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________________ लेखा य के०) घसवा पमेज . तेम या जीवने पण हाथ घसवा पके . एटले All पछी घणो पश्चाताप करवो प . ॥ ६ ॥ नावार्थ-अनंता जवरूप समुश्मा नटकतां जटकतां मनुष्य जन्मरूप का गे प्राप्त भए सते पण जेणे अहिंसारूप जिनधर्म न पाचरण कर्यो, तेने; जेम रणसंग्राममा युः६ करवा गएला एक धनुर्धारी पुरुषना धनुष्यनी पण तूटी ग Aarls, तेथी तेने जेम हाथ घसवा पख्या, तेम तहारे पण हाय घसवा पमशे, माटे हे जीव! जो तुं पण ती सामग्री सते जिनधर्मरूप नातुं नहि ग्रहण करे, तो तहारे पण मरणावस्याए पश्चाताप करवोज पमशे.ते या प्रकारे के.शेरे! में म ती सामग्रीए पण आ शुं कयु !!! के, परलोके जतां धर्मरूप नातुं कांय पण लीधुं नही! माटे हवे हुं शुं करीश! एवीरीते तहारे हाथ घसवा पमशे.वली जे मानवमां थोमो काल रहेवा माटे को पुरुष ज्यारे परदेश जवानो होय, | त्यारे ते पुरुष प्रथमथो नाता विगेरेनो एटलो बधो बंदोबस्त करी राखे ठेके, * अमुक जग्याए नतरी, ने त्यां अमुक नोजन करीशं. एवी रीतनो उराव क ***XXXXXXXXXXXXXXXXXX NI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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