Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Reaco colatesearcocalsasteactactarsaas NEHATIODERATIOME RRRRRRDOS ANS AVMwwwwwwwwwVRELMwwwwwwwwww. KANISATIKARANMARTR7RITTENNA ॥जैनीय-वैराग्यशतकं भाषान्तरसहित॥ तयRIGORAHAR ma ॥प्रारम्भः ॥ PARLICE Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********************* nahar नथी. तेमज सोना मदोर मले, त्यारे हपियो बांवो का नथी. तेमज रत्न मले, प्यारे सोना महोर बांगवी कठल नथी. तेमज पार्श्वमणि मले, त्यारे रत्न बin कण नथी. तेमज चिन्तामणि रत्न मले, त्यारे ते पूर्वेकहेतुं सलुंधन मूक कांड का नथी. माटे चिंतामणि रत्न समान तो प्रात्मगुण बे. ते श्रात्मगुण प्रकट करवाने माटेज सर्व । या अनुष्ठान करवां परे बे. ते पण आत्म ज्ञान पूर्वक विधि सहित करे, त्यारेज आत्मगुण प्रकट थाय बे. ते आत्मगुणोनो | अंत कोयी कही शकाय तेम नथी. जेम के, आकाशनो अंत कोइ पक्षीश्री पांमी शकातो नथी. जेम जे पक्षी, पोतानी पांखना बलवमे जेटला आकाशमां नही शके बे, ते पक्षी, या प्रालुंज आकाश बे, एम समजे बे. जेम मगतरु, समली, अनल पक्षी, अष्टापदनामा पक्षी अने गरुम पी ए सर्वे पांखवाला बे, तेन पोते पोतानी पांखना बल प्रमाणे श्राकाशमां गमन करी शकेबे, परंतु ते सर्वने पण आकाश अपारने अपार रहे बे. तेम आत्माना ज्ञानादिक गुणो अपार साररूप बे, तेश्री उलटो या सघलो संसार प्रसाररूप बे. अर्थात अनेक प्रकारना अधि चरकलु, Jain Education Intal **********************§*** ww.jainelibrary.org Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********************** तथा व्याधि तथा नपाधि तेणे करीने आत्मगुस प्रकट करवानो मुद्यम बिलकुल करि शकतो नश्री.ने कदापि करे , तो देहने पोतानुरूप मानीने करे , एटले मनावा पूजावादिकनी लालचे करे.माटे ते आत्मगुण शीरीते प्रगट पाय? परंतु ते आत्मगुणों तो, क्यारे प्रकट थाय? के, ज्यारे आ संसारने विषे देहादिक सर्व पदार्थने असाररूप जाणे त्यारेज प्रात्मगुण प्रकट थाय ने. अर्थात् वैराग्य पाम्या विना आत्मगुण प्रकट थायज नही. माटे मोद मार्गमां चालनार पुरुषने तो, * वैराग्य पगने ठेकाणे डे, ज्ञान हृदयने केकाणे , अने धर्म मायाने ठेकाणे . तो पण एक बीजाने परस्पर संबंध रहेलो . एटले मोक्षमा जनार एरुषने पूर्वोक्त त्रणे पदार्थोनुं संपूर्ण बल जोश्ए. परंतु तेमां मोक्षमार्गे चालनारने प्रथम पगर्नु बल बरोबर जोशए; केमके, पगविना चालीशकातुं नश्री. एटलाजमाटे वैराग्यनुं बल दृढ जोए, ते वैराग्यने जागृत करनार एवो आ वैराग्यशतक नामनो ग्रंथ कोश पूर्व धर पुरुषे पूर्वमांश्री उधरो बेतेने गूजराती नापान्तर सहित करी, प्रगट करूंबुं. ॥लि. शास्त्री रामचन्द्र दीनानाथ ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ ॥ श्री वैराग्यशतकम् ॥ प्रणम्य परमात्मानं । बालबोधाय लिख्यते ॥ वैराग्यशतकस्यास्य । नाषा टीकानुसारिणी ॥१॥ श्री पूर्वाचार्य महाराजे पूर्वमांयी नहार करीने वैराग्यशतक नामनो ग्रंथ रच्यो . अने तेनी टीका संवत् १६५७ ना वर्षमां खरतर गहीय श्री जिनचंसुरिना राज्यमां यएला श्री गुणविनय नामा आचार्ये करी . तेनो जावार्थ | लने आ बालावबोध कस्यो , ॥आर्यावृत्तम् ॥ संसारे सारे नास्ति सुखं व्याधिवेदनाप्रचुरे संसारंमि असारे । नबि सुहं वाहिवेअणापरे । ****XXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education Memattonal IV w.jainelibrary.org Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | হাত X XXXXXXX m ****XXXXXXXXXXXXXXXXXXX जानन् इह जीवः न करोति जिनदर्शितं धर्म जाणतो इह जीवो । न कुण जिणदेसियं धम्मं ॥१॥ अर्थ-(असारे के) सार रहित एवो, अने (वाहि के") व्याधि. एटले शरीर संबंधि उख, (वेषणा के) वेदना. एटले मन संबंधि पुःख, तेणे करीने (पनेरे के) प्रचुर. एटले बहुल अथवा नरेलो एवो, (इह के) आ (संसारंमि के) संसारने विषे (सुहं के) सुख जे ते (नचि के) नथी. (जाणंतो केए) ए प्रकारे जाणतो एवो (जीवो के) जीव जे ते (जिरादेसियं के) जिनराजना प्ररूपेला (धम्मं के) धर्मने (न कुण के०) नश्री करतो ! ॥१॥ नावार्थ-अनेक प्रकारना आधि, व्याधि, अने नपाधि तेणे करीने आ संसा रजरेलो ने, एटले आ असार संसारमा कां पण सुख नथी. एवी रीतेश्रा जीव जाणे डे, देखे , अने अनुजवे बे; सोय पस आ भूढ जीव जिन परमात्माना कहेला धर्मने नथी करतो!! KK*********XXXK . .jainelibrary.org Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX श्रा प्रथम गाथामा एम का के, आ जीव संसार- असारपणुं जाणे ठे, तो |य पण श्री जिनप्रणीत धर्मने नथी करतो; एवं कडं. परंतु न्हानी नम्मरवाला अने तेज नवने विषे मोक्ष जनारा अने श्री वीरनगवाननी देशना फकत् एकज *वार सनिलवादी दृढ वैराग्यवान् अएला, एटलुंज नही पण ते संसारना असार पणा संबंधी माता पिता साथे प्रत्युत्तर करी ठेवटे माता पितानी आज्ञा ले जे रो बाल्यावस्थामां दीक्षा अंगिकार करी, एवा श्री अतिमुक्तककुमारनु वृत्तांत श्री अंतगमदशांग अने नगवत्यादि सूत्रने अनुसारे नीचे प्रमाणे जाणवू.. कथा. पोलासपुर नगरने विषे विजय नामे राजा, तेनी श्री नामनी पट्टदेवी एटले पटराणी, ते बे जणनो अतिमुक्तक एवे नामे पुत्र हतो. ते पुत्र बहु उद्यमे करीने महोटो अयो, अनुक्रमे करीने उ वर्षनी अयो, ते अवसरे नगरनी बहार श्री वीरस्वामी समोसख्या. एटले पधाख्या. त्यार पठी ज्ञानवंत एवा गौतम गणधर, (**XXXXX********* *** ** Jain Education in sual Ww.jainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीरस्वामीने पूठी निका लेवाने अर्को नगर मध्ये पाव्या, ते अवसरे बोकराउनी संगारे रमतो एवो अतिमुक्तक कुमार, गौतमस्वामीने देखीने ए प्र कारे पूडतो हवो के, “तमे कोण गे? अने केम फरो बो?" एम पूले सते गौ* नमस्वामीए कह्यु के, "अमे श्रमण बीए, अने जिक्षाने अर्थे फरीए बीये.” त्यारे कुमार बोल्यो. "हे पूज्य ! प्रायो, हुं तमने निका अपावु.” एम कहीने ते कुमार * गौतमस्वामीनी आंगलीए वलगीने पोताने घेर आव्यो. ते अवसरे श्रीदवी घणी खुशी यश्सती नक्तिये करीने गौतमस्वामीने नमस्कार करीने प्रतिलानतीनवी, एटले आहार पाणी प्या. त्यार पी अतिमुक्तक कुमार फरीने ए प्रकारे तो इवो के, “तमे क्या रहोगे?" त्यार पठी गौतमस्वामी कहेता इवा. * "हे लइ! जे नद्यानमां अमारा धर्माचार्य श्री वमानस्वामी वसे ले त्यां अमे* वतीए बीए.” ए, कह्यु, ते अवसरे ते कुमार बोल्यो. "हे स्वामिन् ! तमारी साथे श्री वीरस्वामीने वंदन करवा माटे हुँ श्रावं?" त्यार पनी गौतमस्वामी (************** K****XXXXXX ******** Jain Education in lahal D iljainelibrary.org Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * कहेता हवा, “यथासुखं देवानुप्रिय एटले हे देवतानने वजन! जेम तने सुख उपजे तेम." त्यार पठी गौतमस्वामीनी साये आवीने अतिमुक्तक कुमार नगवंतने वंदन करतो हवो. त्यार पठी जगवते धर्मनो उपदेश दीघो, ते उपदेश सांजलीने प्रतिबोध पाम्यो एवो अतिमुक्तक कुमार, दीक्षा ग्रहण करवाने श्छतो सतो माता पिनानी अनुज्ञा लेवाने अर्थे, घेर अावाने माता पिताने या प्रकारे क* हेतो हवो. “हे अंब! हे तात! में प्राज श्री वीरस्वामीजीनी पासे धर्म सानKडयो. ते धर्म मने रुब्यो. एटले ते धर्म करवानो मने अनिलाष भयो .” ते | * अवसरे ते माता पिता कहेतां हवा. "हे पुत्र! तुं धन्य , तुं कृतपुण्य ,तुं कतार्थ दु. एटले तने धन्य डे अने करघु ने पुण्य ते जेणे एवो तुं श्रयो, अने कर्यो । अर्थ नाम प्रयोजन ते जेणे एवं तु अयो. जे कारण माटे तें वीरस्वामीजीनी समीपे धर्म सांजल्यो, अने वली ते धर्म तने रुच्यो, ते कारण माटे.” त्यारपती ते कुमार फरीने एप्रकारे कहेतो हवो, “हे अंब! हे तात! हुं ते धर्म सांजल Jain Education Intel jainelibrary.org Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** XXX******************* वादिके करीमे संसारना नये करीने नदिन एटले नपरांग मनवालो एवो अने जन्म मरणना जयश्रकी नय पामेलो एवो श्रयो बु, ते कारण माटे तमारी अनुझाए करीने एटले रजाए करीने श्री वीरप्रनुजीनी समीपे प्रव्रज्या ग्रहण करवाने श्व॒ ." एवं का. त्यारपठी ते कुमारनी माता अनिष्ट कहेतां वल्लन्न नही एवं, अने एकांतपणे अणगमतुं एवं, अने अप्रिय एवं, अने प्रश्रम को दहा मो न सांवलेलं एवं, ते कुमारनुं वचन सांजलीने तत्काल शोकना समूह प्रत्ये पामी. एटले शोकातुर अई. अने दीन अने नदास एवा मने करीने सहित ठे मुख ते जेनुं एवी थइ सती, मूळ पामीने अंगणतलने विषे एटले घरना प्रांगवामां घसती सर्व अंगोए करीने पमी. ते अवसरे दासीनए शीघ्र, सोनानो कलश लावीने ते कलशना मुखश्रकी नीकलतुं एवं शीतल अने निर्मल एवं जल तेनी धारानए करीने एटले सुगंधवाली पाणीनी धारानए गंटी, अने करखो ताढा वायरानो नपचार ते जेने एवी कर सती चेतना पामीने वि ******************* Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाप करती थकी पुत्र प्रत्ये या प्रकारे कहती हवी. "हे जात! तुं अमारे एकज पुत्र डे, अने अमने इष्ट कहेतां वजन, अने कांत कहेतां मनोझ, अने प्रिय कहे* तां प्रियकारी एवो, अने आनरणना करंझिया समान, एटले अमूल्य रत्तुल्य ए वो, अने हृदयने आनंद नत्पन्न करनार एवो, अने नंबराना फूलनी पेठे ऽर्लन एवो तुंअमारे ने. एज कारण माटे कण मात्र पण तारा वियोगने अमे सहन करवाने * समर्थ नथी. ते कारण माटे हे जात! ज्यांसुधी अमे जीवीए त्यांसुधी तुं घरमां रहे. पठी सुखे करीने प्रव्रज्या ग्रहण करजे. एटले दीक्षा लेजे.” त्यार पठी ते कुमार कहेतो हवो. “हे अंब! तमारुं कहे, सत्य डे. पंरतु या मनुष्यनो नव अनेक जन्म जरा मरण रुप, तया शरीर अने मन संबंधि अतिशे फुःख, वेदतु । एटले नोमवq ते रुप उपञ्चे करीने परानव पामेलो एवो, अने अध्रुव कहेतां अशाश्वत एवो; अने संध्या समयनां वादलांना रंग सरखो एवो; अने जलना पत्र * रपोटा सरखो एवो; अने वीजलीना सरखो चंचल एवो; अने सभी जवू, पी Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ **XXXXXXXX********XXXXXXX जवं, नाश पाम, ए ने धर्म कहेता खनाव ते जेनों एवो . ते प्रथम अथवा पठी जरूर त्यागवा जोग्य ठे. एटले मूकबोज पमशे. दवे कोण जाणे आपणा मध्ये कोण पहेलुं परलोके जशे ? अथवा कोण पठी जशे? एवी खबर परती | नथी. ते कारण माटे तमारी आज्ञाए करीने हमणांज हुं दीका लेवाने श्छुछु."| ए रीते कुमारे कयु. त्यारपत्री फरीने माता पिता ते कुमरने कहेता हवा. “हे al पुत्र! या तहारुं शरीर विशेष रूपवालु एवं, अने लक्षण व्यंजन रूप गुणे क. रीने सहित एवं, अने नाना प्रकारनी व्याधिए करीने रहित एवं, अने सौनाग्य पसाए करीने सहित एवं, अनेन दणाएलां एवां, अने नदान कहेतांमनोहर अने कांत कहेता मनोज्ञ एवां, पांच इंनि तेमणे करीने सोन्जायमान एवं, एटले अ खंमित मनोहर पांच इंडियोए करीने रूप सौनाग्यादि गुणोने अनुन्नवीने एटले लोगवी ने परिणत वयवालो प्रश्ने एटले परिपक्क अवस्थावालो प्रश्ने पठी प्र ___ लक्षण -हाथ पगनी रेखादिक. व्यंजन-मष तिलकादिक. YYYYXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education Indian M.jainelibrary.org Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inter ब्रज्या ग्रहण करजे." त्यार पढी ते कुमार फरीने या प्रकारे कहेतो हवो. अंब ! हे तात! जे तमे शरीरनुं स्वरूप कह्यं, ते मनुष्य संबंधि शरीर, खलु कहे| तां निश्वे दुःखनुंज स्थानक बे, अने नाना प्रकारनी शैंकको व्याधियोने रहेवानुं घर एवं अने दामका रूप लाककांथी नृत्पन्न थएलुं एवं; अने नसाजाले करीने विंटाएलुं एवं, प्रने माटीना जांरुनी पेठे दुर्बल एवं, अने अशुचिना पुनलोए करीने व्याप्त एवं, अने समी जवुं पडी जवुं, अने नाश श्रवं ए बे धर्म नाम स्वभाव ते जे नो एवं प्रा शरीर, प्रथम अथवा पढी जरूर त्यागवा जोग्य थशे. एकारल माटे आवा शरीरमां कोण बुद्धिवंत पुरुष रीऊ पामे? एटले जे बुद्धिशाली पुरुष होय, ते तेवा शरीरमां रंजित नज थाय." ए रीते कुमारे कयुं. त्यार पढी कुमारनां माता पिता फरीने कहेतां दवां. "हे पुत्र ! प्रातदारा बापदादाश्री आवेलुं एवं विस्तारवंत धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख प्रवालां यदि पोताने वश्य एवं प्रधान व्य बे. जे व्य सात पेढी सूधी, प्रतिशे दीनादिकने एटले गरिब लोको ने थापवा मांमधुं श्रने पोते जोगववा मांगचं होय तोपण कय न थाय, एटले ainelibrary.org Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मय पवा, अंने अमनोज्ञ कहेतां असुंदर एवा, अने विरूप कहेता माग मूत्र अ ने पुरीष कहेतां विष्टा तेणे करीने नरेला एवा, अने पुगंध एवा डे नवास अने || निश्वास ते जेमना, एटले चंचोश्वास अने निचोश्वास जेमनो उगंध एवा, अने मूर्ख लोकोए अतिशे करीने सेवेला एवा, अने निरंतर साधुजनने निंदवा जो ग्य एवा, अने नत्कृष्ट नागे अनंत संसारना वधारनार एवा, अने कमवां फल रू पठे विपाक ते जेमनो, एटले अंते ऽर्गतिना फलने आपनार एवा कामन्नोग . हां कामनोग कहेवे करीने तेना आधारचूत एटले तेमने रहेवानुं स्थानक एवां * * स्त्री पुरुषनां शरीर जाणवां. ते शरीर पूर्वे कहेला वेशेषणोएकरीने सहित , एज कारण माटे तेमने अर्को एटले ते कामनोगोने अर्धे कोण पुरुष पोताना जीवितने निष्फल करे? एटले जे माह्यो पुरुष होय ते नज करे." आ रीते कुमारे उत्तर आप्यो. त्यार पठी ते कुमारनां माता पिता, ए प्रकारे विषयने अनुकूल एवांबहु वचनोए करीने ते कुमारने लोनाववाने असमर्थ थयां: पठी विषयने प्रतिकू ल एवां, अने संजमना नयने देखामनार एवां वचनोए करीने आप्रकारे कदेतां Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० ************ हवां "हे पुत्र ! नैर्ययं प्रवचनं कहतां वीतरागनुं कहेतुं एवं सिद्धांत अथवा शा सन ते सत्य बे. कहेतां साधुं बे, अने अनुत्तर कहेतां प्रधान बे. अने शुद्ध कहतां | दोष रहित बे. अने शल्यकर्त्तन कहेतां माया शल्य, नियाण राज्य, अने मिथ्या त्व शल्य, ए त्रण शब्यने नाश करनारुं बे. अने मुक्तिनो मार्ग बे, अने सर्व दुः |खने नाश करनार एवं वीतरागनुं कहेलुं प्रवचन बे. ते प्रवचनमां एटले जैनशा | सनमां रहेला एवाज जीवो सिद्धिपदने वरे बे. एटले वीतरागनी आज्ञाना पाल नार एवाज जीवो सर्व कर्मे करीने रहित थाय बे. परंतु या प्रवचन, लोढाना च या चाववानी पेठे प्रतिशे पुष्कर वे अने वेलुना कोलियानी पेठे वादे करीने रहित बे. अने वे जुजानए करीने महोटा समुद्र तरवानी पेठे दुस्तर एटले दुः | खे तरवा जोग्य बे. अने वली या प्रवचन बे ते तीक्ष्ण खजादिने उल्लंघन करवा जेवुं बे, तथा दोरमादिके करीने बांधेली एवी महाशिलादिक वस्तु तेने हस्तादि के करीने धारण करवा जेवुं बे. तथा असिधारा व्रत सेवन करवानी पेढे, एटले जेम खनादि, अतिक्रमण करवाने श्रशक्य बे, तेम था महाव्रतनुं पालवं प्रश ********* श० ********* ט Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्य. वली जैनशासनमा साधुनने आधार्मिक औदेशिकादि जोगववाने न कल्पे. एटले जैनना जे साधु होय ते पोताने वास्ते करेलु ए आदिक बेतालीश दोष सहित वस्तु ग्रहण करे नही. अने हे पुत्र! तुं तो सदाय काल सुखमां नत्प न अएलो . को दहामो पण फुःखमा रह्योज नथी. एज कारण माटे तुं शीत कहेतां ताढ अने उष्ण कहेतां घांम, कुत् कहेतां कुधा, पिपासा कहेतां तृषा, दं श कहेतां मांस, मशक कहेतां मगतरां, अने नाना प्रकारना रोगादि रूप, परि पह, नपसर्गो प्रत्ये सहन करवाने समर्थ नथी. ते कारण माटे हमणां तने दीदा लेवाने अर्थे आज्ञा प्रापवाने अमे श्चतां नश्री. अर्थात् हमणां तने आज्ञा नही आपीए.” त्यार पनी कुमार कहेतो हवो. "हे अंब! हे तात! तमे जे संजमनी | करता देखामी, ते पुष्करता खलु कहेतां निश्चे क्लिब पुरुषोने अने कातर पुरु षोने एटले कायर पुरुषोने अने कुत्सित पुरुषोने अने आलोकने विषे प्रतिबंधवा या पुरुषोने एटले आ लोकमांज सुख मानी बेठेला तेवानने, अने परलोकथी * अवला मुखवाला श्रएला एवा लोकोने एदले परलोकना सुखना अजाण लोको RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे KKXXXXX************** ने, अने विषयनी तृष्णावाला लोकोने . एटले पूर्वे कहेला एवा लोकोने संजम शव नं पुष्करपणुं लागे . पण खलु कहेतां निश्चे धीर पुरुषने अने संसारना नयश्री नहिन भएला एवा पुरुषने पुष्कर नयी. एटले संजम पालवो कठण नश्री.ते कारण माटे हुं तमारी पाझाए करीने हमणांज प्रव्रज्या लेवाने श्छु बु.” त्यार * पनी ते माता पिता फरीने कहेतां हवा. “हे बाल ! आटलो हठ तुं न कर. तुं शं समजे ?" त्यारे अतिमुक्तक कुमार कहेतो हवो. "हे अंब! हे तात! जे हुंजा गुंतेज नथी जाणतो. अने जे नश्री जाणतो तेज हुँ जाणुं बु.” त्यार पठी ते माता पिता कहेतां हवा. “हे पुत्र! आम केम बोले ?” त्यारे ते कुमार कहेतो वो. "हे माता पितान ! हुँ जाणुं बुं के, जे जन्म्यो तेने जरूर मर .परंतु ए टलुं नश्श्री जाणतो के, ते क्यारे मरशे ? अथवा किया स्यानमां मरशे? अथवा केवे प्रकारे मरशे? अथवा केटले काले मरशे? ए हुं नयी जाणतो. तथा हुँ नथी । जाणतो के, किया कर्मोए करीने नरकादिकने विवे जीवो नत्पन्न थाय ? पण आदर्बु जागुंदु के, पोतानां करेलां कर्मोए करीने जीव नरकादिकोमा उत्पन्न पाय XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे." ए रीते कुमारे नत्तर आप्यो.त्यार पठी तेनां माता पितान ते कुमारने,संज मने विषे स्थिर चित्तवालो जाणीने महोटा आमंबरे करीने निकलवानो महोटो। नत्सव करतां हवा. ते अवसरेअतिमुक्तककुमारे स्नान कहेतां नहावं, अने विलेपन कहेनां शरीरे चंदनादिकनो लेप करवो, अने वस्त्र आनरणादिकोए करीने ll शोजाव्युं छे शरीर ते जेणे एवो, अने माता पितादिक बहु परिवारे करीने परिव । Maरेलो एवो, महोटी शिबिकामां (पालखीमां) बेसीने नाना प्रकारना वाजिंत्रनो शब्द श्रये सते ज्यारे नगर मध्ये प्रश्ने निकलतो हयो, त्यारे घणा व्यना अर्थि नहादि लोको, मनोज्ञ वाणीए करीने आ प्रकारे आशिष देता हवा. के, हे राज कुमार! तुं धर्मे करीने अने वली तपे करीने कर्मरूप शत्रु प्रत्ये जीत. वली हे जगतने प्रानंदना करनार! तहारु कल्याण थान. वली तुं नत्तम कहेतां प्रधान एवा ज्ञान दर्शन चारित्रोए करीने नजीतला एवां इंडिया प्रत्ये जीत. अने अंगी। कार करेलो एवो साधुनो धर्म ते प्रत्ये रूम प्रकारे पाल, वली तुं निर्विघ्नपणे करीने सिहि स्थानकने पाम्य. ए प्रकारे आशिष दीधी. त्यार पठी ते अतिमुक्तक Jain Education India M.jainelibrary.org Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श - कुमार ए प्रकारे जाचक लोकोए स्तवना करवा मांमेलो एवो, अने नगरना रहे नार नर नारी नए आदर सहित जोवा मांमेलो एो, अने जाचक लोकोने वांनि । त दान प्रत्ये आपतो एवो, नगर की बहार निकलीने ज्यां श्री वीरस्वामीजीनुं । समवसरण ; त्यां प्रावीने शिविका की नतस्यो. एटले पालखीथी हेगे नतो. त्यार पठी माता पिता, ते कुमारने आगल करीने श्री वीरस्वामीजीनी समीपे । आवीने वंदनादि पूर्वक एटले कंदनादि नमस्कार करीने आ प्रकारे कहेतां हवा. हे स्वामिन ! आ अतिमुक्तक कुमार अमने वहालो , अने अमने मनोज्ञ , अ ने ए अमारे एकज पुत्र दे. परंतु जेम कमल, कादवने विषेनत्पन्न श्राय , अने । वली पाणीने विषे वृद्धि पामे . पण कादव अने पाणीए करीने लेपातुं नथी; ते मा अतिमुक्तक कुमार पण शब्द, रूप, ए लक्षण ते जेमनुं एवा कामोने विषे नत्पन्न अयो ठे, अने गंध, रस, अने स्पर्श ए के लक्षण ते जेमनुएवा लोगो AS/ने विषे वृद्धिप्रत्ये पाम्यो रे, पण ते कामनोगोन विये अने मित्र, झाति, वज न, संबंधि एवा लोकोने विषे लेपायो नश्री. अर्यात् ममताए करीने रहित ठेव ********XXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************* Jain Education Inte ********* ली या कुमार संसारना जये करीने उनि यो सतो एटले विरक्त मनवालो श्रयो सतो आापनी पासे दीक्षा लेवाने इसे बे. ते कारण माटे अमे आपने ग्रा शिष्य रूप जिका प्रत्ये श्रापीए बीए. आप पण आ शिष्यरूप जिक्षा प्रत्ये अंगी कार करो. त्यारे खामिए कहां, हे देवानुप्रियो ! जेम तमने सुख उपजे तेम, पण प्रतिबंध करशो नही, एटले ममता करशो नही. त्यार पी प्रतिमुक्तक कुमार जगवंतनुं वचन सांजलीने खुशी श्रयो सतो जगवंत प्रत्येत्रण प्रदक्षिणा करीने ने नमस्कार करीने उत्तर पूर्व दिशने विषे एटले ईशान कूणमां जश्ने पोतानी मैलेज आजरण माख्य अलंकार प्रत्ये मूकतो हवो. ते अवसरे माता, नज्व ल वस्त्रे करीने ग्रामरणादिक प्रत्ये ग्रहण करीने आंखो की प्रांसु मूक्ती की | अतिमुक्तक कुमारने ए प्रकारे कहती हवी. हे पुत्र ! पामेला एवा संजम जोगो ने विषे तहारे प्रयत्न करवो अने न पामेला एवा संजम जोगाने पामवाने घटना एटले रचना करवी. वली प्रवज्या पालवाने विषे पोताना पुरुषपणानो अ निमान सफल करवो अने प्रमाद तो करवोज नही. ए प्रकारे कही ने त्यार पी *********************** jainelibrary.org Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैo ****** ********** माता पितानुं जगवंत प्रत्ये नमस्कार करीने परिवार सहित पोताने स्थानके ग यां. त्यार पढी प्रतिमुक्तक कुमार, श्री वीरस्वामी समीपे श्रावीने वंदनादि करी | ने प्रवर्जित थयो. त्यार पछी श्री वीरस्वामीए पण पंचमहाव्रत ग्रहण कराववा | पूर्वक एटले पंचमहाव्रत ग्रहण करावीने क्रिया कलापादि शीखवाने अर्थे गीता र्य एवा स्यविर मुनियोने सुंप्यो त्यार पछी प्रकृतिए करीने जक एवो, अने विनीत एवो, प्रतिमुक्तक नाम कुमार श्रमण, एक दहामो महोटी वृष्टि पके स | ते एटले घलो वरसाद पमे सते काखने विषे पात्रु अने रजोहरण लेने बहार निकल्यो. त्यां जलनो प्रवाह वहेतो देखीने बाल अवस्थाना वा थकी माटीए करीने पाल बांधीने जेम नावनो चलावनार नाव प्रत्ये चलावे वे, तेम या यतिमुक्तक साधु पात्राने, आ महारी नाव बे, ए प्रकारे कल्पना करीने ते पाणीमां चलावतो सतो रमतो हवो. ते प्रवसरे स्थविर मुनियो तेनी ते प्रतिशे घटित चे ष्टा देखीने ते साधु प्रत्ये हांशी करता होय ने शुं जेम ! एम जगवत् समीपे आ वीने जगवंतने ए प्रकारे पूबता हवा. हे स्वामिन्! आपनो अंतेवासी प्रतिमुक्त ************************ 2TO ११ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * क नामे कुमार श्रमण, केटला नवोए करीने सिक्षिपदने वरशे? त्यारे जगवते कडं. हे आर्यो! महारो अंतेवासी अतिमुक्तक साधु, एज नवमां सिक्षिपदने व | रशे. ते कारण माटे हे रूमा पुरुषो! तमे अतिमुक्तक कुमार श्रमणनी जात्या- /* दिकने नघामवाथकी हीलना न करशो. अने तेनी नचित सेवा न करवे करीने निंदा न करशो. अने मने करीने लोकनी समक्ष गर्दा न करशो. अने तेनी अव | 'ज्ञा न करशो. वली हे देवानुप्रियो! ए अतिमुक्तक साधुने अखेदे करीने अंगी-* कार करो. अने अखेदे करीने तेनी सहाय्य करो. तथा नात पाणी लावी आप वारूप विनये करीने एनी वैयावच करो. जे कारण माटे आ मुनि, नवनो अंत * करनारज . एटले संसारनो नछेद करनारज . अने चरम शरीरवालो ने. ए टले या एने देखें शरीर . ए रीते ते ज्ञानवंत एवा स्थविर मुनियोने लगते का. त्यार पठी ते स्यविर मुनियो लगवंतने वंदन नमस्कार करीने जगवंतना * वचनने विनय पूर्वक अंगीकार करीने अतिमुक्तक कुमार श्रमण प्रत्ये अखेदे क *रीने अंगीकार करता हवा, जावत् वैयावच्च प्रत्ये करता हवा. त्यार पठी अति XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education Inter K ainelibrary.org Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० १२ ****** ************ | मुक्तक मुनि जे ते पण, ते पापस्थानने आलोवीने नाना प्रकारनी तपश्चर्यादिके | करीने संजम प्रत्ये सम्यक प्रकारे आराधन करने अंते अंतकृत केवली या सि दिप्रत्ये जता हवा. इति प्रतिमुक्तक मुनिनुं वृत्तांत जाणवुं. इहां प्रतिमुक्तक कु| मारने व वर्धनी नम्मरमां दीक्षा आपो वे. तेनुं कारण के, जगवंत पोतेज दीक्षा आप नार बे; माटे तेमां विशेष जाणवो नही. 1040 Jain Education Irional द्य कल्ये परस्मिन् परतरस्मिन्वर्षे पुरुषाः चिंतयंति अर्थमंपत्ति ‍ ३ ย ५. ६ कलं परं परारिं । पुरिसा चिंतंति अनुसंपत्तिं ॥ अंजलि इव तोयं の गनत् आयुः न पश्यंति G १० U ११ १२ १३ १४ अंजलिगयं व तोयं । गर्जतमाऽऽनुं न पिनंति ॥ २ ॥ अ- (पुरिसा के० ) पुरुष. अर्थात् मूढ पुरुषो जे ते, (श्रचं के० ) आज (कलं के०) काव्य ( परं के०) पहोर. एटले आावते वर्ष, (परारिं के०) परास्य. एटले TO |१२ w Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेथी पण आगल्ये वर्ष, (अन के) अर्य. एटले धन तेनी, (संपत्ति के) प्राप्तिते ने (चिंतंति के) चिंतवे जे. एटले विचारे ने. अर्थात् आज मारे संपनि थशे, काव्य म्हारे संपत्ति श्रशे, पहोर महारे संपत्ति अशे, अथवा परार थशे; एवी आ शाये करीने दिवस गमावे , परंतु ते पुरुष (अंजलिगयं के०) अंजलिने विषे रहेतुं एवं (तोयं व के) पाणी तेनी पेठे (गलंतं के७) गलतुं. एटले स्रवतुं एवं (आन के) आनखाने (न पिळति के) नथी देखता ॥२॥ नावार्थ-वली ते मुढ पुरुषो मनमा एम विचारे ने के,महाराज, काल्य, पहोर अथवा परास्य, धननी घणी प्राप्ति थशे. एम विचार कस्या करे . परंतु हालिमा रहेला पाणीनी पेठे कोकणे नाश पामता एवा पोताना आनखानो विचार नथी करता ॥२॥ यत् कल्ये कर्त्तव्यं तत् अद्य एवं कुरुवं सरमाणाः जंकल्ले कायवं । तं अजं चिय करेह तुरमाणा ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै १३ ********** ***** बहुविनं एवं मुहूर्त मा ११ १० १३ अपराहूं प्रतीक १२ १४ बहुविधो मुत्तो | मा प्रवरएवं परिकेह ॥ ३ ॥ ************************ श दु अर्थ - प्राणियो ! (जं के०) जे धर्मकार्य (कले के०) काव्य (काय के०) करवा योग्य होय, (तं के०) तेने (अंचिय के०) आजज (तुरमाला के०) नता वला (करेह के०) करो. केमके, (मुहुतो के०) मुहूर्त्त. एटले काल विशेष जे ते, (हु के०) निचे (बहुविग्धो के०) घणा विघ्नवालो बे. माटे जे धर्मकार्य पदेला प | दोरमां करवानुं दोय तेने (प्रवरएदं के०) अपराह्न एटले पावला पहोरे करी शुं. एम (मा परिकेह के०) विलंब न करो ॥ ३ ॥ नावार्थ - हे नव्य जीवो! जे धर्म संबंधी काम काव्य करवानुं होय, तेने नतावलथी श्राजज करो. केमके, सारां काम करवानी वखते, निश्वे घणां विघ्न यावी पमे बे. माटे जे धर्मकार्य पाबला पदोरे करवानुं होय, तेने पहेला पोर | मांज कर ढयो अर्थात् जे धर्मकार्य, जे वखते करवुं घटतुं होय, तेने तेज वख |१३ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तकरी त्यो ॥३॥ हीतिखंदे संसारस्वनावस्य पाचरणं नेहानुरागरक्ताअपि ही संसारसहावं । चरियं नेहाणुरायरत्तावि ॥ ये पूर्वाह्ने दृष्टाः ते अपराह्ने न दृश्यते ४ RXXXXXXXXXX********kkkx जे पुधएहे दिशा । ते अवरएहे न दीसंति ॥४॥ अर्थ-(संसार सहावं चरियं केष) संसारनो जे खन्नाव, तेनुं जे आचरण, तेने देखीने हमने, (ही के) घणो खेद थाय. केमके, (जे के) जे (नेहाणुरा * यरत्नावि के) स्नेहना अनुरागे करीने रक्त एवा पण, अर्थात् प्रेम बंधने करी बं | धायेला एवा पश, स्वजनादिक जे ते (पुवरहे के) प्रातःकालने विषे (दिघा के०) | दीग, (ते के०) तेज (अवरएहे के)सांऊ (न दीसंति के)नश्री देखाता !!! नावार्थ-ही इति खेदे !! अहह !!! अहो! प्रा संसारनो श्यो खन्नाव जे? BXXXXX****XXXXXXXXXXXXXX Jain Education in Mr.jainelibrary.org Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के, जेना खन्नावनो विचार करता तरतज खेद नत्पन पाय ठे!! केमके, जेप रस्पर प्रेमबंधने करीने गाढां बंधायेला , तेवां स्वजनादिक पण जे प्रातःकाले दीगं होय, तेनी तेज, स्वजनादिक सांझे देखातां नश्री !! एटले स्नेहानुरागे क. रीने गाढपणे बंधायेलाने परस्पर विजोग न पवो जोए, तोपण संसारनो ए वो स्वन्नाव ले के, जे प्रथम कणमां दी, ते बीजा कणमा तेवुने तेवू नथी दे| खातुं; माटे तेमनो विजोग थाय . एटलुंज नहिं पण स्थूल विजोग पण थया करे ॥४॥ मा स्वपिथ जागरितव्ये पलायितव्ये कस्मात् विश्राम्यथ ४ मा सह जग्गिअन्वे । पलाश्चमि कीस वीसमेह ॥ त्रयः जनाः अनुलग्नाः रोगः च जरा च मृत्युः एव १३ १४ १५ ७७ ५ १० ११ १२ तिन्नि जणा अणुलग्गा। रोगोअ जरा अ मच्चू अ॥॥१४ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *************** Jain Education Inte अर्थ- हे लोको ! (जग्ग के ) जागवाने ठेकाले अर्थात् धर्म कृत्यने वि षे (मा सुबह के०) न सूइ रहो. अर्थात् धर्म कृत्यने विषे प्रमाद न करो. अने ( पलाइ मि के०) नासवानी जग्याए (कीस के०) केम (वीसमेह के०) विसा मोरो बो? संसार नासवानी जग्या बे, तो तेमा निरांते केम बेसी रह्या वो ? केमके, (रोगो के०) रोग (अ के०) वली ( जरा के०) वृद्धावस्था ( के०) वली (मन्चू के०) मृत्यु (प्र के०) एज (तिन्नि जला के०) त्रा जण जे | ते (अलग्गा के०) तमारी पूंवे लाग्या वे. एटले तमारी केमे पड्या बे. माटे ध कृत्यमा प्रमाद न करो ॥ ५ ॥ *** जावार्थ- हे धर्मार्थ जीवो! जेम या ठेकाणे लोकोक्ति एवी ने के, जेनी पासे धन होय, तेमणे लुटवानी जग्याए जागता रहेवुं, अने नासवानी जग्याए | बेसी न रहेवुं, तेम धर्म कृत्यने विषे प्रमाद न करवो, अने नासवा योग्य एवो जे संसार तेमां बेसी न रहेवु, शाश्री के, रोग, जरा, अने मृत्यु एत्रण दुष्मनो तमारी पूंठे निरंतर पमेलाज बे, माटे प्रमाद बोमीने धर्म करणीमां साव " ************************ jainelibrary.org Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धान रहो. ॥ ५॥ दिवसनिशाघटीमालया आयुःसलिलं जवाना गृहीता EXKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX दिवसनिसाघमिमालं । आनसलिलं जीआण चित्तूणं॥ चंदित्यरतीवदाँ कालएवमरहट्टस्तं भ्रामयतः चंदाश्चवला । कालरहट्ट जमाति ॥६॥ अर्थ-(चंदाश्च के) सूर्य रूप (बश्वा के०) बलद जे ते (दिवस निसा घमिमा के) दिवस रात्रि रूप घमानी श्रेणियो वमे (जोआण के) जीव- * आन के) आनखा रूप (सलिलं के) पाणीने (चित्तणं के०) ग्रहण करीने (कालरहदं केष) काल रूप रहेंटने (लमामंति के)नंचे नीचे जमावे , अर्थात् नंचे नीचे फेरवे बे.॥६॥ लावार्थ-चं अने सूर्य ए रूप धोलो ने रातो एवा घणा बलवान वे बसदजे १५ XXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NTRXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ते दिवस अने रात्रि ते रूप लाल ने काला घमानी श्रेणियोंवमे, जीवोर्नु प्रानखा | रूप पाणीने नलेची नांखवाने, काल रूपरदेंटने फेरवे गे; माटे हे नव्य प्राणिये! आq नजरे जोइने पण तमने संसार नपरथी नदास नाव केमनश्री अतो?॥६॥ सा नास्ति कला तत् नास्ति औषधं तन् नास्ति किमपि विज्ञानं शिल्पं ६ ७ ८ ११, १० १२ १५ १३ १४ सा ननि कला तं ननि। नसहं तं नवि किंपि विनाणं ॥ येन धियते कायः खाधमानः कालसर्पण maries जेण धरिजइ काया। खजंती कालसप्पेणं ॥७॥ अर्भ-हे नव्य जीवो! (काल सप्पेणं के) काल रूप सर्प (खजंती के) खावा मांमेली एवी (काया के) देह जे ते (जण के) जेणे करीने (धरिज (के) धारण करीए, अर्थात् रक्षा करीए, (सा के) ते. अर्थात् तेवी (कला के०) बहोतेर कला माहिली कोइ पण कला(नवि के) नश्री (तं के) ते. अर्थात् तेवु | Jain Education Interna L ainelibrary.org Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ENYAKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | (नसहं के) औषध (नबि के नश्री. (तं केश) ते अर्थात् तेवं (किंपिक) कांश पण (विनाणं के) विज्ञान. अर्थात् शिल्प चातुरी (नवि के) नथी.अर्थात् प. मता शरीरनी रक्षा करे, एवी कोइ पण वस्तु नश्री.॥७॥ नावार्थ-काल रूप सर्प, या शरीरनुं नकण करी ले, ते कालरूप सर्पने * निवारण करे एवी कोइ पण कला नथी. तथा काल रूप सर्प मशेली कायार्नु मेर नतारवा समर्थ कोइ पण औषध नथी, तथा जगतमां अनेक प्रकारनी शि* *प चातुरी , पण कोई शिल्प चातुर्य एवं नश्री के, जेनी काल रुप सर्प, केर. * लागेज नहीं. माटे हे जव्य प्राणियो ! मोटा मोटा समर्थ पुरुषोनां बज समान शरीरने पण काल रूप सर्प गली गयो ; तो आपणा रांक जेवानी काची कायानो श्यो जरुसो ? माटे शीघ्रपणे धर्म कृत्य करी ल्यो.॥७॥ दीर्घफणींद्रपवनाले महीधराएवकेसरे दिशएवमहादले ४ दीहरफणिंदनाले । महिअरकेसर दिसामहदलिल्ले॥ Jraoalljainelibrary.org Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न इतिपश्चातापे पिवति कालरवभ्रमरा जनाएवमकरंद पृथ्वीएवकमले र्न पीअ कालजमरो। जणमयरंदं पुहबिपनमे ॥७॥ अर्थ- के इति खेदे ! एटले पा घणी खेद कारक वार्ता ले. अर्थात् आ वात जे न जाणे तेने पश्चात्ताप घलो थाय ने. (काल नमरो के) काल रुप * मर जे ते (दीहर के०) दीर्ध एटले महोटुं (फणिंदनाले के०) शेषनाग रुप नालु ते जेनुं एवं, ने (महिअर केसर के) महिधर एटले पर्वत ते रूप ने केसरा ते जेने विष एवं, ने (दिसा महदलिल्ले के) दिशा रुप ले महोटां पत्र ते जेने विषे एवं पुहवि पनमे के) पृथ्वी रूप कमलने विषे (जणमयरंदं के) जनरुप मकरदने अर्थात् लोकरुप रसन (पीअर के) पीए ३.॥७॥ नावार्थ-लोकमां एवी प्रसिद्धि के, नमरो कमलमांयी एवी रीते रसले IA के, जेथी करीने ते कमलने लगार मात्र इजा न पाय, तेवी रीते पोताने खप जेटलोज-मधुरे स्वरे बोलीने श्रोमो योमोरस ले ने; परंतु आजग्याए तो तेना KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education in Midw.jainelibrary.org Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SX** *** **** AAXXX श्री तमाम उलटी रीते जाणवा जेवू दे. माटे ते वार्त्तानो विचार करतां जव्य प्राणीनने तो दयाना अधिक प्रणामश्री कंपारो व्या विना रहेज नही!! जेम के, कालरूप असंतोषी एवो एक नमरो ने. ते पृथ्वीरूप कमलमांथी सोकरूप * तमाम रसने, व्याधि वेदनारूप क्रूरपणुं वापरीने चूशी ले ले. एटले कोइ माण * सने ते काल लक्षण कस्या विना रहेतोज नश्री. इहां पृथ्वीरूप कमलनुं शेष* नामरूप नाखवु कह्यु, ते लोकोक्तिश्री जाणवू. एटले लोकमां एवं कहेवाय ने के, प्रा बधी पृथ्वीने शेषनागे माया उपर नपामी सीधी ने. वली ए पृथ्वीरूप कमलमा पर्वतो, ते केसराने ठेकाणे . ने दश दिशायो ते महोटां महोटां पान मांने ठेकाणे . आवा महोटा कमलनो रस निरंतर पीतां पण कालरूप नमरो आज सूधी पण तृप्त थयो नथी; ने थतो पण नथी, अने घशे पण नही. माटे हे नव्य प्राणियो! कालरूप नमराना आस्वादनमा न अवाय, एवा आत्मस्वरूपने पामवाना साधनमां; प्रमाद गेमीने नद्यम करो!!॥७॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयामिषेण कालः सकल जीवानां ग्लं गवेषयन्सन् गया मिसेण कालो । सयलजीआणं बलं गवसंतो॥ पार्थ कथमपि न मुञ्चति तस्मात् ध उद्यम कुरुध्वं KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX पास कहवि न मुंचछ। ता धम्मे उद्यमं कुणह ॥