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ए के, स्त्री, धन, पुत्र, निरोगीपणुं जगत्मा मान्यपणुं, तथा महोटी हवेलीन, अने खजनादिकनु अनुकूलपणुं इत्यादिक बधां सुख जोगववानी श्वा करे
, तेवामां तेमांश्रीज अणधायु, अगचिंतव्यु, चिंतु महाकष्ट आवी पझे .जे HAम के, पुत्रना सुखनी श्छा करवा जाय , तेवामां स्त्री मरी जाय, वली स्त्रीना
सुखनी चा करवा जाय , एटलामांच्य नाश थर जाय, वली पराणे कदा पिव्य मध्यं, तो शरीरे मांदो थाय, कदापि शरीरे साजो थयो, तो घर बली जाय, वली घर समु कराववा जाय, एटलामां चोरीनो, अथवा वजनादिकनो नपश्व थाय, माटे जवानीमां पण, सर्व प्रकारनी बरोबर व्यवस्था राखीने सुखनोगववा जाय, तोपण नोगवी शकातुं नथी. तो वृक्षावस्थामांतो क्याथीज नोगवाय? केम के, सर्व सुख नोगववानुं मुख्य साधन एवं जे शरीर, ते निर्ब ल, रोगी, कद्रुपु थ जाय छे. तेमज शास्त्रमा कहूं के, हाथ पग विगेरे अंग | थरथर ध्रुजे . तथा प्रांखे पूरुं देखातुं नश्री. काने पूरूं संजलातुं नथी, नाकमां * थी सीट नितरे डे, ने दांत पण हाली न . तथा पमी पण जाय . तथा खां
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