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________________ IM दि दश दृष्टांते करी मुःख पामवा योग्य एवं (च के वलो (विजुलया चंचलं Mar ) विजलीरूप लतानी पेठे चंचलं एवं (तं के) ते, एटले ते योग्य एवं (मणु यत्नं के०) मनुष्यपणुं, तेने पामीने (धम्ममि के०) धर्मने विषे (विसीय के०) | खेद पामे (सो के०) ते (कानरिसो के०) कुत्सित (निंदित) पुरुष जाणवो. पण (सप्पुरिसो के०) सत्पुरुष (न के०) न जावो. ॥ ६ ॥ नावार्थ-जैनशासनमा प्रसिह एवां दश दृष्टांते कुर्लन एवो, अने विजलीPatell ना ऊबकारानी पेठे क्षणभंगुर एवो, ने जेमां को प्रकारनी पण खामी नश्री | एवो. एटले आ मनुष्यनो नव अढीहीपमा अयो, तेमांवली कर्मनूमीमां थयो, तेमा वली प्रार्य देशमां अयो, तेमा वली ननम कुलने विषे थयो, तेमां वली अ विकल पंचेंहिये पूर्ण अयो, तेमां वली निरोगी काया पान्यो,अने तेमांवली स गुरुनो अने सत् शास्त्र सोनलवानो जोग बन्यो; तेम उतां पण, जे पुरुषो, धर्म साधन करवामां प्रमाद करे, ते पुरुषो निंदा करवा योग्य थाय , पण ते स-1 त्पुरुषोनी पंक्तिमां गणवा लायक पता लगी. माटे हे जीव ! पूर्व अनुत्नव करे XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* - For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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