपरम्परागतवृद्धवचनमीदक केनचित् श्रुतम्,किं तु यस्य सूत्रा
ओ नीरयाओ णिपंकाओ० जाव पमिरूवाओ, तासि पं देः कर्तृनाम न शायते, प्रवचने च सर्वसंमतं यत्सत्कर्ता सुधर्मस्वा. म्यवति वृद्धवादः। जणितं तथा विचारामृतसंग्रहेऽपि-"निय.
जिणपमिमाणं पुरओ अट्ठमयं घंटाएं अट्ठसयं चंदणकनदब्बे कयासुं,जिणिदभवणविववरपटासु।वियरपसत्यपु
साणं अट्ठसयं भिंगारगाणं थालाणं णायंसगाणं पातीणं सु. स्थय-सुतित्थतित्थयरपूजासुं"॥१॥इति । भक्तप्रकीर्णके-"संवच्छ- पटगाणं मणगुलियाणं वायकरगाणं वित्तारयणकरंमगाणं रचाउम्मा-सिपसु अहाहित्रासुअविहीसुं। प्रश्चायरेण लम्गाइ,
हयकंगाणं० जाव उसनकंगाणं पुप्फचंगेरीणं० जाव जिणिदपूना तवगुणेम ॥” इत्यादि । किंबहुना-उपदेशमालायाम्-"वाक्येनावगृहीतसंगतनृणांवाच्यार्थवैशिष्टयता,
लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपमलगाणं अट्ठसयं तेलसमुग्गाणं सद्बोध प्रतिमाः सृजन्ति तदिमा कयाः प्रमाण स्वतः ।
जाव धूवकमुच्चुगाणं संनिक्खित्तं चिट्ठति । जी०३ प्रति। तत्तत्कर्मनियोगनृत्परिकरैः सेव्याः परोपस्करै
तत्य कने से उवरिमविमिमग्गसाले एत्य णं एगे महं सिरेता पव हि राजलकणनृतो राजन्ति नाकेष्वपि ॥२॥" प्रतिः। कायतणे पहात्ते-कोसं आयामेणं, अछकोसं विक्खंनेणं, तथा च
देसणं कोसं नई उच्चत्तेणं आगेगमतसग्निविटे. वमओतत्थ पं देवच्छंदए अट्ठसयं जिएपमिमाणं जिणुस्सेह- तिदिसिं तो दारा पंचधसता अवाजधणुसय पमाणमित्ताणं संनिक्खित्तं चिट्ठति, तासि एंजिणपमि- विकावंजेणं मणिपढिया पंचधणुमतिया देवछंदओ पंचधणुमाणं अयमेयारूवे वरमावासे पन्नत्ते । तं जहा-तवाणि- सतविक्खंभो सातिरेगं पंचधणुसयं न नच्चत्तणं,तत्य जमया हस्थतला पायतला भंकामयाई नखाई अंतो लो- देवच्छंडए अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणाणं एवं
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