ए । अर्थ-'डलं के०) उलने गवसंतो के०) गवेषणा करतो एवो (कालो के०) काल जे ते, (गयामिसेण के०) शरीरनी गयाने मिषे (सयलजीआणं के०) स कल जीवोनुं (पास के०) पासुं तेने (कहवि के०)को प्रकारे पण (न मुंबके०) | नथी मूकतो. (ता के०) ते हेतु माटे (धम्मे के०) धर्मने विषे (नधमं के०) नद्यम ने (कुणह के) करो ॥ ए॥ । जायार्थ हे नव्य प्राणियो! रात्रि दिवस, निघने खोलतो एटसे प्राप्राणि क्यारे स्खलना पामे के, एने हुं पककी लेलं, एवी वांगये निरंतर गयाने मिषे Jain Education Inter 10 MATrainelibrary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै पकवाने माटे पनवास पोलो एवो जे काल, ते कोइ प्रकारे पण पागे ठेएशन * वो नथी. एतो जरूर नचिंतो काली लेशे. ते वखते तमने घणो पश्चात्ताप थशे, के, अरेरे! आपणे कांश पण धर्मसाधन करी शक्या नही ! माटे जिनप्रणीत अहिंसादिक धर्मने विषे, ज्यां सूधी कालना झपाटामां बराबर नथी पाव्या, त्यां सूधीमां कांश पण प्रयत्न करी ल्यो॥ ए॥ कले अनादौ जीवानां विविधकर्मवशगानां XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX कालंसि प्रणाईए । जीवाणं विविहकम्मवसगाणं ॥ तत् नास्ति संविधान-जेदवं संसारे यदेकेंद्रियादितं न संजवति - तं ननि संविहाणं । संसारे जं न संनव ॥ १० ॥ अर्थ-(अणाईए के०) आदि रहित एवा (कालंमि के०) कालचक्रने विषे प. रित्रमण करता एवा, ने (विधिहकम्मवसगाणं के०) नाना प्रकारना कर्मने वश Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX यएला एवा जीवाणके) जीवोने (संसारेके) संसारने विषे (जंकेजे संविहाणं | के) संविधान, अर्थात् एकेंशियादिक नेद (न संनवर के) प्राप्त श्रयेलो नश्री संत वतो एम, (तं नचिके) ते नथी. अर्थात् सर्वे एकेंशियादिक नेद ए जीवने थएला संनवे .॥ १०॥ | नावार्थ-काल, कर्म, जीव, अने संसार ए सर्वेनु अनादिपणुंडे, माटे आ *जीव कर्मना वशे करीने अनादि कालनो कालचक्रने विषे परिभ्रमण करतां क. रतां संसारने विषे सधला एकेंशियादिक नेदने पामी चूक्यो जे. पण एवं न कही शकाय के, अमुक नंद नश्री पाम्यो. माटे हे लव्य प्राणियो! आज तमे अ. हंकार करोडो, पण तमे तो केटलीएक वखत गधेमा पण श्रया गे, कूतरा पण | अया लो, अने बली ज्यारे बोर मूला मोगरी आदिकनी जातिमां नत्पन्न आया Pal त्यारे तो तमने न्हानां गेकरांए पण दाणा साटे वेचाथी लीधा, एटटुंज नही पण नपर माग्यामा पण गया; यावत् विष्टाने विषे कीमापणे पण नत्पन्न था चूक्या हो. तेना तेज तमे, आज शेर शाहूकार बनीने बेग गे. माटे तमे सर्व A jainelibrary.org Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैo प्रकार मान मूकीने धर्म कार्यमा प्रवत्तॊ. ॥ १० ॥ ..॥ अनुष्टुपवृत्तम ॥ घांधवाः सुहृदः सर्वे मातापितरौ पुत्रभार्याः बंधवा सुहिणो सके। पिअमाया पुत्तजारिया ॥ प्रेतवनात्मशानात् निवर्त्तते दत्त्वामृतंप्रति सलिलांजलि पेवणान निअत्तंति । दाऊणं सलिलंजलिं ॥११॥ | अर्थ-(सव्वे के) सर्व एवा (बंधवा के) बांधव (सुहिणो के) सुहृद एटले | मित्रो तथा (पित्रमाया के०) माता पिता (पुत्तन्नारिया के पुत्र तथास्त्री, ते सर्व जे ते, मरी गयेला मनुष्य प्रत्ये (सलिलंजलिं के) पाणीनी अंजलीने (दाऊरा के) आपीने (पेश्रवणान के) श्मशान थकी निअनंति के) पाग घेर श्रावे . पण मरेला मनुष्यनी संगा कोश्पण मनुष्य जता नथी.॥११॥ भावार्थ-हे जीव! आ सघला देहना संबंधि . पण ए कोर तहारु संबंधी XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Kailal Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX नश्री. केमके, स्वजन तथा मित्रो, माता, पिता, पुत्र, अमेस्त्री ए को माणस TI तहारां सगां नश्री. केमके, जे देहनी संगाचे तेमने संबंध हतो, ते देहने बाली * कूटीने पनी पाणीनी अंजली आपीने अर्थात् ते फरीश्री पाग घेर श्राववाना नथी एवी आशा मूकीने श्मशान थकी पोत पोताना स्वार्थने सनारतां पागं पोतपोताने घेर जाय .पण तेमांन को वहालु सगुंते जीवनी सा जतुंनथी। ॥आर्यावृत्तम् ॥ .विघटते वियुज्यते मुताः विघटनेबांधवाः बसलाः च विघटते विहति सुआ विहमति । बंधवा बल्लहा य विहमति ॥ एकः कथमपि न विघटते धर्मः हे आत्मन् जिननणितः इको कहवि न विहड । धम्मोरे जीव जिणणि ॥१५ * शहा हे एवं संबोधन न मूकना रे एवं ने अबम संबोधन मूवयु ने, तेनुं ए प्रयोजन ने के, या जीवने धर्म विना कोइ पण सहाय्यारी नथी. बोपण तेने मूकीने यज्ञानताश्री वीजाने सहाय्यकारी मानी बेगे माटे. w ww.jainelibrary.org Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX**** अर्थ-रे जीव के) हे अज्ञानी जीव! (सुश्रा के) पुत्र तथा पुत्रीयो जे ते (विदति के)विघटे ठे. अर्थात् तेनो विजोग प्राय बे. तेज रीते (बंधवा के) वजन जे ते (विहति के) विधटे . अर्थात् खजननो पण विजोग प्राय बे.* (य के) वली (वलहा के) वहाली स्त्रीयो पण (विहमति के) विधटे . ए टले तेनो पण विजोग थाय . एज रीते सर्व वस्तुननो विजोग श्राय , पण | *(को के) एक (जिगन्नणिन के) जिनपरमात्माये कहेलो (धम्मो के) धर्म | *जे ते (कहवि के) क्यारे पण (न विहम के) वियोग पामतो नश्री.॥१२॥ लावार्थ-हे मुग्ध जीव! तुं विचार करून के, या संसारमांतहारं कोण ? केम के, पुत्र, वजन, अने वहाली स्त्रीयो इत्यादिक सर्वेनो विजोग थाय .ए टले तेमने मूकीने तुं जश्श, अथवा तने मूकीने ते जशे. माटे ज्यां संयोग , *त्यां निमाये विजोग बेज. पण एक जिनराजनो कहेलो धर्म एटले जीवने कुःख |* मां पमतां धरी राखे माटे धर्म कहीए, ते धर्मनो को काले पण विजोग नथी । थतो. अर्थात् प्रा जीवने साचुं सगपण तो धर्मनुज . अने बीजुं सर्वे सगपण Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फोगट २ ॥ १२ ॥ अष्टकर्माण्येव पाशास्तैर्वधः जीवः संसार एव चारके बंदिगृह तिष्ठति अमकम्मपासबछो । जीवो संसारचारए गाइ॥ अष्टकर्मपाशमुक्तः । आत्मा शिवमंदिरे तिष्ठति अमकम्मपासमुको । आया सिवमंदिरे ग॥१३॥ - अर्थ-हे आत्मन्! (अमकम्मपासवशे के) आठ कर्म रूप पासे बंधाणो ए वो (जीवो के) प्राणी जे ते (संसारचारए के) संसार रूप बंधिखानाने विषे (गइ के) रहे . ने (अमकम्मपासमुक्को के) आठ कर्मरूप पासश्री मूकाएलो एवो (आया के) आत्मा जे ते (सिवमंदिरे केण) मोद मंदिरने विषे (गइ के०) * या जीव ज्यांसूधो कर्म वमे बंधायेलो , त्यां सुधी एने महोटा पुरुषो जीव कहे . अने जेम जेम कर्मथी मूकातो. जाय , तेम तेम तेने आत्मा कहीने बोलावे वे. तेवी वात जIxणाववाने माटे आ माथामां जीव तथा आत्मा एवा वे शब्दी मूकेला . EXXXK-X-K-XXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education Intern Pawar.jainelibrary.org Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श रहे डे. एटले एक समयमा बीजा क्षेत्रने न स्पर्श करतो मोक्षने पामेडे. ॥१३॥ नावार्थ-हे जीव! तुं विचार कस्य के, श्रा जगतमा एक पास व बंधाये |लो मनुष्य पण मूकाइ शकतो नथी, तो, तुंतो आठ कर्म रूप आठ पास वो * धायेलो, ने तेमां वली संसाररूप बंधिखानाना घरमांपड्यो .तोपण तेमां* मिथ्या सुख मानी बेगे दूं, पण तेमांथी निकलवानो उद्यम नी करतो, पण ज्यारे ज्यारे, तेमाथी निकलवानो नद्यम करीने ज्यारे आठ कर्मरूप पासने तो मीश; त्यारेज तुं मोक्ष मंदिरमा जईश. पण ते विनातो तने अविनाशी सुख क्यारे पण मलवानुं नथी ॥ १३ ॥ विनवः सज्जनसंगः विषयसुखानि विलासललितानि विहवो सज्जणसंगो। विसयसुहाई क्लिासललिआई॥ नलिनीदलायेऽदोलनशीलः जललव इन परिचचलं सर्व नलिणीदलग्गघोलिर । जललवपरिचंचलं सव्वं ॥१४॥ १२ wwwma Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %3 m अर्थ-(विहवो के) विनव एटले लक्ष्मी जे ते, तथा (सऊणसंगो के०) माता, पिता, नाई, नार्या, इत्यादिकनो जे संबंध ते, तथा (विलास के) वि. लासे करीने (ललिाई के) सुंदर एवां (विसय सुहाई के) विषय सुख (सवं | के) ए सर्व जे ते (नलिणी के) कमलिनी (पोयणी)तेना (दलग्ग के) पां नमांना अग्रलागने विषे (घोलिरके) धुमरातुं अर्थात् रहेतुं एवं (जललव के) पाणीनो बिंड तेना जेवू (परिचंचलं के०) अतिशे चंचल . अर्थात् अल्प वायु || श्री पण शीघ्रपणे पमी जाय तेवू ॥ १४ ॥ । लावार्थ-श्रा जीवे मानी लीधेलां एवां जे सुखकारी पदार्थ, जेवां के, ल. दमी, सगां, संबंधी, तथा अनेक प्रकारना विलासे करीने शोनता एवां पंच वि षयनां सुख ए सर्वे अतिशे चंचल . जेम कमलना पांनमाना अग्रतागमा रहे लुं पाणीनुं टीपुं योमी वारमा स्वतावेज माश पामे . तेम ते सघलुं सुख पण योमा कालमा हतुं नहोतुं प्रा जाय . माटे हे जीव! एवा अतिशे अस्थिर विषयसुखने विषे तुं शुं आसक्त पाय ! ॥ १४ ॥ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX mawwammum m am Jain Education Insthal I Milv.jainelibrary.org Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० २२ ****** **** तत् कुत्रगतं बलं तत् कुत्र यौवनं यंगस्य चंगिमा शोना कुत्र ३ २ ४ ६ ५ g तं बलं तं कन्न । जुबां अंगचं गिमा कल ॥ सर्व अनित्यं पश्यत दृष्टं पूर्व नष्टं पश्चात् कृतान्तेन कृता ११ १२ १.३ १० मणिचं पत्र । दिन कयते ॥ १५ ॥ U अर्थ - हे प्राणियों ! (तं के०) ते (बलं के०) शरीरनुं बल (कन्छ के०) क्यांग - युं ? वली (तं के०) त ( जुबां के०) जवानीपणुं (कच के०) क्यां गथुं ? वली (अंगचं गिमा के० ) शरीरनुं सुंदर पशुं (कल के० ) क्यां गयुं ? ते हेतु माटे ( कथंते के) काले करीने (छिंन के०) प्रथम दीतुं, ने पटी नाश पांम्युं एवं, (सर्व ०) सर्व वस्तु ( णिचं के० ) अनित्य एवाने ( पिछह के० ) अवलोकन करो. अर्थात् विचारी जुनं ॥ १५ ॥ भावार्थ - केटला एक पुरुषोने प्रश्रम जवानीपणामां घणा बलादिके सहित ************* ********** TO jainelibrary.org Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********** ******** जोड़ने, पबी तेमने वृद्ध अवस्थामां प्रति निर्बल जोइने उपदेश करे बे. के, दे प्राणिन् ! तारी जवानी पणानी शोजाये सहित शरीरनुं वलादिक क्यां गये ? हो ! काले करीने हतुं नहोतुं यज्ञ गयुं !! माटे सर्व वस्तु अनित्य बे. एम जा ए रात्रि दिवस करवा मांगेली एवी शरीरनो शुश्रूषा तेने नबी करो, केमके, तमे गमे तेलुं व्यादिकनुं खरच करीने शरीरनी साचवली करो, तोपल ते शरीरनी जवानी कदि काले तेवीने तेवी रहेवानी नथी. माटे जेनी सेवा निष्फ ल न जाय, एवा धर्मनी सेवामां तत्पर थानं ॥ १५ ॥ घनानि कर्माण्येव पाशास्तैर्बदः जब एव नगरचतुष्यथानि तेषु विविधाः NZUL १ ३ ४ घणकम्मपासबधो । जवनयरचनृप्प हेसु विविहान ॥ जीवः कः व्यत्रसंसारे शरणं तस्य प्राप्नोति विबनाः ६ ५ २ १० छ पावर विणा । जीवो को सरां से ॥ १६ ॥ ए の ************************* Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० - ( घणकम्मपास के०) निविक कर्मरूप पसाए एटले गांव्योए बं घायेलो एवो (जीवो के०) जीव जे ते (जवनयर के०) संसाररूप नगरना (च२३ | उप्पहेतु के०) चौटाने विषे. अर्थात् घ्यार गतिरूप चौटाने विषे (विविहान के०) अनेक प्रकारनी दुःख दाइ एवी (विबलान के०) विटंबनाने (पाव के) पामे | बे. ए देतु माटे ( इ के०) ए संसारने विषे (से के) ते प्राणीने (को के) कोए (सरणं के०) रक्षण करनार बे ? अर्थात् कोइ पण नथी. ॥ १६ ॥ जावार्थ - हे प्राणिन् ! आा जीव घणां कर्मरूप पासबंधी बंधायेलो एवो स तो प्यार गतिरूप संसारना चोगानमां (चौटामां) अनेक प्रकारनी शरीरने त Marna खदायक बंधनादिरूप विटंबनाने पामे बे. त्या तने रक्षण करवा hi समर्थ! र्थात् ते जीवनी रक्षा करनार धर्म विना बीजुं कोई पण स |मर्थ नी ॥ १६ ॥ घोरे . ‍ ३ घोरं मिगप्रवास | कलम जंबाला सुइबीजचे ॥ Jain Education Inter *** गर्जना से जनरम्यसमूह एव जंवालः कर्दमस्तेन शुचिबीजत्से ४ ********** TO १३ ainelibrary.org Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education ******** ****** पितः स्थितः अनंतकृत्वो ऽनतवारान् जीवः ६ 9 १ कर्मानुवेन ५ वसितखुत्तो। जीवो कम्माणावेण ॥ १७ ॥ अर्थ - (जीवों के०) जीव जे ते (घोरंमि के०) घोर एटले जयानक एवो (कलमल के) पेटमा रहेला व्यनो ( पदार्थोनो) समूह ते रूप (जंबाल के०) कादूव तेणें करीने ( अमुइ के० ) अशुचि नरेलो एवो, ने (बीजचे के० ) बीजन्स. कदेता कमकमाट जरेलो एवो (गप्रवासे के ० ) गर्भवासने विषे ( कम्मागुनावेश के०) शुभाशुभ कर्मना प्रजावे करीने (प्रांत खुत्तो के० ) अनंतीवार ( वसिन (b) रहेलो बे.. पण ते दुःखने नूली जश्ने फरी श्री अनंती वार गर्नवासमा दुःख जोगवुं पh, एवं कृत्य करे बे. परंतु फरीबी गर्भवासमां न श्रावकुं पके, एवो उद्यम नथी करतो ए. घणुं आश्चर्य ! ॥ १७ ॥ नावाने हे महामुग्ध प्राणिन् ! 4 श्रा संसारमां सारा माणसनी एवी रीत वे के, जे जग्गाए घयुंज दुःख पड़र्यु होय, ते जग्याए फरीबी न जाय. पण आ onal **** ******** w.jainelibrary.org Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX जीवनोतो एवो अवलो स्वन्नाव के के, तेज जग्याए वारंवार जवाय एषो नपाय शव कस्या करे . पण ते थकी विराम नथी पामतो. तेने जोश्ने ज्ञानी पुरुष नप. देश करे के, गर्नवासमां घगुंज कष्ट के. के, जेनुं वर्णन पण बरोबर था श. * क्तुं नथी. तोयपण इहां यत्कंचित् कहीए बीए. ते गर्नवास अनेक प्रकारना * मलमूत्रनी पुगंधथी नरपूर ने. के, जेमां सारी हवा श्राववानो तो लेश मात्र | रस्तोज नथी. ने अनेक प्रकारना सूक्ष्म जंतुन ते गर्जना कोमल शरीरने घणी वेदना नपजावे . ने, ते गर्नने नाशी जवानी जग्या नथी मलती, तेथी वारंवार मूळखाइ तेनी ते वेदना सहन करे . वली त्यां अनेक प्रकारनी रूंधण थाय ने तेनी वेदना, तथा जठराग्निथी श्रयेली नष्ण वेदना, इत्यादिक कमकमाट नरेली अनेक वेदनाउने सहन करतो उधे माथे नवमास सुधी टटलतो हतो. माटे हे जीव! ते पुःखना दिवस ते अनंतीवार लोगव्या तोपण तुं केम नूली जाय ? अने फरीश्री पागं तेनांतेज उःख पामवाना नपाय केम कस्या करे ? ॥१७॥ XIXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education l jainelibrary.org Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX चतुरशीतिः किल लोके शाने योनीनां प्रमुखानि शतसहस्त्राणि लक्षाणि विद्यते चुलसी किर लोए। जोणीणं पमुहसयसहस्साई॥ एकैकस्या योनौ च जीवः अनंतकृत्वः समुत्पन्नः इक्किकम्मि अ जीवो । अणंतखुत्तो समुप्पन्नो ॥१०॥ अर्थ-(लोए के०) लोकने विषे (जोगीणं के०) जीवनी नुत्पनिनां स्थानक KHIL (चुलसी के) चोराशी (पमुह के) प्रमुख (सय सहस्साई के०) लाख, एट * से चोराशी शब्दने प्रमुख कहेतां अग्रेसर करीने लाख शब्द जोमवो. अर्थात् चोराशी लाख, जीवने उपजवानां स्थानक ले. (किर केए) निश्चे. एटले ए वात शास्त्रमा कहेली . ते चोराशी लाख योनिने विषे (जीवो के) जीव जे ते (इविकम्मि के) एकेक योनिने विषे (प्र के)वली (असंतखुनो के) अनंतीवार (समुप्पो के) नुत्पन्न भयो ॥१०॥ नावार्थ-हे जीव! तुं चोराशी लाख जीवा जोनीने विषे अनंतीवार ब्रमण kk***************** **** Jain Education Intern al Aw.jainelibrary.org Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******************* करी आव्यो ई. ने, ते ते जीवा जोनीने विषे अनेक प्रकारनां बेदन नेदननांकुश ख, ते अनंतीवार सहन कयौं, तोय पण ते नत्पत्ति स्थानमांथी कंटालोपामीने, * धर्मकृत्य करवाने विषे तुं प्रीति केम जोमतो नथी? ॥ १० ॥ मातापितृवंधुनिः संसारस्थैः पूरितः लोकः मायापियबंधूहिं । संसारबेहिं पूरिन लोढं ॥ ..." बहुयोनिनिवासिनिः नच ते त्राणं पुनः शरणं पुनः २ ११६ ०.७ १० । बहुजोणिनिवासीहिं । नय ते ताणं च सरणं च ॥१॥ अर्थ-(संसारहिं के) संसारने विषे रहेला एवां, ने (बहुजोली के) घणी एवी योनि एटले चोराशी लाख योनि, तेने विषे (निवासीहिं के निवास करी ने रहेला एवां (मायापियवंधुहिं के) माता पिता ने बंधु, तेमणे करीने (लोचं के०) लोक जे ते (पूरित के) पूरेलो . (ते के) ते सर्वे (च के) वली ताहरुं Jain Education Intel MAILainelibrary.org Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ताणं के) रकप.करनार, अमे (च के) वली ताहरे (सरणं के)शरण करवा योग्य (नय के) नथीज. केम के, जे पोतेज बंधनमां पड्या होय, ते सामाने |बंधनथी शी रीते गेमावे? ॥ १७.u. नावार्थ-हे जीव! आ जगतमा रहेला सर्वे जंतु कदाचित् तदारु पालण पोषण करवा माटे, माता, पिता तथा बंधुरूपे ययांबे, ने तेमणे करीने आ स | व लोक पूरेलो . परंतु ते सर्वेधी पण आज सूधी तहारूंरक्षण अशक्यु नश्री.] I माटे ते ताहरे शरण करवा योग्य पण नथी.कारण के, संसारना महा फुःखरूप * प्रवाहमा खेंचाता प्राणियोने, जेमां सारो कर्णधार (नावनो चलावनार) दे, एवी * नौका (नाव) रूप जिनधर्म जे तेज, शरण करवा योग्य तथा ग्रहण करवा योग्य , पण माता पितादिक शरण करवा योग्य नथी॥१५॥ जीवः व्याधिविलुप्तः सफरो मत्स्यः स निर्जले आकुलीजवति XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX KX*************KKXXX***xe जीवो वाहिविलुत्तो । सफरो न निजले तमप्फडई ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (***XXXXXXXXX************ सकलः अपि जनः पश्यति का शक्तोऽस्ति. वेदनाविगमे ७0 0 १० १२ १३ ११ - सयलो विजणो पिडई। को सक्को वेणाविगमे ॥२०॥ अर्थ-(वाहि के) व्याधिये करीने (विलुत्तो के) नपश्व वालो एवो (जीवो के) जीव जे ते (निद्यले के) जल रहित प्रदेशने विषे (सफरोश्व के) मानलानी पेठे (तमप्फमई के तमफळे , एटले आकुल व्याकुल थाय. ते प्रका रना रोगे करीने पीडाता प्राणीने (सयलो वि के) सकल एवो पण (जणो के) * जन. एटेले लोक जेते (पिन के) देखे . परंतु ते जीवनी (वेअणाविगमे के०) | वेदनानो नाश करवाने विषे (को के) कोण पुरुष (सक्को के) समर्थ होय? - पितु कोर पण समर्थ न होय ॥२०॥ नावार्थ-श्रा जीव अनेक प्रकारना व्याधि वसे ग्रस्त श्रश्ने ज्यारे जलविना ना माग्लानी पेठे तमफळे , ते वखत मा! न बाप!! इत्यादिक सामाने अतिदो करुणा उत्पन्न श्राय एचा पोकार करे डे; त्यारे तेनी वेदनाने लेशमात्र Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IS नबी करवाने कोइ पण समर्थ अतुं नश्री, नलटा तेना मनने बीजी वेदना नस न पाय, एवी रोतना करुणा नरेला शब्दो वापरीने अने औषधादिकना घणा खरचमां नांखीने अने आंखोमां आंसु लाचीने, नलटा तेने वधारे गन्नरामणमा IS नांखे , अने पोते ज्यारे निराश थाय , त्यारे निसासा मूकीने मेवटे तेने धर्म E - शरण बतावे दे. पण तेमांधी कोश्यी कांइ पण पुःख लशकातुं नथी.माटे हे जीव! परिणामे धर्मनुं शरणतो करबुज पो , तो प्रश्रमयीज तुं धर्मनु श रण कर. कारण के जे धर्मना प्रत्नावथी तहारे फरीथी एवं उःख नोगवq प. में नही, माटे तेवा धर्मने कस्य. ॥२०॥ मा जानीहि हे जीव ले पुत्रकलत्रादि मम मुखहेतुर्भविष्यति मा जाणसि जीव तुमं । पुत्तकलत्ताइ मज्फ सुहहेक ॥ निपुणं गाढं बंधनं एतत् संसारे संसरतां -११ १२ १० . ए निनणं बंधणमेयं । संसारे संसरंताणं ॥२१॥ EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ta K****xxxkKXXXXXXXXXXXXXXX ___ अर्थ-(जीव के) हे प्राणिन् ! (पुत्नकलत्ता के) पुत्र तथा स्त्री इत्यादिक ज ते (मज्ज के) (महारे (सुहहेऊ के) सुख- कारण थशे.एम (तुमं के)तुं (मा जागसि के) न जाणीश. केम के, (संसारे के) संसारने विषे (संसरंताणं के०) नरक तिर्यंच इत्यादि रूपे ब्रमण करता एवा जीवोने (एयं केण) ए पुत्र क लत्रादिक जे तेज, नलटा (निनणं के) अतिशे गाढ एवा (बंधणं के)बंधन रूपे पाय ठे.॥१॥ * नावार्थ-अरे रे जीव! तहारी शी विपरीत बुद्धिथ? के, पुःखन कार Reण, तेनेज तुं, एकांते सुखनुं कारण मानी बेगे ! केमके, संसारने विषे स्त्री पुत्रादिक एज महोटुं बंधन . ते बंधनने तुं एम जाणे ले के, एथी महारे सुख प्रशे, परंतु तेथी कदि पण तहारे सुख अवार्नु नश्री, कारण के, तेमने विषे * गाढ़ प्रीति राखवाथी नरकने विषे जवं पमे, तथा तिर्यंच गतिने विषे गधेमा कूतरादिकना निःशंकपणे विषय नोगववाना अवतार धरवा पके .अने त्यांत्यां अनेक प्रकारनां दुःख सहन करवां पके . तेनुं कारण एज डे के, या महारी KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Dil स्त्री, प्रा महारो पुत्र इत्यादिक ममत्वनाव करवानी एवां फल मले . ने आ नवमां तेनुं पालन पोषण करवामां रात्रि दिवस गमावे .पण एम विचार नयी करतो के, आज बधो दिवस गयो, तथा आज बधी रात्री गइ, पण तेमां केटली घमी में महारा आत्मानुसाधन करघु? एवो विचार तुं केम नबी करतो?॥१॥ जननी नवांतरे जायते जाया स्त्री जाया माता पिता च पुत्रः चकारात्पुत्र:पिता ५ १३ ६ ए १ ७ १२ १७ जणणी जाय जाया। जाया माया पिया य पुत्तो य ॥ अनवस्थाऽस्ति संसारे कर्मवशात् सर्वजीवानां अणवत्रा संसारे । कम्मवसा सबजीवाणं ॥ ५ ॥ अर्थ-(संसारे के) संसारने विषे (कम्मवसा के) कर्मना वश थकी (सबजीवाणं के) सर्व जीवोनी (अगवना के) अनवस्था, एटले एक जातनी स्त्रि-* ति नथी रहेती, कारण के, (जगणी के) माता जे ते, नवांतरे (जाया के) स्त्री **KXX*****XXXXXXXXXXXX* Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - वै - रूपे. अने (य के) वली (जाया के) स्त्री जे ते, नवांतरे (माया के) मातारूपे, अने (य के) वली ( पिया केए) पिता जे ते, नवांतरे (पुत्तो के) पुत्ररूपे पण (जायर के) याय ले. अर्थात् प्रा जीवनी एक सरखी स्थिति नथी रहेती. इत्यादि अनवस्था जाणवी ॥ २ ॥ नावार्थ-हे जीव! संसारमा सर्वे जीव कर्मने वश . माटे तेमनुं स्वरूप सदाकाल एकरूपे रहेतुं नयी. एज संसारनो विषम वत्नाव जे. कारण के, जे मा *ता, ते नवांतरे मातारूपेज नथी थती, परंतु तेज माता स्त्रीरूपे पाय .अ ने जे स्त्री एटले पोतानी नार्या ले ते जवांतरे मातारूपे थाय . पण नार्यारूपे * नत्पन्न नश्री यती. अने जे पिता , ते नवांतरे पितारूपेज नथी अतो, परंतु पुत्ररूपे पण नत्पन्न श्राय रे. माटे. जेना नपर तुं आज प्रीति राखीने तहारो बधो । जन्मारो तेनुज नरण पोषण करवामां, पशुनी पेठे आ मनुष्यत्नवने एले गमा वे . पण एम विचार नधी करतो के, एज महारां केटलीएक वखत शत्रु परने तेनए मने छेदन, नेदन तामनतर्जन, घातपातादिक अत्यंत वेदना नपंजावी E***XXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX हो. तोपण हुं तेना नपर सरागनावे करीने नवटो रात्रि दिवस तेनीज चिंता- | मां रहीने महारुं धर्मध्यान मूकीने शुं करवा खराब थनं ? एवो विचार तुं ले शमात्र पण करतो नयी. कारण के, तुं आखो जन्मारो तेमने माटे कूटी कूटी। * ने मरी जश, तोयपण जो तेमना कर्ममां सुख नथी, तो तं केम करीने सुखी करीश? तथा तेमना कर्ममां जो च्यादिकनो लान नथी, तो तुं तेमने क्यांयी लावीने आपीश? तेम उतां कदापि तुं कूर, कपट, उलनेद, प्रपंच, विश्वासघा*त अने अन्यायादिक अनेक प्रकारनां कुकर्म करीने, महोटा मेरुपर्वत जेवमो मारे पापरूप नार नरीने, तुं व्य मेलवीने तेमने पापीश, तोयपण तेमनी पासे ते रहेवार्नु नथी. अने जो तेमना लाग्यमां व्यादिक पदार्थ , तो तुं कां पण नही आपे, तोयपण ते महोटा-कोटिध्वज थशे. माटे केवल तेमनेज मा टे पोतानु धर्मध्यान चूकवू, ते ठीक नही ॥ ॥ __आ बावीशमी गाथामां आ जीवने नवांतर आश्रीने अनेक प्रकारना संबंध प्राय उ. एम कधू. परंतु प्राने प्रा नवमांज अनेक प्रकारना संबंध श्रया , ते - JainEducation inb h al ANw.jainelibrary.org Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******* * |नी कथा नीचे प्रमाणे जाणवी. ॥कथा ॥ ___मथुरा नगरीने विषे कुबेरसेना एवं नामे एक गणिका (वेश्या) रहेती हती. ते एक दहामो पोताने गर्न नत्पन्न श्रवा थकी अतिशे खेद पामी. त्यारे तेनीमा ता कुहिनो तेणीए, तेने खेदवाली जोश्ने, तेनी पीमा दूर करवाने अर्धे वैद्यने * बोलाव्यो. ते वैये नामी जोक्ने तेने रोग रहित जाणीने ए प्रकारे का. के, आ ना शरीरमा कोइ पण रोग नथी. फक्त पेटने विषे, पुत्र पुत्रीरूप जोमलु नत्पन्न * थयुं छे. ए कारण माटे एने खेद वर्ते डे. त्यार पठी वैद्यने विदाय करीने ते कुहिनी, पुत्री प्रत्ये कहेती हवी, आ गर्न तहारा प्राणनो नाश करनारो दे. ते का रण माटे राखवा जोग्य नश्री. एतो पारवा जोग्य ते. ते अवसरे वेश्या कहेती हवी. क्लेश (ख) पण सहन करीश, परंतु मारा गनने कुशल रहो. एम क हीने पठी ते वेश्याए गर्जनी वेदना सहन करीने अवसरे पुत्र पुत्रीरूप जोमखें | kal प्रसव्यु. त्यारे वली कुहिनी कहेतां तेनी मा, कहती हवी. हे पुत्री! आ गेकरां ************ ए Mw.jainelibrary.org Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K**** नुं जोरुलुं तहारा जवानीपणाने नाश करनारुं श्रशे. ए कारण माटे या जोम विष्टानी पेठे त्याग करीने, आजीविकानुं कारण एवं पोतानुं जवानी पणुं राख्य. त्यारे वेश्या कहती हवी. हे मातः ! जो एम वे तो दश दिवस सूधी विलंब क| रो. पी तमारुं कहेलुं करीश. त्यार पवी तेनी माताये श्राज्ञा प्रापी. त्यार पी ते वेश्या दश दिवस सूधी धवरावीने ते बालकोनुं सम्यक् प्रकारे प्रतिपालन क रीने प्रगीयार मे दिवसे, एक जानुं कुबेरदत्त, धने एक जलीनुं कुबेरदत्ता ए प्र कारे ने जलनां नाम पामीने पबी तेमना नाम सहित एवी बे वींटीयो करावी ने ते बे जानी यांगली योमां घालीने पढी एक लाकमानी पेटीमां ते वे जलने मांही मूकीने संध्या समये यमुना नदीना प्रवाहने विषे ते पेटीने वहेती मूकी दीधी. त्यार पीते पेटी जलमां वहेती थकी अनुक्रमे करीने दिवसनो नदय re सते, शौर्यपुर नगरे श्रावी. त्यां स्नान करवाने अर्थे प्रावेला एवा बे शेठना पुत्रो ते पेटीने धावती देखीने, तत्काल लेइने एक जणे तेनी मध्ये एक बालक बालिका जोइने, तेमनी मध्ये जे पुत्रनो अर्थि इतो, ते पुत्र लीधो. अने ********* Tjainelibrary.org Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै0 बीजो पुत्रीनो पार्थि हतो, तेणे बालिका लीधी.ए प्रकारे ते एक एक बालक ले ने पोत पोतानी स्त्रीने प्राप्यु. पनी मुश्किामां बखेला प्रकरने अनुसारे तेमन * नाम पामयुं. त्यार पठी ते कुबेरदत्त अने कुबेरदत्ता एवे नामे बे बालक, ते शा हुकारोने घेर अतिशे नद्यमे करीने महोटां श्रयां. पठी अनुक्रमे करीने जोबन अवस्था पाम्यां.त्यारे ते बे बालकोनुंसरखं रूप जाणीने, ए बेशाहुकारो ते बेज नो मांहो मांहे पाणीग्रहणनो नत्सव करता हवा. एटले लग्मनो नत्सव कर्यो. त्यार पठी ते स्त्री जरतार, एक दहामो सोगटां बाजी रमवा बेगं. ते अवसरे कुबेरदत्तना हायश्रकी ते नामांकित मुश्किा कोश्क प्रकारे निकलीने, कुबेरदत्ता नी आगल पमी. त्यार पठी तेणीए ते मुश्किा पोतानी मुश्किानी साथे सरखी आकृतिवाली, अने एक देशमां घमेली, अने सरखा नामवाली एवी देखीने मनने विषे कुबेरदत्तने पोतानो लाई , एम निश्चे करीने ते बे वीटीयो कुबेरदत्तना हाथमां घाली.ते अवसरे कुबेरदत्त पण ते वींटी जोवा की तेमज तेने पो तानी बहेन , एम निथे करीने अतिशे खेद पाम्यो.त्यार पगी ते बे जण पण ********XXXXXXXXXXXXXXX XSEXXXXX******XXXXXXX ३० Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ****** पोताना विवादना कार्यने प्रकार्य मानतां एटले या खोदुं प्रयुं ! एम जाणतां एवां पोतानो संदेह निवारवाने माटे पोतपोतानी माताने सम खवरावीने प्रति शे आग्रह करीने पोतपोतानुं स्वरूप पूग्युं. ते अवसरे तेमनी मातानए ते बे ज रानी आगल मंजूषामांची (पेटीमांथी) कहाड्यां त्यांथी मांगीने सर्व पण वूतांत कां. त्यार पी कुबेरदत्त माता पिताने कहेवा लाग्यो के, तमे श्रमने जो रुले जन्मेलां जालीने पण श्रावुं अकार्य केम कर्तुं ? त्यारे ते कदेवा लाग्यां के, तद्वारा सरखी कन्या अने तेना सरखो वर क्यांहि श्रमने मख्यो नहीं. तेथी स रखां शोनादि गुणवालां तमने जालीने तमारा बेनोज मांहोमांदे विवाद कर्यो. परंतु दजु सूघी कांइपण बगमयुं नथी. जे कारण माठे तमारा बेनुं एक करपी मनज युं बे. एटले फक्त एक हाथनोज मिलाप थयो बे. पण मैथुन कर्म यु न. ते माटे तुं खेद न करीश. तने बीजी कन्या परगावी शुं. त्यार पछी कुबेरदते कयुं. तमारुं वचन महारे प्रमाण वे. परंतु हमणां तो हुं व्यापार करवाने | माढ़े परदेश जवानी बा राखुं खुं. ए कारण माटे मनेाज्ञा आपो. त्यार पी Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************XXXXXXXXXX ते शेठ शेगणीए आज्ञा आपी. पली कुबेरदत्त, ते वृत्तांत पोतानी वहेनने कही * ने, घणांक क्रियाणां लेग्ने, दैवयोग. थकी पोताने उत्पत्तिनुं स्थानक एवी.मथु. * रा नगरीए गयो. त्यां ते निरंतर पोताने नचित व्यापार करतो सतो, एक दहा |मो कोश्क माग कर्मना जोगथकी अद्भूतरूपे करीने शोलायमान एवी, पो* तानी माता कुबेरसेना वेश्याने देखीने, कामेपीमीत अयोसतो, ते वेश्याने बहु व्य पापीने, पोतानी स्त्री करीने निरंतर तेनी संगाथे विषय संबंधी सुख नो गवतो इवो. त्या अनुक्रमे करीने तेने एक पुत्र थयो. हवे शौर्यपुरने विषे ते कुबेरदत्ता, माताना मुखथकी मूलयकी पोतानी ते प्रवृत्ति सांजलीने, तत्काल वै. राग्य प्रत्ये पामी सती आर्या (साध्वी) नो संजोग यये सते दीक्षाग्रहण करीने, घणां महोटां तप करीने, विशुः अध्यवसायना योग प्रकी ग्रोमा कालमांज, तेणीए अवधिज्ञान नत्पन्न कर्य. त्यार पडी ते साध्वी, अवधिज्ञाननाबले करीने * पोताना नाईनुं स्वरूप जोती सती मथुरा नगरीने विषे पोतानी माता संगाये लागेलो एवो, अने पुत्र सहित एवो, तेने देखीने कर्मनी गतिने धिक्कार करतीए ३१ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - टले धिक्कार पमो कर्मने!!! एम कहती सती पोताना नाईने प्रकार जरूप म होटा पापरूप कादव थकी नधारवाने एटले काढवाने, पोते मथुरा प्रत्ये प्रावी. * ने, कुवेरसेना वेश्यानेज घेर जश्ने, धर्मलानरूप आशिष देश्ने तेनी पासे पो ताने नतरवार्नु स्थानक माग्युं ते अवसरे कुबेरसेना पण ते प्रार्याने नमस्कार करीने एम कहती हवी. हे महासती! हुं वेश्या . पण हमणां एक जरतारना संजोगयकी निश्चे कुलस्त्री या . ते कारण माटे तमे सुखे करीने महारा घर नी समीपे पाप रहित एवा आश्रयने ग्रहण करीने, अमने रूमा प्राचारमा प्रव नोवो. त्यार पली कुबेरदत्ता साध्वी पण, पोताना परिवार सहित तेणीए अपिल |ला नपाश्रयमा रही. हवे ते वेश्या, निरंतर त्यां प्रावीने, ते बालकने साध्वीनी आगलं नूं नपर लोटतो मूकती हवी. ते अवसरे अवसरनी जाण एवी जे सा | ध्वी, ते आगामी कालमां लोन जाणीने ते बालकने या प्रकारे बोलावती हवी. हे बालक! तुं महारो लाई दु.॥१॥ तुं महारो पुत्र बु.॥शा तुं माहारो दीयर All . ॥३॥ तुं महारा माईनो पुत्र दु, एटले नत्रिजो ९. ॥॥ तु महारो काको बु. EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX*: Jain Education Interna Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० ||५|| तु महारा पुत्रनो पण पुत्र हुँ. ॥६॥ तथा जे तहारो पिता बे, ते महारो नाई बे. ॥१॥ श्रने महारों पिता बे ॥ २॥ श्रने महारा पितानो पिता, एटले म दारो वान वे ॥ ३॥ माहारो भरतार बे. ॥४॥ महारो पुत्र बे ॥ ५॥ अने म दारो समरो पण . ॥६॥ तथा जे तहारी माता बे, ते महारी माता . ॥ १ ॥ श्रने महारा पितानी माता . ||२|| अने महारा जाईनी स्त्री . ॥ ३ ॥ श्रने म हारी वहु बे ॥४॥ अने महारी सासु बे. ॥५॥ श्रने महारी शोक्य पण बे. ॥६॥ एते कही ने साध्वी ते बालकने वारंवार बोलावे बे. त्यार पछी एक दहामो कुंबेरदत्त तेनुं वचन सांजलीने, आश्चर्य पाम्यो सतो, ते साध्वी ने कदेतो हवो. दे आयें ! वारंवार आवुं अजुक्त शुं बोलो बो? त्यारे साध्वी कहती हवी. हुँ प्रजुक्त नी बोलती. जे कारण माटे या बालक एक मातापला की नाई वे, एटले तेनी अने महारी एक माता बें, तेथी महारो जाई थाय बे. ॥ १ ॥ श्रने म हारा जरतारनो पुत्र बे, माटे महारो पुत्र थाय बे ॥ २॥ श्रने महारा जरतारनो नहानी नाई बे, माटे महारो दीयर बे ॥ ३ ॥ अने महारा जाईनो पुत्र बे, मार्के ३२ ********* ३२ ************** ********************* TO Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महारो नत्रीजोये.॥धा अने महारी माताना पतिनो नाई, माटे महारो काको लागे.॥५॥ अने महारी शोक्यना पुत्रनो पुत्र , माटे महारो पोत्रो लागे . ! |॥६॥-ए प्रकारे बालकनी संघाथे पोताना उ संबंध देखामीने, वली कहती हवी. जेआबालकनो पिता , ते महारे एक मातापणा यकीनाई, एटले तेनी अने महारी एक माता , माटे ना थाय . ॥१॥अने महारी मातानो नरतारथ यो, तेथी महारो पिता पाय . ॥२॥ अने महारा काकानो पिता अयो, तेथीम हारो वमानन अयो. ॥३॥ अने प्रथम मने परण्यो , माटे महारोजरतार थाय ॥॥अने महारी शोक्यनो पुत्र श्राय डे, माटे महारो पुत्र पण थाय ने ॥५ अने महारा दीयरनो पिता थाय, माटे महारो ससरो ने ॥६॥-ए प्रकारे वा लकना पिता कुबेरदत्तनी साथे पोताना उ संबंध कहीने, वली कहेती हवी. जे आ बालकनी माता , ते मने पण जणनारी , माटे महारी पण माता ॥ ॥अने महारा काकानी माता , तेथी महारी दादी लागे ने ॥शा अने महारा नाश्नी स्त्री यश, तेथी महारी नोजाइ श्राय ॥३॥ अने महारी शोक्यना KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******** वैo पुत्रनी स्त्री थर, माटे महारी वहु थ ॥॥ अने महारा जरतारनी माता थs, तेथी महारी सासु थ ॥५॥ अने महारा नानी बीजी स्त्री अश,माटे महारी ३३* शोक्य अश्॥॥ ए रीते आ बालकनी माता कुबेरसेना वेश्यानी साथे पोताना उ संबंध देखाड्या. ए प्रकारे आ अढार संबंध कहीने ते साध्वी, ते संबंधोनीखा तरी करवाने अर्थे, पोते व्रत ग्रहण कयुं ते अवसरे राखेली पोतानी वीटी कुबेरद नने आपती हवी. त्यार पनी कुबेरदत्त पण ते वींटी देखीने सर्व संबंध, विरुप ऐ जाणीने, तत्काल वैराग्य पामीने, पोतानी निंदा करतो सतो पोतानी शुद्धि | ने अर्थे, चारित्र ग्रहण करतो हवो. अने वली महा तप करतो हवो. तथा कुबेर सेना वेश्या पण ते प्रवृत्ति सांजलवा की प्रतिबोध पामी सती श्रावकनो धर्म अंगीकार करती हवी. त्यार पठी कुबेरदत्ता साध्वी, ए प्रकारे तेमनो नझार क रीने पोतानी प्रवर्तिनी पासे गइ, एटले पोतानी गुरुणी पासे गइ. अनुक्रमे ए सर्व जीवो, पोतानो धर्म सम्यक् प्रकारे आराधन करीने सजतिनां नजनार श्रयां, अर्थात् रूमी गतिमां गयां, ए प्रकारे अढार संबंध उपर कुबेरदत्तनुं दृष्टांत | XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ३ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************** ********* क. या एक जवने श्रीने संबंध देखाढ्या. अनेक नवनी अपेक्षामां तो प्राये करीने सांव्यवहारीक जीवोने एकएक संबंध पण अनंतीवार थया बे. ते प्रकारे श्री जगवती सूत्रना बारमा शतकना सातमा उद्देशमां कहां बे, तेनो अर्थ इहां लखीए बीए. गवंत! या जीव सर्व जीवोना मातापणे करीने, पितापले करीने, जा |ईप करीने, बहेनपणे करीने, स्त्रीपणे करीने, पुत्रपणे करीने, पुत्र पणे करीने पुत्री स्त्रीप करीने, सामान्यत्रकी शत्रुपले करीने, वैरिपले करीने एटले श भावना अनुबंध सहितपणे करीने, घातकपणे करीने एटले मारनारपणे करी ने, अने तामन करनारपणे करीने, प्रत्यनीकपणे करीने एटले प्रतिकूल पणे करी ने, अने कार्यना उपघातपणे करीने, एटले अमित्रसहायीपणे करीने, राजापणे करीने, जुवराजपणे करीने, यावत् शार्थवाहपणे करीने, दासपणे करीने, एटले घरनी दासीना पुत्रपणे करीने प्रेष्यपणे करीने एटले चाकरपणे करीने, मृतक पणे करीने एटले डुकालादिकने विषे अन्नसादे लीवेली तेपणे करीने, कर्मणादि ************************ jainelibrary.org Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O ४ लालना लाग ग्राहकपणे करीने, अन्य पुरुषोए नपार्जन करेला अर्थना नोग-श कारी नरपणे करीने, वली कला शीखववा जोग्यपणे करीने, अने वली षिक रवा जोग्यपणे करीने पूर्वे नत्पन्न भयो ठे? ए रीते गौतमस्वामीए नगवंतने पू ब्युं. त्यारे लगवंत कहेता हवा. हे गौतम! हा! अनेकवार अथवा अनंतीवार आ जीव सर्व जीवोनी माता श्रइ, पिता अयो, नाई भयो, ए रीते उपर कया| प्रमाणे पूर्वे सर्व संबंध करी चूक्यो . एज प्रकारे सर्व जीवो पण श्रा जीवना मातादिकपणे करीने, अनेकवार, तथा अनंतीवार पूर्वे नत्पन्न श्रया . ए रीते Ka सर्व जीवोने माहोमांहि सर्व संबंध श्रश् चूक्या ने.