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________________ ******** वैo पुत्रनी स्त्री थर, माटे महारी वहु थ ॥॥ अने महारा जरतारनी माता थs, तेथी महारी सासु थ ॥५॥ अने महारा नानी बीजी स्त्री अश,माटे महारी ३३* शोक्य अश्॥॥ ए रीते आ बालकनी माता कुबेरसेना वेश्यानी साथे पोताना उ संबंध देखाड्या. ए प्रकारे आ अढार संबंध कहीने ते साध्वी, ते संबंधोनीखा तरी करवाने अर्थे, पोते व्रत ग्रहण कयुं ते अवसरे राखेली पोतानी वीटी कुबेरद नने आपती हवी. त्यार पनी कुबेरदत्त पण ते वींटी देखीने सर्व संबंध, विरुप ऐ जाणीने, तत्काल वैराग्य पामीने, पोतानी निंदा करतो सतो पोतानी शुद्धि | ने अर्थे, चारित्र ग्रहण करतो हवो. अने वली महा तप करतो हवो. तथा कुबेर सेना वेश्या पण ते प्रवृत्ति सांजलवा की प्रतिबोध पामी सती श्रावकनो धर्म अंगीकार करती हवी. त्यार पठी कुबेरदत्ता साध्वी, ए प्रकारे तेमनो नझार क रीने पोतानी प्रवर्तिनी पासे गइ, एटले पोतानी गुरुणी पासे गइ. अनुक्रमे ए सर्व जीवो, पोतानो धर्म सम्यक् प्रकारे आराधन करीने सजतिनां नजनार श्रयां, अर्थात् रूमी गतिमां गयां, ए प्रकारे अढार संबंध उपर कुबेरदत्तनुं दृष्टांत | XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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