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________________ व - - मानी को वस्तु पण तदारी साये आववानी नथी. केम के, ते सर्वे, वस्तुताए असत् ते. माटे तेने तुं सत्यपणानी ब्रांति न करीश. ॥ ७० ॥ पितृपुत्रमित्रगृहगृहिणीनां जातं समूहः ऐहलौकिकं सर्वं निजस्य शुभे कल्याणे सहाये निमित्तं पियपुत्तमित्तघरघरणिजाय। इहलाअ सब नियसुहसहाय ॥ न अपातिप्रश्ने अस्ति कोपि तव शरणे त्राणे हे मूर्ख एकाक्येव सहिष्यसे तियफ्नरकःखानि १३ १४ १५ ११ ए २०१ ७ ६ न वि अदि कोइ तुह सर्राण मुस्क। इक्कल सहसि तिरिनिरय उक * अर्थ-(मुरक के) हे मूर्ख ! (इहलोभ केय) या लोक संबंधी (सर्व के०) सर्व एवो (पिय के०) पिता (पुत्त के०) पुत्र (मित्त के०) मित्र (घर के०) गृह * Ni (घरणि के) स्त्री, तेमनो (जाय के०) समूह जे ते (निय सुइ सहाय के०) पो *त ने सुख करवानो ने स्वन्नाव ते जेमनो एवो . एटले सौ पोत पोताना सुख ना अर्थी . परा (तिरि निरय उरक के०) तिर्यंच तथा नरक ते संबंधी दु:ख.INE - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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