इति संसारनी अनवस्था नपर कुबेरसेना गणिकानुं दृष्टांत तथा श्री जगवती सूत्रना पाउनो अर्थ जाणवो. ॥अनुष्टप्वृत्तम् ॥ न सा जाति: न सा योनिः न तत् स्थानं न तत् कुलम् ११ ५ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १७ १५ न सा जाई न सां जोण।। न तं गणं न तं कुलं । ******KXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education Intl Karl.jainelibrary.org Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************************* सर्वे जीवाः न जाताः न मृताः यत्र ५ ६ G १ & न जाया न मुद्रा जन । सबे जीवा の Jain Education Internal अनन्तशः ४ तसो ॥ १३ ॥ • अर्थ :- (जन के०) ज्यां (सबे के०) सर्व (जीवा के०) जीव जे ते (अतसो ho) अनंत वार ( न जाया के०) नथी नृत्पन्न थया, तथा ( न मुद्रा के० ) नथी मरण पांया, एवी (सा के०) ते. अर्थात् तेवी कोइ (जाई के०) जाति जे ते (न के०) नथी. ने (सा० ) ते अर्थात् तेवी कोइ (जोएल के ० ) योनी जे तेन के० ) नी. अने (तं के०) ते प्रथात् तेनुं कोई ( गां के०) स्थान जे ते (न के ० ) नथी. अ (तं के०) ते. अर्थात तेवं कोइ (कुलं के०) कुल जे ते ( न के०) नथी. एटले सर्वे जीवाने पूर्वे कलां सर्वे स्थानको अनंतीवार थयां वे ॥ २३ ॥ वली अधिकारने विशेषे जाणवानी मरजी होय तो, श्री जगवती सूत्र ना बारमा शतकना सातमा उद्देशामांथी बोकमानुं दृष्टांत जोइ लेज्यो. ************ ******** Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥आर्यावृत्तम् ।। हत् किमपि नास्ति स्थानं लोके वालाग्रकोटीमात्रमपि. KKXXXXXXXXXXXXXX******* त किंपि ननिगाणं। लोए वालग्गकोमिमित्तंपि॥ यत्र न जोवाः बहुशः मुखङःखपरंपरां प्राप्ताः जन्न न जीवा बहसो। सुहउस्कपरंपरं पत्ता ॥ २४ ॥ अर्थ-(जब के०) जे स्थानने विषे (जीवा के०) जीव जे ते (सुह उस्क परं * पर के०) सुख पुःखनी परंपराने (बहुसो के०) घणीवार (न पत्ता के०)नश्री पा * म्या. (तं के) ते. अर्थात् तेवु (किंपि के) कोइ पण (लोए के) लोकने विषे Ma (वालग्ग के) वालनो अग्रतेनो (कोमिमित्तंपि के०) प्रांतनाग मात्र पण, अ यात् किंचितमात्र पण (गणं के०) स्थान जे ते (नति के) नश्री. अर्थात् आ जीव, सर्वे स्थानकमां जश् श्राव्यो . ॥ २५ ॥ EX***********XXXXXXXXXXX Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - नावार्थ-व्यवहार राशीने पामेला जीवोने अनंतो काल पर गयो . माटे ते जीवोने सर्व जाति आदिकने विषे अनंतीवार नत्पत्ति श्रज दशे? एम संनावना करीए बीए. केमके, ए अतिप्राय तो बहुश्रुतनेज गम्य ले. अर्थात् ते अनिपाय तो बहुश्रुत जाणे. हे जीव! तुं अनंतीवार सारी सारी जातिमां तथा सारी सारी योनिमां नुत्पन्न भयो .अने सारा सारा स्थानमां तथा सारा सारा कुलमां नत्पन्न भयो ठे. अने तुं त्यां अनेक प्रकारे जन्म मरण पाम्यो . प. | रंतु विचारी जोतां तो तुं जेवो , तेवोने तेवोज ले एटले तदारुं स्वरूपतो निश्चे | नयमते करीने अद्य, अनेद्य, अजर, अमर, ज्ञानरूप, सुखरूप अने सत्तारूप | एवं . तेने तुं विसरी जश्ने, देहादि परनावमां आसक्त थश्ने पंच प्रकारना वि षयसुख जोगववानी तृष्णा, हजु सूधी तने जती नयी. परंतु तुं एम वांडा राखे के हुं सारी सारी जाति प्रादिकमां जश्ने सारा सारा विषय लोगवं. पण ते विषयनां सुख ते अनंतीवार जोगवीन वमन कयौं ने, तोयपण तेने तेज नो गनी इला राखीने वातांशी (वमन करेलाने खानारो) केम थाय ने? वली. ए *********XXXXXXXXXXXXXX - Jain Education in kolla wallw.jainelibrary.org Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै श विषयसुखने नोगवीने को तृप्त श्रवातुं नथी पण, नलटी तेनी तृष्णा जेमबल- *ता अग्निमां घी होमे, ने तेनी ज्वाला वृद्धिपामे, तेम विषय सृष्णा वृद्धि पामशे; माटे हे जीव ! तुं एम विचार के, हुं सर्व ठेकाणे जश्ने सर्व जातिनां सुख दुःख अनंतीवार नोगवी आव्यो . पण कोइ ठेकाणे नथी जर आव्यो एम नथी. ए वं विचारीने विषय सुखश्री विराम पामीने तुं तहारा अात्मस्वरूपना अविनाशी सुखमां मग्न था. आबे गायानो नेगो नावार्थ . ॥३॥ ॥श्या ॥ यावृत्तम् ।। सर्गः ऋचयः प्राप्ताः सर्वेऽप सजनसंबन्धाः XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX सवारिधी पत्ता सत्वे वि सयासंबंधा ।। संसारे तस्मात् विरम ततःऋच्यादिभ्यः यदि जानासि तदा आत्मानं मुखिन संसारे तो विरमसु । तत्तो जश् मुण सि अप्पाणं ॥२५॥ अर्थ-(संसारे के०) संसारने विषे (सवान के) सर्व एवी (रि-दीन के) क-३६ Jain Education Intel Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ***** दियो जे ते. तथा (सधेवि के०) सर्व एवा पण (सयण संबंधा के०) स्वजन संबंध जे ते ( पत्ता के०) पाम्यो बे (तो के०) ते कारण माटे (जइ के०) जो (प्रप्पा के०) आत्माने (मुलसि के०) जाणे वे, तो (तनो के०) ते शन्दादिक थकी (विरमसु ho) विराम पाम्य. अर्थात् निवृत्ति पाम्य ॥ २५ ॥ नावार्थ- हे श्रात्मन् ! संसारने विषे अनादि कालथी भ्रमण करतां श्रा जी | वे देव मनुष्यादिकनी सर्वे समृद्धियो पामी बे. तथा सर्वेनी साथ, पोतानो मा ता पिता जाई जार्यादिक संबंध, जोगायो वे. माटे तेमां तहारे मोह राखवो घ तो नथी. केम, जे स्त्रीबे, ते पराजवनुं स्थानक डे, तथा जे बंधुजन बे, तें बंधन बे तथा जे विषयसुख बे, तेज विष बे. (जेर बे.) ए प्रकारे जे तहारा शत्रु े, तेज तुं मित्र जाणीने तेने विषे मोह राखीने बेगे बे. ते कारण माटे एक पोताना आत्म स्वरूप साधुं सुख मानीने, ते शद, वजन, इत्यादिक नुं कल्पित सुख मानीने अर्थात् तेने दुःखरूप जालीने ते सर्व थकी निवृत्ति पाम्य ॥ २५ ॥ Jain Education Internal ************************ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * *********** XXXXX****** एका बध्नाति कर्म एकः वधबंधमरणव्यसनानि एगो बंध कम्मं । एगो वहबंधमरणवसणाई॥ · विषहते नवे भ्रमति एक एव कर्मनिवीनतः सन् विसह नवंमि लमम । एगचित्र कम्मवेलविन ॥६॥ अर्थ-(एगो के) एकलो.अर्थात् सहाय्य रहित एवो जीवजे ते (कम्मं के०) ज्ञानावरणीआदि कर्मने (बंध के०) आत्मानी संगाथे बांधे .तथा (एगो के०) ail एकलोज नवांतरने विषे (वह के) तामन. अने (बंध के०) बंधन. अने (मरण के) प्राणनो वियोग. अने (वसणाई के) आपत्ति, तेमने (विसहर के०) सदन | करे . वली (एगुच्चिय के) एकलोज आ जीव (कम्मवेलविन केय) कर्मवकेट गायो सतो (नवंमि के०) संसारने विषे (जमार के) नमे .॥२६॥ । लावार्थ:-हे जीव! जे वखत तहारो जन्म थयो, ते वखत ते एकलेज घ.* | गुंज कष्ट सहन कयु, पण ते वखत तदारुख मटामवाने माटे, तने कोइएस XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX हाय्य करी नहीं. अने जे बखते तु मरण पामीश, ते वखते ते मरणनी वेदनाप * , तहारे एकलानेज सहन करवी पमशे. अने पठी ज्यारे नरकादिक नवांतर ने विषे जईश. त्यारे त्यांनी वेदना पण, तहारे एकलानेज सहन करवी पमझो; पण जेने अर्थे एटले देहने अर्थे, स्त्रीने अर्थे, पुत्रने अर्थे, तथा संबंधीने अर्थे ते * अनेक प्रकारनां पाप की बे, परंतु, तेमांनु कोइ पण तहारी वेदनानो लागले *वाने आवशे नही. एवीज रीते बीजा नवोमां पण कर्मवमे उगायेलो तुं, एक लोज कष्ट लोगवीश. अर्थात् तहारां करेलां कृत्यने तुंज लोगवीश, पण ते कष्ट जोगववाने बीजो को परा प्रावशे नही. ॥ ६ ॥ अन्यः न कुरुते अहितं हितमा श्रात्मा कराति नैव अन्यः अन्नो न कुण अहियं । हियपि अप्पा करेइ नहु अन्नो॥ यात्मकृतं मुखऊःखं लाद ततः कस्मादऽसि दीनमुखः ११ १२ १३ १० १५ . . १४ अप्पकयं सुहउकं । जंजस ता कीस दीणमुहो ॥५॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX*** अर्थ-हे प्राणिन! (अन्नो के०) अन्य जे ते (अहियं के०) अहित (अनिष्ट) ने (न कुण के०) नथी करतो. परंतु आत्माज करे , अने (हियंपि के०) हि तने पण, ते (अप्पा के०) आत्माज (करे के०) करे . पण (अन्नो के) अन्य कोइ (नहु के०) नयीज करतो. (ता के) ते कारण माटे (अप्पकयं के) श्रात्मानुं करेलुं जे (सुहउरकं के) सुखःख, तेने (मुंजसि के०) पोते आत्माज नोगवे . माटे तुं (दीणमुहो के) दीनमुख वालो (कीस के) केम पाय ठे? अर्थात् तु बीजाननो दोष शुं करवा देखे ? ॥ ७॥ लावार्थ-दे जीव! तुं एम विचारे ले के, फलाणाये महारं बगामयु, एम धा रीने तेना नपर क्षेष करे , अने फलाणाये महारुं सुधार्यु, एम धारीने तेना न पर राग करे , पण तेमांनुं को तहारुं बगामतुं पण नश्री, ने सुधारतुं पण न थी. परंतु ते बगामनारो अने सुधारनारो, ते तहारो आत्माज ने. अर्थात् सुख पण तहारो श्रात्मा करे रे. अने कुःख पण तहारो आत्माज करे . माटे पुःख *आव्ये सते दोनुमुख.वालो पश्ने, बीजानो दोष शं करवा देखे ? वली श्री - - ३ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KKRXXXXXXXXXXXXXXX उत्तराध्ययन सूत्रना वीशमा अध्ययनमा कयुं के, वैतरणी नदीनो पमामना र पण आ आत्माज . अने कूटशाटमलि वृदनी वेदनाने पमामनारो पण आ आत्मा डे. अने कामधेनु गायने पमामनारो पण आ आत्मा ने. अने नंदनवन तथा देवलोक अने मोक्ष तेने पमाननारो पण आ पात्माज ने. वली आआत्मा || को अपेक्षाये कर्ता ने, अने को अपेक्षाये अकर्ता . एज रोते सुख दुःखनो कर्ता अकर्ता पण आत्माज बे. वली मित्र तथा अमित्र पण आत्माज . अने सदाचार अने पुराचारने करनारो पण, आ आत्माज व्. एम जाणीने कोश्ना * नपर राग ष करवो नहीं. ॥ ७ ॥ बहुआरंनेण नपार्जितं वित्तं अनुन्नति हे जीव वजनगणाः बहुआरंज विढत्तं । वित्तं विलसति जीव सयणगणा॥ तेन प्रारंनेण जनितं पापकर्म अनुनावष्यसि नरके पुनः सं एव तऊणियपावकम्मं । अणुहवसि पुष्णो तुम चेव ॥२७॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - aor अर्थ-(जीव के) हे प्राणिन् ! (सयणगणा के०) माता, पिता, नाइ, स्त्री, NO पुत्रादिक वजननो समूह जे ते, (बहुप्रारंन के) तें, खेतीप्राविक घणा आरंने करीने (विढत्तं के) उपार्जन कर्यु एवं, जे (वित्तं के०) धन, ते प्रत्ये अर्थात् ते धने करीने, तेन (विलसंति के०) विलास करे . अर्थात् ते धन, फल ते स्व | जनादिक जोगवे . (पुणो के०) वली (तऊणिय के) ते प्रारंने करीने नत्पन्न वयु एवं, जे (पावकम्मं के) पाप कर्म, तेने (तुमं चेव के०).तुं एकलोज (अ| णुहवरित के०) अनुलव करीश. अर्थात् नरकादिकने विषे ते पाप, फल तुं एक | *लोज नोगवीश. ॥ २०॥ | नावार्थ-हे जीव! ते अनेक प्रकारे जीव हिंसा तथा कूमकपट उलन्नेद प्र |पंचादिक केटलाक अनर्थ करी, तथा नीच सेवादिक घणां अकर्तव्य करी, तथा अनेक प्रकारे परदेशमां नमीने, तालमा प्रमुखमांमरणांत कष्ट माथे लेश्ने, तथा पोताना स्वधर्मनो पण त्याग करीने तथा रात्रि दिवस शरीरनुं सुख पण न गणीने, धन उपार्जन कर्यु; परंतु ते धनने वजन तथा ज्ञाति आदिक लोक, ३ KIXXXXXXXXXXXXXXXXXX **XXXXXXXXXXXXXXXXX Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX तहारो उपकार न गणता, उलटा तने दवावीने, तथा तने तिरस्कार करीने, तया मेहेणां मारीने, अने अनेक प्रकारनी युक्तिवमे करीने, एटले नंदरनी पेठे फूंकी फूंकीने तेन खा जाय ठे. अर्थात् धोले दहामेनस्या शेहेरमां ते स्वजना दिक चोर, तने लूटी ले ले. अने ते धन नपार्जन करतां जे पाप प्रयुं, तेना फल ने तो नरकादिकने विषे, तुं एकलोज लोगवीश. पण बीजं को नोगववा आवशे नही. माटे हे लव्य प्राणिन् ! कांक विचार करीने न्यायथी धन नपार्जन करीने तेने कांक तो सारा मार्गमां वापस्य ! ॥ २ ॥ अथ खिताः तथा बुनुदिताः ति यथा चिंतिताः मिनाः अह कि तह लु। किया जह चिंतिप्राइमिंना॥ तथा स्तोकमपि न यात्मा विचिंतितः अतस्त्वां हे जीव किं नणीमः ११. १५ १० १३ . १ १४ १५ तह थोपि न अप्पा । विचिंतित जीव किं लणिमो॥३॥ Jain Education Internal Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ-(जीव के०) हे जीव! तुं मोहने वश प्रश्ने (जह के०) जेम (मिंना * के) या महारां बालक जे ते. एटले महारां ठोकरांजे ते (अह के) हवे 3 yा स्किाइ के) दुःखीयां जे. एटले टाहाड्यमा उडवा पारवादिक वस्त्र नथी, तेथी पीमा पामे ने. (तह के०) तेमज जुस्किया के०) महारां बालक नूख्यां उ. एम (चिंतियार के०) ते बालकोनु तुं रात्रि दिवस चितवन करे ये, प रंतु (तह के) तेवी रीते, ते (अप्पा के) आत्मा जे ते (योपि के) प्रोमो पण (न विचिंतिन के) नश्री चिंतवन कस्खो. माटे तने (किं नणिमो के०) शुं कहीए? अर्थात् हे मूर्ख ! तने केटलो उपको देशए? एटले तेश्रोमो पण आत्मानो विचार नश्री कयों, के, महारा आत्मानी शी गति अशे? एवो विचार लगार मात्र पण तुं करतो नथी. ॥ श्ए । नावार्थ-है जीव! तुं मोहने वश थश्ने रात्रि दिवस पारकी चिंता कस्बा करे . के, प्रा महारां बालक, तथा आ महार। स्त्री इत्यादिक वजन नूख्यां *, तरष्यां , तया तेमने अन्न वस्त्रादिकनुं पुःख ने. इत्यादि अनेक प्रकारनी | XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX XXX*******XXXXXXXXX***** Jain Education in the bal निjainelibrary.org Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************************* Jain Education Inter चिंताने रात्रि दिवस करया करे बे, परंतु तु तहारा श्रात्मानी चिंता करतो नयी के, में महारा श्रात्मानुं साधन केटलं कयूँ ? एटले आत्मा परनवे सुखी पाय. एवं काम में रात्रि दिवस मध्ये केटली धनि कर्यु ? एवो थोमो पण तहारा स्वानो विचार तु करतो नथी. केवल रात्रि दिवस पारकुंज वैतरुं कूट्या करे. मा | टे तुं मूर्ख बे. तेथी तने केटलो उपदेश देइए ? केम के, उपदेश तो योग्यनेज या . ॥ २५ ॥ कणनंगुरं शरीरं जीवः अन्यः च शाश्वतस्वरूपः 2 ६ ५ सासयसरूवो ॥ खरं सरीरं । जीवन्नो कर्मवशात् अनयोः संबंधः निर्बंनो मूर्ग यत्र शरीरे कः तत्र ११ १० の G २२ कम्मवसा संबंधो। निबंधो इच को तुज्ऊ ॥३०॥ अर्थ- आत्मन् ! (खयनंगुरं के०) कण जंगुर एटले कणमां नाश पाम U ********** ******** jainelibrary.org Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० ४१ ************** वाना वाव वालुं एवं (शरीरं के०) या शरीर बे: (श्र के०) वली (अन्नो के ० ) शरीर थकी जूदो एवो, अने (सासयसरूवो के०) शाश्वतुं वे स्वरूप ते जेनुं, एवो (जीवो के०) जीव बे. तेने (कम्मवसा के०) कर्मना श्राधीनपणाथी शरीर नी साधे (संबंधो के ० ) संयोग थयो छे. माटे (इन के०) ए शरीरने विषे (तुफ ho) तहारे (को के० ) इयो ( निब्बंधो के०) अनुबंध बे ? एटले ए शरीरने विषे तहारे शी मूर्द्धा बे ? ॥ ३० ॥ भावार्थ- दे जीव ! तुं प्रवेद्य, अजेय, अजर, अमर, ध्रुव, अनंत ज्ञानमय, अनंत दर्शनमय, अनंत चारित्रमय, अनंत वीर्यमय; ज्योतिःस्वरूप, पवित्र, प्र लिंग, अव्यक्त, निर्लेप, निरंजन, अने श्रानंदमय एवो तुं निश्वे नय मते बे. परंतु अनादि कालश्री कर्मना वशे करीने, अनित्य, अने अशाश्वत एवं ग्रने त्वचा, मां स, दारुकां, रुधिर, नसो, मेद एटले हामकां उपर रहेली चाममी, अने मका एटले दारुकामा रहेलुं मांस, अने मल मूत्र, ने दुर्गंध ने बिनीत्स (बिहामणी) एवी वस्तुए नरेला चामकाना कोयला रूप श्रा शरीर बे, तेवा शरीरने विषे हे ************************* TO ४१ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inter ***** Gita ! तु कर्मनाशक बँधाएलो वे. तेने विषे महारापणुं मानी लेइने, एटले आ शरीर ते हुं हुं. एम धारीने तेना नपर ममत्वनाव राखीने शुं करवा मिथ्या हेरान थाय बे ? इहां प्रसंगानुसारे शरीर उपरथी मूर्छा नतरवाने माटे, विचार वा जेवुं एक दृष्टांत लखीए बीए. जेम कोइ पुरुषे सरकारनो अपराध कर्यो हो यं, ते करीने तेने सकत मजूरी साधे, महा दुःखवार बंधी खानामा, अमुक वर्षनी दीप मारीने पूर्यो होय, तेम तने पण, तहारा कर्मे, पूर्वे लखेली अशुचि वस्तुए करीने जरेलो, श्रने दुर्गंधमय शरीररूप पुरुषनी श्राकृतिवालो तथा स्त्री नी प्राकृतिवालो चामकानो कोयलो, तेमां तने अमुक मुदत सूधी पूर्यो े. तो पण तेवा शरीरने विषे तुं एवो ममत्व धारण करे बे के, हुं शेठ, हुं शेगली, हुं राजा, हुं रासी, हुं ब्राह्मण, हुं ब्राह्मणी, इत्यादिक कल्पित नाम ठरावीने तथा ते कोथलानो रंग, कालो धोलो देखीने तेमां रूपवान् कुरूपवाननी कल्पना करीने, तुं मोह पामे बे; परंतु एम नथी विचारतो के, श्रा महारा शरीरमां शेठ ते कि यो ? हाथ शेट ? पग शेठ ? के, मांथु शेठ ? एम खरी रीते विचारीश तो सर्व For Private Personal Use Only *********** ********** ainelibrary.org Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श0 XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX कल्पना मात्रन मालम पमशे. माटे एवी रीते वस्तुगते विचारीने, तुं शरीर न परथी मा नतास्य. किंबहुना ? आ अधिकारने विषे श्री आचारांगजी सूत्रमा विशेष प्रकारे कर्जा ठे, त्यांची जोइ लेवु. ॥ ३०॥ . कुतः आगतं कुत्र चलितं त्वमपि कुनः श्रागतः कुत्र गमिष्यसि कह आयं कह चलियं । तुमंपि कह आगन कहं गमिह॥ अन्योन्यमपि युगां न जानीथः हे जीव कुटुंयमिदं कुतः तव अन्तःकरणाद - अन्नुन्नपि न याणह । जीव कुसुंबं कन तुज्छ ॥३१॥ अर्थ-(जीव के) हे आत्मन (कुडुवं के) आ माता पिता नाइ स्त्रीयादि कुटुंब (कह प्राय के) क्यांश्री आव्यु बे ? अने (कह चलियं के) क्यां गयु ? | एटले अहिथी मरीने क्यां गयुं ? अने (तुमंपि के) तुं पण (कह आगन के क्यांची आव्यो ? अने (कहं गमिहि के) क्यां जश्श ? एम (अन्नुन्नपि के) पर Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Int ***** ******* स्पर एटले एक बीजाने पण ( नयााद के०) नमी जाणतो. माटे (तुज्ऊ के० ) तहारुं कुटुंब ( कन के०) क्यांथी ? अर्थात् एक बोजाने जाएगा वगर था कुटंब महारुंबे, एम मानी वेगे बुं, ते मिथ्या बे. ॥ ३१ ॥ जावार्थ- हे जीव ! जेना उपर तने घलो मोह बे, ने महारां महारां करे बे, ते तहारां माता पिता स्त्रीयादिक केइ गतिमांधी श्राव्यां बे ? ने केइ गतिमां जशे? अने तुं पल केइ गतिमांथी प्राव्यो बे ? ने केइ गतिमां जश्श ? ते संबंधी तने कांपा खबर नयी. एटले जेम परवने विषे कोइ क्यांथी आव्युं ? ने को इक्यांधी या ए रीते ते सर्वे श्रावीने एकगं मले बे. पबी ते पाणी पीने सन सनने मार्गे वेराइ जाय वे. तेम या जवरूप परवने विषे कुटुंबरूप सर्व लो क पण, कोइ नारकीमांथी, कोइ तिर्यचमांथी, कोइ मनुष्यमांत्री ने कोई दे - वलोकमांथी, एम सन सननी गतिमांश्री श्रावीने नेगां ग्रयां बे. तेल पोतपोता ना कर्मने अनुसारे सुख दुःख जोगवीने, पोत पोतानां करेलां कृत्यने अनुसारे चाल्यां जाय बे. परंतु तेमने राखवाने माटे तुं अनेक प्रकारना उपाय करीश, ************************ jainelibrary.org Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************************* बै०' ४३ तो पण ते रही शकवानां नथी, ते कारण माटे तेमने तुं एम मानी बेगे बुं | के, या महारुं कुटुंब बे, पण ते वस्तुगते तहारुं कुटुंब बेज नही. परंतु तहारुं सा चुं कुटुंब तो ज्ञान, दर्शन, चारित्रादिक श्रात्मगुण बे ॥ ३१ ॥ कारने विशेष जावानी मरजी होय तो, श्री श्राचारांगजी सूत्रना प्रथम श्रुतस्कंधना प्रथम अध्ययनना, प्रथम उद्देशामां जोइ लेज्यो. ॥३१ ॥ क्षणभंगुरे शरीरे मनुजन अभ्रपटलसके २ ย खजंगुरे सरीरे | मनवे सारं एतावन्मात्रं यद्यस्मात् क्रियने शोजनः धर्मः Jain Education Internal पलसारि ॥ १० U ५ G ६ सारं इत्तियमेतं । जं की रद्द सोहणी धम्मो ॥३२॥ の अर्थ - हे आत्मन् ! (खणनंगुरे के) कण करामां नाश पामतुं एवं (सरी रे (०) शरीर सते, तथा (अप्रपम्ल सारिवे के०) मेघना समूद जेवा एटले जेम ************************* RTO ४३ www.ainelibrary.org Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ****XXXXXXXXXXXXXXXXXXX वायराथी मेघ शीघ्र नाश पामे , तेम श्रोमा कालमां नाश पामे एवा. (मणुअन्नवे के) मनुष्य नवने विषे (जं के०) जे (सोहणो के) सारो. एटले पांच आश्रवधी विराम पामवा रूप (धम्मो के०) जिनप्रणीत धर्म जे ते (कीर के०) करीए. (इत्तियमित्तं के) एट मात्रज (सारं के) सार . अर्थात् आ संसारमां जेटलुं धर्म साधन याय , एटलुंज. सार . ॥ ३ ॥ नावार्थ-हे नव्य जीव! देवादिक जवनी अपेकाए थोमा काल रहे एवो, आ मनुष्य लव . तेमां वली शरीर कणे कणे नाश पामे ले. अर्थात् चारे Pe तरफश्री बलवा मांमेला घर जेवू आ शरीर . तेवा क्षणिक शरीर वझे, जेटली घमि तुं धर्म साधन करीश, एटली वारनोज तदारो मनुष्यत्नव लेखानो . जेम को घर बलतुं होय, ने तेमाथी जेटलो सामान काढलीधो, तेटलोज या| पणो . तेम नाश पामता शरीरथी जेटली घमि तुं तहारा प्रात्मानुं साधनक रीश, एटलीजवार तहारो मनुष्यत्नव जागवो. अने बाकीनो पशुना जेवो निर र्थक जाणवो. एटले जेम पशु, ते आहार, नंघ अने मैथुन तेणे करीने पोता. Jain Education in nal min.jainelibrary.org Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नो जन्मारो गमावे , तेम बहारो पण व्यर्य जन्मारो गयो जाणवो. ॥३॥ ॥ अनुष्टुप्वृत्तम् ॥ जन्मउलखें जराउरुखं रोगः च मरणानि च जन्मरकं जराउरकं । रोगा य मरणाणि य॥ अहो अाश्चर्ये उखरूपः निश्चये संसारः यत्र संसारे क्लिश्यति जंतवः ********************** अहो उस्को दु संसारो । जब कीसंति जंतुणो ॥३३॥ अर्थ-(अहो के) अहो इति आश्चर्ये ! एटले आ वात आश्चर्यकारी ठे,अय* वा (अहो के) दे जीव! ए प्रकारे जीवनुं संबोधन करवू.आ संसारमा पर्यटन | करता प्राणियोने कोइ एवो पदार्थ नयो के, जे फुःखदायक न होय.अर्थात् स| पदार्थ पुःखदायक . शुं शुं फुःखदायक : ते देखामे . (जम पुरकं के) जन्म संबंधी उख, एटले आ जीवने जन्मती वखते घगुंज पुःख पाय . त W w.jainelibrary.org Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXX***XXXXXXXXXXXX*****k श्रा (जरा पुरक के०) वृक्षवस्था संबंधी दुःख, एटले घमपणमा अनेक प्रकार नां कु:ख प्राप्त थाय . य के) वली (रोगा के0) अनेक प्रकारना व्याधि नत्पनथाय ने. (य के०) वली (मरणाणि के०) अनेक प्रकारे मरणनी वेदना पाय , माटे (हु के) निश्चे (जन के०) जे संसारने विषे (जंतुणो के) प्राणी जे ते (की संति के०) क्लेश पामे , ते (संसारो के) संसार जे ते (पुरको के) केवल कुख रूपज दे, अर्थात् आ संसारमा कांश पण सुख नथी. ॥ ३३ ॥ नावार्थ-हे प्रात्मन् ! तुं विचार कस्य के, प्रा जीव ज्यांची जन्मे , त्यांथी ते मरण पर्यंत केवल दुःखमांज वर्ते . केमके, जन्मती वख ते :ख घणु पौडे. ते विषे शास्त्रमा कह्यं के, अग्नि वसे तपावीने, लालचोल करेली सामात्रण क्रोम सोयो, शरीरमा रहेली एवी सामात्रण कोटि रोमरा | 'य तेने विपे चांपतां जेटली वेदना थाय, तेथी पाठगुणी वेदना गर्नने विषे था- * * य , तथा जन्मती वखतनी वेदना तो, कांश कही शकाय तेवी नथी; जेम जं *तरमामां घालेला सोना रुपाना तारने, जेम बलात्कारे खेंची काढ़े , ए दृष्टांते K Jain Education Interchal rww.jainelibrary.org Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EXAXXXXXXXXXXXXXXXXXXX माताना योनि यंत्रमाथी निकलतां, माताने तया पोताने, अतुल वेदना थाय छे. तेवी रीते मरण- कुःख पण जागी लेवु. हवे जन्म अने मरण एबे पुःखोनी मध्ये, रहेला फुःखोनुं वर्णन करीए बीए. बाल्यावस्थाने विषे, ते बालकने बोल | | तां न आवझवाधी, तेने जे वेदना यश् होय, ते वेदना मटामवाना उपचारने ब* दले, उलटी तेने वधारे वेदना थाय; तेवा नपचार करवामां आवे .जेम के, ते . बालकने माथु सुःखतुं होय, तेनो नपचार मूकीने पेट दुःखतुं मटामवानो उप चार करे . इत्यादि. वली जवानीमां एटले मानी लीधेली सुखनी अवस्थामा पण, संसारना समस्त सुखनी प्राप्ति यती नथी.-कदापि पराणे एक सुखनी * प्राप्ति थाय ने, तेवामां बीजां बे फुःख नन्नां श्राय . जेम को वस्तुनो धमो | all करवा माटे, कांश पण चीज न जमवाथी, चोमासामां नत्पन्न भएलां आशरे द | |श पंदर देमका लेश, पांचशेरीनो धमो करे , तेवामां ते धमो कांइक नगे थवाथी जेवामां बीजं एक देमकुं लेवा जाय , तेवामां वे देमकां कूदी जाय . वली बेने पकमवा जाय , तेवामां चार जतां रहे . तेम ए दृष्टांतनुं सिद्धांत Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए के, स्त्री, धन, पुत्र, निरोगीपणुं जगत्मा मान्यपणुं, तथा महोटी हवेलीन, अने खजनादिकनु अनुकूलपणुं इत्यादिक बधां सुख जोगववानी श्वा करे , तेवामां तेमांश्रीज अणधायु, अगचिंतव्यु, चिंतु महाकष्ट आवी पझे .जे HAम के, पुत्रना सुखनी श्छा करवा जाय , तेवामां स्त्री मरी जाय, वली स्त्रीना सुखनी चा करवा जाय , एटलामांच्य नाश थर जाय, वली पराणे कदा पिव्य मध्यं, तो शरीरे मांदो थाय, कदापि शरीरे साजो थयो, तो घर बली जाय, वली घर समु कराववा जाय, एटलामां चोरीनो, अथवा वजनादिकनो नपश्व थाय, माटे जवानीमां पण, सर्व प्रकारनी बरोबर व्यवस्था राखीने सुखनोगववा जाय, तोपण नोगवी शकातुं नथी. तो वृक्षावस्थामांतो क्याथीज नोगवाय? केम के, सर्व सुख नोगववानुं मुख्य साधन एवं जे शरीर, ते निर्ब ल, रोगी, कद्रुपु थ जाय छे. तेमज शास्त्रमा कहूं के, हाथ पग विगेरे अंग | थरथर ध्रुजे . तथा प्रांखे पूरुं देखातुं नश्री. काने पूरूं संजलातुं नथी, नाकमां * थी सीट नितरे डे, ने दांत पण हाली न . तथा पमी पण जाय . तथा खां *XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* ****************XXXXX** AMWjainelibrary.org Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ** *********** सी. श्वास अने शरीरनुं निर्बलपणु वधे डे, अंग लागे . तुटे ठे अने फाटे ले. व ली मुखेथी बराबर चोखं बोली शकातुं नश्री. अने लोकने पण अनादर करवा * जोग्य, तथा हांसी करवा जोग्य थाय . तथा दिवसे दिवसे नान पण नबुंथतुं जाय . तोयपण वधा काममां महापण मोहोलवा घणो जाय डे, त्यारे पोता नी स्त्री तथा वहालो पुत्र अने पुत्री विगेरे, ते मोसाने तिरस्कार करीने एम कहे * के, तमे ठानामाना खाटलामां पड्या रहो ने! नकामो लवारो शुं करवा करो गे! तमाएं हैयुं फूटी गयुं , पण कांश अमारुं फुटी गयुं नथी के, तमारुं का करीए!! वली घरना खूशाने विषे खांसो खातो खातो एक तूटमूट खाटलीमां पड्यो रहे थे. वली जवानी अवस्थामा पुत्रादिकने पालन पोषण करेला, ते एवी *पाशाए के, ते वृझवस्थामां महारी चाकरी करशे, तोयपण ते स्त्री, पुत्र पुत्र *नी स्त्रीयो, इत्यादि ते पण ते मोसाथी न सहन धाय तेवो, परानव करे . अं *ने वली मोठेथी बोले ने के, या मोसो मरतोए नथी, ने मांचो मकतो पण नथी. वली ते मोसानी घरमा रहेला माणसोज निंदा करे , एटलुंज नहीं, परंतु ते ******XX******** ****** ***** - Y tjainelibrary.org Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %3 वृक्ष पोतेज, पोताना देहनी निंदा करे . ते उपर टीकामां लखेलु काव्य तथा तेनो अर्थ लखीए बीए. वैतालीयवृत्तम. वलिसंततमस्थिशेषितं शिथिलरनायुधृतं कलेवरम् ॥ स्वयमेव पुमान् जुगुप्सते किमु कान्ता कमनीयविग्रहा ॥१॥ अर्थ-वृक्षावस्थाथी जेना बधा शरीरनी त्वचा (चाममी) मां करचोलीयो । * वली गइ . तथा शरीरमां केवल हामकाज देखाय . अने नाझियो पस, * शिथिल थइ गइ . एवा बेढंगा कलेवरने जोई, ए वृक्ष पोते पोतानी मेलेज, ते Hd शरीरनी निंदा करे ठे, तो जेनुं शरीर सुंदर डे, एवी स्त्रीयो निंदे; तेमां तो शुंज कहेवू ? ॥१॥ | वली ते वृक्षबस्थाना फुःख नपर टीकामां कथा लखेली , तेनो अर्थ ल* खीए बीए. कथा. ३ कौशांबी नगरीने विषे घणा धनवालो, अने घणा पुत्रवालो एवो, एक धनो Jain Education a l A w w.jainelibrary.org Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामे सार्थवाह हतो. तेणे एकलेज नाना प्रकारना नपाये करीने, धन नपार्जन कयु. ने ते सघ धन, दुःखवाला बंधुजन, तथा खजन, तथा मित्र, तथा स्त्री, * अने नाइ आदिक सर्वे संबंधीनना लागने अर्थे वापर्यु, त्यार पठी ते धनो, कालना परिपाकपणाथी वृक्ष अवस्थाने पाम्यो, ने तेना सघला पुत्रो, तेनुं सारी रोते पालन पोषण करवानी योग्य कलामां कुशल हता, अने संसार संबंधि स घला कामनी चिंतानो लार, तेणे ते पुत्रो नपरज नांख्यो हतो. तोयपण ते पु. त्रो एम बोले ठेके, अमने आ पिताजीएज आवी सुंदर अवस्थाने पमाड्या ने. तथा सर्वे लोकना अग्रेसर कर्या . तथा तेमणे अमारो बहु नपकार कर्यो . ए रीते पोतानुं सारं कुलीनपणुं, ते पुत्रो जणावता हता. पर कोई कार्य प्रसंगे, ते वृक्ष्नी स्त्रीयो पोताना खामीनी चाकरी करती हती. तेमां पण शरीर चोलीने स्नान करावयु, तथा नोजन करावयु इत्यादिक जे काले जेम करवू घ| दे, ते तेम निरंतर करती इती. तेम करतां करतां केटलाएक दिवस गया, पठी वृक्षपणुं वृद्धि पाम्यु. एटले आखा शरीरनी इंडियो स्वाधिन न रही. अने सर्व Kaljainelibrary.org Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********************** अंग कंपवा लाग्यां, अने नेत्रादिकमांधी पाणी गलवा मांमधु. त्यारे हलवे हलवे ते स्त्रीयादिकोए, ते वृक्ष्नी चाकरी घटामवा मांझी. केमके, वृक्षपणुं तो वधवा लाग्यु माटे. वली ते वृक्ष चित्तना अनिमान वमे करीने, वृक्षावस्थाना पुःखरूप समुश्मा पज्यो. वली ते वृना दीकरानी स्त्रीयो एम कहे ले के, प्रा मोसानुं व | ईतरु कूटवानुं ते अमारा कर्ममां क्यां सूधी घाली मूक्युं हो? ते कांश मालम | परतुं नघी. त्यारे तेमना स्वामीन मोसाना पुत्रो, वली ते स्त्रीयोने समजावीने | मोसानी चाकरीमा वलगामे , त्यार पठी एक दिवस ते सर्वे स्त्रीयो, संप करीने पोत पोताना जरतारने कहे जे के, तमारा पितानी अमे घणी घणी चाक री करीए बीए, तोयपस ते वृक्षपणामां बुझिनी विकलताश्री, अमारी करेली चा | करीना जसने बदले, नलटो अपजस आपे ले. माटे तमने जो अमारुं कर्तुं मा नवामां न आवतुं होय, तो बीजा कोई माणस पासे ते मोसानी चाकरी करा- वो; एटले खबर पमशे. पठी ते पुत्रोए तेमज कयु. त्यार पठी केटलाएक दिव से पुत्रे पूज्यु के, हे पिताजी ! केम हवे सारी रीते चाकरी श्राय ? त्यारे ते (*********KXXXXXXXXXXX Jain Education de Vilw.jainelibrary.org Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ वैr मोसो बोख्यो के, नाई ! शुं कहुं !! महारुं मन जाले बे, कां कहेवानी वात न थी. एवी रीते ते मोसानुं बोलवु सांजलीने, ते सर्वे स्त्रीयो पोताना पतिने कहेवा लागी के, तमे श्रमारुं कां प्रथम नहोता मानता, पण हवे जखमारीने मा न्युं !! इत्यादिक रीते वोलीने, ते कोसाना अवगुण पोताना पतिना हृदयमांसा री रीते उसाव्या. ते पुत्रो पण ते स्त्रीयोनुं कहेतुं मान्य करीने, पोताना, पिताने तिरस्कार करवा लाग्या. ए रीते प्यारे तरफनु दुःख नेगुं यवाथी, ते कोसाए पोको मूकवा मांगी. ते सांजलीने ते स्त्रीयो बोली के, आपणा ससराने अन्न प चतु नथी, ने वगर विचार्थी खा खा करे बे, तेथी चूंक प्रावती दशे, मार्ट लावो ! देवतावरे शेकीए. पी ते स्त्रीयो परा लूगमाना हुचा सारी पेठे नंना करीने जे म काम दे, तेम मोसाने शेके बे. तेथी ते कोसाने घणी पीमा थवाथी कोसो ना ना कदेतो जाय बे, तोपरा पराणे पराले शेके जाय बे. अने मनमा विचारे वे के, प्रा कोसाए लोकमां श्रमारी बहु फजेती करी बे, माटे फरी फरीने श्रावो लाग मलवानो नथी. एम विचारीने, ते कोसाने बहु पराभव करे बे. त्या ***** ***** TO ४८ ww.jainelibrary.org Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX र पठी ते मोसो पण प्राध्याने करी योमा दिवसमां मरण पाम्यो. ए रीते वृ-| वस्थानुं दुःख जाणवू. ____वली ते वृक्षवस्थाना पुःखना वर्णन, बीजं काव्य, टीकामां लख्यु डे, ते लखीए जीए. ॥ शार्दूलविक्रीमितवृत्तम् ॥ गात्रं संकुचितं गतिविगलिता, दन्ताश्च नाशं गता। दृष्टिभ्रंश्यात रूपमेव नसते, वकं च लालायते ॥ पाक्यं नैव करोति बान्धवजनः, पत्नी न शुश्रूषते । . धिक् कष्टं जरयाजिनूतपुरुष, पुत्रोऽप्यवज्ञायते ॥ ५॥ अर्थ-वृक्षावस्थामा शरीर संकोचा जाय , एटले शरीरे करचोलीन वले .अने गति पण विकल थाय , एटले ज्यां पग मकवो धास्यो होय, त्यां न मूकातां बीजे ठेकाणे मुकर जाय जे. अने दांत पण पमी जाय रे. अने प्रांखे पण मांख आववाथी बराबर देखातुं नथी.अने रूप पण दिवसे दिवसे घट तुं जाय . अने मुखमाथी लाल चूए . वली बांधवजन पण, ते वृनु कह्यु Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० ४५ ************************ करता नथी. ने परोली स्त्री पण, सेवा करती नथी. माटे जराए (वृध्वस्था ए) करीने पराभव पामेला पुरुषने धिक्कार थान !!! केमके, पुत्र पण ते वृदने तिरस्कार करे a. माटे ए वृक्षपणानुं जीवनुं, ते केवल कष्टरूप जाणवुं ॥ २ ॥ ana के, मते वृनी पोतानां घरनां माणसो निंदा करे वे. तेम ते वृद्ध पण पोताना घरना माणसोना, अनेक दोष प्रकट करीने, तेजनी निंदा करे बे. वली ते वृद्धे पूर्वे एटले जवानी अवस्थामां धर्म कर्यो हतो, तेथी केटला एक लोक ते वृनो निर्वाह करता हता, ते पण या वृद्धावस्थामां, तेनुं दुःख ना श करवाने समर्थ थता श्री. जेम कोइ माणस नौकामां (वहाणमां) वेगे होय, तवामां ते नौका जर दरिया बच्चे जागी जाय, त्यारे तेमां बेठेला माणसोने, जेम दुःख पाय, तेम या वृधने परा सहाय्यता न मलवाथी, तेवुं दुःख थाय बे. तथा वृद्धावस्थामां प्राये सोल रोग उत्पन्न याय वे, तथा जे वृहने जोवाथी बीजाने पण करुणा उत्पन्न थाय, तेवो ते वृद्ध दुःखी भाय के. इत्यादि विस्तार श्री श्राariगजीसूत्री जावो. वली शास्त्रमां कहां बेके, ************ a RTO * yu Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ X**XXXXXXXXXXXXXXSKYA .॥ अनुष्टुपवृत्तम् ।। सव्ये जीवावे श्छति । जीविठं न मरिजनं ॥ तम्हा पाणिवहं घोरं । निग्गंथा बज्जयति एणं ॥ ३ ॥ अर्थ-पूर्वे वृक्षावस्थानुं जे फुःख कह्यु, तेथी मरणनी वेदनानुं मुख. अत्यंत जाणवू. माटेज शास्त्रमा कडं ने के, सर्वे जीवो जीवq वां बे, पण को जीke वो मरवू श्चता नथी. एटलाज माटे निग्रंथ महामुनियो घोर एवा प्राणिवधनो त्याग करे .॥३॥ - वली एज अधिकारने विशेष जाणवाना अर्थि पुरुषोए, श्री आचारांगजी सूत्रमाथी जोइ लेवु. वली गाथामां च शब्दनुं ग्रहण कयु बे तेथी इव्य संबंधी पण घगुंज फुख ; ते देखामे . अर्थानामर्जने खमनितानां च रक्षणे ॥ घाये अखं व्यये उखं घिगर्थे उखसाधनम् ॥ ४ ॥ अर्थ-आ संसारने विषे मनुष्योने बे प्रकारना प्राण ले. तेमां एक अंतःप्राण, ने बीजा बहिःप्राण, तेमां अंतःप्राणतो प्रसि. अने बहिःप्राण ते धन के. केम | Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HY********************** के, प्राण जतां जेवं मुख थाय , तेवुज पुःख धन जतां पण थाय . एटलाज माटे ज्ञानी पुरुषोए आ कुःखमी पंक्तिमां धनने पण गण्यु के. केम के, (अ र्थानां के०) धन मेलवतां पण फुःख , तेमज नपार्जन करेला धनने साचववा | मां पण पुःख , माटे धम आव्ये पण दु:ख , अने धन गये पण पुःख ने. अर्थात् ते धनज फुःखदायक जे. माटे उखनुं साधन एवा धनने धिक्कार थान!! ॥४॥-ए रीते जन्म, जरा, रोग, मरण अने धन, ते संबंधी खनो विचार करवो, पण अंधपरंपराए नचालवू. ए नुपदेश. ॥ ३३ ॥ ॥आर्यावृत्तम् ॥ पावत् न इंघियाणां हानिः यावतू न जराराक्षसी परिस्फुरति जाव न इंदियहाणी । आव न जररस्कसी परिप्फुरई॥ यावत् न रोगविकाराः यावत् न मृत्युः समाश्लिष्यति ७ १० ११ १३ १२ १४ जाव न रोगविआरा । जाव न मच्चू समुस्लिाई ॥३॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PXXXXXXXXXXXXX** अर्थ-हे जीव! (जाव के०) ज्यां सूधी (इदियहाणी के) इंश्योनी हानी, एटले इंश्योर्नु कोणपणुं (न के) नथी अयुं, तथा (जाव के०) ज्यां सूधी (जर सरकसी के) जरारूप राक्षसी (न परिप्फुरई के) नयी प्रकट थई, तथा (जाव के) ज्यां सूधी (रोगविश्रारा के) रोग विकार (न के) नथी प्रकट गया, तथा (जाव के०) ज्यां सूधी (मन्नू के) मृत्यु जे ते (न समुखिबई के) नथी नदय मां आव्यु, त्यां सूधीमां शक्तिने न गोपवतां तहाराधी बने तेटलु धर्मसाधन क रीले; नहिं तो पीश्री तने घणोज पश्चात्ताप थशे. ॥ ३४ ॥ | नावार्थ-हे प्राणिन् ! ज्यां सूधी तहारी इंडियोनो शक्ति नरपूर डे, अनेते शक्तिने जरारूप राक्षसीए लक्षण नथी करी, अने ज्यां सूधी रोग विकार रूप शत्रुए, कायारूप नगरमां घेरो नश्री घाख्यो, अने ज्यां सूधी कालना सपाटामां बरोबर नथी आव्यो; त्यां सूधी तुं जेटलु आत्म साधन करवू धारीश, तेटलु बनी शकशे. माटे जेम बने तेम प्रमाद मूकीने जलदीश्री धर्मसाधन कस्य.॥३॥ वली नर्तृहरिये पण कां ने के, ** ** Jain Education InHKA Ww.jainelibrary.org Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ k* ******** ********** ॥ शार्दूलविक्रीमितवृत्तम् ॥ यावत् स्वस्थमिदं कलेवरगृहं, यावजरा दूरतो'। यावच्चेन्श्यिशक्तिमतिहता, यावत् दयो नायुषः । यात्मश्रेयसि तावदेव विउषा, कार्यः प्रयत्नो महान् ।' पोद्दीप्ते जवने हि कूपस्खनन, प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥ १॥ अर्थ-(यावत् के) ज्यां सूधी या शरीररूप घर साजुं , तथा ज्यां सूधी जरा नश्री आवी, तथा ज्यां सूधी इंशियोनी शक्ति नाश नथी पामी, तथा ज्यां सूधी आनखं पूरूं नयी थयुं, त्यां सूधी पंमित पुरुषे, पोताना कल्याणने अर्थे म होटो प्रयत्न करवो. अर्थात् रात्रि दिवस परलोके सुख पाय; एवाज साधनमा * वर्तवू. केम के, कोई एवं विचारे के, हालतो जवानी अवस्था ठे, माटे दालमां | संसारनां सुख नोगवीने, पठी वृक्षवस्थामां धर्म साधन करीशं, पण हे सज्जनो! जेम (प्रोद्दीप्ते के) घर अतिशे बलवा मांझयुं. त्यारे जे कूवो खोदवानो उ द्यम करवो, ते केवो कहेवाय? एटले घर बलवा मांड्या पनी कूवो खोदीपाणी १ यावच्च दूरे जरा. २ संदीप्ते. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *************** कहामी घर होलवायज नहीं. तेम वृद्धावस्थामां वधुं धर्मसाधन करीशुं, एम धार ते सिद्ध थायज नहीं. केम के, वृद्धावस्थाना स्वाभाविक दुःखी, धर्म सा धन बनी शबुं घकुंज काश बे. माटे धर्म साधन करवामां प्रमाद न करवो ॥ वीज वातने मूल कार पर जलावे वे. यथा गेहे प्रदीप्ते कूपं खनयितुं न शक्रोति कोऽपि ? २ ३ པ ६ G जह गेहं म पलिते । कूवं खणिनं न सक्कए कोइ ॥ तथा संप्राप्ते मरणे धर्मः कथं क्रियते हे जीव の १२ ११ १३ १४ १५ १० तह संपत्ते मरणे । धम्मो कह कीरए जीव ॥ ३५ ॥ अर्थ- हे जीव ! (जह के०) जेम (गेम के०) घर (पलिने के०) बलवा मां ये सते (कोइ के०) कोइ पण, एटले समर्थ होय ते पण ( कूवं के० ) कूवाने (ख शिन के०) खोदवाने. अर्थात् कूवो खोदी पाणी काढीने, बलता घरने होलववा, *************** ****** Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै ने (न सक्कए के) न समर्थ वाय. (तह के०) तेम (जीव के) हे जीव! (मरणे श० ... ) मरण (संपत्ते के) प्राप्त थए सते एटले मरण नजीक आव्ये सते (धम्मो शक के०) धर्म जे ते (कह के) किंये प्रकारे (कीरए के०) करी शकाय? ॥ ३५ ॥ नावार्थ-हे आत्मन् ! ज्यारे (जवानी अवस्थामां) तहारे धर्म करवानो अK * वलर हतो, त्यारे तुं बीजे चाले चढी गयो, एटले विषयी जीवनी संगते पशुनी पेठे फोगट अवस्था गमावी. अने हवे ज्यारे शरीरनी शक्ति कीण थवाधी, नकामा जेवो अयो, अने वली ज्यारे तने कूतरानी पेठे, तदारांस्त्री पुत्रा दिके तिरस्कार कर्यो, त्यारे तुं पराणे धर्म साधन करवाने तत्पर थयो, पण हे * मूढ जीव! तुं एटलुं विचारतो नश्री के, हवे महाराश्री शुं बनवानुं ? जेम I च्यारे तरफथी घर बलवा मांझां, ने तेने होलवयाने माटे, जाणे कूयो खोदी पाणी काढीने, ते बलतुं घर होलवं, इत्यादिक विचार जेम फोगट डे, तेम शरी रनु सामर्थ्य गया पठी, धर्म साधन करवानो विचार, ते व्यर्थ . एम देखी तुं विचास्य के, धर्म साधन तो नानपणमांश्रीज, अभ्यास करता करतां प्राये घणे * HANI Jain Education Intel Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - a कालेज सिह थाय . जेम कूवाना कांग नपर पाणी काढवानी जग्याए, पनरो अथवा लाकडं पमयुं दोय, तेमां पण कोमल एवा दोरमा वझे,घणे काले करीने घसाराधी ऊंमा कापा पमे . पण तेवो कापो पामवाने, कदापि लोढानी सांक लश्री आखो दिवस घसे, तोयपण, तेवो कापो न पसे. तेम तुंबाल्यावस्थाश्रीज विषय कषाय नंग करवाने माटे धर्मसाधनमां वर्त्तवानो अभ्यास कस्य ॥३५॥ रूपं प्रशाधने एतत् विद्युल्लतावचंचलं जगति जीवितं रूवमऽसासयमयं । विद्युलयाचंचलं जए जीअं॥ संध्यानुरागसदृशं दणरमणीयं च तारुण्यं संझाणुरागसरिसं । खणरमणीअं च तारुन्नं ॥३६॥ अर्थ-हे आत्मन् ! (एयं के) पा (रूवं केण) शरीर- सुंदरपणुं जे ते (असा । सयं के०) प्रशाश्वतुं . केम के, रोगादिके करीने सनत्कुमार चक्रवनिना शरी* Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रनी पेठे नाश पामे तेवू दे. वली (जए के) जगत्ने विषे (जीअं के) जीवित शल जे ते (विद्युलयाचंचलं के) वीजली रूप लतानी पेठे चंचल ने. एटले जेम वी जली क्षणमात्र देखाइने पठी नाश पामे डे, तेम जीवित पण थोमा कालमां नाश पामे छे. अने (च के) वली (तारुनं के) जवानोपणुं जे ते (संझाणुरागसरिसं के०) संध्याकालना नाना प्रकारना रंग सरखं, एटले संध्याकाले आकाशमां पंचवर्णा अनपटलना रंग, उत्पन्न थाय . तेना जेवू (खणरमणीअं के) | कणमात्र सुंदर देखाय तेवू . ॥ ३६॥ लावार्थ-जेम संध्याकाले अनेक प्रकारना वादलांना रंग थाय , ते कण* मात्र देखाइने वायुना प्रयोगयी नाश पामे . वली जेम जलकमल (पुमरीका दि कमल) अने स्थलकमल (गुलाबनां फूल आदि) केवां सुंदर प्रफुलित देखाय ले? परंतु तेज फल, बेत्रण दिवसमां एवां करमाइ जाय ने के, तेनी कां पण शोना रहेती नथी; तेम जवानी अवस्थामां पण शरीर, पुष्पनी पेठे खीलेटु दे। खाय डे, अर्थात् मोहनुं कारण था पमे . परंतु तेनु तेज शरीर, वृक्षावस्थामा ५३ *skKXXXXXXXXXXXXXXXXXXX 11ZNZAZNZZ0 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********************** एवं नगरं यर जाय वे के, सेना सामुं जोवुं पण बहुधा गमे नहीं ! माटे एवं तरुणावस्थामा शरीरनो शो मद करवो ? ॥ ३६ ॥ शरीरनी सुंदरतानो अहंकार न करवा ग्राश्री सनत्कुमार चक्रवर्त्तिनी कथा टीकामां जणाव्याथी लखीए बीए. कथा ४. भरतचक्रवर्त्तिना जेवी दिवालो सनत्कुमारनामा चक्रवर्ती राजा हतो. सनत्कुमारनो वर्ण श्रने रूप अनुपम हतां. एक वेला, सुधर्म सनामां ते रूपनी स्तुती यई, ते वात कोई वे देवोने रुची नही; पनी तेन, ते शंका टालवाने विप्ररूपे सनत्कुमारना अंतःपुरमां गया. सनत्कुमारनो देह ते वेला खेल नर्यो ह तो तेने अंग मर्दनादिक पदार्थोनुं मात्र विलेपन हतुं. एक नहानुं पंचियं पहे हतुं, अने ते स्नानमंडन करवा माठे बेगे दतो. तेवामां विप्ररूपे यावेला देवता, तेनुं मनोदर मुख, कंचनवर्णी काया अने चंडना जेवी कांती, जोइने बहु प्रानंद पाम्या. जरा मांथु धुणान्यु, एटले चक्रवर्त्तिए पूग्युं तमे मांथु केम धुणान्युं ? *********************** Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवोए कह्यु. अमे तमारु रूप अने वर्ण निरीक्षण करवा माटे बहु अनिलाषीहता, स्थले स्थले तमारा वर्ण रूपनी स्तुति सांजली हती.आज ते वात श्रमने प्रमाण जूत थइ, एयी अमे आनंद पाम्या. माटे मांथु धुणाव्यु के, जेवू लोकोमां कहे. वाय , तेवुज रूप . एग्रो वली विशेष डे, पण छै नथी. सनत्कुमार, शरीर ना वर्मनी स्तुतिथी प्रभुत्व लावी बोल्यो, तमे आ वेला महारुं रूप जोयुं तो न *ले. परंतु हुं ज्यारे राजसन्नामां वस्त्रालंकार धारण करी केवल सऊ थश्ने, ज्या * रे सिंहासन उपर बेसु , त्यारे महारं रूप अने महारो वर्ण जोवा योग्य ; अत्यारे तो हुँ खेलनरी कायाए बेगे , जो ते वेला तमे महारं रूप वर्ष जुन तो अद्भूत चमत्कारने पामो; अने चकित पर जान. पठी देवोए कद्यु, त्यारे अमे राजसन्नामां आवी| एम कहीने त्यांची चाल्या गया. त्यार पठी सनतकु मारे नत्तम अने अमूल्य वस्त्रालंकारो धारण कया. अनेक उपचारथी जेम पो. तानी काया, विशेष आश्चर्यने नपजावे तेम करीने ते राजसन्नामांश्रावी सिंहा सन नपर बेगे. आजुबाजु समर्थ मंत्रियो, सुन्नटो, विज्ञानो अने अन्य सन्नास- K******XXXXXXXXXXXXX*** य Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II दो योग्य प्रासने बेसी गया , राजेश्वर, चामरथी अने खमाखमाथी विशे पशोनी रह्यो रे (वथाइ रह्यो डे.) त्यां पेला देवतान पाग विप्र रूपे आव्या. अदभुत रूप वर्णथी आनंद पामवाने बदले जाणे खेद पाम्या ले! एवा स्वरूपमा तेनए माथु धुणाव्यु. चक्रवर्तिए पूज्यु. अहो ब्राह्मणो! गश् वेला करतां आ वेला तमे जुदा रूपमा माथु धुणाव्यु, एनुं शुं कारण ठे? ते मने कहो. अवधिज्ञान नुसारे विप्रे का के, हे महाराज! ते रूपमा अने आ रूपमां नूमी अने श्राकाश जेटलो फेर पमी गयो . चक्रवर्तिए ते वात स्पष्ट समजवा पूज्युं त्यारे ब्राह्मणे कडं. अधिराज! प्रथम तमारी कोमल काया अमृततुल्य हती. पण आ वेलाए फेररूप ले. तेथी ज्यारे अमृततुल्य अंग हतुं, त्यारे आनंद पाम्या हता. या वेला केर तुल्य , त्यारे खेद पाम्या. अमे कहीए बीए ते वातनी सि ता करवी होय तो, तमे हमणां तांबुल थुको; तत्काल तेना नपरमविका बेस से अने ते परधाम प्राप्त थशे. सनत्कुमारे ए परीक्षा करी तो सत्य गरी, पूर्व की | मना पापनो जे नाग, तेमां आ कायाना मद संबंध- मेलवण थवाश्री ए चक्रव XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX kakkXXXXXXXXX********** Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXX******KXXXXXX तिनी काया फेरमय थइ गइ. विनाशी अने अशुचिमय कायानो आवो प्रपंच जोड्ने सनत्कुमारना अंतःकरणमां वैराग्य नत्पन्न भयो के, केवल.या संसार त जवा योग्य . आवीने आवी अशुची स्त्री, पुत्र मित्रादिना शरीरमा रहेली . ए सघj मोहमान करवा योग्य नश्री. एम बोलीने, ते उखमनी प्रनूतानो त्या ग करीने चाली निकल्यो. एवँ जाणीने अहं ममत्व न करवो. गजकर्णवचंचलाः लक्ष्म्यः त्रिदशचापसदृशं चंचलं गयकन्नचंचलान । लबी तिअसचावसारिचं ॥ विषयमुखं जीवानां घुश्यस रे जीव मा मुह्यस्व XX*****XXXXXXXXXXXXX* त विसयसुहं जीवाण: । बुनसु रे जीव मा मुतः ॥ ३७॥ अर्थ-(जीवाणं के) जीवोनी (लबीन के) लक्ष्मीयो जे ते (गयकन्न चंचलान के०) दाधीना कान जेवी चंचल . अने (विसयसुई के) विषय सुख, Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेते (तिग्रसचाव सारिज के०) इंश्नां धनुष (आकाशपां लीला पीलां धनुष-TEL नी आकृतिवालां वादलां देखाय ने ते) सरखां चंचल . ए हेतु माटे (रे जीव * के०) हे मूढ जीव! (बुप्रसु के०) बोध पाम्य. अने (मामुन के०) मोह न पाम्य. केम के, फरीथी प्रावी मनुष्य देहादिक सामग्री मलवी घणीज उर्लन . मा Jail टे धर्मने विषे बोध पाम्य. ॥ ३७॥ नावार्थ-रे आत्मन् ! जे लक्ष्मीयोने देखीने तुं अहंकार धारण करे , के, आ लक्ष्मी जीवतां सूधीमां महारी पासेश्री जवानीज नश्री. परंतु ए लक्ष्मीयो Kal हाथीना काननी पेठे चंचल के. केम के, योमा काल नपर तें जेनने मोटा धना व्य दीग हता, तेन्ज कर्मना वझ प्रकी योमा कालमां दरिइथएला, तहाराजो वामां आवे , माटे लक्ष्मीयो, स्थिरपणुं नश्री. वली जीवोनांशब्दादिक विषय Ma सुख पण, इं धनुषनी पेठे एटले आकाशना लीला पीला रंगनी पेठे शीघ्र ना *श पामे तेवा . एटले वस्तुगते विषयनां सुख झांझवानां पाणी जेवां, तथा र धमामाना बाचका जेवां असत्य , माटे हे जीव! मनश्री मानी लीधेलां विष । XXXXXXXXXX************ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै ****XXXXXXXXXXXXXX य सुखने तथा लक्ष्मीने असत्य जाणी, श्री जंबूकुमारनी पेठे धर्म साधन कर वाने तत्पर था!! ॥ ३७॥ कथा ५. ___ राजगृही नगरीने विषेषनदत्त नामा शेठ तेनी धारणी नामे मार्यानी कूखमां, जंबुस्खामोनो जीव, जे पूर्व नवे पांचमा ब्रह्मदेवलोकने विषे तिर्यक्ज़ नक जातिमा माईक देवता हतो, ते त्यांथी (देवलोकधी) चवीने, पुत्रपणे आवीने नपन्यो. त्यार पड़ी माताए स्वप्नमां जंबूवृक्ष दीगे, पीज्यारे ते कुमा रनो जन्म भयो, त्यारे तेनो जन्म महोत्सव करीने जंबूकुमार एवं नाम दीधुं. अनुक्रमे युवान अवस्था पाम्यो, त्यारे सुधर्म गणधरनी पासे धर्मदेशना सांन लीने वैराग्य पाम्यो. त्यारे श्री सुधर्म स्वामीने कह्यु के, हे लगवन् ! हुं चारित्र लेश्श, पण महारा माता पिताने पूर्वी प्रा. एम कहीने पागे घर तरफ आवे , एटलामां मार्गमां आवतां जंत्रथी नपमेलो पत्थर, पोतानी पासेथी निक*ल्यो देखीने, विचारवा लाग्यो के, हमणां जो मने आ तोपनो गोलो लागी जाय६ KXXXXXXXXX****** Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त, तो हुं अबतिपणामां मरण पामत! एवं जाणी श्री सुधर्मस्वामीनी पासे पा * गे आवीने, ते कुमार समकित मूल जे बार व्रत , ते वारे व्रत लीधां. एटले अंगीकार कयौ. तेमां चोथा व्रतमा एटली मर्यादा राखो के, कदापि माता पिताना कहेवाथी स्त्रीयो परणत्री पझे तो तेने पर[; पण ते स्त्रीयोनी साये लोग लोगq नही. एवो त्याग करीने, फरी घेर आवी माता पिताने कडं के, हे माता! हे पिता!! मने अाझा आपो, हुं श्री सुधर्मस्वामी पासे दीका लेन. त्यारे माता पिताए कह्यु के, हे पुत्र! दीक्षा पालवी घणी उक्कर , एवी रीते घणोघ जो समजाव्यो, तोपण जंबूकूमारे मान्यु नही. त्यारे माता पिताए का के, * हे पुत्र! आठ कन्यान साये तहारु सगपण करेलुं ने, माटे तेने परणीने पठी * दीका लेजे. ते सांनली जंबुकुमार मौनपणुं धारण कररी रह्या. त्यार पठी मा ता पिताए, आठ कन्यानना पितानने का के, अमारो पुत्र वैराग्यवान् थयो. | माटे तमारे दीकरियो परणाववानी मरजी होय तो नले परणावो, पण ते क. न्याननो त्याग करीने जो दीका ले, तो अमारो दोष कहामशो नही. ते सान XXXXXXXXXXXXXXXXXXX*** Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - : XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ली सर्व शेठिया कहेवा लाग्या के, अमे नही परणावीए. पण ते शेठियाननी दी करीनए कह्यु के, अमे तो जंबुकुमारनेज परणीगुं. पण बीजाने परणवानो त्या गले. त्यारे शेठियानए पोतानो पुत्रीनने कां के, एतो दीक्षा लेशे. तोपण दी| करीयोए कहुं के, ए दीक्षा ले तो लले ख्यो, पण अमे तो एनेजपरणीशं. पठी ते एक रात्रीमा आठे कन्या परण्या, अने रात्रिये सध्या उपर बेसीने सर्व स्त्री* योने कयु के, हुं तो प्रनाते दीक्षा लेश्श. केम के, आ संसार सर्व अनित्य , I को कोश्नी सारे आवनार नथी. त्यारे स्त्रीनए कधु के, हे स्वामिन् ! तमे ह मणां दीका लेशो नही. हमणां तो जे संसार- सुख मव्यु , ते सारी रीते लोगवीने, पनी दीक्षा लेजो. नहि तो कर्षणीना न्याये पश्चात्ताप करशो. जेम Mall को मारवाम देशनोकर्षणी,पोताने घेर घनं वावीने पठी मेवाममां, पोतामे सा सरे गयो. त्यां तेनी सासुए सारा रोटला करीने थालमा मूक्या. नपरथी शेखमी मकी ते शेलझी कर्षणीने घणी सारी स्वादिष्ट लागी. पठी ज्यारे पोताना सालाने Meal प्रग्यं के, या शेलमी तमने क्याथी मली? एटले तमारे घेरक्यांधी प्रावी ? त्यारे *XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******* ************* सालाए कां के, ए प्रमारा घरमां नीपजे बे. बनेवीए पूग्धुं, ते केवी रीते निपजे बे? त्यारे सालाए शेलकी वादवानो विधि देखाड्यो. पी कर्षणीए जाएयुं के,. महारे घेर पण हुं वावीश. एम निर्धार करी घेर यावीने प्रथम जे घनंनुं खेत्र वाव्यं हतुं, तेनें नमी नांखवा लाग्यो. त्यारे लोकोएक के, आ तुं शं करेंगे? तक के, हुं मां शैलमी वावीश. त्यारे लोको कहेवा लाग्या के, आदेशमां पाणी नथी, माटे शेलकी थशे नही, तेम बतां जो तने शेलकीज वावबानी होय तो. एकवार जे आ घनंनी खेती करेली के ते कपावी ले, पी शेल की बनावजे. एवं लोकोनुं कहेतुं तेणे मान्युं नदी, अने शेलकी वावी ते थोमी नगी, एटलामा कूवानुं पाणी खूटी पमयुं, तेथी जे नंगेली शेलकी हत्ती ते पण सुकाइ गर. त्यारे पश्चात्ताप करवा लाग्यो, तेम हे स्वामिन्! तमे पण तुं सुख मूकीने बीजा नवा सुखनी चाहना करोगे तो पढी पस्ताशो !! एवी स्त्री योनी वाणी सांजली जंबूकुमारे कयुं के, पूर्वोक्त दृष्टांते पश्चात्ताप नही करूँ. परंतु जो नही समजशो तो तमेज पस्तावो करशो. हुं तो ललितांग कुमारनी (*********************** Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ बै० पेठे तमारा फेदमां नह । पशु, तन। कथा कहु बु तं सांजलो. एक नगरमा एक RTO शेग्नो पुत्र ललितांग कुमार एवे नामे, महा रूपवंत पुत्र हतो. तेने एक दिवसे ते नगरना राजानी रूपवती नामा राली बे. तेलीये दीगे. त्यारे एकांते बोलावीने, तेनी साथै संसार संबंधी जोग विलास करवा लागी. एटलामां राजा पण त्यां श्राव्यो. त्यारे जयत्रांत थइने, राणीए ते ललितांग कुमारने, खालमां नता यो अने विचार के, पटी कहामीश. हवे राणीतो राजानी साधे रमवा लागीगइ. अने ललितांग खालमां भूखे मरतो, कोइ अन्य आवीने एक्वाको नांखे ते खाय, श्रने एवं पाली परे ते पीए. एवी रीते व्यार महिना पर्यंत खाल मां पी रह्यो. इहां कोइ व महिना सूधी पकी रह्यो एम पण कहे बे. " तत्व | केवली गम्य" त्यार पबी ललितांगना माबापे घसोये जोयो, पण जड्यो नही. ते श्री शोक करवां बेगं, एटलामां वर्साद आव्यो तेथी खालमां पाणी जरायुं, ते पाणी कहावा सारुं खाल नधामी, ते खालना पासोनी साथे ललितांग पण त खातो तातो नगरनी महोदी खालमां जइ पड्यो. तेने लोकोए देखीने तेना E****** *********************** य Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********************** माता पिताने जर कां. माता पिता जर खालमांथी कहामी घेर ले गया, त्यां मर्छा खाइने पड़ी रह्यो. शरीर पीलुं पी गयुं, हामकां नीकली माव्यां, माता पिताये घer प्रकारना तैलादिक मसली जागतो कर्यो. त्यारे कांइक सावचेत थयो. पी औषधोपचार करतां करतां घणा दिवसे तेनुं शरीर सारुं प्रयुं, त्यारे व कप प्रमुख परीने बजारमां फरवा निकल्यो, तेने रालीये देखीने बोलाग्यो. ते बोल्यो के, हवे हुं तमारा फेदमां पहुं नही. ॥ इति ललितांग कथा || एव ते आठे स्त्रीयोए, जुदी जुदी प्राठ कथानं, संसारना सुखनो त्याग न कर वो, ते श्राश्रयथी जंबूकुमारने कही. अने जंबुकुमारे पण फरो संसारनी असा रता बतावनारी जुदी जुदी आठ कथान प्राठे स्त्रीयोने कही, ते कथान इहां ग्रं r वधवाना जयश्री लखी नथी, जो जावानी मरजी होय तो श्री जंबूचरित्र मां जो ज्यो. त्या स्त्रीयो प्रतिबोध पामी. एवामां एक प्रजवोनामे चोर, पां चसे चोरने साथे लेने, जंबू कुमारना घरमा आव्यो. तेथे सर्वने विद्याना बलश्री अवखापिनी निश मूकी, तेथी सर्वने निश आवी गई, परंतु जंवकुमारने नि ************ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै शन प्रावी. पनी ताला नघवानी विद्याथी मार लघमी, नवाणु क्रोम सोशल नामहोरोनी गांवझियो बांधी, तेने खेश्ने चालवा मांड्या, एटलामा जंबूकुमारने, स यद्यपि च्य नपर मूळ तो बिलकुल नथी, तोपण एवो विचार आव्यो के, महा रे तो प्रजाते.दीका लेवी , अने आ चोर लोको जो च्य ले जझे, तो लोक कहो के, जुन नाश्न! एनुं धन सर्व चोर लोको ले गया, तेथी एमाथु मुंमा वे दे. एवी रीते धर्मनी निंदा थशे, ते वात सारी नही, एवं चिंतवीने नवकार गुणवा लाग्या, तेथी पांचसे चोरोना पग स्थंनाइ मया. त्यारे प्रनवाने विचार अयो के, आते शुं प्रयु! त्यारे जोवा लाग्यो तो जंबूकुमारने जागता दीठा. त्या रे प्रनवे. जाण्यु के, एनी पासे को महा जोरावर विद्या के. एवं जाणीने जंवू कुमारने कर्जा के, महारी विद्या तमे ल्यो, अने तमारी विद्या मने आपो. त्यारे All जंबूकुमारे कह्यु के, महारी पासे कोर पण विद्या नथी. वली बीजी विद्या म हारे जोती पण नथी. महारे तो मानवकार मंत्रनो आधार से. एको धर्मोप * देश दोधो, त्यारे प्रनवे कयु के, आ नवी परणेली स्त्रीयोनो त्याग करीने, तुं KXXXXKKKRKXXXXXXXXXXXX KXEXXXXXXXXXXX** * * Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | दीका शा वास्ते ले ? संसारनां सुख भोगवीन पनी दीक्षा लेजे, तेन जंबूकु| मारे कह्यु के, हे प्रत्नवा! संसारमा सुख मेज क्या ? के, जने हुं लोग. संसार नुं सुख तो मधुबिंया समान . तेनी लालचे जीव संसारमा रमले दे. जेम को एक २पुरुष नूलनी नजम श्अटवीमा जइ पढ्यो तेनी पबवामे एक हाथी दोमयो, त्यारे ते हाथीना जपयी नासतो जागतो, एक वानी * शाखामां जर लटकी रह्यो. हवे ते शाखानी नीचे, एक पकून ठे, ते मां च्यार ६सर्प पोतानुं मोढुं फामीने बेग , तथा एक अजगर पण मोढुं फाफ़ीने बेठो दे; तथा ते वमना थमने हाथी धुणावी रह्यो . तथा जे शाखामां ते.पुरुष लटके , ते शाखाने एक कालो अने बीजो प्योलो, एवाबे नंदरो कापी रह्या छे. वली तेनी नपर एक मधमाखीनो मधपुमो ,तेनी १म विकान नझी नझीने ते पुरुषना शरीरने चटका मारी रहेली है. एटलामां ते १. जीव २ संसाररूप अटवो. कालरूप हाथी. ध धानखारूप शारवो. ५-नवरूप | कून. ६ च्यार कषायरूप सर्प. ७ करकरूप अजगर. . रांची. ए दिवस एकप वे चंदरो. १० सर्व कुटुंवरूप मक्षिकान. ११ विषय सुखरूप मनुं टी. ***XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX मधपुमामांथी एक मधY ११टी टवक्युं, ते पेला पुरुषने जीनने जश् लाग्युं, त्यारे ते पुरुषे नचुं जोवा मांझयुं तो तेणे दो के, मथपुमामांश्री ए मधुबिंध प मे; एवं जाणीने ते टीपानी नीचे महोडुं नघाडु राखीने लटक्यो अने टीपाMalना स्वादमां मग्न थयो थको, पोताना नपर पूर्वोक्त अनेक जातनां पुःख पड्यां , ते सर्वे नूली गयो एटलामा एक १२विद्याधर आवीने कहेवा लाग्यो के, हे पुरुष! तदारुं कुःख देखीने, मने दया आवे , माटे याव्य! महारा १३विमान * मां बेसी जा, हुं तने सुःखमांधी काढवा वांबु .त्यारे ते पुरुष बोल्यो. हे विद्या धर! आ एक टीपु मधD महारा मुखमां आववा द्यो, पढी हुं आपनी साथे वि मानमां बेसी चालु, एम एक टीपुं आव्युं, वली पण कडं के, आ वीजुं टी' * आवे तो चालू, ए रीते एकेक टीपाना स्वादमां लोनाणो थको, ते विकट स्थाः नने गेमे नही, त्यारे विद्याधरे जाण्युं के, एतो एवोज मूर्ख , लोनी छे, एकां कुखमांथी निकलशे नही. एवं जाणी तेने त्यांज मकी विद्याधर चाल्योग १२ सुगुरुरूप विद्याधर. १३ जिनधर्म रूप वैमान. ६० Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 (XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX यो. तेम हे प्रलवा! आ अवसर चूक्या तो फरी संसारमा पड्या, ने मनुष्य अव | तार मलवो महा पुर्लन ने. एवां वचन सांजलीने प्रवो चोरपण, प्रतिबोध * पाम्यो. अने बोल्यो के, हे जंबु ! हुं पण तहारी साले दीक्षा लेश्श. पठी जंबु | कुमारे पोताना माता पिताने प्रतिबोध दीधो, तथा आठ कन्यानए वली पोत पोताना माता पिताने प्रतिबोध दीधो,तमा प्रनवे पण, पांचसे चोरोने प्रतिबोध दीघो, एम सर्व मली प्रनाते, नवागुंक्रोम सोनैया धर्म क्षेत्रोमांखरची नांखीने, नत्तम नत्सव सहित पांचशे ने सत्तावीश जनोनी साथे, श्री जंबूकुमारे श्री सु/ धर्मस्वामी पासे दीक्षा लीधी. ए रीते लक्ष्मी अने विषयनां सुख त्याग करवा आ श्री, जंबूकुमारनुं दृष्टांत कयु.पा मधुबिंआना दृष्टांतनो सिखंत एटले नपनय घणो प्रसिइ, तोपण किंचित् टीका करीने देखाड्यो . यथा संध्यायां शकुनानां संगमः यथा पथि च पथिकानां जह संझाए सनणा। ण संगमो जह पहे अपहिआणं॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXX*** । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EYEXXXXXXXXXXXXXXXXXXX स्वजनानां संयोगः तथैव क्षणभंगुरः जीव ११ १२ १३ १० सयणाणं संजोगो । तहेव खणभंगुरो जीव ॥३॥ अर्थ-हे आत्मन् ! (जह के) जेम (संझाए के०) संध्याकालने विषे (सन *णाण के०) पक्षियोनो (संगमो के०) संगम पाय . (अ के०) वली (जह के०) जेम (पहे के) मार्गने विषे (पहिआणं के) मार्गे जनार लोकोनो समागम * थाय . एटले मार्गमां जनार लोकोनो समागम तथा परियोनो समागम जे. *म श्रोमा कालनो , (तहेच केतेमज (जीव के) हे जीव! (सयणाणं के) खजननो (संजोगो के०) संयोग जे ते (खणनंगुरो के) हणनंगुर . एटले कणमां नाश पामवाना वनाववालो . ॥ ३७॥ नावार्थ-जेम संध्या समये अनेक प्रकारनां पक्षियो, ब्यारेदिशा तरफथी। *आवीने एका मले ,अने प्रातःकाले, तेज पक्षियो पोत पोताना कर्मने अनु-/ *सरीने, चारेदिशा तरफ नझी जाय . तेम पा संसारने विषे अनेक प्रकारना Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********** * जीवो चारे गतिमाथी आवीने, आ मनुष्यन्नवमां एकग थया ने. अने तेज जी वो, पोतानुं आयुष्य पूर्ण करीने, पाग कर्मानुसारे चारे गतिमां जता रहे . तथा जेम मार्गने विषे, कोइ किये गामथी को किये गामथी आवीने लेगा था य, पठी त्यां थोमीवार विश्राम करीने, एटले लातुं खाइने पाठा सर्वे पोत पोताना योग्य स्थानक प्रत्ये जता रहे.ठे, पण तेन एक काणे बेसी रहेता नश्री, तेम पा संसारी जीव पण, कोइ कयि गतिमांथी, को कयि गतिमाथी पानि, एकग थाय , त्यां पोत पोताना कर्मानुसारे सुख दुःख लोगवीने, पठी पाग पोत पोताने योग्य गतिमां जता रहे जे. पण कोइ कोश्ना झाल्या रहेता नश्री. वली जेम चारे दिशाएधी आवेला मनुष्योनां नाम, जूदां जूदां ने, तमां चारे गतिमांथी आवेला, अने एक घरमा रहेला एवा जोवोनां नाम पण, जूदां जूदां कल्प्यां ने. तेमां को माता कहेवाय ने, कोइ पिता, कोइ नार्या, II कोरलाई, कोइ पुत्र, कोइ पुत्री इत्यादि कल्पनाए करीने नाम ठराव्यांबे. ते hel मां तुं महोटो मोह धारण करे के अवे तेने सुखे सुखी, अने तेने खे खी K******************** KRXX Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्राय डे, परंतु हे मूढ जीव! तुं एटलुं विचारतो नश्री के, आ जूग संबंधने साचो संबंध मानीने झुं करवा हेरान पत्र बु? माटे हे जीव! एवा जूग संबंधने जूगे मानीने, तेना नपरश्री मोह उतारीने, आत्म साधन करवाने विषे उद्यमवंत था! ॥३०॥ ॥ नपनातिवृत्तम् ॥ | निशाविरामे जागरिनः सन् परिजापयामि गृहे प्रदीप्ते कि अहं स्वपिमि निसाविरामे परिजावयामि । गेहे पलित्ते किम ऽहं सुयामि ॥ दयंत श्रात्मानं उपके यत् धर्मरहिताः : दिवसान् गमयामि तत् ।। मनतम ऽप्पाणमु वस्कयामि। जं धम्मरहिन दिअहा गमामिण अर्थ-हे जीव! तने एवो विचार केम नथी आवतो के, हु (निसाविरामे के) रात्रि विराम पामे सते एटले पाली चार घमी रात्री रहे सते जागीने ६५ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********* * (परिजावयामि के०) प्रावो विचार करूं के (जं के०) जे हुँ (धम्मरहिन के) धर्म रहित अयो सतो (दिअहा के०) दिवसोने (गमामि के०) 'फोकट केम गमावू .!!! अने वली (गेहे के) शरीररूप घर (पलित्ते के०) बलवा मांस ते (अहं के) हुं (किं के) क्या माटे (सुयामी के०) सूर रहुं बुं! अने (मनतं के) दामता एटले शरीररूप घरनी साये बल। मरता एवा (अप्पाणं के) आ मानी (उवस्कपामि के०) नपेक्षा केम करूं !!! अर्थात् देहनी साधे रहेला बलता प्रात्मान। हुँ रक्षा केम नथी करतो !! इत्यादि प्रात्मन्नावना तुं केम ना वतो नश्री ! ॥ ३॥ | नावार्थ-शास्त्रने विषे सर्व इत्यान करतां आत्म हत्या महोटो गणी के. ए Mil टले जागी जोइने प्रात्मानु बगाम, अर्थात् बती सामग्रीए पण आत्मसाधन न करवं. अने रात्रि दिवस देहादिक परनावमांज रज्यु पच्यु रहेवू; ते शुं प्रा. मानी घात करी न कहेवाय ? अर्थात आत्महत्याज कद्देवाय !! माटे. बधो रात्रि दिवसतो संसारना वेगमा चढी जतां कांश पण विचार न आव्यो, पण पा ************kikikikikiksk** ** ******** Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै बली च्यार घमी रात्रे नगीने, जस निर्मल चित्तवालो थश्ने, बीजा बघा विचा*र रहेवा देने, हे आत्मन ! तं तहारा आत्मानो विचार कर. शहां पाउली ज्यार २ घमी सत्रे नगीने विचार करवानें ग्रंथकार लखे , तेनो अभिप्राय ए ले के, जे म स्त्रीयो घंटीये दलवा मांझे ने; पठी दलतां दलतां एटले फेरवतां फेरवतां ते घंटीने एवा वेगमा लावे के, ते वखते जो घंटी फेरववी मूकी दे, तोपण वेग़ ना जोरथी ते फेरव्या विना पाच सात आंटा फरी जाय , तेम पाजीव पण * बधो दिवस संसारना कामनो एवो वेग लगामे के. ते रात्रे लांबो श्रश्ने सूए मे, तो पण ते कामनां स्वप्न आवे जाय . ते स्वप्न, दिवसे करेला कामना दचर का. ते हचरका घणुं करीने पाउली रात्रे शांत पमे. माटे ते अवसर, शुन ध्यान करवानो शास्त्रकारे जणाव्यो . माटे तुं एवो विचार कस्य के, आ बधा मनुष्यन्नवना अमूल्य दिवसो धर्म विना फोकट केम गमावे ? अने आ महा शरीर पण जरारूप अग्मिनी कालवमे बलवा मांझयु , अने तेनी साथे रहेलो जे आत्मा, ते पण बलवा मांड्यो , तो ते आत्माने तुं केम बलवा दे ? XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXKA Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********************** परंतु श्रात्मज्ञानवमे देदयकी आत्माने जूदो समजीने तुं देहना जाव जे जम दुःख, ने मिथ्याज्ञाव तेने देहने विषेज समज. अने आत्माना नाव जे सत्, चित् अने आनंदरूप एटले सच्चिदानंदरूप तेने तुं आत्मजावे समज. एटले जे देह बे ते सभी जाय, पमी जाय, यावत् विध्वंस भर जाय तेवो बे. अने जे या माते तेथी उलटो बे. एटले सही जाय तेवो, पी जाय तेवो, यावत् विध्वंस पड़ जाय; तेवो नथी. एवी रीते ग्रात्मानुं श्रने देहनुं स्वरूप जूडुं समजी ने, तें जे देहने विषे मिथ्या अहंपणुं मान्युं छे, ते तथा देह संबंधी पदार्थोंने विषे मिथ्या ममत्व मानेलो बे, तेने खोटो जालीने ते वेनो त्याग करवाने विषे प्र नवंत था. ए उपदेश. ॥ ३५ ॥ ॥ अनुष्टुप् वृत्तम्. ॥ याया व्रजति रजनी न सा १ २ ६ ४ ५ जाजा वच्च रयणी । न सा परिनियत्तइ ॥ प्रतिनि ********************** Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधर्म कुर्वतो जोः अफलाः यांति रात्रयः अहम्मं कुणमाणस्स । अहला जति राश्न ॥४० अर्थ-हे प्रात्मन्! (जाजा के) जे जे (स्यगी के) रात्री (वचर के) जा य, (सा के) ते ते (पमिनियत्न के)पाठी आवती (न के) नश्री. आ जग्याए दिवस ग्रहण नयी कस्यो, तोपण उपलक्षणथी ग्रहण करवो. एटले गया दिवस पण पाग आवता नथी. केमके (महम्मं के) अधर्मने (कुणमाणस्स के) करतो एवो जे तुं, ते तहारी (राश्न के) रात्रीयो जेते (अहला के०) अ. ★ फल, एटले निष्फल (जंति के0) जाय . अर्थात् अधर्मे करीने तहारा मनुष्य नयना रात्री दिवस व्यर्थ जाय . ॥४॥ लावार्थ-आ जीवनो जेटलो वखत धर्म साधन करवामांजाय , तेटलोज वखत ज्ञानी पुरुषोए सफल गण्यो . अने बाकीनो रात्री दिवसतो जे काल * एटले धर्भ साधन विनानो जे काल, ते पशुनी पेठे निष्फल जाय . केमके, *********************** unna ४ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पशुने विषे श्राहार, निज्ञ, लय अने मैथुन विगेरे जेवी रीते , तेवीज गीते | तहारे विषे पण . माटे तहारो जन्मारो पण धर्मसाधन विनानो पशु जेवो | समजवो. ___ यस्य अस्ति मृत्युना सख्य यस्य च अस्ति पलायन मृसोः सकाश त जरस हि मच्चुणा सरकं । जस्स व जि पलायणं॥ यो जानाति न मरिष्यामि केवलिवाक्यातू सः निश्चये कांदति वाधर्मः स्यादिति नान्यैः कार्य १० ११ ११ १३ १७ १७ १५ १६ * जो जाणे न मरिस्सामि। सो दु कंखे सुए सिया ॥४१॥ अर्थ-हे जीव ! (जस्स के) जे पुरुषने (मच्चुणा के) मृत्यु संगाये (स- | रकं के) मित्रता (अनि के) ने. (व के) वली (जस्त के) जे पुरुषने (पला यणं के०) मृत्युश्री नासी जq (अत्रि के) वली (जो के) जे पुरुष (जाणे kali) एम जाणे डे के; (मरिस्सामि के०) हुं मरीश (न के) नही. (सो के) ते Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sm । पुरुष (हु के) निश्चे (सुए के) श्वः एटले आवती काले धर्मसाधन करीश, ए प्रकारे (सिया के०) स्यात् एटले कदाचित् (कंखे के०) आकांक्षा करे. एटले श्ग करे, अर्थात् ते एवी चा करे, ते प्रमाणे डे. परंतु एवी रीते कोई पुरुषने कोई दिवस पण प्रयु नथी के, महारे मृत्युनी साधे मित्रता डे; माटे महारे तो कदि पण मरवू नही पके! तश्रा कोई पुरुषने एम अतुं नथी के, हुं बलवान बुं माटे, मृत्युश्री नाशीन, बचीश. तथा कोइना मनमा एम नथी अतुं के, हुं क्यारे पण नही मरूं, तो पण ते प्राणी धर्म संबंधी कार्यमांशीघ्रता करवाने काणे आव | तो काले घशेज तो! एवी रीते प्रमाद, केम करतो हशे!!! ॥ ४९॥ । नाबार्य-इहां अनूत नपम अलंकारे करीने नपदेश करे . एटले प्रावी | वस्तु को दिवस निपजी नथी, ते कदाचित् जो निपजे, तो ते आश्चर्यकारक कहेवाय. आजीवना मनमा एम थाय ने के, आजतो धर्मसाधन नही करीए, पण श्रावती काले करी. पण केम जाण्यु के, तुं प्रावती काढ्य सूधी जीवी ६५ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********* श? माटे श्रावती काले जीववानुं तो कोसा मनमां जागे के, जेने मृत्युनी सा थे खरी जाईबंधी होय, एटले ते मृत्युने पोतानी प्राज्ञामां राखी शकतो होय, तो ते पुरुष कदापि एम धारे के, प्राजनुं काव्य करीशुं. तो ते युक्त बे. तथा कोई बलवान् पुरुष, मृत्युना ऊपाटामां न आवतां, एवी कोई पर्वतनी गुफा - मां पेशी जाय के, ते मृत्युना हाथमांज न आवे ! जो एवो शक्तिवान् होय, तो ते पुरुष कदापि आज करवानुं काल्य करीशुं, एम विचारे तो ते युक्त बे. तथा कोइ पुरुषे कोइ केवलज्ञानी महाराजनी पासेथी जाएयुं होय के, हुं तो कोइकाले मरवानोज नथी, तो ते पुरुष कदाचित् एम धारे के, हुं आज करचानुं काव्य करोश, तो ते पण युक्त बे. परंतु उपर लखेली सर्व वातो कोइ का | ले थई नथी, वर्तमान कालमां श्रती नथी, अने ग्रागामी कालमां थशे पण न ही. तोयपण एवी मिथ्या कल्पना मनमां करीने, हे जम्बुद्धि जीव ! तुं बीजा संसारना कामनो प्रमाद करवो बोमी दइने, फक्त धर्मसाधन करवामां केम प्र माद करे बे ? ॥ ४१ ॥ *********************I Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ to ६६ *** ******** ॥ आर्यावृत्तम् ॥ देन सूत्रेनं यथा कुर्वतस्तथा व्रजेति निश्वये रात्रयः च दिवसाः च ११ ५६ ‍ G दमक लिअं करिता । वच्चंति हु राइन य दिवसा य ॥ निवर्त्तते の आयुः लघुकतः गताअपि न पुनः ३ ४ १० १४ १२ १३ यस संविता । गयावि न पुणो नियति ॥ ४२ ॥ - आत्मन्! (दंकलित्रं के०) दंग जेम सूत्रनी कलना (करिना के० ) करे बे. एटले कोलियादिक नीच लोको फालका नपर चढेला सूत्रने जेम लांबा दंरुवमे करीने नकेले बे, अर्थात् लूगडुं वसवाने माटे लांबो तालो करवाने अंत्य ज लोको फालका उपर चढेला सूत्रने लांबा दंमना लसरका वमे करीने ऊपाटाबंध नकेले बे, तेम (प्रानसं के०) नखाने (संविता के०) नकेलता एवा (इन के०) रात्रीयो (य के०) अने ( दिवसा के०) दिवसो जे ते ( वञ्चति के० ) जाय बे. (य के०) अने वली (गयावि के०) गया एवा जे दिवसो तथा रात्रीत, ते For Private Personal Use Only ***** *** TO ६६ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX (हु के) निश्चे (पुणो के) फरीथी (नियत्नंति के) पागं प्रावतां (न के) नथी. नावार्थ-एक कालरूप चंमाल , ते दिवस रात्री- जqावयूँ तेरूप, बैंक *ना लसरकावमे करीने मनुष्यना प्रानखारूप सूत्रना पिंझमे शीघ्रपणे केले . एटले आनखाने जलदी घटामे. माटे हे प्रात्मन् ! ते पाचखामांश्री गयेKाला रात्री दिवस कदिपण पाग आवता नथी. जेम आ मंथ उपावीने प्रसिप * यानी तिथि विक्रम संवत १७ ना कार्तिक शादि ५ (ज्ञान पांचम) ने सोम-1 वार हतो. हवे ते वर्षनी तेज तिथि, वार, पाखा जन्मारामां फरीथी पाववानो * नथी, तेम हे नव्य जीवो! आ गएला दिवस रात्री पण, तेनी पेठे पाग आव-1 वाना नथी. एटले गया ते तो गयाज!! एवं जाणीने या धर्मकार्य तो काले कर रीशुं, एम नही करतां, ते धर्मध्यान प्रमाद रहितपणे आजज करवू. ए उपदेश. ॥ नपजातिवृत्तम् ।। - यथा इहलोके सिंहः श्व मृगं गृहीत्वा मृत्युः नरं नयति निश्चयेन अंतकाले २. १३ ५ ६ ७ ए ११ ७. १० । जहे ह सीहो व मियं गहाय। मच्च नरं णेश हु अंतकाले ॥ KkKXXXXXXXXXX***** Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श - ---- -- - - - XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - - न तस्य माता च पिता च भ्राता काले तस्मिन् जीवितनागधारकाः नवंति | २१ १२ १५ १६. १७ १७ १५ १ ४ १३, २० २२ न तस्स माया व पिया व लाया कालमि तंमिं ऽसहरा लवंति४३ अर्थ-इह के) या लोकने विषे (जह के) जेम (सीहो के) सिंह जे ते मियं के) मृग जे तेने व के) जेम (व शब्दनो श्व अर्थ जाणवो.) (गहाय Sa ) ग्रहण करीने. एटले पकीने नाश करे ये. तेम (हु के) निश्चे (मजू के०) मृत्यु जे ते (नर के मनुष्यने अंतकाले के०) आयुष्य पूरु थये (णेश के) ले सजाय ने. (तस्स के) ते मायलने (तमि के) ते (कालंमि के०) समयने विषे ए Pटले मरणनी वखते (माया के) माता जे ते (व के०) वली (पिया के) पिता *जेते (व के०) वली (लाया के०)नाई जे ते (अंसहरा के०) अंशमात्र पण धारा रण करवाने. एटले खगार मात्र पण रक्षण करवाने (न नवंति के०) समर्थ नश्री प्रतां.॥४३॥ नावार्थ-हे जीव गमे तेवो धीरजवालो मनुष्य होय, तोपरा अंतकाले म - - - Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ r e -mmmmwa रणनी घणी वेदलाथी ते मागस मुग जेवो निर्बल थक जाय . त्यारे तेने सिंह * रूप काल पकीने ले जायचे. ते बखते ते मनुष्यनां माता, पिता, नाई, इत्यादि कोइ पण लगार मात्र राखवा समर्थ थतां नथी एटले गमे तेटला नपा य करे, तोपण तेने कणमात्र राखी शकता नथी. ॥ ३॥ आयोवृत्तम् ।। जीवितं जलाविउसमें संपत्तयः तरंगलोलाः जीअंजलबिंउसमं । संपत्तीच तरंगलोलान ॥ स्वप्नसमं च प्रेम ... यत् जानीषं तत्तथा कुरुष्प - -- - ७. सुमिणयसमं च पिम्म । जं जाणसु तं करिफासु ॥४४॥ अर्थ-हे आत्मन् ! जी के) जीव, (जलासमं के जलबिंऽ जेवु .ए टले माजना अपनाग उपर रखेवा,जसना विऽसमान चंचल ठे, तथा संपत्ति Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX न के) संपत्तियो जे ते 'तरंगलोलान के) समुना तरंग जेवी चंचल ने एटले एक ठेकाणेथी बीजे ठेकाणे शीघ्र जती रहे तेवी ने. (च के०) वली (पिम्मं के) स्त्रीयादिकनो प्रेम जे ते (सुमिणयसमं के०) स्वप्न समान . एटले क्षणमां नाश पामे तेवो . ते कारण माटे (जं के) जो (जाणसु के०) ए प्रकारेखरी रीते, जो अंतःकरणथी अस्थिरपणुं जाणतो होय, तो (करिनासु के०) जाण्या प्रमा से करु. एटले अप्रमादपणे धर्म साधन कर. ॥४४॥ | नावार्थ-लोकमां चालतुं घणुं पोपटियुं ज्ञान देखीने ग्रंथकार नपदेश करे | *दे. हवे पोपटियुं ज्ञान एटले शु? जेम को माणसे एक पोपटने नणाव्यु के, * बिल्लि (बिलामी) आवे तो तरत नमी जq. एवी रीते शिखव्यु, त्यारपठी ते पो पट पण ते वाक्यनो वारंवार अभ्यास करीने, ते रीते बोलवा लाग्यो. परंतु ते विचाराने एम खबर नथी के, बिल्लि ते शुं? अने नमी जq ते शु? पो एक दि वस ते पोपट जेवो पांजरामांधी निकाल्यो, तेवोज बिलामीए काल्यो. तोयपण ते पोपट पूर्वे शिखवेला वाक्यने बोले जतो हतो, ते वखतेज ते पोपटनी मोकी Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** ************ मरमी नांखी. माटे हे जव्य जीवो ! कहो ! ते पोपटनुं ज्ञान केंबुं कहेवाय ? तेम या सर्वे लोको मूखे एम बोले वे के, जीववुं जलना बिंदु जेवं चंचल बे. एवं बोले तोयपण, जीववाने माटे अनेक प्रकारना न करवाना योग्य एवा घणा | उपाय करे बे. अने वली एम बोले वे के, या संपत्तियो पण पालना तरंगनी पेठे अस्थिर बे, परंतु तेज संपत्तियोने राखवाने माटे. सन्मार्गने विषे वापरवामां घणुंज कृपणपणुं करे बे, घने वली एम बोले वे के, स्त्रीयादिकनो जे प्रेम बे, ते स्वप्न समान बे, एवी रीते बोले बे. परंतु ते स्त्रीयादिक पदार्थोनो ज्यारे नाश थाय बे, त्यारे खरा अंतःकरणमी लांबे रागे पोको मूकीने रुदन करे बे. माटे दे नव्यप्राणियो ! तमे विचारो के, श्री ज्ञान केवुं कहीए ? माटे ग्रंथकार एम कहे बेके, जो एम तमे जाणो बो, एटले, पूर्वे कहेली त्रण वस्तुने प्रतिशे जो चंच व जाणो बो, तो पूर्वेकहेला पोपटिया ज्ञानने मूकीने, तमे खरा अंतःकरणथी अनुभव ज्ञान करो एटले तमारा कह्या प्रमाणे तमे वर्त्तो, अर्थात् ते खोटाने खो ढुं जाणीने, अने एक जिनराजना वर्मने साचो जालोने, तेने विषेनद्यम करो. ************************ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ रथोवत्तावृत्तम् ।। संध्यारागश्च जलयुबुदश्च तउपमे : जीविते. च जलाऽचंचले संऊरागजलबुब्बुनवमे । जीविए य जलबिंउचंचले ॥ यावन च नदीवेगसंनिने पापजीव किं इदं न बुध्यसे जुवणे य नश्वगसंनिने। पावजीव किमियं न बुनसे ॥ ४५ अर्थ-(संझराग केए) संध्या समयनो रंग, तथा (जलबुब्बु के) पाणीनो परपोटो. (नवमे के५) ए वेनी ठे नुपमा ते जेने एवं, (य के०) अने (जलबिंड * चंचले के०)मानना अग्रनाग नपर रहेला पाणोना बिंऽ जेवू चंचल एवं, (जी विए के) जीवित सते (य के) वली (नश्वेगसंनिन्ने के०) नदीना वेगने तुल्य Kril एवं, (जुवणे के) यौवन सते (पावजीव केए) हे पापजीव! (न बुप्रसे के०) तुं नयी बोध पामतो (श्यं के) ए ते (किं के) शं!! एटले एते केटलु बर्षा आश्चर्य !!!॥४॥ au KXXXXXXKK********** Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नावार्थ-आ संसारमा बधी आशान करतां जीबवानी आशा घणी महोटी । ने. केम के, या जीवने ज्यारे बेलीबारे श्वास उपमेये, अने मचकां आवे , तो पण हजु हुं जीवीश, हजुहुँ जीवीश, एवी आशा रह्या करे .'माटे कोइ बिछान पुरुष, आईं वचन डे के, जीर्यते जीर्णवयसः । पुंसः केशरदायपि ॥ जीविताशा धनाशा च । कुमारीप वियते ॥ ३ ॥ अर्थ-जीर्ण प्रश्ने अवस्था ते जेनी, एवा पुरुषना केश तथा दांत जीर्ण पाय , एटले वृक्षावस्थामां मायाना केश धोला याय . एटलुंज नहि पण के टलाक नाश पण पामे . अने दांत परा शिथिल थाय . एटलुंज नहि पण प मी जाय . त्यारे पोतानुं जवानीपणुं देखामवाने मांटे, मूगोमां ज्यारे पलियां श्रावे , त्यारे तेने खुंटाव। नांखे . एम करतां ज्यारे वधारे धोलां आवे , त्या रे तेने गलेफ चढावे . एटले कालारंग के रंगे छे. तथा दांत पमी जाय , स्यारे जवानीपणुं देखामवाने माटे जनावरना हामकाना बनावेला दांतनी बत्री KAKKKKKXXXXXXXXXXXXXXX Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - sami KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX शी मुखमा घलावे डे. एम करीने पराणे पराणे जवानीपणु लाववा जाय . तो पण जवानी पाठी आवती नश्री. अने न गमतुं एवं वृक्षपणुं प्राप्त थाय रे, *त्यारे पण जीववानी आशा तथा धननी आशा, कुमारी कन्यानी पेठे दिन दिन प्रत्ये वृदिपामे , एटले तेने कोई मोसो कहीने बोलावे, तो ते वचन माथु का All प्या जेवू लागे , शाथी के, एने जीववानी आशा घणी ने माटे. एटलाज माटे मूल ग्रंथकार घणां दृष्टांत आपी जीवितर्नु तथा जवानीपणानुं अतिशे अस्थिर || पणुं देखा . के, संध्याकालना लाल, लीला, पीला, ननकादार रंगमा जेवू जीवित जणाय . पण ते रंग घमि बे घमिमां नाश पामे जे. एवं जीवित अ| स्थिर ले. वली तेथी वधारे अस्थिरपणु देखामवाने माटे बीजुं दृष्टांत कयुं जे. के, पाणीना परपोटा जेवु जीवित अस्थिर दे, एटले ते थोमीवारमा नाश पामे ते q , तथा तेथी पण मानना अग्रनाग नपर रहेतुं जल, तेथी पण थोकी वार ) मां नाश पामे ठे, माटे तेना जेवू जीवित कयुं . तेमज जवानीपणु नदीना वे ग जेवू चंचल कह्यु. एटले नदीनुं पाणी जे आपणे नजरे जोयुं, तेज पाणी वि XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX चारीने जोऽए तो केटले वेटे जतुं र अने प्रापणे तो जागीए बीए के, तेनु ते । जा पाणी . तेम कण कणे पलटातु जवानीपणु, तेने आपणे जाणीए के, तेनं तेजले, परंतु जे ग काले हतं.ते जवानीपण अाज नश्री. वली जवानी ka आवतां पहेलां मावाप विगेरे एम जाणे डे के, महारो दीकरो जवान थशे एट-* ले महोटो थशे. एम समजेने, परंतु वास्तविक रीते विचारीए तो, ते दिवसे दिवसे नहानो धाय छे. केम के, तेणे जेटलुं आयुष्य बांध्यु , तेमांथी तेटलो काल नगे अयो. एज रीतना विपरीत ज्ञानना वेगे चढी जवाथी आ जीव सम | जतो नश्री; माटे ग्रंथकार कहे के, हे पापजीव! एटले हे पापरूप थक गयेला प्राणिन् ! आ कह्यं तेवु अस्थिरपणु देखीने पण तुं हजु केम बूझतो नथी ।४५ ॥आर्या वृत्तम् ॥ अन्यत्र अन्यगतौ मुताः अन्यत्र गहिनी परिजनोऽपि अन्यत्र - - अन्नन सुआ अन्नन । गहिणी परिमणोऽवि अन्नन ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जूतभ्यो बलिरिव कुटुंबं प्रदिप्तं हातानेन श जूअबलिव कुमुबं । पस्कितं हयकयंतेण ॥४६॥ अर्थ-(इयकर्यतेण के निंदा करवा जोग्य एवा जे यमराज (मा कर्म) तेणे (कुडुवं के) आगल कहेश ऐवा, सर्व कुटुंबने (नअवलिब के०) नूतने जे | Ni म बलिदान प्रापे. एटले जेम बाकमा बुदा बुटा फेंके, तेम (सुआ के०) पुत्र पु. VE त्रीयोने (अन्न केए) अन्य गतिने विषे. तेमज (गेहिणी के०) बल्लन्न स्त्रीने पण A (अन्नब के) अन्यगतिने विषे. तेमज (परिअणोऽवि के) परिजनने. एटले प रिवारने पण (अन्नन के) अन्यगति प्रिये (पस्किन केय) पहोचालयां उ. अ. अर्थात् पुत्र, पुत्री, स्त्री, अने परिजनाविक ने जूदी जूदा गतिमा फेंकी दीधांजे. . भावार्थहे प्रात्मन् ! या संसाहस्थ चकमोल उपर बहीने, तुं एम वि. चार करे ले के, सघडं कुटुंव महारा सेगु सदायकाल एक स्थितिमा रहे. पण आ सर्व कुटुंबन्ये महारे कोई दिवस वियोग पके नही. एवा नपायमांत रात्री . . - - Jain Education Hil al Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********XXXXXXXXXXXX | दिवस ममेलो . परंतु तुं एम विचार नयी करतो के, जे स्वनावेज अस्थिर वस्तु , ते शेंकको नपाये पण स्थिर थवानो नयो. केम के, जे सर्वे कुटुंबी'मा | यसो डे, ते सर्वेनां कर्म जूदां जूदां . परंतु एकरुपे नश्री. तेथी करीने पुत्र, पु. त्रीयो, स्त्री अने परिवार इत्यादिक पोतपोतानां कर्मानुसारे नाना प्रकारची मंतियोमांथी जे रीते आव्यां हता, तेवी रीते पागं माना,प्रकारनी गतियोमा । चाख्यां जाय . ते केवी रीते चाल्यो जाय ? तो के, जेम को नूत देवताने बलिबाकला फेंके डे, ते बलिवाकला पराधीनपणे जूदी जूवी जग्याए जा पमे , तेम आ बिचारा पुत्रादिक कर्माधानपणाश्री अनेक प्रकारनी गतियोमा जश *पमे . त्यां तथा प्रा नवनां सुख.पुःखादिकमां पण, तहारो कोइ नपाय चाली | शकवानो नयी. तोपरा मिथ्या ममत्व बांधीने, जेम चालता गामातले कूतरु चालतुं होय, ते कूतरु एम विचारे के, प्रा सघलो गामानो नार हुं खेंचु बु. तेम तुं पण एम समजे ले के, या सर्व कुटुंबर्नु जरण पोषण पण हुंज करुं बुं, एवो तुं मिथ्या ममत्व करे ठे, परंतु एम नथी जाणतो के, सर्वे कर्माधीन , तेमां SEXXXXXXXXXXXKNXXXXXXXXXX Jain Education Intel II jainelibrary.org Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********************** do 39: हुं झुं करी कवानो !! एम विचारीने तेवा खोटा ममत्वने बोमी दइने, कां STO इकतो श्रात्मसाधन करवानो अवकाश जाव्य !! ॥ ४६ ॥ जीवन जवेश जन्मनि‍ . मिलिताः देहाः ये सक्ताः संसारे ६ ५ ४ मिलियाई देers जाइ संसारे ॥ क्रियते संख्या १० संखा ‍ ३ जीवेण नवे नवे | सागरोपमैः तेषां न अनंतैः ११ १२ G तेहि ॥४७॥ तां न सागरेहिं । कीरs अर्थ- हे ग्रात्मन् ! (संसारे के०) संसारने विषे (जीवेश के०) जीव जे तेले ( नवेनवे के०) नव जवने विषे (जाइ के०) जे ( देहार के ० ) देह ( मिलियाई ho) मेलव्यां वे. एटले की वे (तारां के०) ते देइनी (असंतेदिं के) अनंत एवा (सागरेहिं के०) सागरे करीने. एटले अनंता सागरना पाणीना बिंदुए कर ने, अथवा अनंता * सागरोपम काले करीने पल (संखा के०) संख्या जे ते (नी * या सागरोपमनंं प्रमाण ग्रंथने अंते जलाव्यं छे. ********** の *** 99 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nimoomD a के) नश्री (कीर के) करी शकाती.॥ ७ ॥ नावार्थ-हे प्राणिन ! जे शरीरने अर्थे तुं अनेक प्रकारनां पाप करे , देहना स्वरूपनो विचार कस्य के, ते केटलां शरीर करी करीने मूकी दीधां चे? ते देहनी संख्या, अनंता सागरना बिच पण श्रश् शकती नथी अथवा अनंता सागरो । ! पमना काले करीने पण असू शकती नथी. केमके, शास्त्रमा कथु बे के, जीवे जेटलां शरीरनो त्याग कस्यो , तेटला शरीरनो जो ढगलो करीए तो त्रणनूal वनमां पण माश् शके नही. केमके, ते शरीर अनंतां . ते कारण माटे हे नव्य Fol जीव! तुं एम विचार कस्य के, जगतमा देह समान को बीजी अशचि वस्तु प्राये ठेज नही. कारण के, गमे तेवी सारी सारी वस्तु दोय, ते पण देहना सं* बंधश्री बगझी जाय . जेम सारामां सारां मेवा मिग इत्यादि, देहमा नांखी ने तत्काल पा काढीने जोहए, तो तेना सामु पण जोशकातुं नथी. एवं न.* * गरुं श्र जाय . वली गमे एवां अत्तर चंदनादि सुगंधोदार वस्तु, देहनो संबंध पामीने उंगधमय थ जाय . तेमज गमे तेवां सारामां सारां अने बहु मूल्य Xxikk***************** Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै श० नां वस्त्र पण, देहना संबंधे करीने मलमलिन अश्ने गंधार उठे ले. एवी अशुचि नुं पात्र आ देह . तेवा देहनीज रात्री दीवस उग्वेठ (घणीज सेवा) करवामां काल गमावे . तथा ते देहने माटे अधर्म अन्यायादिक करतां पण मरतो नथी पण तेवा देहतो ते अनंता धारण कस्या, ने मूकी दीधा, जेम शरीर नपर पहेरे लां वस्त्र जुनां थएथी काढी नांखीने नवां धारण करे ने, ए न्याये ते च्यारे गति मां अनेक प्रकारनां शरीर धारण कस्यां . माटे ते शरीर नपरथी मर्चा नतारीने, जेम अशरीरी अवाय; तेधो नयम कस्व. ॥ ७ ॥ नयनोदकमपि तासां सागरसलिलात् बहुतरं जवति नयणोदयपि तासिं । सागरसलिलान बहुयरं हो॥ गणित रुदंतीनां मातृणां अन्यान्यासां ५२.४ गलियं रुप्रमाणीणं । माकणं अन्नमन्त्राणं ॥४॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ-हे आत्मन (तासि के०) ते (रुप्रमाणीणं के०) रमती एवियो ने (अ. माले०) अपर अपर जन्मने विषे श्रयेलीयो एवी (माकणं के०) मातान(मक्षिके०) शोकथी निकलतां एवां (नयणोदयंपि के०) नेत्रनां आंसु पण (सागरलखिलान के०) समुन्ना पाणी अकी (बहुयरं हो के०) अतिशे अधिक * होय छे. अर्थात् समुना पाणीवमे पण आंसुना जलनुं परिमाण थइ शकतुं नयी.॥6॥ लावार्थ-केटलाएक पुरुषो स्त्रीयादिक पदार्थथी वैराग्य पामीने दीका सेवा ने तैयार थया होय, परंतु तेन फक्त माता पितानो घणो नेह देखीने अने तेम ने रोतां कलकलतां देखीने, तेना प्रणाम पाग हठी जता जोड्ने ज्ञानी महा. राज तेने उपदेश देवाने अर्थे कहे . के, हे नव्य जीव ! तुं एक नवना माता पिताने रोतां कलकलतां जोक्ने दिलगीर केम थाय ? परंतु विचार कर के, तें कर्मना वशे करीने अनंता नवमां अनंता माता पिताने, रोतां कलकलतां मूकीने तुंआ नवमां आव्यो . ते माता पिताननी आंखमाथी निकलतां प्रां ハ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※ Jain Education Intern al Anyw.jainelibrary.org Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 - - सुनी संख्या करया बेसीए तो, समुना पाणीथकी पण अतिशे अधिक थाय वे. त्यारे हवे तुं कियां माता पिताने संतोष पमामीश? माटे वस्तुताये विचार कस्य के आत्मानी माता कोण ? पिता कोण ? अर्थात् आत्मानां माता पिता ज नही. एवं विचारीने साहसिकपणे धर्म साधन कस्य. ॥४॥ यत् नरके नैरायकाः उखानि प्राप्नुवंति घोराण्यनंतानि च जं नरए नेरश्या । उहाइ पार्वति धोरणंता ॥ ततः अनंतगुणितं निगोदमध्ये उःखं जाति तत्तो अणंतगुणियं। निगोअमप्ने उहं होइ ॥ ४ ॥ अर्थ-(नरए के०) नरकने विषे (नेरइया के०) नारकी जे ते (जं के०) जे | (धोरणताई के०) महा धोर, ने अनंता एवां (उहार के०) दुःखने (पावंति के०) पामे . (तनो के०) ते प्रकी (नीगोअमले के०) निगोद मध्यने विषे (अणंतगु-38 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX यं के०) अनंतगुणु (ऽहं के०) कुःख जे ते (होइ के) होय ठे. अर्थात् नरकना पुःखथी पण निगोदने विषे अनंतगुगु जुःख होय रे ॥धए॥ .. | लावार्थ-नारकीना पुःखनुं वर्णन घणा सिद्धांतोमा प्रसिह . तथा निगो| दनुं स्वरूप निगोद उत्रीशी विगेरे प्रकरणश्री जाणवू. परंतु ते फुःखना वर्णनने | इहां दिश मात्र देखामीए ठीऐ. इहां नारकीना दुःखश्री निगोदनुं दुःख अनंत * गुणु शाथी कडं ? ते कहीए जीए. दृष्टांत-सातमी नरकमां नत्कृष्टायु तेत्रीश सागरोपमर्नु , ते तेत्रीश सागरोपमना जेटला समय थाय, तेटलीवार, कोश जीव सातमी नरकमां पूर्ण तेत्रीश तेत्रीश सागरोपमने आनखे नपजे, त्यारे ते ने असंख्याता नव नरकना थाय, ते असंख्याता नवमां सातमी नरकने विष, ते जीवने जेटलुं छेदन नेदननुं मुख थाय, ते सर्वे पुःख एक करीए, तेथीप*ण अनंतगुणु पुःख निगोदीया जीव एक समयमा नोगवे . वळी एक प्रौदा रिक शरीरमा अनंता जीव लेगा रहे . ते नेगा शी रीते रहे ले? ते जणावी एबीए. एक सूईना अग्रनाग उपर रहे तेटली कंदमूलनी कली होय, तेमां अ EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********** | संख्याती श्रेणी रहे . ते एकेकी श्रेणीमां असंख्याता प्रतर ने. ते एकेका प्रत | All रमां असंख्याता गोला . ते एकेका गोलामां असंख्यातां शरीर . ते एकेका शरीरमां अनंता जीव ले. एवी रीते निगोदना जीवने रहेवानुं स्थान घj सांकडं .ते नपर एक स्थूल दृष्टांत कहीए बीए. जेम कोइ लाख औषधियोने नेगी क रीने तेने घणा दिवस सूधी खलमां घुटावीने, पठी तेनी राश्ना दाणा जेवमी* Mail गोलीयो वाली, तेमां जे रीते लाख औषधियोनो समावेश अयो, ते रीते एक शरीरमां अनंता जीव रहेला . ते निगोदना जीव, एक मुहूर्तमां पांसठहजार पांचशेने त्रीश नव करे, अने एक श्वासोबासमां सत्तरथी कांइक अधिक नव करे . एवी रीते निगोदमां जन्म मरणनां फुःख . के, ते दुःखनी उपमाज नथी! ते आश्रयीने निगोदने विषे नरकनां पुःखथी अनंतगुणु फुःख श्री वीतरागे कह्यं . ॥ भए॥ तस्मिन्नरकाधके अपि निगोदमध्ये उपितः रे जीव विविधकर्मवंशातू तंमि वि निगोअमले । वास रेजीव विविहकम्मवसाय **** ********************** ***** Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************************ विषमाणः तीक्ष्णः खं अनंतान् पुगनपरावर्तान् यावत् 6 ७ विसहतो तिकडं | अंतपुग्गल रावते ॥ ५० ॥ अर्थ - (रे जीव के०) हे जीव ! (विविहकम्मवसा के०) नाना प्रकारना कवशे करीने ( तंमिके) ते ( निगम के ० ) निगोदनी मध्ये (वि के०) प( पुग्गल रावत्ते के०) अनंत पुल परावर्त्त काल सूधी एटले अनंता सूक्ष्म क्षेत्र पुल परावर्त्त काल पर्यंत, तुं (तिरकडुहं के० ) तीक्ष्ण दुःखने (वि सतो के०) सहन करतो सतो ( वसिल के०) रह्यो बुं. ॥ ५० ॥ नावार्थ - तेवां दुःखने या जीवे ज्ञानावरणादिक कर्मना वश थकी नंतीवार जोगव्यां वे. माटे हवेथी तेवां दुःखो न जोगववां पसे, तेवा नद्यां तत्पर वुं ॥ ५० ॥ निःसृत्य कथमपि ततः प्राप्तः ย ‍ ३ ६ १ पुद्गल परावर्त्तनुं स्वरूप आगल कहींशुं. Jain Education Intal coral मनुजत्वमपि रंजीव ध ************************* jainelibrary.org Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - निहरीम कहवि पत्तो। तत्तो मणुअत्तणं पि रेजीव ॥ तत्रापि जिनवरधर्मः . प्राप्तः चिंतामणिसवः तत्रवि जिणवरधम्मो । पत्तो चिंतामणिसरिडो ॥५१॥ अर्थ-(रे जीव के हे जीव! तुं कहवि के) को महा कष्ट करीने पण * तत्तो के) ते निगोदशकी (निहरी के०) निकलीने (मगुअत्तणंपि के) मनु व्यपणाने (पत्तो के०) पाभ्यो ने. (तबधि के०) तेमां पण चिंतामणिसरिजो के०) चिंतामणि रत्न सरखो (जिणवरधन्मो के जिनवरनो धर्म जे ते (पत्तो के प्राप्त भयो . ॥५१॥ नावार्थ-हे आत्मन् ! तुं अनेक प्रकारनी अकाम निर्जराए करीने तथा नि * गोदनी नवस्थिति पुरी करीने अने महाकटे करीने, महा पुर्खन्न एवा मनुष्यन्न, वने पाम्यो. तेमां पण सकल वांगने पूरण करनार माटे चिंतामणी रत्नसमान श्री जिनधर्म, तेने तु पाम्यो . एटले तु जे जे सुखनी चा करीश, ते ते सुखनी || KXXXXXXXX************ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MAI प्राप्ति आ धर्म वज मलशे. एवा धर्मने पामीने विषय कषायने घटामवानो || Kill दिन दिन प्रत्ये नद्यम कस्य. के, जेथी मनुष्य नव अने जिनधर्म एबे पामवानुं | सफलपj थाय. ॥५१॥ प्राप्तपि तस्मिन् रेनीव करोवि !! प्रमादं त्वं तं एवं ____३ २ . १ १४ ३ ४ ११ १३ पत्तेवि तमि रेजीव। कुणसि पमायं तुम तयं चेव ॥ येन जवांधकूपे पुनरपि पतितः अखं लप्स्यसे जेणं जवंधकवे । पुणोवि पमिन उहं लहसि ॥५॥ __अर्थ-रे जीव के०) हे जीव! (तमि के ते जिनराजनो धर्म (पत्तेंवि के०) पामे सते पण (तुमं के) तु (जेणं के०) जेणे करीने (पुणोवि के फरीथी पण (नबंधकूवे केण) संसाररूप कूवाने विषे (पमिन के) पम्यो सतो (उहं के) - दु:खने (लहसि के) पामीश (तर्य केप) ते प्रकारना एटले संसाररूप अंध कू KXXX****************XXX ******************** - *** Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शव - - वै० वामां फरीथी नांखे. एवा (पमायं के०) प्रमादने एटले निज्ञ विकथादिकने | (चेव के) निश्चे (कुणसि के) केम करे ? ॥ ५ ॥ .नावार्थ-हे आत्मन् ! तुं जिनराजनो धर्म पाम्या पठी निश्चय अने व्यवहार एबे प्रकारे ते धर्मनुं करवू, ते मूकी दश्ने, उलटो तेने बदले जेथी फरीथी पण संसाररूप आंधला कूवामां पमाय, एवा निश विकथादिक प्रमादने केम सेवेने ? केम के, मनुष्यनो लव, अने श्रीजिनधर्मनी प्राप्ति, ए बेनो योग मल aliवो तो चिंतामणी रत्ननी पेठे महा उर्लन ने. ॥५॥ नपलब्धः जिनधर्मः नच अनुचीर्णः सेवितः प्रमाददोषण नवलो जिणधम्मो। नय अणुचिएणो पमायदोमेळां ।। हा शति खेदे हे जीव हे आत्मवैरिन् च सुबहु परतोऽग्रे खेत्स्यसे शोचिष्यसे ना जीव अप्पवेरि अ। सुबहं पर पिसरिहिसि ॥५३॥ KXXXKAKKXXXXXXXXXXXXX - Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ **** **************** अर्थ - ( जीव के०) हे जीव ! तें दैवयोगथी (जिलधम्मो के ० ) ( जनघम ज ते ( नवलो के ०/ पाम्यो. परंतु ( पमायदो सेां के०) आलस्यादिक दोषे करीने चिएणो के० ) सेव्यो (नय के०) नथी. (हा के०) श्रा घणी खेदकारक वा a. ( ० ) वली (अप्पदेरि के०) हे श्रात्माना वैरिन् ! ( परन के० ) परलोकने विषे तुं (सुबहु के ० ) अतिशे घणुं (विसूरिहिसि के०) खेद पामीश. प्रर्थात् घणोज पश्चात्ताप करीश. ॥ ५३ ॥ जावार्थ हे आत्मन् ! सर्व सुखनी प्राप्तिनुं कारण एवा जैनधर्मने पामीने, केवल प्रमाद दोषश्रीज, ते धर्मनुं सेवन; तें करयुं नही. माटे तुं तहारी मेलेज तहारा आत्मानो महोटो शत्रु प्रयो. एटले आत्मानी हत्या करनारो थयो . माटे तु मरण पामीने परलोकमां शशिप्र राजनी पेठे घलोज शोक करीश. ॥ ५३ ॥ ते शशिप्रजराजानी कथा नीचे प्रमाणे जाणवी. कथा ६वी. सावडी नगरीने विषे शूरमन, धने शशिमन एवे नामे वे नाई राज्य नो Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० 90 ************************ गवता दता. तेवामां एकदा समयने विषे, ज्ञानी गुरु श्री धर्मघोषसूरि नगरीनी बहार aurat far पधास्या. वनपालके जइ राजाने वधामली दीधी. राजाये वनपालकने घणुं व्याप्यं पठी बे बांधव, श्री गुरु पासे गया . त्यां विधिपूक वंदन करी उचित स्थानके बेटा. गुरुए पण अवसर जाली धर्मदेशना दीघी जेम के, || शिखरिणीवृत्तम् ॥ सदापात्रः कायः पिषु सुखं स्थैर्यविमुखं । महारोगा जोमाः, कुवलयदृशः सर्पसदृशः ॥ गृहावेशः क्लेशः, प्रकृति चपला श्रीरापे खना । यमः स्वैरी वैरी, परमिह हितं कर्त्तुमुचितम् ॥ १ ॥ अर्थ - शरीर निरंतर अपायरूप वे एटले कष्टरूप, दोषरूप, अने पापरूप एवं महामलिन शरीर बे. तथा स्नेहिनुं सुख पण अस्थिर बे. एटले treat करीने रहित बे. अर्थात् ते क्षणमात्रमा स्नेही पण थाय वे, अने तेज मात्रमा वैरी पण याय बे. अने विषय जोग जे ते, महा रोगरुप बे. aa ***** TO 90 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mill एटले विषयत्नोगयी अनेक प्रकारना, रोग नत्पन्न पाय .अने स्त्रीयो जे ते, सर्प | समान . एटले जेम सर्प करमे,ने फेर चमे, ने प्राणनो नाशपाय, तेम स्त्रीना संसर्गधी विकार उत्पन्न धाय जे. अने तेथी अनेकवार जन्म मरण थाय. माटे | जे गृहस्थाश्रममा रहे, ते केवल लेशरूप . अर्थात् उंटना उपर बेसवा जेवो | गृहस्थाश्रम . एटले जेम उंटनांअढारेवांकां होय डे, तेम गृहस्थाश्रम वालाने अनेक प्रकारनां वांकां आवी पसे. पण को वातनुं पांगलं परतुं नमी. एटले Model गमे तेवी कठण कम्मर बांधीने दृढपणे, उंट नपर बेगे होय, तोपण ते पुरुष हा ख्या विना रहे नहि. तेम सुके तेवो खबरदार, संसारमा कहेवातो दोय तोपण तेने कोइ प्रकारलांगन (पाप) लाग्या विना रहे नही. अने लक्ष्मी पण स्वनावे चंचल ले. अने खल के. एटले तरनारी . अने वैरी एवो काल जे ते, स्वेनाचारी . एटले पोतानी मरजीमां आवे ते वखते जीवने पकमीने ले जाय . माटे या नवमां नत्कृष्टुं प्रात्मानुं हित करवू घटे . एटले परलोकमां हितका. री एवं धर्मसाधन करवूज योग्य ले. ॥१॥ *XXXXXXXXXXXXXXX***** KkKXXXXXXXXX******* Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX इत्यादि धर्मदेशना सांजली बन्ने लाई घेर अाव्या. घेर श्रावीने शरमन, पो ताना लाई शशिप्रन प्रत्ये कहेतो दबो. हे लाई!महारे राज्यनो खपानश्री त्यारे शशिप्रने कडं के, श्या माटे तहारे राज्यनो खप नश्री! त्यारे शूरप्रने कह्यं. हे नाई! राज्यने बेमे नरक पामीए. माटे महारे राज्यनो सर्वद्या प्रकारे खप नथी. लारे शशिप्रने का. नाई! मनुष्यन्नव पामीने एले शुं करवा गमावे ने ? ए स वे बालकने बिहामणरूप करी मूक्युं . माटे खान, पीन, वावरो, काया बाल वाथी हायमां शुं प्रावशे? कोण जाणे परलोक ने के, नथी ! अने प्रत्यक्ष सुख मूकीने परोक्ष सुखने शुं करवा वांजे .माटे हे नाई! महारूं कहेढुं मानीने या * राज्य लोगवो, परंतु नतावला थश्ने जो संसार मूकशो, तो पठीथी घणोज पश्चा | चाप करशो! अने वली पठी तमे कहेशो के, नाईए कह्यु नहोतुं. माटे हालमां * सांसारिक सुख नोगवीने पी वृक्षावस्थामां संयम लेज्यो. एवी रीते शशिप्रने कडं. त्यारे शरमन कहेतो हवो. अरे नाई! ए तमे शुं कहूं! ॥ धर्मस्य त्वरिता । गतिः ॥ एटले धर्म तो प्रमाद मूकीने जलदीश्रीज करवो. माटे आ राज्य ल्यो. XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवी रीते कहीने बलात्कारे पोताना नाईने राज्य प्रापी शूरप्रन्न राजाये श्रीगु रु पासे जश् दीक्षा लीधी. पनी घणां तप जप करी अंते अनशन करी, समाधि सहित काल करीने पांचमा ब्रह्मदेवलोकने विषे देवतापणे नपन्यो. हवे शशिप्रनराजा राज्य लोगवी, सात व्यसन* सेवी मरीने त्रिजी नरकने विषे ना रकीपणे उपन्यो. हवे शूरपन्न देवताये अवधिज्ञानना बले करी जोयु, त्यारे पो तानो नाई शशिप्रनने त्रिजी नरकने विषे दीठो, देखीने विचायु के, एणे महा || सं कहेलुं न मान्यु, माटे नारकी अयो, ने घणुं सुख भोगवे . तोयपण हुं ते ख टाटुं. एम धारी ते देवता मोहनो लीधो नरकावासामां आव्यो. प्रावीने पोताना नाईने घणो घणो ताणवा मांड्यो, तेम तेम ते घणीज वेदना पामवा लाग्यो. पठी देवता कहे के, नाई! ते महारं कहेवू न मान्, जूमा में तने घj ए कह्यु हतुं. तोपण तुं समज्यो नही. माटे हवे शुं करीश? त्यार ते नारकी क हे. हे नाई ! हवे शुं करूं? पठी शूरपन्न देव, परमाधर्मिने नलामण देश पागे * १ जुगटुं, २ मासलक्षण, ३ सुरापान, ४ वश्यागमन, ५ आहेमाकर्म (मृगयाकरवी), ६ चोरीकरवी, ७ परस्त्रीसेववी. K***********XXXXXXXXXXX Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै. देवलोके गयो. शशिप्रन्न घणोज पश्चात्ताप पाम्यो. पण ते पश्चात्ताप कांश कामत श्राव्यो नही. तेम जे प्राणी चिंतामणी रत्न समान मनुष्यन्नव पामीने जिनधर्म नहि करे, ते प्राणी शशिप्रन्न राजानी पेठे महा शोचनानेपामशे!! अने जे प्राणी शूरपन्न राजानी पेठे प्रमाद मूकीने, जलदायी धर्म साधन करशे, तेप्राणी मोद देवलोकनां सुख पामशे.एवं जाणी, प्रमाद मूकीने धर्म साधन करवू.ए नक्देश. शांचंति ते वराकाः पश्चात् समुपस्थिते मरने - XXXXXXXXXXX****** XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX** सोअंति ते वराया। पहा समुवयिंमि मरणंमि ॥ पावप्रमादवशेन न संचितः यः जिनधर्मः * पावपमायवसेणं । न संचियो जेहिं जिणधम्मो ॥५४॥ अर्थ-(जेहिं के०) जेमणे (पावपमायवसेणं के०) पापरूप प्रमादना वशे क INIरीने (जिणधम्मो के०) जिनधर्म जे ते (न संचियो के०) पोताना आत्माने विज Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नश्री संचय कर्यो.अर्थात् पोताना प्रात्मामां जिनधर्म बरोबर उसाव्यो नथी. (ते के०) तेवा (वराया के०) रांक पुरुषो जे ते. एटले अज्ञान कष्टने करनारा पुरुषो जे ते (मरणंमि के०) मरण (समुवयिंमि के) प्राप्त श्रये सते (पिछा के) पठी (सोअंति के०) शोक करे . के अरेरे! आपणे कांइ पण धर्म साधन कर्या विना परलोकने विषे क्यांश्री सुखी अश्शु!! इत्यादिक घणोज पश्चाताप करे डे.॥५४॥ नावार्थ-हे जीव! जेवी जोइए तेवी तने धर्मसाधन करवानी सामग्री मली, तोपण कुगुरुना नपदेशथी जिनाज्ञा रहित अनेक प्रकारनां अज्ञान कष्ट करी, या लोक तथा परलोक ए प्रकारे वे खोकनु सुख हारी गयो. केम के, लो. कमां मनावा पूजावाना अहंकारश्री, समज्या विना अज्ञान कष्ट की, तेथी प लोकमां तने घणोज पश्चात्ताप थशे. माटे थोड़ें पण जिनाणा सहित धर्मसाधन करवामां प्रमाद रहित था. अर्थात् *पांच प्रकारना प्रमादना वशश्री विरा * १ मद, २ विषय, ३ कषाय, ४ निशा, अन ५ विकथा. X************ ******* Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************** do १ **** पामीने जलदी धर्मसाधन कस्य ॥ ५४ ॥ धिधिधिक संसारं देवः मृत्वा यत् तिर्यक जवाते ११ १० ‍ १ ย ५ घीधीधी संसारं । देवो मरिकण जं तिरी होई ॥ मृत्वा राजराजाचक्रवर्त्तिनः परिपच्यतेऽतएव नरकज्वालानिः の U G मरिक रायराया । परिपञ्चइ निरयजालाए ॥ यथ ॥ अर्थ - (जं के०) जे कारण माटे (देवो के०) देव जे ते (मरिका के०) मर पामीने ( तिरी के० ) तिर्यंच ( होइ के०) या वे. अर्थात् देवता मरीने ति चमां तथा पृथ्वी आदिकमां उत्पन्न याय बे ! अने (रायराया के०) र जाना पण राजा जे चक्रवर्ती, ते (मरिन्द्रण के०) मरण पामीने ( निरय जालाए के ० ) नर कनी जाला करी (परिपञ्च के) प्रतिशे पचाय बे! माटे (संसारं के०) ते संसारने (धी घी घी के०) धिक्कार थान ! धिकार था !! धिकार था ! ! ! इहां अतिशे धिक्कार जणाववाने माटे त्रण वखत धिक्कार कह्यो े. ॥ ५५ ॥ ************************ TO १ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fx***kkKIXXXXXXXXXXXXXX नावार्थ-कोइने एकवार धिक्कार! कोइने बे वार धिक्कार !! पण आ संसार ने तो त्रणवार धिक्कार कह्यो. तेनुं कारण ए के के, देवता सरखा महा शहिवंत पण, मरीने तिर्यंच गतिने विषे अथवा पृथ्वीनादिकमां जा पाषाणपणे नत्पन्न । थाय ! आ झुंजबुं आश्चर्य !! तथा उ खंना नोक्ता, तथा चोसठ हजार स्त्रीयोना पति, तथा चोराशी लाख हाथी, चोराशी लाख घोमा, चोराशी ला. ख रथ, अने उन्नुकोम पायदल, वली नव निधान, अने चौदरत्न तथा सोल हजा र जद तथा बत्रीस हजार मुकुटबंध राजा इत्यादिक, रात्री दिवस जेनी सेवा मां रह्या . एवा चक्रवर्ती राजा पण मरीने नरकनीज्वालामा उत्पन्न थाय !! त्यां ते चक्रवर्तिने परभाधर्मी, महा वेदना नपजावे . अहो! हो!! आ ते शुं योमी आश्चर्यकारक वार्ता !!! ॥५५॥ याति प्राथः जीवः यस्य पुष्पं व कर्मएवातस्तेनहतः जा अणाहो जीवो । सुम्मस पुप्फ व कम्मवायहन॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXX***************** धनधान्यानर गाने गृहस्व जनकुटुंबं मुक्तवापिधणधन्नाहरणाई। घरसयणकुसुब मिल्लेवि ॥५६॥ अर्थ-(अणाहो के) अनाथ एवो, (जीवो के०) जीव जेते (धणधन्नाहरणाई के) धन, धान्य, अने आनरणोने तथा (घरसयणकुडुंब के०) घर, स्वजन, अ ने कुटुंब जे तेमन ( मिल्लेवि के०) मूकीने पण (कम्म वाय हन के) कर्मरूप * वायुए करीने हणायो सतो (कुम्मस के) वृतना (पुप्फ व के) पुष्पनी पेठे। A (जा के०) जाय . अर्थात् देठे पो . ॥ ५६ ॥ नावार्थ-जेम वायुथी पराधीन थएलु पुष्प, थोमीवारमां नीचे पड़ी जाय । , तेम आ जीव पण कर्मे प्रेख्यो सतो धन, धान्य, कुटुंब परिवार, घर हाट, हात kiवेली अने महोटी महोटी ईमारतो, तथा सारां सारां घरेणां इत्यादिक साह्यबी मकीने, अनाथ एटले रांक जेवो प्रश्ने, नरकादिक धुर्गतिने विषे जाय . त्या | गया पठी पूर्वे कहेली कोइ पण वस्तु ते जीवने खप लागती नथी, माटे हे जी. Mail Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व! परिणामे जे वस्तु तहारी साये नथी प्रावती, तेवी वस्तु नपरश्री मोह मम त्वनो त्याग करीने, जे परनवने विषे साथे आवीने सुख करे , तेवा ज्ञानदर्श न चारित्रादिक धर्मनुं आराधन कस्य. ॥५६॥ उपितं गिरिषु नापितं कंदरामु नपितं समुश्मध्ये (XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX वसियं गिरीसु वसिय । दरीसु वसियं समुद्दमनंमि ॥ वृक्षाप्रेषु च नपितं संसारे संसरता कदाचित् १० ए ११ १ २ रुकग्गेसु य वसियं । संसारं संसरंतेणं ॥ ७॥ अर्थ-हे आत्मन् ! (संसारे के०) संसारने विष (संसरंतेणं के०) पर्यटन कर तो एवो जे तुं, तेणे (गिरीसु के०) पर्वतोने विषे (वसियं के) निवास कर्यो . तथा (दरीसु के०) पर्वतोनी गुफाने विषे पण (वसिय के०) निवास कों .तथा (समुदमनंमि के०) समुनी मध्ये (वसियं के) निवास कयों डे. (य के०) । K******************** - Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० वली क्यारेक (रुरकगेसु के०) वृक्षना अपने विषे ( वसिय के०) निवास कर्यो ठे. अर्थात् पूर्वे कला सर्व स्थानकोमां तुं धनंतीवार निवास करी आव्यो वे. माटे. तदा निवासस्थान एक ठेकाले नथी. ॥ ५७ ॥ ८३ ************ जावार्थ- कोइ शिष्यने पोताना देशनुं, तथा पोताना गामनुं, तथा पोताने रवानी ईमारतनुं; तथा पोतानी उत्तम जातिनुं, तथा पोताना प्रसिद्ध कुलनुं, तथा पोताना उत्तम वर्ण, इत्यादिक अभिमानने धारण करतो जोइने, गुरु नप देश करे ठे. के, हे शिष्य ! तुं मिथ्या अभिमान शुं करवा करे बे ? परंतु तुं विचार कर के, या संसारमा प्रमण करतां केटली एक बखत तुं पर्वतने विषे पर रूपे व्यो बे. तथा केटली एक वखत पर्वतनी गुफामां पण सिंहादिक प शुरूपे पर श्राव्यों है. तथा केटली एक वखत समुइने विषे जलजंतु रूपे श्रइ श्रा or a तथा केटली एक वखत वृक्षोना श्रप्रजागमां कागमा प्रमुख परूिपे नि वास करी ग्राव्य वे. इत्यादिक घणीक जग्याए निवास करी श्राव्यो बे. माटे त. दारु की एक निवास स्थल बे ? अर्थात् एक परा ठेकाले निवास करवाना *********************** RTO m ८३ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थाननो तहारो निश्चय नथी. तोपण महारुं महारुं करीने मिथ्या अनिमान शु करवा करे ? ॥ ५॥ देवः नैरोयकः शति च कीटः पतंगः इति मानुषः एषः परावर्तते XXXXXX************* देवो नेरश्न ति य । कीम पयंगु त्ति माणुसो एसो॥ रूपीरूपवान् च विरूपः मुखजागी अखन्नागी च १० ११ १३ १४ १५ १३ रूवस्सी य विरूवो । सुहानागी उखन्नागी य ॥५॥ अर्थ-हे जीव! तु केटलीएक वखत (देवो के०) देव श्रयो . तथा (नेरश्न के) केटलीएक वखत नारकी ए प्रकारे थयो रे. (य के०) वली (कीम के०) के टलीएक वखत क्रमियादिक कीमो थयो . तथा (पयंगु ति के) केटलीएक व खत पतंगियो ए प्रकारे थयो . वली (मागुसो के०) केटलीएक वखत मनुष्य * यो ठे. वली (एसो के) एज तुं (रूवस्सी के०) केटलीएक वखत रूपवंत श्र KXXXXXXXXXXXX******** Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PB ************XXXXXXXXXXX यो . (य केण) वली एज तुं (विरूवो के) केटलीएक वखत कुरूपवंत प्रयो ने. * य के०) वली (सुहन्नागी के०) केटलीएक बखत सुखनो नोगवनारो श्रयो . अने वली (उखजागी के०) केटलीएक वखत दुःखनो नोगवनारो पण श्रयो . | नावार्थ-श्रा जीवे नटवानी पेठे जूदा जूदा रूपे करीने आ संसाररूपी रंग नूमिमां अनेक प्रकारनां नाटक कयाँ ले. जेम के, कोश्क वखत देवतानो वेश* नजन्यो, त्यारे एवं विचायु के, जगत्मां महारा जेवो को सुखीयो नश्री. त| था कोश्क वखत नारकीनो देश जजव्यो, त्यारे एवं विचार्यु के, जगतमां महा| राजेवो को फुःखीयो नथी. तथा कोश्क वखत तिर्यंचनो वेष नजव्यो, त्यारे ए q विचार्य के, जगत्मां महारा जेवू कोश्ने पराधीनपणानुं फुःख नथी. वली | कोश्क वखत मनुष्यनो वेश लजव्यो, त्यारे एवं विचार्यु के, जगत्मां को महारा जेवो श्रेष्ठ बुध्विालो नत्री. एमज कोइक वखत पोताना पुद्गलना रूपनो अहंकार कर्यो, के, महारा जेवो जगत्मा को रूपालो नथी. तथा ज्यारे कुरूप वान् थयो, त्यारे एवं विचार्यु के, महारा जेवो जगतमां कोई कुरूपवान् नथी. ding XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एम मांकमानी पेठे को वखत सुखी श्रश्ने नाच्यो, अने को वखत सुखी थश्ने नाच्यो, माटे हे आत्मन् ! ए सर्वे वेशने असत्य जाणीने, फरीथी तेवा वे|श धारण करवा पसे नहीं, तेवो नद्यम कर. ॥५॥ राजा शति च इमकोरंक इति च एपः श्वपाक इति एषः वेदवित् रानत्ति य दमगुत्ति य । एत सवागुत्ति एस वेय विऊ ॥ स्वामी दासः पूज्या खत इति अधनः धनपतिरिति सामी दासो पङो । खलोति अधणो धणवइति ॥५॥ नापि अत्र कोपि नियमः स्वस्यकर्मतस्यविनिवेशः तस्यादृशी कृताचेष्टायेनसः ४ १ २ ३ नविश्व का निअमो। सकम्मविणि विठसरिसकय चित्रो॥ अन्यान्य रूपवेषः नटश्च परावर्चते जीवः XXXX******************** अन्नन्नरूववेसो । नमुव परिअत्तए जीवो ॥६॥ युग्मम् ॥ Jain Education In h al 2 M.jainelibrary.org Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rera अर्थ-हे जीव! तुं केटलीएक वखत (रान त्ति के०) राजा ए प्रकारे श्रयों. (य के०) वली (दमगु ति के ) नीखारी ए प्रकारे अयो. (य के० ) वली ( एस ज्य के) एज तुं (सवागु त्ति के) चमाल ए प्रकारे थयो. वली (एस के) एज तुं (वेयविक के) वेदनो जाण अयो. (वली सामी के) स्वामी अयो. अने दासो के) दास अयो. (पुजो के) पूज्य अयो. अने (खलो नि के) खल एप्रकारे अयो. (वली अधणो के) निर्धन थयो. अने (धणवश ति के०) धनपति ए प्रकारे थयो. ॥ ५ ॥-इच के) एमां. एटले पूर्वे कर्तुं तेमां (को के) को प्रकार नो (निअमो के०) नियम जे ते (नवि के) नथीज, केम के, (सकम्म के पो* तानां ज्ञानावरणीयादिक जे कर्म, तेनी (विशिविठ के विनिवेश एटले प्रक | ति, स्थिति, अनुनाग, अने प्रदेश ते रूप जे रचना, तेना (सरिस के) सरखी A (कयचित्रो के) करी ने चेष्टा ते जेणे, एटले देवादिक पर्याय रूपनो अध्यास आश्रय) रूप व्यापार ते जेणे एवो सतो (नडुव्व के०) नटनी पेठे ( अन्नुन्न के०) अन्य अन्य ले (रूबवेसो के०) रूप अने वेश ते जेनो एवो (जीवो के०) जीव जे ML XXXXKXXXXXXXXXXXXXXXXX KXYKakk****sixxx Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते परिअत्तए के पर्यटन करे .॥ ६० ॥ नावार्थ-दे आत्मन् ! तुं चौदराज लोकरूप चौटामां, राजा प्रजादिकरूपे स्त्री पुरुषोना वेश लश्ने, नटुानी पेठे अनेक प्रकारे निष्फल नाच्यो, पण तेमां * थी तने कोइ प्रकारनो अविनाशी सरपाव मल्यो नही. उलटो व्यार गतिमा ब्रमण करवा रूप सरपाव मल्यो. तोपण ते ब्रमण करवाना अभ्यास अकी, निवृत्ति पामतो नथी. जेम को अफिण प्रमुखनो व्यसनी होय, ते व्यसनी ते अफिसने एम जाणे के, आअफिण खावाथी घणा माणसोना जीवनां जोख *म थाय , तथा ते खातां पण कम्वु र जेवु लागे . तश्रा देखातुं पण काला ठीकरा जेवू खराब देखाय . अने तेनी सुगंध पण अत्तर चंदन जेवी नत्तम | - नथी. तथा तेना (अफिणना) खावाश्री लोकमां पण आवरु जतनो घटामो दे खाय तथा ते खावाथी का नत्तम रसायण जेवो गुण नथी थतो, एटलुंज नही, परंतु शरीर पण खराब थतुं देखाय . वली ते अफिण न मलवाथी को वखत टांटिया घशीने मरवा वखत पण आवे . इत्यादिक अफिणना अनेक Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै ८६ ****** ************ कारना अवगुण जाणे वे, देखे बे, घने अनुभवे बे; तो पण तेने मूकी शकतो नथी. तेनुं कारण कांइक न्यास ने कुसंग विना बीजुं जपातुं नथी. तेम ग्रा जीवने पण अनादिकालना प्रन्यासयी तथा विषयी जीवोनी सोबतथी, ग्रा पं च प्रकारनां विषय सुखमां दुःख बे. एम जाणे बे, देखे बे, तथा अनुभवे बे, तो पण फिलना व्यसननी पेठे सारुं मानी बेगे वे. तेथी एने अनेक प्रकारनांनी चांचा रूप करी या संसारने विषे नाटक कर पके बे. वली शास्त्रमां कां बे के ॥ अनुष्टुपूवृत्तम् ॥ अवमानात्परिभ्रंशाघधवन्धधनक्षयात् ॥ प्राप्ता रोग शोका जात्यन्तरवपि ॥ १ ॥ अर्थ - अपमानथी, तथा ची पदवीथी परुवाथी, तथा वध बंध अने धननो a ते थकी शैको जातिमां रोग ने शोक, आ जीवे जोगव्यां वे. ॥ १ ॥ श्रा श्र धिकार संबंधी श्री आचारांगजी सूत्रमां विशेष प्रकारे कह्युं वे, त्यांथी जोइ लेबुं. ************************ 270 १८६ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अहिंना आकरा धखधखता खेरना अंगारा होय, तेना नपर ते नष्ण वेदनीवाला नारकीना जीवने सुवामे, तो तेने घसीज निज्ञ आवी जाय. ॥शा तथा ए. | वीज रीतनी अनंती कुधा वेदना, एटले जगत्मा रहेला सर्व घृतादिक पुलोते नारकोना जीवने खवरावीए, तोपण तेनी कुधा पूरी न थाय. ॥३॥ तेमज अ | नंती तृषा वेदना. एटले जगत्मा रहेला सर्व समुज्ञेनां पाणी ते मारकीना जी. वने पाइए, तोपण ते नारकीना जीवनी तृषा गोपे नही.॥४॥ तेमज अनंती ख * रज वेदना, एटले अनेक प्रकारनां तरवार प्रमुख शस्त्रवमे करीने, ते नारकीना जीवने घर्षण करे, तोपण ते नारकीना जीवनी खरज मटे नहीं. ॥५॥ तेवी री ते अनंती परवशपणानी वेदना, एटली बधी के, पाखा जगतना परवशपणा नी वेदना एकठी करीए, तोपण तेना बरोबर न थाय.॥६॥ तेवी रीते, ज्वर ॥ ा दाह ॥॥ जय ॥ए। अने शोक ॥१०॥ ए चारनी वेदना आखा जगतनी * एकठी करीए, ते श्रकी पण एकेक वेदना अनंतगुणी जाणवी. आवी अनंतगु णी वेदनान, सात व्यसनना सेवनार प्रमुखने नोगववी पो . जेम के, कोइए EXXXXXXXXXXXXXXXX******* Jain Education Indenal W!,jainelibrary.org Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX * परस्त्री संग कस्यो होय, तेने त्यां (नरकमां) तेज स्त्रीना आकार जेवी लोढा-MET नी पुतली बनावीने, अने तेने अग्निवमे सारी पेठे लालचोल धखधखती करीने, * ते स्त्रीनी साथे ते परमाधर्मियो अनेकवार ते पुरुषने बलात्कारे आलिंगन करा* वे . इत्यादिक नरकने विषे अतंतगुणी वेदना शास्त्रमांकही . तेने विचारीने हे मंदमते! कांइक तो पाप करतां पागे नसस्य ! ॥६॥ ___ आ नरकनां पुःखना अधिकारने विशेषे जाणवानी मरजी होय तो, श्री सूयगमांग सूत्रना प्रथम श्रुतस्कंधना पांठमां नरक चिनक्ति अध्ययनने विषे जोइ लेज्यो. देवत्वे मनुजवे . परानियोगत्वं नुपगतेन देवत्ते मणुअत्ते। पराजिन्गत्तणं नवगएणं ॥ जीपणउखं बहुविधं अनंतकृत्वः समनुनूतं जीसणउहं बहुविहं । अनंतखत्तो समणुनूअं ॥६॥ ********************* Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXKY अर्थ-हे जीव ! (देवने के०) देव नवने विषे, तश्रा (मणअत्ते के०) मनुष्य जवने विषे (पराजिनगत्तण के०) परतंत्रपणाने (नवगएणं के) पाम्यो एवो तुं *जे तेणे (बहुविहं के) बहु प्रकारनु (जीसगऽहं के) जयानक दुःख जे ते । (अणतखुनो के) अनंतीवार (समशुजूध केय) अनुजव करयुं ॥६॥ लावार्थ-हे आत्मन् ! विशेष ज्ञानवंत एवा देव नवने विषे, तथा मनुष्य नबने विषे पण, स्वतंत्रपणु मूकीने परतंत्रपणा बमे, एटले परवशपणे रहीने, अर्थात इंडियोने वश थश्ने, महामहा कष्ट अनंतीवार जोगव्यां . एटले इंदि* योए जेम जेम तने नचाव्यो, तेम तेम तुं नाच्यो. ने तेश्री महा लयानक पुःख ने पाम्यो; परंतु ते इंडियाने तें वश न करी. माटे ज्यारे त्यारे पण, ते इंडियोने वश करीने अात्मसाधनमां वर्तिश, त्यारेज तहारं कल्याण अशे. ॥६॥ . तिग्गा अनुप्राप्तः जीममहांवेदनाः अनेकवि गगः ART-सीममहावेणेग विदा । ******************XKXXX - Nasa way Ba Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXX जन्ममरणारघट्टे अनंतकृत्वः परिभ्रांतः जम्माणमरणारहढे । अणतखुत्तो परिग्नमिन ॥ ३ ॥ अर्थ-हे आत्मन् ! तुं (तिरियगई के०) तियेच गतिने (अणुपत्तो के) पा. म्यो . त्यां (अणेगविहा के) अनेक प्रकारनी (जीममहावेप्रणा के) नयंकर एवी महोटी वेदनानने सहन करतो सतो (जम्मण मरण रहट्टे के०) जन्म मरणरुप रहेंटने विषे अणतखुत्तो के ) अनंतीवार (परिग्नमिन के) परिभ्रमकरी आव्यो .॥६३॥ जावार्य-हे जीव! तुं तिर्यंच गतिने विषे गयो, त्यां आगल गधेमादिपणे अवतरीने कुंलारादिकना हाथनां घणां मफणां खा आव्यो ठे. वळी घोमा प्रभुखना अवतार धारण करीने घणा कोरमादिकना प्रहार सहन करी आव्यो ने. अने हाथी प्रमुख थश्ने अंकुशना प्रदार सहन करीश्राव्यो बे. वली बलद प्र. मुखना नवमां घसी परुणीनी आरोना प्रहार खाइ आव्यो . वली मांकमां *******XXXXXXXXXXXXXXX** । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमुखना नवमां घेरघर शलामो करी.नाचीने रोटलाना टुकमा पराणे पाम| वार्नु कष्ट सहन करी आव्यो . वली बोकमा प्रमुखना नवमां मरणांतकष्ट स हन करी आव्यो दे. वली पोपट प्रमुखना नवमां पांजरादिकने विषे बंधनकटने सहन करी आव्यो ने. अर्थात् एवं कोर कुःख नश्री के, जे पुःखने ते सहन नयी करयु!! ए प्रकारे अनंतीवार घोर महा नयानक पुःख ते सहन कस्यां ठे. | माटे हवे एवं धर्मसाधन कस्य के, जेथी तेवां कुःख लोगवां पके नही. ॥६३॥ यावंति कान्यपि उखानि शारीराणि मानमानि च संसारे - K******XXXXXXXXX****** जावंति केवि उस्का । सारीरा माणसा व संसारे ॥ प्राप्तः अनंतकृत्वः जीवः संसारकांतारे पत्तो अणंतखत्तो । जीवो संसारकंतारे ॥६४॥ अर्थ-(जीवो के०) जीव जे ते (संसारे के२) संसारने विषे (सारीरा के०) - Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KKX******* शरीर संबंधी (व के०) वली (माणसा के) मन संबंधी (जावंति के) जेटलां (केवि के०) कोश पर्ण (उरका के०):ख , तेने संसारकंतारे के) संसाररूपी अटवीने विषे (अणंतखुत्तो के०) अनंतीवार (पत्तो के) पाम्यो . एटले संसा ररुप अटवीमां परिभ्रमण करतां आ जीव सर्वे दुःख सहन करी आव्यो .६५ नावार्थ-श्रा संसारने विषे दुःख बे प्रकारनां जे. एक शरीर संबंधी रोगादि * के करीने दुःख दे. अने बीजु मन संबंधी इष्ट वस्तुना वियोगादिक की पुःख .ते.सर्वे कुःख आ संसाररूप अटवीने विषे त्रमण करतां, आजीवे अनंती. वार नोगव्यां. ॥ ६ ॥ तृष्णा अनंतकृत्वः संसारे तादृशी तव आसीत्नरके तएहा अणंतखुत्तो। संसारे तारिसी तुमं आसी॥ यां तृण्णां प्रशमितुं सर्वोदधीनां नदकं न तीरीकुर्यात् न समर्थनवेद जं पसमेनं सबो । दहीणमुदयं न तिरीका ॥६॥ ******** * Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K****** ************** अर्थ-हे जीव! (तुमं के) तने (तएडा के०) तृष्णा. अर्थात् तृपा (तारिसी शम के) ते प्रकारनी (अतखुत्तो के०) अनंतीवार (संसारे के) नरकरुप संसारने* विषे (प्रासी के) नत्पन्न थइ हती. (जं के०) जे तृषाने (पसमेनं के०) झामाव वाने अर्ये (सबोदहीग के०) सर्व समुशेनुं पण (नदयं के०) जल जे ते (तीरिजा के०) न समर्थ श्राय !!! ॥६५॥ आ प्रकारको अर्थ प्रश्रम नरकनी वेदनामां कही गया जीए. माटे पुनरुक्ति * दोषनुं निवारण करवा माटे आ प्रकारनो लावार्य जाणवो. के, हे जीव! तने अ नंती तृष्णा नत्पन्न बने, के, ते तृष्णा शमाववाने माटे, सर्व समुशेना पाणी *ना बिंध जेटलां धनादिक वो पण तहारी तृष्णा पूरी श्राय तेम नश्री. ते कां ठेके, यत्राथियां ब्रीहियवं । हिरण्यं पशवः स्त्रियः ॥ नालकस्य तत्सर्व । मिति पश्यन्न सुह्याते ॥१॥ | अर्थ-सघली पृथ्वीमां नत्पन्न भएली अनेक प्रकारनी मांगेर तथा अनेक प्र *कारना घनं अने जव विगेरे सघलुं धान्य, जो एक जगने प्राप्त थाय, तोपण ते- un Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने धान्य संबंधिनी तृष्णा पूरी न थाय. तेमज सघला जगत्मा रहेलु हीरा, मा रोक, मोती, सोनुं रूपु विगेरे धन, एक पुरुषने प्राप्त पाय, तोपण ते पुरुषनी । धन संबंधिनी तृष्णा पूरी न थाय. तेमज जगत्ने विषे जेटला हाथी, घोमा, नंट, बलद, गायो, नेशो विगेरे चतुष्पद जीवो , ते जो एक जणने प्राप्त थाय, तो पण ते पुरुषनी चतुष्पद सबंधिनी तृष्णा पूरी न पाय. तेमज जगतने | विषे रूपालीमा रूपाली देवांगनान तथा महोटा महोटा राजानीराणीयो तथा महोटा महोटो धनाढ्यनी स्त्रीयो जवी के, अत्यंत लावण्यवाली, अत्यंत रूप वाली, अत्यंत गुणवाली अने सुंदर सुगंधीवाली एवी जवान स्त्रीयो जो एक पुत्र * रुपने प्राप्त थाय तोपला, ते पुरुषको स्त्री संबंधि तृष्णा पूरी न थाय. ए प्रका-IAL * रनो विचार करीने जे माद्यो पुरुष वैराग्यने पामे , तेज पुरुप संसारने विषे मोह पामतो नथी. ॥१॥ माटे हे आत्मन् ! उपर कह्या प्रमाणे तु अनंतीवार विषयो लोगवी चुक्यो *. परंतु जे सुखनो ते एक वखत पण अनुनव नश्री कर्यो, एवा आत्मसुखनी XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - - Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै प्राप्तिने विषे नद्यम कर! ॥६५॥ आसीत् अनंतकृत्तः । संसारेनरकनवे तव धापि ताशी *XXXXXXXXXXXXXXXXXXX आसी अणंतखुत्तो । संसारे ते तुहावि तारिसिया॥ यां प्रशमयितुं सर्वः पुद्गलकायोपिघृतादिरपि न तीर्यात् न शश्नुयात् जं पसमेउं सद्यो । पुग्गलकानवि न तारिजा ॥६॥ अर्थ-रे जीव! (संसारे के०) नरक लवरूप संसारने विषे (ते के०) तने तारिसिया के०) तेवा प्रकारनी (बुहावि के) कुधा पण (अणंतखुत्तो के०) अनंतीवार (प्रासी के०) नसन था हती के, (जं के) जे कुधाने (पसमेनं के०) शमाववान (सबो के०) सर्व एवा (पुग्गलकानवि के०) घृतादिरूप पुजलना समूह जे ते पण (न तरिका के०) न समर्थ थाय! ॥६६ । नावार्थ-हे आत्मन् ! नरक जवने विषे तने एवी कुधा नत्पन्न पश् इती के, KXXXXXXXXXXXXXXXXX - Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ***** या जगत्मा रहेला जे घृतादिक सघला सारा सारा पुजलोव मे पण, ते कुधानी शांति थाय तेम नहोतुं. एवी कुधावेदनी तें प्रवशपसा मां श्रनंतीवर सहन | करी बे. माटे तने उपदेश करवानो एटलोज वे के, आज स्वाधीनपणासां एका सकर, अथवा एक उपवास करवो, तेमां पण तने मदोटो विचार थर प बे. अने वली तुं एवं बोले वे के, महाराथी संवत्सरीनो उपवास पण बनी शकचो का बे. कारण के, महाराथी तो एक घरिवार पण मूख्युं रहेवातुं नथी. एम कहने नेक प्रकारां सारां सारां जोजन करावी जमे बे, परंतु हे मूढ जीव ! आखों जन्मारो थने तें केटला मग घृतादिक मिष्ट पदार्थो खाधा ह | शे? तेनुं सुख लेश मात्र पण आज तने रह्युं नही. केम के, जो तुं तहारा दाये। तहारी जीन उपर हाथ फेरवी जो के, ते घृतादिक पदार्थोनी कांइ पण चिकाश जगाय बे ? अर्थात् नथी जलाती. तेमज हवेथी पण तु अनेक प्रकार ना पाप प्रपंचादिक करीने सारी सारां जोजन करीश, तोय पण पूर्वनी पेठे ते जिवा इंडि तृप्त थवानी नथी. श्रने जिह्वा इंदितुं पोषण बे, तेज सर्वे इंदियो ********* ************* Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै श XXXXXXXXXXXXXXXXXKK** ना पोषगर्नु मूल के. एटले जेम वृक्षना मूलमा पाणी नांखीए, तो बधा वृक्षमा ते पाणी पसरे. तेम एक जिवा इंनि ठूटी मूकवाथी बीजी इंडियो प्रयासे करीने जीती होय, ते पण कुमार्गे चाले . माटे नीतिशास्त्रमा कह्यं ने के, "जितं सर्व जिते रसे" एटले जेणे रसना इंडिय जीती, तेणे सघली इंडियो जीती जाणवी, केम के, रसनेडियने मोकली मूकवाथी मद्यमांसादिकने विषे Kal पण प्रवृत्ति पाय . अने तेथी विषयनी वृदियाय ने. तेणे करीने नरकादिकने विषे जवू पके . त्यां पुर्वे कहेली कुधा वेदनी सहन करवी पझे . एटलाज माटे ग्रंथकारे दुधावेदनीना स्वरूपने विशेष जणाववाने माटे फरीश्री वर्णन करघु . माटे तेथी पुनरुक्ति दोष समजवो नही. ॥ ६६ ॥ कृत्वा अनेकानि जन्ममरणानां परावर्तनशतानि काकाम sोगाई। जम्मणमरणपरियट्टा सयाई॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेन मानुषत्वं यदि लाजते यथेचितं सुख जीवः उकोण माणुसतं । जइ लहइ जहिचियं जीयो ॥६॥ अर्थ--(जश के०) ज्यारे (जीवो के०) जीव जे ते (अगाई के) अनेक एवां (जन्नस मरण के०) जन्म मरण तेनां (परिपहरण के) परावर्तन तेना (सया के०) शैकमो. एटले जन्म मरणानां शकमो परावर्तनने (काळ के) करीने (इस्केण के०) दुःखे करीने (मागुलतं के ? मनुष्यपणाने पामे ठे, त्यारे (जहिछियं के०) या छाप्रमाणे. एटले पोतानी श्वाप्रमाणे कुशलपणाने 'ल. हर के०) पामे .॥६॥ जावार्थ-रे आत्मन् ! अनंत एवां जन्न मरणनां शैकमो एटले क्यारेक जन्म, क्यारेक मरण, ए प्रकारनां कुःख सहन करीने, ज्यारे आ जीव मनुष्यपगाने पामे , एटले काम निर्जरा अने नवस्थितिनुं परिपक्वपगुं इत्यादिक कारण कके करीने मनुष्यपणाने पामे , त्यारे तेने जोश्ती चीज मला शके emamam Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शO P, एटले देवताना सुखने आपनारो, तथा मोदना सुखने श्रापनारोआ मनुष्य नवडे, परंतु मनुष्यत्नव विना को नव वझे सुखनी प्राप्ति थ शकती नथी. एटलाज माटे ज्ञानी पुरुषोए सर्व लव करतां आ मपुष्यनवने नत्तममां नत्तम गण्यो , अने दश दृष्टांते करी उर्लन पण एटलाज माटे कह्यो , आ दश हष्टांतनुं स्वरूप प्रसिठे माटे, तथा ग्रंथ विस्तार थवाना नयश्री लख्यु नथी. मा टे आवा मोंघामां मोंघा मनुष्यन्नवने पामीने एले ममावी अवसर चूकवो नहीं | तन्मनुष्यजन्म तथादशदृष्टांतवत् उर्जनलानं विद्युलनाचंचलं च मनुजत्वं RXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ***XXXXXXXXXXXXXXXXXXX तं तहउखहलं । विज्जलयाचंचलं च माणुयत्तं ॥ धर्मे यः विपीदति सः कापुरुषः न सत्पुरुषः ७ १७ ए १०५५ ११ ___ धम्ममि जो विसीय। सो कान रिसो न सप्पुरिसो ॥६॥ अर्थ-(जो के०) जे पुरुष (तह उल्लहवंनं के) तथा प्रकारे एटले चुल्लका- ए३ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IM दि दश दृष्टांते करी मुःख पामवा योग्य एवं (च के वलो (विजुलया चंचलं Mar ) विजलीरूप लतानी पेठे चंचलं एवं (तं के) ते, एटले ते योग्य एवं (मणु यत्नं के०) मनुष्यपणुं, तेने पामीने (धम्ममि के०) धर्मने विषे (विसीय के०) | खेद पामे (सो के०) ते (कानरिसो के०) कुत्सित (निंदित) पुरुष जाणवो. पण (सप्पुरिसो के०) सत्पुरुष (न के०) न जावो. ॥ ६ ॥ नावार्थ-जैनशासनमा प्रसिह एवां दश दृष्टांते कुर्लन एवो, अने विजलीPatell ना ऊबकारानी पेठे क्षणभंगुर एवो, ने जेमां को प्रकारनी पण खामी नश्री | एवो. एटले आ मनुष्यनो नव अढीहीपमा अयो, तेमांवली कर्मनूमीमां थयो, तेमा वली प्रार्य देशमां अयो, तेमा वली ननम कुलने विषे थयो, तेमां वली अ विकल पंचेंहिये पूर्ण अयो, तेमां वली निरोगी काया पान्यो,अने तेमांवली स गुरुनो अने सत् शास्त्र सोनलवानो जोग बन्यो; तेम उतां पण, जे पुरुषो, धर्म साधन करवामां प्रमाद करे, ते पुरुषो निंदा करवा योग्य थाय , पण ते स-1 त्पुरुषोनी पंक्तिमां गणवा लायक पता लगी. माटे हे जीव ! पूर्व अनुत्नव करे XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* - Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - लापशुपणाना स्वत्तावने मूकी देइने, मनुष्यनवने लेखेलगामवानां नयम कर. ॥ नपजातिवृत्तम् ॥ मानुष्यजन्मनि तटेसंसारसमुश्स्य लब्धेसति जिनेंधर्षः न कृतः च येन - Uo XXXXXXXXXXXXXXXXXXKKX माणुस्सजम्मे तमि लध्यमि। जिविंदधम्मोन काय जेणं ॥ त्रटिते गुणे यथा धानुष्केण हस्तौ धृष्टव्यौ तथा च अवश्यं तेन १३ १२ १० ११ १५ १६ १७ १४७ तुढे गुणे जह धाणुक्कएणं । हवा मलेवा य अवस्त तेणं ॥६॥ अर्थ-(जेणं के०) जेरो (तमि के०) संसाररूप समुना कांगरूप (माणुसजम्मे के०) मनुष्य जन्म (ल-श्यंमि के०) पाले सते (जिणिदधम्मो के० ) जिनेनो धर्म जे ते (न कन के०) नथी कयों (तेणं के०) तेणे अर्थात् तेने (य के०) पण (जह के०) जेम (धाणुजएणं के०) धनुर्धारि पुरुष जे लेणे अर्थात् तेने । (गुणे के०) पणठ (तुट्टे के०) तूटे सते अवस्स के निश्के (हवा के०) दान म - ए४ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखा य के०) घसवा पमेज . तेम या जीवने पण हाथ घसवा पके . एटले All पछी घणो पश्चाताप करवो प . ॥ ६ ॥ नावार्थ-अनंता जवरूप समुश्मा नटकतां जटकतां मनुष्य जन्मरूप का गे प्राप्त भए सते पण जेणे अहिंसारूप जिनधर्म न पाचरण कर्यो, तेने; जेम रणसंग्राममा युः६ करवा गएला एक धनुर्धारी पुरुषना धनुष्यनी पण तूटी ग Aarls, तेथी तेने जेम हाथ घसवा पख्या, तेम तहारे पण हाय घसवा पमशे, माटे हे जीव! जो तुं पण ती सामग्री सते जिनधर्मरूप नातुं नहि ग्रहण करे, तो तहारे पण मरणावस्याए पश्चाताप करवोज पमशे.ते या प्रकारे के.शेरे! में म ती सामग्रीए पण आ शुं कयु !!! के, परलोके जतां धर्मरूप नातुं कांय पण लीधुं नही! माटे हवे हुं शुं करीश! एवीरीते तहारे हाथ घसवा पमशे.वली जे मानवमां थोमो काल रहेवा माटे को पुरुष ज्यारे परदेश जवानो होय, | त्यारे ते पुरुष प्रथमथो नाता विगेरेनो एटलो बधो बंदोबस्त करी राखे ठेके, * अमुक जग्याए नतरी, ने त्यां अमुक नोजन करीशं. एवी रीतनो उराव क ***XXXXXXXXXXXXXXXXXX NI Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - वै - - * एप रीने पनी पोतानी साधे ज्ञातादिक घणी सामग्री लेने जाय रे. पर्ण नातु की धा शिवाय जतो नश्री. तेम तदारे नो अहिंथी मरीने क्यां जवु पमशे? ने त्यां केटला दिवस रहेQ पमहो? अने कोने त्यां जश्ने नतारो क़रवो पमो ? अने मार्गमांजातु लिधा विना शू खाश्शं? इत्यादि परलोक संबंधी तने कांश पर विचार थतो नथी ! माटे हे मूढ जीव! सर्व पुःख मात्रने निवारण करनार अने मनोवांवित सुखने आपनार एवं धर्मरूप नातुं संगाथे राख्य. ॥ ६ ॥ ॥परीवृत्तम् ॥ रे जीव नितरां शृणु चंच तस्वनावान् मुक्त्वा परलोके यास्यति सकलान् अपि बाह्यनापन तथा रेजीव निसुणि चंचल सहाव। मिटविणु सयलवि बननाव ॥ . नवनेदपरिग्रहस्य यत् विविधजालं समूह अतः संसारे अस्तियत् सर्वं तत् इंश्जालमिवासदस्ति । नवजेयपरिग्गह विविहजाल । संसारि अधि सह इंदयाल sonikalu Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ s KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - अर्थ-(रे जीव के) हे जीव! तुं (निसुणि के०) सांजस्य के जे, (चंचल | सहाव के०) चंचल स्वनाववाला (सपलवि के०) सर्व एवाय पण (बननाव के०) शरीरादिक बाद्यन्नावने तथा (नवन्नेयपरिग्रह के०) नव नदवाला परिग्रहनो | (विविहजाल के०) अनेक प्रकारनो समूह तेने (मिल्हेविणु के०) मूकीने पर | लोके जश्श; ए हेतु माटे (संसारि के०) संसारने विषे (अछि के०) जे शरीरादि। * क देखाय , (सहु के०) ते सघल (इंदयाल के इंजाल समान .॥ ७० ॥ नावार्थ-हे आत्मन्! तहाकै हितकारी एवं आ एक वाक्य सांतव्य.आ देखातो शरीरादिक सघलो बाघलाव , इंजाल समान . एटले नव प्रकारनो परिग्रह ते सघलो चंचल स्वनाववालो . एटले कणमां देखाय अने कणमां नाश पामी जाय एवो . एटलुज नहि पण संसारमा जे जे वस्तु देखाय में, ते सर्वेने तुं इंजाल समान जागीने तेने विषे मोह ममत्व न कस्य. कारण के, ते सघला बाह्यनावने मूकीने तुं एकलोज परलोकमां जईश, पण पूर्वे कही ते. * १ धन. २ धान्य. ३क्षेत्र, ४ घर. ५ मुत्रर्ण. ६ पुं. ७त्रांवुपितल. विपद, ए चतुष्पद. XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX DHANAINA Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व - - मानी को वस्तु पण तदारी साये आववानी नथी. केम के, ते सर्वे, वस्तुताए असत् ते. माटे तेने तुं सत्यपणानी ब्रांति न करीश. ॥ ७० ॥ पितृपुत्रमित्रगृहगृहिणीनां जातं समूहः ऐहलौकिकं सर्वं निजस्य शुभे कल्याणे सहाये निमित्तं पियपुत्तमित्तघरघरणिजाय। इहलाअ सब नियसुहसहाय ॥ न अपातिप्रश्ने अस्ति कोपि तव शरणे त्राणे हे मूर्ख एकाक्येव सहिष्यसे तियफ्नरकःखानि १३ १४ १५ ११ ए २०१ ७ ६ न वि अदि कोइ तुह सर्राण मुस्क। इक्कल सहसि तिरिनिरय उक * अर्थ-(मुरक के) हे मूर्ख ! (इहलोभ केय) या लोक संबंधी (सर्व के०) सर्व एवो (पिय के०) पिता (पुत्त के०) पुत्र (मित्त के०) मित्र (घर के०) गृह * Ni (घरणि के) स्त्री, तेमनो (जाय के०) समूह जे ते (निय सुइ सहाय के०) पो *त ने सुख करवानो ने स्वन्नाव ते जेमनो एवो . एटले सौ पोत पोताना सुख ना अर्थी . परा (तिरि निरय उरक के०) तिर्यंच तथा नरक ते संबंधी दु:ख.INE - Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************ तेने ( के०) तुं एकलोज (सहसि के०) सहन करे बे. पण ते वखत तेमां नुं (तुह के०) तहारे (सरसि के०) शरण करवा योग्य ( कोइ वि के० ) कोइपल (न) तुं नथी. ॥ ७१ ॥ नावार्थ- श्रा जगत्मा परलोकने विषे कांइ पण सहायता करवाने न सम ॐ एवां माता पिता स्त्री पुत्रादिक सौ पोत पोतानां स्वार्थी ठे. पण कोई कोरनुं नथी. जेमके, नपर लखेलां घरनां माणसोने एवो निश्चय थाय बे के, हवे या पथारीमां सूवारेलो मारास जीवशे नही. एवं धारीने ते सूतेला माणसने. महा भरपूर वेदनामां तरफरतो नजरे जोइन पण कहे बे के, तमे मने कां कहो बगे ? एटले तमे बानी ते संचय करेलुं, आपेलुं, मूकेलं, दाटेलुं कांइ देखा को हो ? एवी रीते पोतानो स्वार्थ साधवानी वातो करे बे. तथा तेना मरी गया पी पण केवल पोतानो स्वार्थ संजारी संजारीने रुए बे, के, आटले काम अधुरुं मूकीने गया! पण तेन एम नथी विचारतां के, ज्यांनी समजलो यो त्यां श्री मांगीने चोके सूतां सूची पण एसे आपणुं, वैतरुं कूट्यां करधुं बे. परंतु ते *********************** Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ En RTO बापको नरकादिक गतिने विषे एकलो गयो बे, त्यां तेने केवां दुःख पता ह.. do शे? तथा ते विचारो घणुं व्य मूकीने गयो वे! पण तेना वीजा दुःखमां जाग न लेतां फक्त तेनुंज य तेनी पढवामे शुभ कृत्य मां वापर; एवो विचार पण नथी थतो. अने वली वो विचार पण तेमने नथी थतो के, अरेरे! रात्री दिवस पोताना शरीरनुं सुख पा न विचारतां कूरु कपट बलद अन्यायादिक करीने एसे आपकुंज जरा पोषण करयुं वे. पण पोताना परलोकनुं साधन क रवानो अवकाश जरा पण एसे लीधो नयी. एवी रीते कोइ रुदन करतुं नथी. माटे दे जीव ! हे महामूर्ख !! कांइकतो विचारच !! के, हुं श्राश्रवजावांथी निवृत्ति पामीने कांइकतो संवरनावमां वर्त्तु ॥ ७१ ॥ ॥ मागधिका वृत्तम्. ॥ कुश ग्रे यथा अवश्यायो हिमर्विकः स्तोकं तिष्ठति लंबमानः ‍ १ ३ ५ ६ ध कुसग्गे जह नसबिंदुए। थोवं चिन्इ लंबमाए ॥ ********** ************************ Ug EXIL Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - एवं मनु नानां जीवित समयमपि हे गौतम मा प्रमादीः ********************* एवं मणुप्राण जीवियं । समयं गोयम मा पसायए ॥७॥ अर्थ-(जह के) जेम (कुसग्गे के०) मानना अग्रनागने विषे (नसविंधए * के०) झाकलनो बिंदु जे ते (लंबमाणए के०) लांबो यतो सतो एटले वायुवके * पमवानी तैयारीमा आवेलो (गोवं के) थोमो काल (चि के०) रहे . (एवं के०) ए प्रकारे (मगुाण के०) मनुष्य जे तेमनु (जीवियं के०) जीवित जे ते चंचल जाणवू. माटे श्री महावीरस्वामी गौतमस्वामी प्रत्ये* कहे के, (गोयम के०) हे गौतम! (समयं के) एक समय मात्र पण (मा पमायए के) प्रमाद न करीश. ॥ ७ ॥ नावार्थ-श्री महावीरस्वामी गौतम प्रत्ये कहे ने के, हे गौतम! एक सम____* आ वार्ता श्री नत्तराध्ययन सूचना दशमा अध्ययनमां ने. त्यांथी विस्तारना आर्थि पुरुषाए जाइ दे. Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० *********************** एज य मात्र पण प्रमाद न करीश. केमके, या मनुष्यपणानुं जीवकुं माजना अग्र- TO जागमा रहेला जलबिंदुनी पेठे, थोमोज काल रहे तेवुं बे. एटले जोतां जोतां अल्प वायु वमे पण शीघ्रपणे नाश पामे तेवुं वे अर्थात् मानना अपने विषे रहेला जलबिंदु तो, फक्त वायुवमेज नाश पामे ठे. परंतु या मनुष्य तो, अनेक प्रकारना कारणोथी मरे बे. जेम के, ताव प्राववाथी, मूंजारो थवार्थी, कोलेरा (कोलि) यावदाश्री, घर परुवाश्री, अमिवमे बलवाथी, शस्त्र प्रमुख वागवाथी, सर्प करवा इत्यादिक अनेक प्रकारनां कारणो मलवाथी नर्चितो नाश पावे. एम जालीने दे जीव ! धर्मकृत्यने विषे समय मात्रनो प्रमाद न कर. ॥ श्री ३ तथा ७४ मी एबे गाथान श्री सूयगकांग सूचना प्रथम श्रुतस्कंध ना वैतालीय अध्ययननी बे. संध्यध्वं किं न बुध्यध्वं संबोधिः खख्नु प्रेत्य ना १ ‍ ३ ४ ६ ५ G. संग्रह किं न बज्रह | संबोहि खजु पिच अल्लहा || ********* の *********** S Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न एव नपनाति आगचंति रात्रयोऽतीताः नो मुलनं पुनरपि । जीवित १२ १० ११ ए १६ १५ १४ १५ नो हू वणमंति रश्न । नो सुलहं पुणरवि जीवियं ॥३॥ अर्य-श्री ज्ञानदेव स्वामीना पुत्र श्री नरतेश्वर, तेमणे तिरस्कार कर्या ए वा, अने राज्यना अर्थि एवा, पोताना प्रधागु पुत्रो प्रत्ये श्री आदीश्वर नगवान नपदेश करे , अथवा श्रीमहावीरस्वामी पर्षदा प्रत्ये कहे के, (संबुझेह के) अहो नव्यो ! तमे बुझो. (बोध पामो.) (किन बुझह के० ) केम तमे बोध न. Hश्री पामता? जे हेतु माटे जेमणे धर्म नथी कस्यो ते पुरुषोने (पिञ्च के०) म. | रण पाम्या पठी परत्नवने विषे (संबाही के ) बोधिबीज जे ते (खलु के०) नि चे (उचहा के०) उर्लन . शादी के, (राइन के) रात्री दिवस जे ते (हु के) | निश्चे (नवणमंति नो के०) गयेलां पागं आवतां नथी. तेम (जीवियं के) जीवि *त जे ते (पुणरवि के) फरीने पण एटले फरी फरी (सुलहं नो के०) सुलन न थी एटले संयमरूप जीवित घणुं उर्सन , अथवा (जीवियं के०) जीवित जेते Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एU अर्थात् तंटेलु आनखु जे ते (पुणरवि के०) फरीने पण सांधवं (सुलहं नो के.) सुलन नथी. एटले तूटेलु प्रानुऱ्या सांधवाने कोइपण समर्थ नथी. ॥ ३ ॥ लावार्य-हे नव्य जीवो! तमे ज्ञान दर्शन चारित्ररूप धर्मने जाणो. कारण के, आवो अवसर फरी फरीने मलवो उर्लन . माटे घणी सामग्रीसते पण, केम बोध पामता नथी. अर्थात् नोगने तुब जाणी, तेनो त्याग करीने सामने विषे बोध पामो. ते कडं ठे के, ॥शार्दूलविक्रीमितवृत्तम् ॥ निर्वाणादिसुखादे नरनवे जैनेन्धर्मान्विते । लब्धे स्वल्पमचारु कामजसुखें नो सेवितुं युज्यते ॥ वैयादिमहोपलौघनिचिते प्राप्लेभपे रत्नाकरे । लातुं स्वल्पमदीप्ति काचशकनं किं चोऽचितं सांप्रतम् ॥ १ ॥ Is अर्थ-मोक्षादिक सुखनो आपनार एवो, मनुष्यनो नवमले सते, तेमांवली जिनराजनो धर्म मले सते, तहारे लगार मात्र पण काम सुख सेवईं घटतुं न * थी. केम के. ते अल्प ने अने ते सूखनो परिणाम सारो धावतो नथी, ते नपर *UU *XXXXXXXXXXXXXXXXX** XXXXXXXXXXXXXXXXXXX - - - Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** ***************** दृष्टांत क े. के जेम वैमूर्यादि रतनो समूह जेमां रह्यो रे, एवारत्नाकरने पामीने एटले रत्ननी खाण पामीने कांतिरहित एवो, अने वली अल्प मूल्यवालो वो काचोकको लेवो शुं तहारे घंटे के ? अर्थात् पूर्वे को एवा रत्नाकरनो त्याग करीने, तेने बदले काचनो कक्रमो लेवो; ते घटेज नहीं. तेम प्रतिशे प्रप ने तु एवा विषय सुखने अर्थे रत्नाकर समान जिनधर्मनो त्याग करवो, | ते पंकित पुरुषने घटे नहीं. वली जेसे धर्मकृत्य नथी करयुं, तेने परजवमां सं जमरूप जीवित मलतुंज नथी. वली गएला एवा, ने धर्मसाधन करवाने योग्य एवा, रात्री दिवस जे ते, तथा यौवनादिक काल इत्यादिक पाठां प्रावतां नथी, | केमके, इंशदिकनुं पण त्रुटेलुं आयुष्य पातुं संधातुं नथी. माटे एवं जालीने रा. श्री दिवस धर्मं आराधन कर ॥ ७३ ॥ हवे सर्व संसारी जीवने श्रायुष्यनुं अनित्यपणुं देखा बे. राजस्था अपि त्यजति मानवाः बालाः वृद्धाः च पश्यत ३ ‍ ७ ย ५ महरा बुढा य पासह | गजलावि चर्यंत मालवा || ***** ************* Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्येनः यथा वर्तकंतितीर होत एवं आयुदिये त्रुट्यतिनीवित 0 0 १० ११ १२ १३ १४ सेणे जंह वट्टयं हरें । एवमाऽऽस्कयंमि तुट्टः ॥ ४ ॥ अर्थ-ह प्रात्मन्! (महरा के०) बाल एवा (य के) वली (बुहा के) वृदए। वा, वली (गप्रनावि के) गर्नने विषे रहेला एवाय पण (माणवा के) मनुष्य जे ते (वयंति के) नाश पामे ने. (पासह केण) तेने तुं जो. वली (जह के) जेम सेणे के०) शिंचाणो पकी जे ते (वयं केए) तेतर पनीने (हरे केण) हरण क रे. अर्थात् शीघ्रपणे मारे ने. (एवं के) ए प्रकारे (आनरकयंमि के०) प्रानखान नो कय थये सते (तुई केण) त्रुटे है. एटले हणे कणे आयुष्य नाश पामे . अथवा मृत्यु जे ते जीवितने हरे ॥ ७ ॥ | लावार्थ-हे जीव! तुं विचारीने जो के, केटलाएक मनुष्य गर्नमारहा थ काज़ मरण पामे ले अने केटलाएक महाकष्टे करीने, जन्म प्रया पठी बालप- 100 जाणामांज मरण पामे . अने केटलाएक जवान अवस्थामाज़ पोतानां स्त्रीआदि mo EXAXXXXXXXXXXXXXXXX Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* क वहालां पदार्थोने, अपश्चाए मूकीने मरण पामे . अने केटलाएक तो वृक्षा वस्थानां कुःख जोगवतां लोगवतां पराणे पराणे पग घशीने मरण पामे . व ली आं जग्याए मानव शब्द ग्रहण कर्यो , तेनु ए कारण के, नपदेश करवा योग्य होय, तेनेज मनुष्य कहीए. परंतु जे नपदेश देवा योग्य न होय, तेने तो मनष्यनी पंक्तिमां न गणवा, एम ग्रंथकारनो अनिवायचे. वली मनुष्यन आ-* युष्य अनेक प्रकारनां कारणो मलवाथी घगुंज चंचल , एम जगाववाने अर्थे सर्वे अवस्थामां मरण देखामयुं .वली श्री सूयगमांगसूत्रना प्रथम श्रुतस्कंधना बीजा वैतालीय अध्ययननी बीजी गाथानी दीपिकामांतया टीकामांकडं ने के, all त्रिपल्योपायुप्फस्यापि पर्यापत्येनन्तरमन्ममुहूर्तेनैव कस्यचिन्मृत्युरुपतिष्ठीति. अर्थ-त्रण पक्ष्योपमना आयुष्यवालाने पण, पर्याप्ति पाम्या पो अंतर्मुड़र्ने करीने कोश्क पुरुषने मृत्यु जेते प्राप्त प्राय .. वली श्री ठाणांगजी सूत्रना सातमा वाणामां कडं के, सत्त विहे आउ दे. पन्नत्तं तं जहा. *****XXXXXXXXXXXXXXXXXX --- - - Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श ॥ आर्यावृत्तम. ॥ असारसाण निमित्तं । आहारे वेषणा परधाए । फास वाणापाण । भत्तावहं निधर आऊ॥ १ ॥ अर्थ-आयुष्यनो नेद एटले नपक्रम जे ते, सात प्रकारनो कह्यो . केमके, निमित्तनु पामवापणुं ए हेतु माटे. हवे ते लात नेदे देखामे . सराग स्नेह ना नययकी एटले कोश्ना उपर अत्यंत स्नेह होय, तेवामां तेनो नाश सोनल वाथी नत्पन्न भयो जे लय, तेथी आनखु त्रुटे . एम आगळ पण संबंध जोम| वो. ॥ १॥ वली दंम शस्त्रादिकना नचिंता घातथी.॥२॥ तथा अत्यंत आहार करवाश्री. ॥ ३॥ तथा नेत्र अने शूलादिकनी वेदनाथी. ॥४॥ तया पराधा तकी एटले गर्नपातादिकथी.॥५॥ तथा तरेहवारना सादिकना स्पर्शश्री.॥६॥ अने श्वासोवासने रुंधवाथी. ॥ ७॥एम सात प्रकारे आउखुं नेदाय . अथवा | उपक्रम के कारण ते जेनु, एवं आनझुं तेज पूर्वे कडेला निमित्तयी त्रुटे . आ * पूर्वे जे का ते सोपक्रम आनखावालानेज आश्रीने जागवं. पण निरुपक्रम **************** १० Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXX****** ***** आनखावालाने आश्रीने न जाणवू. केम के, पान के प्रकारे बंधाय है. एका सोपक्रम कर्मयो अने बीजुं निरुपक्रम कर्मथी बंधाय . तेमां जे सोपक्रम kai (शिथिल) वालुं आयुष्य डे ते निमित्त पामवाश्री त्रुटे ने अने निरुपक्रम (निका | चित) वालुं आयुष्य , ते कदिपण त्रुटतुं नथी. वली जेम शिंचाणो पक्षी तेतर पदिने नचिंतो काली ले . अर्थात् ना. killश करे . तेम आनखं क्षय भए सते जीवित पण नाश पामे . मादे एवं जाणीने एटले कणमात्र जीववानो विश्वास न राखीने धर्मसाधन करवामां सावधान था, ॥ ॥ ॥आर्यावृत्तम्. विनुवनजनान् नियमा गान् दृष्ट्वा मापयंति ये न आत्मानं धर्म ३३७१६ ५ तिहुयणजणं मरंत । दळूण नयंति जे न अप्पाणं ॥ निवर्तते न पापात् विधिक् धृष्टतं तेषां विरमंति न पावान। धीधी धीवृत्तणं ताणं ॥ ५ ॥ **XXXX****XXXXXXXXX ********* Jain Education a l Lilw.jainelibrary.org Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NO र - अर्थ-(जे के०) जे पुरुष (मरत के०) मरतो एवो (तिहुयणजणं के०) त्रण नुवनना जनने (दखूण के० ) देखीने (अप्पाणं के० ) आत्माने (न नयंति के०) । धर्मने विषे नथी जोमता, अने (पावान के०) पापथकी (न विरमंति के०) न थी विराम पामता (ताणं के०) तमना (धीउत्तणं के०) धिपणाने एटले निलजपणाने (धीधी के०) धिक्कार थान! २॥ ५ ॥ नावार्थ-स्वर्ग मृत्यु ने पाताल ए प्रकारे त्रण लोकना रहेनारने,अर्थात् सर्व *संसारी जीवने, मरता देखीने अने जाणीने पण पोताना आत्माने धर्मने विषे | Mail नथी जोमता, तथा हिंसादिक थकी निवृत्ति नथी पामता, अर्यात जे कृत्यथी पाप बंधाय , तेवा कृत्यश्री पाग नथी नसरता, तेवा निर्लज जीवोना धिपणाने धिक्कार थान ! धिक्कार थान!! एम अतिशे धिक्कारपणु जणाववाने माटे बेवार धिक्कार शब्द कह्यो . ॥ ५ ॥ मामा जल्पत बहुलं ये बधाः चिक्कणैः कर्ममिः मामा जंपह बढयं । जे बघा चिकणेहि कम्मेडिं। TIXXXKKAKEXXXXXXXXXXXXXEY IRXXXXXXXXXXXXXXXXX***KI 205 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米花米米 सर्वेषां तेषां जायते हितोपदेशः महादोषः वा महाक्षेपः सवेसि तसिं जाय। हियोवएसो महादोसो ॥६॥ अर्थ-अयोग्य शिष्योने कृपाथी नपदेश करता गुरुने जोश, योग्य शिष्यो गुरु प्रत्ये कहे ले के, हे गुरो! जे के०) जे पुरुषो (चिक्कणेहि के०) चिकणांएवां (कम्मेहिं के०) कर्मे करीने (बज्ञ के०) बंधाया , तेमने (बहुयं के०) घणो (मामा जंपह के) नपदेश न करो, न करो! केम के, (तेसि के) ते (सक्वेसि के०) सर्वे अयोग्य शिष्योने (हियोवएसो के हितोपदेश जे ते महादोसो के०) महादोषवालो, अथवा महाषवालो (जाय के०) आय डे. ॥ ६ ॥ Sil नावार्थ-अयोग्य शिष्यने वारंवार बोध करता देखीने, प्राचार्य महाराज प्रत्ये मुनियो जे ते, विनंती करे ने के, हे नगवन ! श्रापतो करुणासागरगे.परंतु काला निविक पर जेवा, आ खत शिष्योनेाप गमे तेटलो प्रतिबोध करशो, तोयपणा तेन प्रतिबोध पामवा कण जणांय , केम के, जे प्राशियो ज्ञानाव Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* रणीयादिक नविन कर्मे करीने बंधाणा , ते प्राणियो धर्मोपदेश देवाने योग्य नथी. जेम काचा घमामां नांखलुं पाणी ते पोते नाश पामे डे, अने घमाने पण नाश पमाझे . तेम अयोग्य जीवोने बोध करेलुं सिखंत रहस्य, जे ते, नाश पामे .अने ते अयोग्य शिष्यो पोताना आत्माने पण नाश करे .अथवा ते अयोग्य शिष्योने गुरु नुपर क्षेष थाय . ते कयु ले के, उपदेशो हि मूर्खाणां । प्रकोपाय न शान्तये ॥ • पयःपानं नुजनानां । केवनं विषवर्धनम् ॥ १ ॥ . अर्थ-मूर्ख जीवोने करेलो हितोपदेश जे ते, प्रकोपने अर्थे पाय . एटलें नपदेश देवायो नलटो गुरु नपर कोप करे . जेम सर्पने जे दूध पावं, ते के वल फेरनुं वधारवू दे. एटस ते सर्प जेम जेम दूध पीए , तेम तेम तेने और ka वधतुं जाय . ए रीते मूर्खने जेम जेम हितोपदेश करे , तेम तेम ते मूर्ख प वधारतो जाय ॥१॥ माटे तेवा अयोग्य जीवोने उपदेश देवो ते व्यर्थ .अर्थात् विपरीतपणाने पामे बे. ॥ ६ ॥ KHSXEKXXXXXXXXXXXXXX Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . कोष ममत्वं धनस्वननविनवप्रमुखेषु अनंतःस्वकारणेषु - - कुणसि ममत्वं धणसय । विहवपमुहेसु अणंतउकेसु ॥ शिथिलयसि श्रादरं पुनः अनंतसुखे मोके सिटिलेसि आयरं पुण । अणंतसुकंमि मुस्कंमि ॥७॥ अर्थ-हे प्रात्मन् ! (अपंतपुरकेसु के) अनंतु ने सुख ते जेणे करीने अयवा जेने अर्थे जे यकी अथवा जेने विषे एवां (धरा के०) धन एटले सुवर्णादिक * तथा (सयण के माता पितादिक वजन, तथा (विहवपमुहेसु के०) हाथी, घोमा प्रमुख विनव, इत्यादिकने विषे (ममनं के०) ममत्वन्नावने तुं (कुणसि * के) करे डे. (पुण के) परंतु अणंतसुस्कंमि के०) अनंतु ले सुख ते जेने विषे एवा (मुस्कंमि के०) मोकना सुखने विषे (प्रायरं के०) आदरने तुं (सिढिलेसि * के०) शिथिल करे . एटले तुं मोकनां सुख पामवानो नद्यम नथी करतो. - Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० ୦୫ ******** ******* भावार्थ-रे मूढ प्रात्मन् ! अनंत दुःखनां कारण एवा, स्वजन, विजव, धन इत्यादि विषे ममत्व क मदोटा दुःखनो नार तुं मांथे नपाले बे. पण वर्त मानकालना वजनादिकने जो तुं नृपकारी जालीने ममत्व करतो होय तो, एवीरीतना नृपकार करनार तो, अनंता जवमां अनंतां स्वजनादिक थयां बे. | माटे ते खजनादिकने विषे तुं केम ममत्व नथी करतो ? अने ते स्वजनादिकना श्या हवाल थया हशे ? तेनो पण लगार मात्र विचार नथी करतो ! वली फक्त आज जवना स्वजनादिकने अर्थे राग द्वेषे करीने खेती, व्यापार, अने सेवादिक के, जमां प्राणीनो नपघात थाय, एवी न करवा योग्य क्रिया, श्रा जीवकर्या करे बे. जैम फरशुरामे अनंतवीर्य राजामां आसक्त बएली रेणुकानामे पोतानी मातानुं मां कापी नांख्यं. तथा तेज फरशुरामे पोताना पिता उपर राग हो - वाथी एकवीशवार नत्री पृथ्वी करी. वली कोशिक राजाये राज्यना लोने क रीने पोताना पिता जे श्रेणिक राजा, तेमने बंधी खानामां नांख्या, तेमज पोतानी मनोवृचि प्रमाणे चालवामां ग्ररुचण करनार जालीने, चूलली. राणी ये ***** TO ११०४ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** पोतानो पुत्र जे ब्रह्मदत, तेने मारवाने अर्थे लाखना मोहोलमां घाली अनि स* लगाव्यो. वली एक हार हायीनी लगाइने माटे, फक्त एक पद्मावतीना वचन थीज एक कोमने एशोलाख जीवोनो घात थयो. वली राज्यना लोने करीने न रत अने बाहुबली ए बे नाई बच्चे, महोटुं युक्ष . ने तेमां हजारो जीवोनो सं * हार थ गयो. वली विषय राग पूरो न श्रवाथी पोतानो पति जे परदेशी राजा, तेने सुरीकता राणीये फेर दश्ने मार्यो, एटलुंज नही पण, डेवटे गले नख पण PAN दीघो! वली पुत्रीना स्नेहे करीने जरासंधे श्री कृष्ण वासुदेव संगा महोटुं यु करी, पोताना कुलसहित हजारो जीवोनो नाश कर्यो. वली राज्यना लोने करीने कनककेतु राजाये पोताना पुत्रोनां सर्व अंग छेदन कया. वली नीति शा स्वना का चाणाक्ये राज्यना लोने करीने पोतानो मित्र जे पर्वत नामे राजा, *तेने मारी नांख्यो. वली पोताना स्वार्थ माटे सुनम चक्रवर्तिये ब्राह्मणोनो अनेर कत्रियोनो कय कर्यो. एवी रीतनां अनेक दृष्टांतो , तेजोलखवा बेसीए तो ते Mनो एक महोटो ग्रंथ थतां पण पार न आवे. माटे विचारवान आटलु ने के, KXXXXXXXXXXXXXXXXXk KXX************** Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX** पुत्रो मे भ्राता मे । खजमो मे गृहकलत्रवर्गो मे ॥ शतिकृतमर्मशब्दं । पशुमिर मृत्युजन हरति ॥१॥ अर्थ-तुं रात्री दिवस एवं विचारे ले के, आमदारो पुत्र, आ महारो नाई, आ महारां स्वजन, आ महारूं घर, आ महारां स्त्रीआदिक वाल्हेशरी, परंतु ए प्रकारे बोलनारने जेम घातकी पुरुष, ३ ३ करता एवा बोकमाने हरण करे ; तेम मृत्यु जे ते, मे मे (महार महासे) करता प्राणीने पकीने ले जाय ॥ । माटे तेना उपर ममत्व करवायी नलटुं पाप बंधाशे, पण तेमांनु कोइ मरी जशे, त्यार तेमांधी को३ पण ते मरनारने राखवा समर्थ यतुं नश्री; एटज न हि पण, पोताना स्वार्थमां खामी आववाय), थोमा दिवस रुदन करी “गयेलाने जूली जg" ए रीवाज प्रमाणे तेज संबंधीयो तेने विसरी जाय जे. जेम पो. ताना वीश वर्षना पुत्रना मृत्यु समये फक्त मोहना नगलाश्री गाढ खरे लांबा रागे बुमो पामी) रुदन करनार अने गती कुटनार पिता, पोताना बीजा पुत्र* ना लग्न समये, ते मृत्यु पामनारने नूली ज३, वर्तमान समयना उत्साहमा पू- KXXXXXXXXXXXXXXXX*** १०५ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********************** हर्षी दाखल थाय बे. एज रीते अत्यंत स्नेहवाली स्त्री (नार्या) ना मृत्यु प बी, तेज जर्तार बोजी स्त्री साथे विवाह करी जाणे या संबंध सदाकाल रेहेवानोज होय ने शुं ! एवा खोटा मोहमां मुंफाइ एटले खुश। थर, प्रगावनी स्त्रीने विसरी जाय बे. तेमज पोताना बंधुना मृत्युथी दुःखी थवानुं बतावनार जाता (भाइ) थोमा दिवस पी ते बंधुना स्नेहने नूली जइ, तेना पुत्रादिकनी साथे पव्यादिकना नागमां कपट प्रदरे बे. एवी रीते स्वजन परिवारनो संबंध स्वार्थ युक्त, अल्प मुदतनो, स्थिति पूर्ण श्रये त्रुटनारो, आपणो राख्यो नहि रेदेनारो, अने परिलामे दुःखदाइ एवो इंश्जाल समान खोटो बे. तेथे । तेने विषे ममत्व धारण करवा ते पण केवल अज्ञानताज बे! एवीज रीते हाथी, घोमा, रथ, पायदल विगेरे ठकुराइ पण अनित्य बे. तेने विषे जे ममत्व करवो, ते पण मोदचे ष्टा जावी. तेमज धन, सोनुं, रूपुं, हीरा, मारोक, मोती, शंख, प्रवालां, तेना नपर पण जे ममत्व करवो, ते पण परिणामे दुःखनुंज मूल बे. माटे जे जे कुत्य करवुं तेनुं परिणाम प्रथमश्रीज विचार के, या कृत्यनुं परिणाम शुं निप ***** ******** Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशे? ते नपर नीतिशास्त्रमा कर्तुं ने के, आखा दिवसमां एवं काम कर के, * जेथी रात्रीये सुखे निशावे. तया अाउ मासमां एवं काम करवू के, जेणे क रीने चोमासाना च्यार महिना निवृत्तिथी सुखे सुखे विशेष धर्मध्यान थाय. त| था पूर्व अवस्थामां एवं काम करवू के, जेणे करी वृक्षवस्थामां सुखी थवाय, अने जीवतां सूधीमां एवं काम करवं के, जेणे करीने परलोकने विषे सुखी यवाय. माटे परलोक संबंधी कार्यमां आदर करवो. ए नुपदेश. ॥ ७ ॥ संसारः अखहेतुः उखफलः महःखरूपः च - XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX संसारो मुहहेक। उस्कफलो सहरकवो य॥ न त्यजति तं संसारमपि जीवाः अतिवक्षाः स्रेहानगमैः न चयति तपि जीवा। अश्वधा नेहनिअलेहि ॥७॥ . अर्थ-हे जीव! (संसारो के०) आ संसार जे ते (उहहेक के०) दुःखनु का Jain Education in a KWjainelibrary.org Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | रण . तथा (खफलो के०) मुख एज फल . जेनुं एवो ने (य के०) वली kal (उनहाउरकरूवो के०) दुःख करी सहन थाय, एवं जे पुःख ते रूपडे. तेमां (ने हनिअलेहिं के०) स्नेहरूप बेझीवमे (अश्बना के०) अतिशे बंधायेला एवा (जी. | वा के०) जीव जे ते (तंपि के) ते संसारने पण (न चयंति के०) नयी त्याग करता. अर्थात् संसारने पुःखदायक जाणे , तोयपण तेनो त्याग नथी करता. | 1. नावार्थ-आ संसारमा सर्व बंधन करतां प्रेमबंधन अतिशे महोटुंबे. ते क ॥ वसन्ततिलकावृत्तम् ॥ रात्रिगमिष्यति नविष्यति सपनातं । नास्वानुदेष्यति हमिष्यात पङ्कजश्रीः ॥ श्वं विचिन्तयति कोशगते रिफे। हा हन्त हन्त नातिनी गज नजहार ॥ १॥ ॥ स्वागतांवृत्तम् ॥ बन्धनानि खनु सन्ति बहूनि । प्रेमरज्जुकृतबन्धनमन्यत् ॥ . दारुनेदनिपुणोऽपि पमधि । मिष्क्रियो जवाते पङ्कजकोशे ॥ २ ॥ अर्थ-जेम कमलनो रस पीवाने बेठेलो एवो जे नमरो, ते मनमां विचारे * HD के, हवे संध्याकाल परवा आवी, ने.कमल मिंचा जशे; माटे हुं नमी जनं KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX " Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० तोगक, एम विचार करता करता संध्याकाल श्रइ, ने कमल मिचाइ मयु; ते श | वखते ते नमरो विचार करे ने के, रात्री जशे ने सारो प्रजातकाल यशेने सूर्य * रज उगशे, ने कमलनी लक्ष्मी हसशे एटले प्रफुल्लित श्रशे, त्यारे हुं नमी जश्श.एवो * * विचार करे . एटलामां पाणी पीवाने माटे आवेला हामीए ते कमलने उपामी ने हा इति खेदे!!मुखमां घाली, पेला बिचारा नमराने दांतवमे चाववा मांड्यो! * ॥१॥ ते वखते पेलो नमरो मरतां मरतां पश्चात्ताप करे ठेके, जगतमां बंधन * * तो घणां ने, पण प्रेमरूप दोरीनुं बंधन तो एक जुदी जातनुज ने ? केम के, ग-1 *मे तेवु काष्ठ होय तो पण तेने विंधवाने जमरो समर्थ होय बे, परंतु हुँतो स्नेहे * करीने कमलना दोमाने विषेरहीने किया रहित थयो. एटले ते दोमाने कोरीने * नीकली जवा समर्थ न थयो!॥२॥-वली ब्रह्मदत्त राजा मरणांतिक रोगनी * वेदनादिके करीने पराभव पाम्यो सतो प्रतिशे, संतापनो अनुन्नव करे . एटले * वेदनाए करीने आंखमांधी आंसु चाल्यां जाय ने तोयपणमोहनो नदयथी जो *गनी आकांदा (श्चा) करे . अने पासे बेठेली स्त्रीना उपर हाथ नांखीने पो 1109 - NA Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | तानी स्त्रीचें नाम देतो देतो मरण पामीने सातमी नरकने विषे गयो. अने त्यां पण तीव्र वेदनानो अनुनव करतो सतो, ते स्त्रीनुं नाम वारंवार संन्नारतो सतो वेदना नोगवे . एवी रोते नोगनी प्रासक्ति त्याग करवी घणी पुष्कर ले.अने| केटलाएक महा सत्ववाला सनत्कुमार चक्रवर्ती जेबा पुरुषो तो, रोगनी वेदना | यये मते पण देहने तथा आत्माने जुदो समजीने एवं विचारता के, आ महारं | करेलुं कर्म मने नदय प्राव्यु , माटे महारेज नोगवq पमशे. एवो निश्चय करीने समता सहित कर्म नोगवे . पण मनमांपीमा नुत्पन्न श्रवा देता ननीय र्थात् आध्यान रौध्यान ध्याता नथी. अने वली एवं विचारे ने के, ॥ शार्दूलविक्रीमितवृत्तम् ।। उतों यः स्वत एव मोहसजिलो जन्मालवालोऽशुनो। . रागषकषायसंततिमहानिर्विघ्नबीजस्तथा ॥ रोगैरङ्कुरितो विपत्कु सुमितः कर्मधुमः सांगतं । मोढा नो याद सम्यगेष फलितो अस्वैरघोगामिनिः॥१॥ अर्थ-आ कर्मरूप वृक्ष पोते पोताने दाज वाव्यो , ने तेमां मोहरूप पा| KKARXXXXXXXXXX************ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैo १०८ ****************** एली शिंच्यं वे. अने ते वृहनी जन्मभूमि पण अशुद्ध कर्मरूप क्यारामां के धली राग देव कषाय, तेनी जे संतति एटले श्रेणि, ते रूप बीज बे. ते महोटा विघ्न रहित a. एटले ए बीजमांथी वृक्ष उत्पन्न थया विना रहेज नही; तेवुं बे. ने एवृहने रोगरूप अंकुरा उत्पन्न थया वे. अने विपत्तिरूप पुष्पने जो तुं सम्यक प्रकारे एटले समजावे नहि सहन करे तो. ते पुष्पमांथी अधोगतिनां दुःख रूप फल उत्पन्न थशे. ॥ १ ॥ 'वली ग्राम विचारे बे के, जो हुं याची पली आपदाने समजावे नाहें जो गवं तो, एमांथी महारे दुर्गतिनां दुःखरूप फल उत्पन्न श्रशे. माटे दे जव्य जी वो ! या प्रकारनो विचार करीने संसारने दुःखमयं जालीने संसार घटामवा नो उद्यम करो ॥ ७८ ॥ निजकर्मपवनचलितः जीवः संसारका ने घोरे ३ ४ २ १ . नियकम्मपवणचलिन । जीवो संसारकाणणे घोरे ॥ ************ रा १०८ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काः काः विमंबनाः वधबधनादिविगोपनाः न प्राप्नुयात् जासहंःखं याभ्यस्ताः XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX का का विमंबणान ।न पावए सहउकान | अर्थ-(घोरे के०) घोर (लयानक) एवं (संसारकाणणे के) संसाररूप मदावनने विषे (निय के) पोतानुं (कम्म के) ज्ञानावरणीयादिक कर्म, ते रूप I (पवण के०) वायु, तेणे करीने (चलिन के०) प्रेरणा कर्यो एवो, अर्थात् नमा मयो एवो (जीवो के०) आ जीव जे ते (उसहरकान के०) दुखे करीने सहन Pall करवाने अशक्य ने पुःख ते जेनुं एवी (का का के०) केश केश (विमंबणान के वध बंधनादिक विटंबना तेने (न पावए के०) नथी पामतो? अर्थात् सर्वे विटंबनानने पामे . ॥ ए॥ नावार्थ-कोर पुरुष पोतानो लीघेलो नियम (व्रत) को अल्प परिषहथी। मेघकुमारनी पेठे नागवाने तैय्यार थयो . पण तेणे विचारयु के, प्रा वार्ता *गुरुने निवेदन करीने पठी महारो नियम मूकुं, एम धारीने जेटलाकमां गुरु EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० KXXXXXXXXXXXX*****XXX पासे आवे , तेटलाकमां ज्ञानवंत गुरुए उपदेश प्रापीने निश्चल कस्यो, ते आ| प्रमाणे के-हे नव्य जीव ! अहो हो!! आ घोर जवाटवीने विषे था जोवे क|मना वशे करीने शां शां पुःख नथी सहन कस्यां ? अर्थात् सर्वे जातिना वध वं | धनादिक दुःख सहन कस्यां ने. अने अनेक प्रकारना अपराधश्री राजा प्रमुखे गधेमा नपर बेसामीने नाक कान कापीने अने कपालमां माम देने इत्यादि घणीज विटंबना पामामीने, ने आखा शेहेरमा फेरवीने शूलिये देवा प्रमुख असह्य पुःख दीधां. त्यां ते परवशपणाश्री तेवां पुःख अनंतीवार सहन कस्यां. वली कर्मे करीने जीवने शुं शुं नथी विततुं? अर्थात् घणुंज वीते . जेम के, निक्स सायरमऊो । निवस गिरिगुहरकंदराम कम्मसहायजीयाणं । कहमवि न हणे विलग्गं तु ॥ २॥ मायंगघरे हरिचंदराश्णो । पंमवाण वणवासो ॥ मुंजस्म निक्खनमणं । कीर जं कम्मुणा सर्च ॥ २ ॥ राउ करे रंको । रंको पुण करेश रायसारित्थो ।। जं न घर जर हायए । कीर ते कम्म जीवाणं ॥ ३ ॥ Shiru XXXXXXXXXXXXXX******* Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ************************ _ 'अर्थ-जो कदापि श्रा जीव कर्मना जयथी समु३ मध्ये वास करे, अथवा * पर्वतनी महोटी गुफामां वास करे, तोयपण कर्मनी माथे वलगेला एटले कर्म* * थी आवरण पामेला ते जीवोने, वलगेलां कर्म को प्रकारे नाश पामतां नथी. अर्थात् निकाचित कर्म लोगव्या विना बुटतां नथी. ॥१॥ वली जुन के, कर्म ने वशे करीने हरिश्चं राजा चंकालने घेर रह्या तथा पांच पांवो वनवास पाम्या. तथा मुंजराजाये घेर घेर निक्षा मागी. माटे जे कर्म करे ते सत्य . अ. र्थात् कर्म कोइने पण मूकतुं नथी. ॥२॥ वली कर्म केवां जे? ते कहे . यो. मीवारमा राजाने रंक करे , अने रंकने राजा जेवो करे . वली जेना घरमां, * कोइए जे हिताऽहितकारी वात हृदयमां न धारी होय; ते वातने, जीवोनां का म जे ते थोमीवारमा करी देखामे . एटले जेनुं मनमां पण चितवन नथी, * * एवं शुजाशुन्न नचितुं एकदम थ आवे . तेनुं कारण पण कर्म . माटे कर्म * ने कां शरम नथी. ॥ ३॥ माटे तें कर्मने वश थश्ने अनेक फुःख सहन कस्यां | ने. तेना आगल आ धर्मकृत्य करतां अएलु अल्प पुःख श्या हिसाबमां ? एम ************************ Jain Education a bonal Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपदेश देने धर्मने विषे दृढ कस्यो. एम समझी बीजा जीवोए पण धर्मने धि षे दृढता राखवी. आ ठेकाणे मेघकुमारनुं दृष्टांत जाणवू. ते दृष्टांत प्रसिह माटे लख्यु नथी. ॥ ए॥ | शिशिरे काले शीतलानिलस्य लहरीणां सहस्राणि तैः घनं यथा स्यात्तथा निन्नो देहो यस्य सः सिसिमि सीपला निल । लहरिसहस्से हि जिनघणदेहो॥ तिर्यकले . अरण्ये अनंतशः निधनः अनुप्राप्तः तिरियत्तणंमि ऽरणे। अणंतसो निहणम ऽणुपत्तो ॥णा __ अर्थ-हे जीव! (तिरियत्तमि के) तिर्यंचना नवमां (अरणे के०) अरण्य (अटवी) ने विषे (सिसिमि के) शिशिरशतु (शियालो) आवे सते (सीयला I निल के०) शीतल (ताढो) वायु, तेनी (लहरिसहस्सेहि केय) हजारो लहेरोवमे (जिनघणदेहो के) नेदायो . एटले पीमायो ले दृढ एवो पण देह ते जेनो, * एवो थयो सतो, तुं (अणंतसो के) अनंतीवार (निहणं के) नाशने (अणुपत्तो RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX १० Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******XXXXXXXXXXXXXXXX के) पाम्यो .॥०॥ | नावार्थ-हे आत्मन् ! तुं पूर्वे अनुनवेलां कुःखने, लगार विचारी जो के, ति येचना नवमां तहारो देह, खूब मजबूत हतो, तोयपण पोप महा महिनानी अत्यंत टाढश्री, (हिम पवाश्री) अनंतीवार मरण पाम्यो. एटले आजीव अ|नेक प्रकारना रसायण जेवां के, त्रांबु हरिताल विगेरे खाइने शरीरने मजबूत तथा पुष्ट करवु धारे ; तोयपण ते शरीर घोमा जेवू, अथवा पामा जेवु कदिपण थतुं नथी. तो पण ते शरीरने घोमानी तथा पामानी नपमा अपाय .तेवा घोमा विगेरे तिर्यंचोनां शरीर पण, अत्यंत ताढयी नाश पामे . ते नाश पामवादिक फुःख ते अनंतीवार सहन कयौ. तो आ नवमां धर्मसाधन निमिने अल्प एवो पण शीत (ताढनो) परिषद तुं केम सहन नथी करतो? ॥ ७० ॥ ग्रीष्मातपसंतप्तः अरण्ये कुधितः पिपासतः बहुशः गिम्हायवसंतत्तो । ऽरणे बुहिन पिवासिन बहुसो॥ KX*********XXXXXXXXXXXXX Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ do १११ ******* **** संप्राप्तः तिर्यकून वे १० 9 G संपत्तो तिरियनवे । मरणाहं बहु विसूरंतो ॥ ८१ ॥ मरःखं बहु यथातथा विद्यमानः U अर्थ- हे जीव ! तुं (तिरियनवे के ० ) तिर्यचना जवने विषे ( अरले के० ) - वीमां (गिम्हायव के०) ग्रीष्मशतुना तरुकावने (संतत्तो के ० ) सारी पेठे तप्यो एवो, अने (बहुसो के०) घणी घणी (बुहिन के०) कुधा वेदनाने सहन करतो ए वो, अने (पिवासिन के०) घणी घणी तृषा वेदनाने सहन करतो एवो, ने (बहु के०) घण घणो ( विसूरंतो के०) खेद पामतो सतो (मरणउई के०) मरणनां दुःखने (संपत्तो के० ) पाम्यो दतो. ॥ ८१ ॥ नावार्थ - हे श्रात्मन् ! जेम तें तियंचना नवमां शीत परिवह सहन कर्यो. तेम नृष्ण कालमा (ग्रीष्मकतुमां) एटले वैशाख जेठ महिनाना श्राकरा तापमां तें उष्ण परिषह सहन कर्यो. तेमां वली प्रतिशे तृषा वेदनी तथा प्रतिशे कु धावेदनी ते करीने, तुं अत्यंत खेद पामतो सतो अनंतीवार मरण पाम्यो. प *TO ܐܐܐ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंतु ते फुःखने विसरी जश्ने, आ नवमां श्रोमा तापने पण न सहन करतो, तुं पंखा प्रमुखे करीने वायुकायना जीवोनो घात करे पण एम नथी विचारतो के, तिर्यंच नवने विषे तथा नरक लवने विषे में अनंतां तापनां कुःख सहन कयावे. ते पुःखना आगल आ तापनुःख, श्या हितावमा छे ? एवो विचार तने लेशमात्र पण पावतो नथी! ॥ १॥ वर्षासु अरण्यमध्ये गिरिनि:रणोदकैः नह्यमानः ********* * वासासु ऽरणमध्ने । गिरिनिष्तरणोदगेहि बघ्नंतो ॥ शीतानिलेन दग्धः सन् मृतोसि तिर्यक्त्वे बहुशः सीयानिलमन्नविन । मनसि तिरियत्तो बहुसो ॥२॥ अर्थ-रे जीव! तुं (तिरियत्नणे के०) तिर्यंचपणाने विषे (वासासु के) वर्षा तुमा एटले चोमासामा (अरणमज्जे के०) अटवीने विषे रह्यो सतो (गिरिनि ********** Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXX*******XXXXXXX**** ज्करणोदगेहि के०) पर्वतनां निर्धारण एज पाणीवमे (बज्ऊतो के) वहन यतो एटले तणातो, अर्थात् चारे पासे पाणीमां अथमातो एवो, अने(सीयानिल के०) अतिशे शीतल एवा वायुवझे अर्थात् हिमवके (मप्रवियो के०) दाफेलो सतो (बहुसो के०) घणीवार (मनसि के०) मैरण पाम्यो . ॥ २ ॥ | जावार्थ-हे जीवा तुं तिर्यंचना जवने विषे, चोमासानी ऋतुमां वृत्त प्रमुख | ने विषे रात्री दिवस निर्गमन करतां वरसातनी धाराननां कष्ट सहन करी आ-18 * व्यो ने. वली हिम पवाथी बलीने मरण पण पाम्यो . ने नदीयोमा तणातो तणातो अनेक प्रकारनी वेदना पामीने अथमा कुटाइने पराणे प्राण त्याग कयो . ए सघलां कष्ठने तुं आज केम विसरी जाय ? ॥ ७ ॥ एवं तिर्यक्लयेषु क्लिश्यन् सन् खशतसहस्रैः KK********************* एवं तिरिय नवेसु । कीसंतो उस्कसयसहस्सहिं ॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX** उषितः अनंतवारान् जीवः जीपणनवारण्ये वसियो अणंतखुत्तो । जीवो जीसणलवारणे ॥ ३ ॥ अर्थ-(एवं के०) ए प्रकारे. एटसे पूर्वे कह्यं ते प्रकारे (तिरियत्नवेसु के०) | तिर्यंचमा नवोने विषे (उस्कसयसहस्सेहिं के०) लारको गमे पुःखे करीने (कीसंतो के) क्लेश पामतो एवो (जीवो के०) आजीवजेते (जीसगनवारणे के०) जयानक एवी संसाररूप अटवीने विषे (अगंतखुनो के०) अनंतीवार (वसियो के) निवास करी आव्यो . ॥ ३ ॥ नावार्थ-हे आत्मन् ! तुं तिर्यंचना नवोने विषे पण अनंतां दुःख लोगवी आव्यो . ॥ ३ ॥ उष्टाष्ट फर्माण्येव मलयानिलस्तेन प्रेरितः नीषणे नवारण्ये उच्छकम्मपलया। निलपेरिन नीसम्म जवरणे ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै० ११३ ********* *** हिमान: नरकेषु व्यपि अनंतशः हे जीव प्राप्तोसि दुःख G の པ დ हिमं नरसुवि। तसो जीव पत्तोसि ॥८४॥ र्थ - ( जीव के०) हे जीव ! तुं (दुकम्म के०) दुष्ट एवां जे आठ कर्म. एट ले डुष्ट फलने आपनाएं ज्ञानावरणीयादिक आठ कर्म ते रूप (पलयानिल के० प्रलय कालना वायु वमे (पेरिन के०) प्ररेणा कर्यो एवो, अने (जीसरांमि के ० ) जयानक एवी (नवरणे के०) संसाररूप अटवीने विषे ( हितो के०) चालतो सतो ( नरएसु वि के०) नरकने विषे पण, पूर्वोक्त दुःख (प्रांतसो के ० ) अनंत वार (पत्तोसि के०) पाम्यो बे ॥ ८४ ॥ जावार्थ- हे श्रात्मन्! ते ज्ञानावरणीयादिक आठ कर्मे करीने नरकादिकग तिने विषे, अनंत वार दुःख जोगव्यामां खामी राखी नथी. तोपावली पाठां तेनांतेज दुःख प्राप्त थाय, तेवा नपाय करे जाय बे. माटे हवे तेवां दुःखो जो. गववां परे नहि, तेवो उपाय करच. ॥ ८४ ॥ *********************** श ११३ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सप्तमु नरकमहीषु वजानलदाहस्य शीतस्य च वंदनास्ताम सत्तसु नरयमहीसु वङानलदाहसीयवियणासु ॥ नपिनः अननकृत्तः विलपन् करुणशब्दैः वसियो अणंतखुत्तो । विलवंतो करुणसदेहिं ॥ अर्थ-हे जीव! तुं (वजानलदाद के०) वजामिनो डे दाद ते जेने विषे. एटले अतिशे तीक्ष्ण ने अग्नि ते जेने विषे, अने (सीयवियणासु के०) अतिशेशीतनी डे वेदना ते जेने विषे, एवी (सत्तसु के) सात (नरयमहीसु के०) नरक पृथ्वीनने विषे (करुणसद्देहिं के०) करुष शब्दवमे विलवंतो के०) विलाप कर तो सतो (अणंतखुनो के०) अनंतीवार (वसियो के) वशो . ॥ ५ ॥ लावार्थ-हे आत्मन् ! तुं साते नरक पृथ्वीयोमां निवास करी श्राव्यो . अने त्यां त्यां नष्ण वेदना तथा शीत वेदना, प्रा नीचे लख्या प्रमाणे अनंतीवा KXXXXXXXXXXXXXXXXX***** Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EXX************XXXXXXXXXXX र सहन करी आव्यो . | जेम ग्रीष्मऋतुना ठेला समयमा प्राकाशनी मध्ये प्रावेलो, मेघरहित, ध या आकरा किरणवालो सूर्य, देदीप्यमान सते, जेना शरीरने विषे पिननो प्र* कोप अयो रे, तेवा पुरुषने, ब्यारे बाजु खेरना अंगारानो अग्नि सलगावीने ते नी वच्चे राखीए, ने तेने जेवी नष्णवेदना पाय, ते करतां पण अनंतगुणी नष्ण Ma वेदना, नरकने विषे नारकीना जीवो लोगवे . ते नारकीना जीवोने त्यांची न पामीने जो कदापि अहिंना धगधगता खेरना अंगारामांसुवामीए,तो जेमशीन तल चंदननो लेप कर्यो होय, ने तेश्री जेम अत्यंत सुखथी निज्ञ आवे तेवी री-| तनी निज्ञ ते नारकीना जीवने आवे . एवीज रीते पोष महिनानी रात्रीने विष मेघरहित आकाश अये सते, हृदयादिकमां कंपाराना रोगवाला पुरुषने श्रा वरण रहित, हिमाचलनी पृथ्वीने विषे राख्यो होय, अने वली त्यां अत्यंत वायराना कपाटा चालता होय, ते वखत ते जीवने जेवी शीतवेदना थाय, तेथी पण अनंतगुणी शीतवेदना नरकने विषे नारकीना जीवो लोगवे . ते नारकी Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ना जीवोने पूर्वे कदेला, हिमाचल पृथ्वीना स्थानमा राख्यो होय, तो जेम वा यरा विनाना स्थानमां शियालाने विषे मिज्ञ आवे, तेम ते नारकीना जीवोने | निज्ञ आवी जाय . माटे एवां पुःख तुं अनंतीबार सहन करी प्राव्यो ने. ___ माटे तेथी त्रास पामीने फरीयी त्यां न जवू पमे, एवा धर्मकृत्यमा सावधान था! ॥ ५ ॥ पितृमातृस्वजनरहितः उतव्याधिनिः पीमितः बहुशः XXX*****XXXXXXXXXXXXXXX पियमायसयणरहिन । पुरंतवाहिहिं पीमिन बहुसो॥ मनुजनवे निःसारे विलापितः किं न तं स्मरसि २१७ ए १० ८ ११ मणुअलवे निस्सारे । विलावि किं न तं सरसि ॥६॥ अर्थ-रे जीव! (निस्सारे के०) असार एवा (मणुअनवे के०) मनुष्यत्नवने | विषे (पियमाय के०) पिता माता, अने (सयण के०) वजन. तेणे करीने (रहिन kkkkkkXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० ११५ ************************ के०) रहित एवो, अने (रंतवा हिहिं के० ) दुःखे करीने के अंत ते जेनो, एवा व्याधिये करीने (बहुसो के०) घणीवार पीमिड के०) पीमा पाम्यो एवो. एज arrer मा (विवि०) विलाप करतो एवो, तुं जे ते (तं के०) ते मनुष्यनवने (किं न सरसि के०) केम नथी संचारतो ? ॥ ८६ ॥ जावार्थ - हे जीव ! तुं मनुष्यनवमां पण माता पिता स्वजनादिक प्रिय वस्तुनो वियोग थवाथी तथा अनेक प्रकारना शरीरना व्याधिथी विलाप करी करीने मरण पाम्यो हतो, ते वातने तुं केम विसरी जाय बे ? मनुष्यजव श्राममत्व तथा मोहपणा सहित निर्माग्यपणा विषे एक सोमिल ब्राह्मरानी कथा टीकामां लखी बे. ते नीचे प्रमाणे जाणवी ॥ ८६ ॥ श्रीने कथा. 9 atrial नगमां सोमिल नामें ब्राह्मण जन्मश्री दरिडी एवो रहे तो हतो. नेतेने स्त्री, पुत्र, पुत्री, इत्यादिक घणुं कुटुंब हतुं. ते कुटुंबनी प्रेरणाथी एक दिवस धन कमाववाने अर्थे देशांतर गयो. त्यां तेणे व्यापारादिके रहित एवो, ************************ श ११य Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX * पण दाननोगे सहित, एटले महोटा दानेश्वरी जेवो, एक योगी पुरुष दीगे. ते योगोये इव्यनी चिंताश्री आकुल व्याकुल थएला ब्राह्मणने पूज्युं के, तहारे शी * चिंता ? त्यारे तेणे कडं के, दारिद्रय एज महारे चिंता . त्यारे योगी बोल्यो * के, जो तुं महारुं कां करे, तो हुँ तने महोटो धनाढ्य करूं. त्यारे ते वात ते ब्राह्मणे कबूल करी. पठी ते बे जण पर्वतनी तलाटोमां (गुप्त स्थानकमां) गया, त्यां योगी बोल्यो के, आ सुवर्ण लिहिथवानो रस . एटले योगीए पूर्वे ताढ त मको नूख तुषादिक वेठीने अने घणा काल सूधी सूकां एवा कंदमूल फल ., * त्यादिकनुं जोजन करीने, एवीरीते महा महेनत करीने अने सममीना पांद मानो परियो करीने ते वसे रसकुंपिकामांथी लेश्ने घणे काले घणा प्रयासथी ते रस तुबमीमां नरी राख्यो हतो. ते पेला दरिद्धी ब्राह्मणने देखाड्यो. ने कह्यु के, आ सहस्रवेधी रस . एटले त्रांदानां हजार पत्रां अग्निमां तपावीने उपरा नपरी खमकीने मूक्यां होय, तेमां पा रसनुं एक टी' मूक्युं होय तो, ते सर्व पत्रामा रस वेंधा जाय, एटले पहोची जाय, अर्थात् तेज वखत ते सर्व पत्रां Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ail सुवर्णमय थ जाय. एवी रीते योगिए वारंवार कडं. त्यारे ते निरोगी ब्राह्मण ने नलटो क्रोध चढ्यो, ने तेथी बे हाये कालीने पेलुं रस, तुंबडु, सादमवृदना | पानझामां ढोली दीp. त्यारे ते योगिये ते ब्राह्मणने घणोज अयोग्य जाणीने ते नो त्याग को. अने ते ब्राह्मण पण पृथ्वीमां ब्रमण करतो करतो एटले पैसा * पैसा एम पोकार करतो करतो मरण पाम्यो, पण ते मख्या नही. आ कथानु तात्पर्य ए के, जेम निर्जाग्य जीवने घणुं धन पामवानो अव * सर आवे तोयपण तेने ते धन लेवु सूझे नही. तेम प्रा जीवने पण मनुष्य न| वमां जिनधर्मरूप धन ग्रहण करवानो अवसर आव्यो , तोयपण बहुलकर्मि पणाथी जिनधर्मरूप सुवर्णसिझिनो रस सेवार्नु मन नथी अतुं, ए बहु आश्चर्यकारक !! ॥ ६ ॥ पवनः श्व गगनमार्गे शलादितः सन् भ्रमति जवने जीवः पवणु छ गयाणमग्गे । अलकिन नमइ लववणे जीवो ॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ <※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※ स्थाने स्थाने समुन्य धनस्वजनसंघातान् ठाणघाणंमि समु । निकण धणसयणसंघाए ॥ ७ ॥ अर्थ-हे आत्मन् ! (जीवो के०) आ जीव जे ते (जववणे के०) संसाररूप अटवीने विषे (गणमामि के०) स्थान स्थानने विषे धणसयणसंघाए के०) धन तथा वजन तेना समूहने (समुनिकण के०) त्याग करीने (गयणमग्गे | के०) आकाशमार्गने विषे (पवणु व के०) पवननी पेठे (अल स्किन केय) अदृश्य रूपे थयो सतो (नम के०) नमे . ॥ ७ ॥ | नावार्थ-जेम आकाश मार्गमां वायु फरे , तेमा जीव पण लवाटवी मां अदृश्यपणाथी एंटले आ पूर्वे महारो कोण सगो हतो? तेवा अजाणपणाथी अनेक स्थानने विषे ब्रमण करे . तेमां अनेक नवने विषे मलेलां धन तथा * वजन इत्यादिकनो त्याग करीने एटले तेमनी शी गति हशे? एवी चिंता मूकी ने वर्तमानकालनां स्वजनादिकने सुखी करवाने तथा धन भेलववाने अर्थे देशो KXXXX*******XXXXXXXXXX Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mall देश नमे ले. अर्थात् वायुवके पानपुंजेम पराधीन अश्ने नमे , तेम केटलाए allक पुरुषो धनने अर्धे शरीरनुं फुःख पण न गणतां, कोई विलायत जाय , को चीन जाय , कोई लंकामां जाय , को ब्रह्मदेशमां जाय . इत्यादिक अ नेक देशमां जाय . तेवामां त्यां अनेक प्रकारनां निमित्त मलवाथी मरण पामे 2. एवी रीते आ जीव नजरे देखे , तो पण कर्म नपर विश्वास राखीने से तोष राखी धर्मसाधन करतो नथी. ॥ ७ ॥ विध्यमानाः असकृत् जन्मजरामरणान्येवतीक्ष्णाः कुंतास्तैः विहिजेता असयं । जम्मजरामरण तिककुंतेहिं ॥ अखं अनुन्नति घोरं संसारे संसरंतः संतः जीवाः मुहम ऽणुहवंति घोरं । संसारे संसरंत जिआ ॥10॥ तथापि हणमपि कदापि निश्चये अज्ञानमेवन्नुजंगस्तेनदष्टाः जीवाः तहवि खणंपि कयावि हु । अन्नाणनुयंगमंकिया जीवा ॥ ***XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसारएवचारकोगुप्तिगृहं तस्मात् नच नजिते मूढमनमः *XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX __संसारचारगान । नय नविज्जति मूढमणा नए॥युग्मम्॥ अर्थ-(संसारे के०) ज्यारगतिरूप संसारने विषे (संसरंत के पर्यटन करता एवा (जिआ के) जीव जेते (जम्मजरामरण के०) जन्म जरामरणरूप (ति स्ककुंतहिं के०) तीक्ष्ण नालाये करीने असयं के०) वारंवार (विहिजता के | | विधाता सता घोरं के०) रौः (आकरा)एवा (जुहं के०) कुःखने (अणुहवंति के अनुत्नवे . ॥॥ (तहवि के) तोयपण एटले पूर्वे का तेवु पुःख लोगवे ने तोयपण (मूढमणा के०) मूढ जे मन ते जेमनुं एवा. अर्थात् मूर्ख एवा, अने (प्र नागनुयंगकिया के०) अज्ञानरूप सर्प मश्या एवा (जीवा के०) जीव जे ते (कयावि के०) को वखत पण (हु के निश्चे (संसारचारगान के०) संसाररूप बंधिखानाथी (खणपि के०) कणमात्र पण (नय नविनंति के) नहेग नथी पा मता. एटले वैराग्य नथी पामता! आते केटलुं बधुं आश्चर्य? ॥ नए ॥ KXXXXXXXXX******XXXXXK* Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै० २१ ***** ************** जावार्थ जेम कोइ जालो मारे, ने तेनी वेदना थती होय, तेवामांवली बी जो जालो मारे एवी रीते उपरा नपरी वागवाथी जेवुं दुःख जोगवे, तेवी रीते या संसारी जीव पण जन्म जरा मरा इत्यादिकनां घणां भयानक दुःख नप रा नपरि जोगवे बे ॥ ॥ तोयपण अज्ञानरूप सर्वे मशेला एवा मूढ जीव, संसाररूप बंधिखानाथी कोइ वखत पण क्षणमात्र उद्वेग पामता नथी. श्रा के लुं बधुं आश्चर्य वे !!! || ८ || क्र. मासे कितीवेयावत् शरीरमेववापतिस्यां यत्र प्रतिसमयं १ ‍ a ५ कीलसि कितवेलं । सरीरवावी जन पइसमयं ॥ शोष्य से जीवितमेत्रांनोजनंतस्प थोघः प्रवाहः कालएव अरबट्टस्तस्यघटीजिः ६ 0 मीहि । सोसिज्जइ जी वियंजोहं の काल ॥ए॥ अर्थ- जीव ! तुं (सरवावी के० ) शरीररूप वाव्यने विषे (कियंत वेलं *********************** श० ११० Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX के०) केटला काल सूधी (कीलसि के०) क्रीमा कररीश ? (जन्न के) जे शरीररूपवाव्यने विषे (पश्समयं के०) समय समय प्रत्ये (कालरहढे घमीहि के) कालरूप रहेंटनी धमीयो वके (जीवियंनोहं के) जीवितरूप जलनो प्रवाह (सोसिज के) शोष पामे . अर्थात् सूका जाय . ॥ ए ॥ लावार्थ-जेम रहेंट मे वाव्यमांथी जेम जेम पाणी काढीए, तेम तेम से पाली नई अतुं जाय .तेम हे जीव! ते पण जेटलं आयुष्य बांधीने जन्म ली घोडे, ने तेमांधी जे जे समय जाय , तेटलुं आनखं न अतुं जाय . कहेव त के, मावाप जाणे के, महारो दिकरो महोटो थाय से; पण ते दिवसे दिवसे आनखं घटवाथी नहानो यतो जाय . ए प्रमाणे विचारतां तो, आनखानो अंत आवतां वार नहि लागे. केमके, समये समये घटवापणुं ले माटे.जेमके, कोइने शूली देवा लश् जाय , अने ते शूली सो मंगल छेटो . त्यारे ते माणस जेम जेम शूली सन्मुख पगलां नरे , तेमतेम तेने मृत्यु नजिक नजिक आवतुं जाय - .प्रमे ते वखत तेने खानपानादिक काश्पण गमतुंनश्री.केमके, एने मृत्यु नक्की । MARA Jain Education Ind i a ENJv.jainelibrary.org Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 /* ढुकढुं जाएयु ले माटे. तेम दे चेतन! तहारां पण जेम जेम वर्ष जाय , तेम तेम तहारे पण मृत्यु सन्मुख आवे जाय . एटले जो कदि तहारं आयुष्य सो | वर्ष- होय, अने तेमांथी जे जे वर्ष गयां, तेटलुं आयुष्य सो वर्षमाथी नबुं प्रयु || जाणवू. अर्थात् आ अल्प आयुष्य ऊपाटावंध पुरु थशे. अने मनना मनसुवा *मनमां रही जशे. अने पाब्लथी घणोज पश्चात्ताप शे! माटे प्रमाद डोमीने परलोक- साधन करवामां सावधान था.॥ ए०॥ एज वातने मूल ग्रंथकार पण जणावे ले के, रे जीव बुध्यस्व मामुह्य मा प्रमादंयमैं कुरु पाप रेजीव बुन मामु । न मा पमायं करेसि रेपाव॥ किं परलोके गुरुजाखनाजनं भवसि . हे अज्ञान हे मूढ किं परलोए गुरुङ। कलायणं होहिसि अयाण ॥५॥ ११५ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ****** ******* अर्थ - (रे जीव के०) हे जीव ! तुं (बुझ के०) धर्मने विषे बोध पाम्य. पण ( मामुझ के ० ) मोह न पाम्य. जे कारण माटे (रेपाव के० ) हे पाप जीव ! ( पमायं के० ) प्रमादने (मा करे सि के०) न करीश. ' प्रयाण के ० ) हे अजाण ! एटले हे मूढ ! प्रमाद करीने (परलोए के० ) परलोकने विषे ( गुरुडुरकनाय के० ) महोटा दुःखने रवाना जाजनरूप ( किं के०) केम (दोहिसि के० ) या बे ? ॥ ५१ ॥ भावार्थ- हे आत्मन् ! तुं दृष्टना वशश्री दुर्लन एवा मनुष्षनवने पामीने तेमां वली जैनधर्म पामीने धर्मने विषे प्रमाद न कस्य तेम बतां जो प्रमाद क रीश, तो महा दुःखने पामीश. ॥ ९१ ॥ बुद्धचस्त्र रेजीव त्वं मामुख ज्ञात्वास्वरूषं ३ १ ‍ ६. ४ बुनसु रेजीव तुमं । मामुनसि जिणमयंमि नाऊणं ॥ जिनमते ५. ********************** Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस्मात् पुनरपि एषा सामग्री दुर्जना हे जीव जम्हा पुणरवि एसा । सामग्गी उल्लहा जीव ॥५॥ अर्थ- रे जीव के०) हे जीव (तुमं के०) तुं बुमसु के०) धर्मने विषे बोध पाम्य. अने (नाळणं के ) धर्मने जाणीने (जिणमयंमि के) जिनशासनने विषे Ma(मामुज्झसि के०) मोह न पाम्य. एटले सम्यक् प्रकारे जिनधर्म अंगीकार कस्य. I (जम्हा के0) जे हेतु माटे (जीव के०) हे जीव! (पुणरबि के०) फरीने पण * ( एसा के०) आ (सामग्गी के) धर्म सामग्री जे ते ( उल्लहा के) उझन . | एटले फरी फरीने धर्म सामग्री मलवी महा पुर्खन्न . ॥७॥ नावार्थ-हे आत्मन् ! धर्म साधन करवाना अंगरूप एटले मनुष्यनो लव, शुइ श्रा, संजम, अने तेने विषे वीर्यनुं फोरक्यु, ते फरी फरीने चक्रवेधनी | पेठे, मल, महा पुनम . एटले काकतालीयान्यायथी एक वखत तने मल्यं | * ते फरीश्री मलवु अत्यंत दुर्लन . ॥७॥ ****XXXXXXXXX********* १२० Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उर्तन पुनः जिनधर्म एकशोनन्धः त्वं प्रमादस्याकरःखानिः सुखैषोऐहिमुखांउकः च उलहो पुख जिणधम्मो। तुमं पमायायरो सुहेसी य॥ सहं अस्ति च नरकावं कथं वं लाविष्पसियतःकारणात् तत् म बानीय परलोके उसहं च नरयाउक। कह होहिसि तं न याणामो ए३ अर्थ-हे जीव! प्रा (जिणधम्मो के) आ पामेलो जिनधर्म जे ते, (पुण | के०) वली फरीश्री पामवो (उलहो के०) मह उर्सन . अने तुम के०) तुं | (पमायायरो के०) प्रमादनी खास .अने ( य के०) वली (सुदेसी के०) सुख *नी वांठा करे . एटले प्रमाद करीने सुखनी वांग राखे , ते सुख तने क्या साथी मलशे? (च के०) अने (नरयजुःख के) नरकनां पुःख जे ते (उसहं के०) उखे करीने पण सहन करवां कवण . माटे (तं के०) ते (न याणामो के०) हुँ नथी जाणतो के, (कह होहिसि के०) तुं किये प्रकारे प्रश्श ? एटले तहारी शी KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - वै0 गति अशे? ते हुं नश्री जाणतो. ॥ ए३ ॥ | नावार्थ-श्री आवश्यक नियुक्तिमा कयुं ले के, आलसथी साधु पासे जर ने धर्म सांजली शकतो नथी. तया मोथको घरनी जंजालने विषे मूढ अइने रह्यो ने. अर्थात् साधु पासे जड़ नित्य शुं सांजलq ने ? घणीवार सांजलेलुं . एम धारीने धर्म सांजलवानी अवज्ञा करे . तथा जात्यादिकना अनिमानथी तथा क्रोधयी तथा प्रमादश्री एटले मद्यादिक कुव्यसन सेववाथी तथा कृप। पपगायी एटले जो उपाश्रेजश्शं, तो को धर्ममार्गनी टीपमा खोकलाजयी । P का श्रापq पमशे. तथा नयी एटले जो नपाश्रे जश्शु, तो नरकादिकनां |दुःख सानलवां पमशे. तत्रा शोकथी तथा अज्ञानश्री एटले नाश्बंध दोस्तदारना ना कडेवायी तथा व्याक्षेपयी एटले जाणी ओश्ने घणी जंजाल - नो करवायी तथा कुतूहलयी एटले गीत नाटकादिकना लंबमां पावाश्री तथा , रमणधी एटल्ले जनावरनो साथे क्रीमा करवाथी इत्यादिक अनेक कारणोयी KIXXXXXXXXXXXXXXXXX - - ......-- . Jain Education international rawiww.jainelibrary.org Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********************** पालुं एवं पण मनुष्यप एले गमावे वे एटले जवसमुयी तारनार अने सकल सुखने श्रापनार एवा जिनधर्मने करतो मी. अने सांसारिक सुखनी air करे बे. पण हे जीव ! तुं सामान्य दुःख पण सहन करी शकतो नथी, त्यारे नरकनां दुःसह दुःख तहाराथी केम सहन थशे अने पमलोकमां तहा रीशी गति थशे ? एम गुरु महाराज उपदेश करे बे. ॥ ५३ ॥ स्थिरः समजेन निर्मलः परवशेनरोगादिना स्वाधीनः अस्थिरे ‍ ३ ७ ४ G थिरेण थिरो समले। ए निम्मलो परवसेण साहीणो ॥ धर्मः तदा किं न पर्याप्तं किं नतंपन्न देहेन यदि उपाय त १ १० १२ १.३ १४ देहेन जइ विप्प | धम्मो ता किं न पज्जतं ॥४॥ अर्थ-रे जीव ! (जर के०) जो (अधिरेण के० ) अस्थिर एव, तथा (समलेग के०) मलसहित एवा. अने (परवसेल के ० ) परवश एवा (देहेण के) देह u *********************** Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै० १२५) ************************* ah (थिरो के०) स्थिर एवो. अने (निम्मलो के० ) निर्मल एवो. अने (साही लो के०) पोताने स्वाधीन एवो (धम्मो के०) धर्म जे ते ( विढप्पर के ० ) उपार्जन थइ शके बे, तो (ता के० ) त्यारे तहारे (किं न पज्जतं के० ) शुं न प्राप्त थयुं ? अर्थात् सर्वे प्राप्त थकुं ॥ ए४ ॥ जावार्थ- हे जीव ! अशाश्वता देदवमे परलोकमां निरंतर सहायकारी एवो धर्म उपार्जन थाय बे, तो शुं न परिपूर्ण थयुं ? अर्थात् सर्वे परिपूर्ण श्रयुं. एटले घणो महोटो लाज मल्यो, एम जाणवु. तेमज या मलमूत्र झरेला देहव निर्मल एवो जिनधर्म उपार्जन याय सो, गुं परिपूर्ण लाज न मब्यो कहेवाय ? अर्थात् जगत्मा जेटला लाज कदेवाय छे, ते सर्वे लान मली कदेवाय. तेमज रोगादिकने प्राधीन एवा वेदवमे जो स्वाधीन एवो जिनधर्म मले, तो शुं एने कांइ पण मलवानी खामी रही कद्देवाय ? अर्थात् नज कहे चूक्याज वा. कां Jain Education Innal चिन्तारत्नमन चेत्माप्यते काच संचयैः ॥ ************************ To |११५ mainelibrary.org Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेणुना चेम्धिरण्यं चेत्सुधाब्धि।रबिन्दुना ॥ १ ॥ गृहेग यदि साम्राज्यं देहेन सुकृतं यदि ॥ कस्तदा तन्न गृहीयात्तत्त्वातचविचारकः ॥ २ ॥ युग्मम्. अर्थ-तत्त्व अने अतत्त्वनो विचार करनार (बुद्धिमान्) पुरुष जे ते, काचना ककमा साटे, अमूख्य एवा चिंतामणि रत्नने कोण न ग्रहण करे ? तथा धूल पापीने सोनू कोण न ग्रहण करे? तथा पाणीनो बिंदु आपीने अमृतना समु |इने कोण न ग्रहण करे? तथा पोताने रहेवार्नु कुंपडं आपीने चक्रवर्तिर्नु राज्य कोण न ग्रहण करे ? अर्थात् तत्त्वातत्त्वना विचारनार तो तरतज ग्रहण करे! | तेवीज रीते आ मलमूत्रादिके करीने नरपूर एवा देहवझे पूर्वे कहेला चिंता- | मणी रत्न समान जैनधर्मने कोणन ग्रहण करे? अर्थात् जे महामूर्ख होय तेज *न ग्रहण करे. ॥१॥२॥ । एवी रीते विचारीने या महामलिन एवा शरीर उपरथी मोह उतारीने, जेम बने तेम शुद्ध एवा धर्मने ग्रहण कस्य. ॥ ए॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - यथा चिंतामणिरत्नं सुलानं न निश्चये नवति तुलविजवानां अल्पपुण्यानां % 3D जह चिंतामणिरयणं। सुलहं न दु होइ तुबविहवाणं ॥ गुणविनववर्जितानां जीवानां तथा धर्मरत्नमपि ए१०७ ११ गुणविहववजियाणं। जियाण तह धम्मरयणंपि एय॥ अर्थ-हे जीव ! (तुचविहवाणं कें) तुब विनववालाने (जद के.) जेम * (चिंतामणिरयणं के०) चिंतामणि रत्न जे ते (सुलहं के) सुलन एवं (न हु हो के) नज होय. (तह के) तेम (गुणविहववजियाणं के०) गुण रूप वै लवे करीने रहित एवा (जियाण के०) जीवोने (धम्मरयणंणि के०) धर्मरत्न जे ते पण, सुलत न होय. ॥ एए॥ नावार्थ-तुब विनववाला जीवोने एटले पशुपाल जेवा स्वल्प पुण्यवाला । प्राणियोने, जेम चिंतामतिरत्न सुखे पामवा जोग्य न होय, अर्थात् पुण्यहीन * १५३ XXXXXXXXXXXXX******** - - - - Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX जीवो, जेम चिंतामणि रत्न पामी शके नही, तेम सम्यक्त्वादि गुणरूप विनवे करीने रहित एवा प्राणियो, शुः धर्मरूप रत्नने पामी शके नही. जे जयदेव कु मारनी पेठे घणा पुण्यरूप गुणोए करीने नरेला दोय, तेज प्राणियो, आ मनु *य गतिने विषे चिंतामणि रत्नसमान सर्म प्रत्ये पामे . ॥ ५ ॥ कथा. हां पशुपाल अने जयदेवनुं वृत्तांत आ नीचे प्रमाणे. .. हस्तिनापुर नगरने विषे नागदेव नामा शेग्नी वसुंधरा नार्यानो कूखमां. नत्पन्न थएलो जयदेव नामे पुत्र हतो. तेणे बार वर्ष सूधी रत्ननी परीक्षानो अन्यास कों. त्यार पड़ी ते शास्त्रना अनुसारे महा प्रनाववा चिंतामणि रत्न जाणीने बीजा मणियोने पथरा तुज्य गणीने तेज चिंतामणि रत्नने मेलववा माटे सर्व नगरने विषे हाट दाट अने धर घर प्रत्ये नमतो इतो. परंतु ते रत्र क्यांहि पण पाभ्यो नही. त्यारे खेद पामीने माता पिताने कहेतो हवो के, महा* रु चित्त चिंतामणी रत्ने विवे लाग्यु ने. माटे हुं तेने अर्को बीजे ठेकाणे जश्श. - Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX त्यारे, माता पिताए कहूं. हे पुत्र! आतो निश्चे कल्पनाज . परंतु परमार्थ घकी चिंतामणी नथी. ते कारण, माटे तुं पोतानी खुशी प्रमाणे वीजां रत्नोयो व्यापार कर. एवी रोते बहु कडं, परंतु जयदेव, चिंतामणी पामवानो निश्चय | करीने हस्तिनापुरश्री नीकलीने घणा पर्वत, नगर, गाम, खाण, करबट, पत्तन, A समुश्तीर एटला स्थानकोने विषे ते चिंतामणीने खोलतो सतो घणा काल न: म्यो. परंतु क्याहि ते रत्न पाम्यो नही, परी नदास मनवालो थश्ने पोताना मनमा विचार करवा लाग्यो के, शु! आ चिंतामणी रत्न साचं जे ? के, जुईं डे? |जे माटे क्याहि पण देखवामां आवतुं नथी!! अथवा शास्त्रमा कहेतुं ते मणिर्नु तापणु फेरफार न होय. माटे क्याहि पण हशे. एवो निश्चय करीने फरीने प घणी मेगिनी खाणो जोतो सतो ते रत्ननी घणी खोल करवा लाग्यो. त्यार पी एक दहामो कोश्क वृक्ष पुरुषे तेने कां के, हे लक्ष! इहां एक मणीनी खा ले. तेने विषे जे पुण्यवंत प्राणी होय, ते चिंतामणी पामे. परी जयदेव तेना वचनधी त्यां जश्ने चिंतामणी खोलवा लाग्यो. ते अवसरे त्यां एक मंदबुध्विा KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ला पशुपालना दाश्रमां गोल आकारवालो पथरो देखीने ते पथराने शास्त्रमांक हेला लक्षणोये करीने चिंतामणी जाणीने, ते जयदेवे ते पशुपालनी पासे माग्यो. त्यारे पशुपाले कडं. तमारे श्रापभरानुं शुं काम डे ? जयदेवे कयु. हु महारे घेर जाने गेकरांनने रमवा प्रापीश, पी पापाले का.हां आवा घ-* या पथरा पड्या . ते तमे पोतेज केम लेता नथी जयदेव बोल्यो, हमणां म हारे घेर जावनी नतावल छे. माटे एज मने प्राप्य. तुं हांथी नीजो पानीश.. एवी रीते की, तोपण ते पशुपाले परने उपकार करवाना स्वजावे रहितपणे क प्रारीने तेनेन आप्यो.पनी जयदेवे उपकार मुड़िये करीने तेने का.हे न! जो तुं मने नथी आपतो, तो तुं पोतेज ए चिंतामणी रखनुं पाराधन कस्य. जेथी आ चिंतामणी तने पण वांगित फस आपे. त्यारे पशपाले कां. जोश्रा चिंतामणी* साचुं , तो मदारूं चिंत्वन करेलुं बहु, बोरमीना फलनुं चरणादिक शीघ्र आपो. त्यारे लगारेक हसीने जयदेवे कह्यु. अहो! एम न विचारीये. त्रण नपवास करीने संध्या समये ए मणिने शुद्ध पाणीश्री पखालोने शुरु नूमिये नंचे स्था *************XXXXXXX* om . ar Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 4 नके स्थापन करीने चंदन, वरास, फूलादिक वो पूजीने अने वली नमस्कार करीने पठी एनी आगल जे पोताने इष्ट होय, ते चिंत्वन करीए. ते सर्व पण १श्य * प्रातःकालमां पामोये. ए प्रकारे सांगलीने ते पशुपाल पोतानी बोकमियोंना * समूहने लेश्ने गामना सन्मुख गयो. त्यार पठी जयदेवे निश्चय कर्यों के, पुण्य रहित एवा आना हाश्रमां आ चिंतामणी रत्न नही रहे एम विद्यारीने जयदेव पण तेनी पूंठे चाख्यो. हवे पशुपाल मार्गने विषे चालतो सतो कहेवा लाग्यो के, हेमणे! हमणां आ बोकमियो वेधीने बरास इत्यादिकं लावाने तहारी पूजा करीश. तहारे पण महारो चिंतित अर्थ पूरवाने विषे नयम करवो. वली हे मणे! हजी गाम पण बेटे ठे, माटे मार्गमां कांश्क कथा कहे. अने जो तुं न जा तो होय तो हुँ तने कहुं. तुं सांजव्य. एक नगरने विषे एक हाथ, देहेरे, अने तेमां चार हाथना देव . ए प्रकारे वारंवार मणिनी आगल कां,तोपण ते म. णि बोलतो नश्री. तेटलामां ते मूर्ख, रोष चढावीने ते मणिने कहेतो हवो, अरे! जो तं हंकारो पण श्रापजो नश्री, तो वांवित अर्थ निष्पन्न करवाने विषे तहारी ********************** - Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * शी आशा!! अमवा तहारु नाम चिंतामणी ए साचुंडे. जू नश्री. केम के. त ने पाम्यो त्पांधी मामीने महारा ममनी रिता जती मथी!! बली जे हुं राब अने गश विना कणमात्र पण रही न शकुं, ते हुं तहारा माटे करवा मांड्या एवा त्रण नपवासे करीनेन मरण पामुं. ते माटे एम मानुं बुके, भावाणियाये मने मारवाने माटे तहारुं बर्मन कयें जसाय ! ते माटे तुं त्यां आ. के, ज्यां * फरीने महारे देखयो न पके. एम कहोने तेणे ते मणिमे छेटे मांखी दीपो. ते अ * वसरे जयदेवे आनंद पामीले तत्काल नमस्कार करीने चिंतामणी ग्रहण करी ने, संपूर्ण थयो उ मनोरथ ते जेनो एवो सतो पोताना मगरने सन्मुख चाख्यो. मार्गमां महापुर नमरने विषे मसिमा प्रस्तावधी जेने घणुं श्य प्राप्त वयु डे ए. वो ते कुमार सुबुद्धि शेग्नी रनवती नामे पुत्री सने परणीने बहु परिवार सहि*त हस्तिनापुर नगरे प्राध्यो. प्रावीने पोतामा माता पिताने पमे, वाग्यो. ते अव *सरे तेवी समृद्धि सहित तेने जोइने माता पिता आनंद पाम्यां अने तेनी प्रशंMeसा करवा लाग्यां, अने कुटुंबी लोको तेनुं सन्मान करवा लाग्यां. अने बीजा KXXXXXXXXXXXXXXXXX**** Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *लोको पण तेनी स्तवना करवा लाग्या. पोते जावजीव सूधी सुखी थयो. एप्रकारे धर्मरुप रत्ननी प्राप्तिने विषे पशुपाल अने जयदेवनो नपनय कह्यो. यथा दृष्टिसंयोगः न जवति जात्यंधानां जीवानां जह दिनीसंजोगो। न होइ अचंधयाण जीवाणं ॥ तथा जिनमतसंपोगा न जाने मिथ्यात्वेन अंधाना भीवानां KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX तह जिणमयसंजोगो। न होइ भिडंधजीवाणं ॥६॥ अर्थ-(जह के०) जेम (जथयाण के) जन्माराधीज अंध एका (जीवाणं के) जीव जे तेमने (दिठीसंजोगों के०) दृष्टिनो संयोग जे ते. एटले प्रांखे क-* |रीने देखq (न हो के०) न होय. (तह के०) तेम मिळधजीवाणं के०) मिथ्या त्वे करीने बांधला एवा जीवोने (जिणमयसंजोगो के०) जिनमतमो संयोग जे * ते. एटले जिनमतनी प्राप्ति (न हो। के०) न होय ॥ ६ ॥ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ** ** XXXXXXXXXXXXXXXXXXX******* नावार्थ-जेम. जन्माराथी अंध थएला पुरुषोने स्थूल पदार्थ पण देखवामां all आवतो नथी, तेम मिथ्यात्वरूप कुवासनाये करीने विवेकरूप चकुये रहित थ एला जीवोने पण, जिनशासनरूप सूर्य दीवामां आवतो नथी. एटले जिनशा. सननी प्राप्ति थती नथी । ए६ ॥ .. पत्यदं अनंतगुणे जिनधर्मे न दोपलेशोपि ॥ पञ्चरकम ऽयंतगुणे । जिणिंदधम्मे न दोसलेसोवि॥ तथापि निश्चये अज्ञानेन अंधा न रमते कदापि तस्मिनजिनमते जीवाः तहवि हु अन्नाणंधा। नरमंति कयावि तंमि जिया।ए॥ अर्थ-(पञ्चरकं के) प्रत्यक्ष प्रमाणे करीने सिह एवो, अने अणंतगुस के) अनंता ने गुण ते जेने विषे एवो (जिणिंदधम्मे के जिनेनो धर्म तैने विषे (दोलले सोधि के०) अपयश प्रमुख. दोषनो लेश पण (न के०) नथी. (तहवि * के.) तोयपण (अन्नाणंधा केए) अज्ञाने करीने प्रांधला एवा (जिया के०) जीव ************* Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX जे ते (हु के०) निश्चे (तमि के०) ते जिनेनाषित धर्मने विषे (कयावि के) क्यारे पण, एटले कोइ वखत पण (न रमंति के०) नथी रमता. एटले नथी जोमाता! ॥ ए॥ नावार्थ-श्रा लोकने विषे यश, अने परलोकने विषे स्वर्ग तथा मोक्षनां सुखापवा. रूप गुणवाला, अने जेने विषे कांश पण दोष नश्री एवा, श्री जिनेश्धर्मने प्रत्यक्षपणे देखे , तोयपण अज्ञाने करीने आंधला एवा जे पुरुषो, ते जेम जे वस्तु , तेम ते वस्तुने जणावनार एवा श्री जिनधर्मने अंगीकार नयी करता ॥ ए॥ मिथ्यात्वे अनंतदोपाः प्रकवाः दृश्यते न अपि च गुणलेशः मिने आतदोसा। पयमा दीसंति न वि य गुणलेसो॥ तथापि च तं एव जीवाः होति विस्मये मोहांधाः निषेवंते तहविय तं चेव जिया। ही मोहंधा निसेवंति एन॥ EXIXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - Jain Education Heatonal ** Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ अर्थ-(मिजे के०) मिथ्यात्वने विषे (पयमा के) प्रकट एया (अणंतदोसा के) अनंत दोष जे ते (दीसंति के०) देखाय . (य के) वली. तेमां (गुणले. सो वि के) गुणनो लेश मात्र पण (न के) नयी (तहविय के०) तोयपण मोहंधा के०) मोहे करीने बांधला एवा (जिया के०) जीव जेते (तं चेव के) ते मिथ्यात्वनेज (निसेवंति के) सेवे . ते (ही के) निश्चे घणुंज आश्चर्य !!! ॥ ए॥ * नावार्थ-कुगुरु कुदेव अने कुधर्म तेमनो अंगीकार करवारूप अध्यवसायने विषे एटले मिथ्यात्वने विषे नरकपातादिक अनंत दोष प्रकट देखाय , पण ते मां गुणनोतो लवलेश पण देखातो नथी. तोयपण मोहे करीने अंध भएला जी वो, ते मिथ्यात्वनोज आश्रय करे . एटले ते मिथ्यात्वनेज अंगीकार करे , परंतु जिनधर्मने अंगीकार नथी करता, ते घणुंज खेदकारक .!!! ।एमा धिकाधिक तत् तेषां नराणां विज्ञानेशिल्पे तथा गुणेषु कुशलत्वंयत् धितो ताण नराणं । विनाणे तह गुणेसु कुशलतं॥ T w w.jainelibrary.org Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXXXXX XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX मुखरूपे सखरूपे धर्मरत्ने मुपरहिां ये न जानति १ ३ ३ ४ ५ _ सुहसच्चधम्मरयणे। सुपरिवं जे न जाणंति एणा अर्थ-(सुहसचधम्मरयणे के) सुखकारी अने सत्य एवा धर्मरूप रत्नने | विषे (जे के०) जे पुरुषो (सुपरिस्क के) जली रीते पक्षाने (न जाणंति के०) नथी जागता. अर्थात् नमी जाणो शकता, (ताण के०) ते (नराणं के०) पुरुषोना ( विनाणे के) विज्ञानने विषे (तह के०) तथा (गुणेसु के) गुणने विषे, | (कुसलतं के०) कुशलपणाने (घिहिके०) धिक्कार पाउ! धिक्कार थान !!॥एए॥ | नावार्थ-जगत्ने विषे जे पुरुषोनुं शिल्पचातुर्य, कलाकौशल्य, औदार्य त | *था शौर्य धैर्यादिकने विषे कुशवपणुं धणुंज वखणाय डे. एटले रत्नादिकनी प. *रीक्षा करवामां घणा माह्या कडेवाय डे, ते पुरुषो सुखकारी अने सत्य एवा | धर्मरूप रत्ननी परीक्षा, जो न करी शक्या, तो तेमना सघला महापणपणाने | अतिशे धिक्कार था !! धिक्कार थान!!! ते उपर शास्त्र म कडं ने के, बहो ************* Jain Education Inteliai Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेर कलामां कुशल एवा पंमित पुरुषो होय, तोपण जो तेमणे सर्व कलामां श्रेष्ट एवी जे धर्मनी कला नथी जाणी, तो ते निश्चे अपंमितज जाणवा. माटे सर्व Ha परीक्षा करतां धर्मरूप रत्ननी परीक्षा करवी, तेज श्रेष्ठ परीक्षा .एण॥ ॥अनुष्टुप वृत्तम्॥ . जिनधर्मः अयं जीवानां . अपूर्वः कल्पपादपः XXXXXXXXXXXXXXXXXX****k जिणधम्मो ऽयं जीवाणं। अप्पुवो कप्पपायवो ॥ ___. स्वर्गापवर्गसुखानां फलानां दायकः अयं । सग्गापवग्गसुकाणं । फलाणं दायगो इमो ॥ १०॥ अर्थ-(अयं के०) आ (जिणधम्मो के जिनधर्म जे ते ( जिवाणं के०) जी | * बोने (अप्पुवो के० ) अपूर्व एटले अप्रसिह एयो (कप्पपायवो के०) कल्पवृक्ष *. केम के, (इमो के०) ए जिनधर्मरूप कल्पवृक्ष जे ते (सग्गापवग्गसुस्काणं KXXXX***XXXXXXXXXXXXXXXXX Passtv.jainelibrary.org Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ξα १७७ ******************* hoi स्वर्ग एटले देवलोक अने अपवर्ग एटले मोक तेना सुखरूप ( फलाएं के ० ) फलनो (दाइगो के ) आपनारो बे ॥१००॥ जावार्थ - या जिनधर्मरूप कल्पवृक्त अपूर्व वे एटले प्रसिद्ध कल्पवृक्ष तो, फक्त या लोकने विषे रहेलां पुलिक सुखनेज आापनार बे. परंतु या धर्मरूप कल्पवृक्षतो, स्वर्गादिक फलने तथा मोह फलने आापनार बे. माटे अपूर्व कल्प वृक्ष को. एवं जाणीने तेनोज आश्रय करवो. ॥१००॥ धर्मः बंधुः सुमित्रं च धर्मः च परमः गुरुः G १ ‍ ४ ३ ६. ५ ७ धम्मो बंधु सुमित्तो य । धम्मो य परमो गुरु ॥ मोक्षमार्गवृतान धर्मः परमः स्वदनः रथः ११ १० 起 मुस्कमरपट्टा | धम्मो परमसंदणो ॥ १०१ ॥ 1 अर्थ-रे जीव ! (धम्मो के०) या जिनधर्म जे ते ( बंधु के ० ) बंधु (जाइ) स For Private Personal Use Only ************************ श ११ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान ले. (य के०) वली (सुमित्तो के०) सारा मित्र समान . (य के०) वली | (धम्मो के०) धर्म जे ते (परमो गुरु के) नत्कृष्टा गुरु समान ठे. वली ते (ध*म्मो के) धर्म जे ते (मुस्कमग्गपयट्टाणं के०) मोक्ष मार्गने विषे प्रवर्तेला पुरुषोने (परमसंदणो के०) नत्कृष्टा रथ समान . ॥ १०१॥ नावार्थ-जेम आपद् कालने विषे ना सहायता करे , तेम संसाररूप all आपदकालमां, आ जिनधर्म पण सहायता करे , माटे नाइ समान . तथा * सारो मित्र जेम हितकारी अर्थने मेलवो आपवाथी सुख करे , तेम आ धर्म| रूप मित्र पण मनोवांन्ति सुख मेलवी आपवाथी सुमित्र समान . तथा गुरु जेम असत् मार्गथी पागे वाले , तेम आ जिनधर्म पण, नरक तिर्यंचादिक * गतिमां जवाथी पाने वाले बे. माटे नत्कृष्टा गुरुतमान . तया रथे करीने जेम मार्गमां सुखे सुखे जवाय डे, तेम धर्मरूप र करीने मोक मार्गमां सुखे Ill सुखे जश् शकाय . माटे धर्मने परम रथ समान कयो बे. एवं जाणीने आवा जैनधर्मने विषे नद्यम करवो. ॥ १० ॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXX XXXXX XXXXXXXXXX************* Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ॥ आर्यावृत्तम् ।। चतसृणांगतीनायान्यनंतानिःखानितान्येवानजस्तनप्रदीप्तेनाकानने मह.जीने XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX चनगइणतउहानल । पलित्तजवकाणणे महानीमे ॥ सेवस्व रेजीव त्वं जिनवचनं अमृतकुमसमें सेवसु रेजीव तुमं । जिणक्यणं अमियकुंमसमं॥१०॥ अर्थ-(महालीमे के०) महा जयंकर एवं (चनगणंतहानल के०) च्यार गतिमा रहेलां एवां अनंतां पुखरुप महोटा अनिये करीने (पलितलवकागणे के० लागतुं एवं जे संसाररूप वन, तेने विषे रेजीब के० ) हे जीव! (तुमं | के०) तुं (अमियकुंझसमं के०) अमृतना कुंम समान (जिणवयणं के) जिन | राजना वचनने सेवसु के० ) सेवन कस्व. एटले सिद्धांतमां कहेला अनुष्ठानने विधिसहित अंगीकार कस्व. ॥ १७ ॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - | नावार्थ-या संसाररूप जयकर दावानलयो दाऊला एवो जे तु, ते जिनवचनरूप अमृतना कुंभमां मग्न था. अर्थात् रूमा अनुष्ठानने ग्रहण कस्व.जेयी तने अपूर्व सुखशांति अशे ॥१२॥ विषमे जवएवमरुदेशे अनाखान्येवग्रीष्मतापस्तेनसंतप्ते विसमे लवमरुदेशे। अणंतउहगिम्हतावसंतत्ते ॥ जिनधर्मएवकल्पवृक्षस्तं स्मर त्वं हेजीव शिवमुखदं जिणधम्मकप्परुळं। सरसु तुम जीव सिवसुहदं ॥१३॥ अर्थ-(जीव के) हे जीव! (विसमे के०) विषम एटसे चालनारने सुख कारी एवा, अने (अतऽहगिम्हतावसंतत के०) अनंतां पुखरूप ग्रीष्मऋतुना तापवमे सारी पेठे तपेला एवा (नवमरुदेसे के) संसाररूप मारवाम देश ने विषे (सिवसुहदं के) मोक सुखने आफ्नार एवा (जिराधम्मकप्परुस्कं - Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । के०) जिनधर्मरूप कल्पवृक्षने तुमं के) तुं (सरसु के०) प्राश्रय कर. (आ ज ग्याये टीकाकारे कल्पवृदनुं स्मरण कस्ख. एवो अर्थ कस्यो ; ते विचारवा * योग्य . ॥ १०३ ॥ नावार्थ-हे जीव! संसारनां अनेक दुःखरूप मारवाम देशनी तपेली रेती, Jeal तेमां ब्रमण करता प्राणियोने महोटा नाग्ये प्राप्त थयेलो जिनधर्मरूप कल्प* वृक्ष, तेज आश्रय करवा योग्य जे. के, जेथी सकल वांवित सुखनी सिदि पाय. ॥ १०३ ॥ किं बहुना जिनधर्मे यतितव्यं यथास्वात्मा नवोदधिं घोरं - XX******KXXXXXXXXXX*** - किं बहुणा जिणधम्मे। जश्यवं जह नवोदहिं घोरं॥ लघशीन तो अनंत मुखं ललते जीवः शाश्वत स्थान ए १० ११ १५. ६ १२ १३ लहु तरियम ऽणंतसुहं । लहर जिन सासयं गणं ॥१४॥ ३१ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******** ******* अर्थ - हे आत्मन्! (किं बहुणा के०) धणुं कहें वे करीने शुं ! ते प्रकारे (जिए धम्मे के०) जिनधर्म विषे (जइयां के०) यत्न करवो. (जह के०) जेम (जिन के०) जीव जे ते (घोरं के०) जयानक एवा (नवोदहिं के०) संसाररूप समुने ( लहु के ० ) शीघ्रपणे (तरियं के०) तरीने (श्रांतसुई के ० ) अनंतु वे सुख ते जेने विषे एवं (सासयं गां के०) शाश्वतुं स्थान एटले मोह, तेने ( लहइ के‍ ) पामे. ॥ १०४ ॥ 'जावार्थ - हे नव्यं जीवो! आाखा ग्रंथनो सारमां सार एटलोज कवानो बे के, जिनधर्मने विषे प्रमाद रहितपणे प्रयत्न करो. के, जेथी तमने मोनुं शाश्वतुं सुख प्राप्त थाय. ते सुखनुं वर्णन थइ शके तेम नथी. तेम बतां जो तेना स्वरूपने जागवानी मरजी होय तो श्री आचारांगजी सूत्रना पांचमा लोकसार नामा अध्ययनमां जोइ लेज्यो. ॥ १०४ ॥ Jain Educationonal ************************ ww Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ ग्रंथना 20 मा तथा ६० मा पानानी पुंठिमां जणाव्यु ने के सागरोपमनुं तथा पुऊलपरावर्तन- स्वरूप ग्रंयने अंते जणावी शुं. ते ते शहां जणावीए बीए. * अति सूक्ष्मकालने एक समय कहे . तेवा असंख्याता समथे एक प्रावली पाय, तेवी (१६७७७१६) एक कोम समसग्लाख शितोतेरहजार बेर्शेने सोल पावलीये, एक मुहूर्त पाय . तेवा त्रीश मुहूर्ने एक अहोरात्रीरूप दिवस था Jail य. तेवा पंदर अहोरात्रीए एक पखवामियु थाय . तेवा वे पखवामिये एक महिनो थाय . तेवा बार महिने एक वर्ष थाय ने. तेवा असंख्याता कोमाकोमी वर्षे एक पेख्योपम थाय . तेवा दश कोमाकोनि पढ्योपमे एक अक्ष सागरोपम थाय. ॥ इति सागरोपम प्रमाणम्.॥ एज रीते एटले पूर्व कह्या तेवा दश कोमाकोमि सागरोपमे, नत्सपिणी / १३५ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX KXXX******************* Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने बीजा दश कोमाकोमि सागरोपमे, अवसर्पिणी पाय. ए बे मलीने वीश * कोमाकोमि सामरोपमे, एक कालचक्र थाय. एवा अनंता कालचके एक पुल परावर्त्तन थाय. ॥ इति पुजलपरावर्तन प्रमाणम् ॥ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX १ इहां पल्योपम त्रण मकारना . ते कहे . १ उधार पल्योपम. २ अशा पल्योपम. ३ क्षेत्र पल्योपम. तेमां वली एकेकना बादर अने सूक्ष्म एवा बे नेदले. तमांना अक्षा पल्यो पमनु स्वरूप जणावीर गए. केम के, या बादर अशा पल्योपने करीनेज जीवोनां पानां. कायस्थिति, कर्मस्थिाते, पुद्गलस्थिति आदिकनुं प्रमाण गणाय जे माटे, ते अधा पल्योपमना पण सूक्ष्म अने बादर एवा ब नेद , तेमां प्रथम बादर अक्षा पल्योपमर्नु स्वरूप कहीए बीए.* देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्रमा जन्मेला जुगलियांना बाल ते एवा के, जे जुगलने जन्मे एक घे यावत् सात दिवस थया होय, तेबा जुगालियाना केश ( वाल) लेश्ने तेना एवा ककमा all करवा के, ते ककडानो बीजो ककडो थर शके नहीं. तेवा वालाग्रने च्यार गाउनो लांबो, च्यार गाननो पहोलो अने च्यार गाननो उमो एवा कुवामां ते बालाग्रने एवा गंशीगंशीने जरीये के तेना उपर थश्ने चक्रवतिन सैन्य चाले, तो पण ते वालाग्र हाली शके नही. तथा XXXXXXXXXXXXXXXXX***** Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 10 ~ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अग्निये वली शके नही, तथा पाणीए करी जीजाय नही. एटले तेनी अंदर पाणी उतरी शके नही. तथा वायरे करी ते वालाग्र उमी शके नही, एवा गंशी नांशीने जरया होय, | परी ते वालाग्रनो एकेको ककमो सो सो वर्षे काढीए, ते काढता काढतां ज्यारे ते कूवा त | माम खाली थाय, सारे एक अधा बादर एल्योपम थाप. तेनां संख्यातां कोमाकोमि वर्ष *थाय. या दृष्टांत कथन मात्र . केम के, आ प्रमाण गणत्रीमा आवतुं नथीः गणत्रीमां तो सूक्ष्म अझा पल्योपम आवे ने. तेनुं स्वरूप नीचे कहीए गए. पूर्व कथा एवा जूगलियाना एकेका यालाग्रना, असंख्याता खंभ कल्पवा. ते वालाग्रमा * खेमे करी पूर्वे कह्या प्रमाणे, ते कूबो गंशी गंशाने जरीये. पनी तेमांथी पूर्वनी पेठे एकेकों वालनो ककमो सो भो वर्षे काहीए, परी ज्यारे ते कुवो तमाम खाली थाय, सारे एक सूक्ष्म अधा पल्योपम थाय. तेनां असंख्यातां कोमाकोमी वर्ष थाय. तेवा दश कोमाकोमी साग रोपमे एक अघा सागरोयम थाय. एपी तिना सागरोपमनुं प्रमाण आ जग्याए जाणं. आ * वा नो विशेष विस्तार श्री अनुयोगधार मूत्रमा तथा पांचमा कर्म ग्रंथमा ने. त्यांथी विस्ता | रना अथिये जाइलेवं. श्रा ग्रंथनो बालावबोध करनार कहे के,-- ************XXXXEXY Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********************** ॥ नपजाति वृत्तम् ॥ प्रबन्धचिन्तामणि, धर्मबिन्दु । श्रीदारिनशष्टक संघपट्टाः ॥ जापान्तरेणानियुता यतः स्युः । सोयं प्रजावो मयि संघदृष्टेः ॥ १ ॥ ॥ अनुष्टुप् वृत्तम् ॥ मागधी संस्कृतेऽकारिरम्नामज्जरी नाटिका ॥ जयतिदुयस्तोत्रे ज्ञानसारे तु गौर्जरीरी ॥ २ ॥ ॥ इति श्री जैनीय व्यापक, शास्त्री रामचंद्र दीनानाथ विरचित श्री वैराग्यशतको दंमन्वय सहित बालावबोध समाप्त. • ********************** Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपरा नपरी आ अमुल्य ग्रंथनी मागणी अवाथी आवृत्ति त्रीजी प्रसिह करवामां आवी ने. फक्त १००० हजार नकलः - सूचना श्रा ग्रंथमां प्रसिह करताना सीका शिवायनी को पण कॉपी (नकल) || वेचाती कोइ पण काणे जणाशे तेना नपर घटता इलाजो लेवामां आवशे. पुस्तक मळवानां ठेकाणा अमदावाद-कर्ता पासेश्री. " -राजनगर प्रीटींग प्रेस तथा जाणीता तमाम बुकसेलरो पासथी. मुंबाश-मांगरोल जैनसता.. पायधूणी पासे गोमीजीना मंदीर नजीक. " -बंदरमां. जीमशी माणेकनी दुकानेनी मला *XXXXXXXXXXXXXXXX**** - - १३४ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tech M.HN AAAEEN Presa***XXXXXXXXXSANKAKKkkkx**065 ॥जैनीय-वैराग्यशतक भापान्तरसहितं॥ ॥समाप्तम्॥ 93 HNDKX**********KEYXxxxxxxK*** KHETICORIANDE .... Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________