________________
स्थाननो तहारो निश्चय नथी. तोपण महारुं महारुं करीने मिथ्या अनिमान शु करवा करे ? ॥ ५॥
देवः नैरोयकः शति च कीटः पतंगः इति मानुषः एषः परावर्तते
XXXXXX*************
देवो नेरश्न ति य । कीम पयंगु त्ति माणुसो एसो॥ रूपीरूपवान् च विरूपः मुखजागी अखन्नागी च
१० ११ १३ १४ १५ १३ रूवस्सी य विरूवो । सुहानागी उखन्नागी य ॥५॥ अर्थ-हे जीव! तु केटलीएक वखत (देवो के०) देव श्रयो . तथा (नेरश्न के) केटलीएक वखत नारकी ए प्रकारे थयो रे. (य के०) वली (कीम के०) के टलीएक वखत क्रमियादिक कीमो थयो . तथा (पयंगु ति के) केटलीएक व खत पतंगियो ए प्रकारे थयो . वली (मागुसो के०) केटलीएक वखत मनुष्य * यो ठे. वली (एसो के) एज तुं (रूवस्सी के०) केटलीएक वखत रूपवंत श्र
KXXXXXXXXXXXX********
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org