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________________ वै ने (न सक्कए के) न समर्थ वाय. (तह के०) तेम (जीव के) हे जीव! (मरणे श० ... ) मरण (संपत्ते के) प्राप्त थए सते एटले मरण नजीक आव्ये सते (धम्मो शक के०) धर्म जे ते (कह के) किंये प्रकारे (कीरए के०) करी शकाय? ॥ ३५ ॥ नावार्थ-हे आत्मन् ! ज्यारे (जवानी अवस्थामां) तहारे धर्म करवानो अK * वलर हतो, त्यारे तुं बीजे चाले चढी गयो, एटले विषयी जीवनी संगते पशुनी पेठे फोगट अवस्था गमावी. अने हवे ज्यारे शरीरनी शक्ति कीण थवाधी, नकामा जेवो अयो, अने वली ज्यारे तने कूतरानी पेठे, तदारांस्त्री पुत्रा दिके तिरस्कार कर्यो, त्यारे तुं पराणे धर्म साधन करवाने तत्पर थयो, पण हे * मूढ जीव! तुं एटलुं विचारतो नश्री के, हवे महाराश्री शुं बनवानुं ? जेम I च्यारे तरफथी घर बलवा मांझां, ने तेने होलवयाने माटे, जाणे कूयो खोदी पाणी काढीने, ते बलतुं घर होलवं, इत्यादिक विचार जेम फोगट डे, तेम शरी रनु सामर्थ्य गया पठी, धर्म साधन करवानो विचार, ते व्यर्थ . एम देखी तुं विचास्य के, धर्म साधन तो नानपणमांश्रीज, अभ्यास करता करतां प्राये घणे * HANI Jain Education Intel For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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