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________________ न एव नपनाति आगचंति रात्रयोऽतीताः नो मुलनं पुनरपि । जीवित १२ १० ११ ए १६ १५ १४ १५ नो हू वणमंति रश्न । नो सुलहं पुणरवि जीवियं ॥३॥ अर्य-श्री ज्ञानदेव स्वामीना पुत्र श्री नरतेश्वर, तेमणे तिरस्कार कर्या ए वा, अने राज्यना अर्थि एवा, पोताना प्रधागु पुत्रो प्रत्ये श्री आदीश्वर नगवान नपदेश करे , अथवा श्रीमहावीरस्वामी पर्षदा प्रत्ये कहे के, (संबुझेह के) अहो नव्यो ! तमे बुझो. (बोध पामो.) (किन बुझह के० ) केम तमे बोध न. Hश्री पामता? जे हेतु माटे जेमणे धर्म नथी कस्यो ते पुरुषोने (पिञ्च के०) म. | रण पाम्या पठी परत्नवने विषे (संबाही के ) बोधिबीज जे ते (खलु के०) नि चे (उचहा के०) उर्लन . शादी के, (राइन के) रात्री दिवस जे ते (हु के) | निश्चे (नवणमंति नो के०) गयेलां पागं आवतां नथी. तेम (जीवियं के) जीवि *त जे ते (पुणरवि के) फरीने पण एटले फरी फरी (सुलहं नो के०) सुलन न थी एटले संयमरूप जीवित घणुं उर्सन , अथवा (जीवियं के०) जीवित जेते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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