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॥ नपजाति वृत्तम् ॥
प्रबन्धचिन्तामणि, धर्मबिन्दु । श्रीदारिनशष्टक संघपट्टाः ॥ जापान्तरेणानियुता यतः स्युः । सोयं प्रजावो मयि संघदृष्टेः ॥ १ ॥
॥ अनुष्टुप् वृत्तम् ॥
मागधी संस्कृतेऽकारिरम्नामज्जरी नाटिका ॥ जयतिदुयस्तोत्रे ज्ञानसारे तु गौर्जरीरी ॥ २ ॥
॥ इति श्री जैनीय व्यापक, शास्त्री रामचंद्र दीनानाथ विरचित श्री वैराग्यशतको दंमन्वय सहित बालावबोध समाप्त.
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