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________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | तानी स्त्रीचें नाम देतो देतो मरण पामीने सातमी नरकने विषे गयो. अने त्यां पण तीव्र वेदनानो अनुनव करतो सतो, ते स्त्रीनुं नाम वारंवार संन्नारतो सतो वेदना नोगवे . एवी रोते नोगनी प्रासक्ति त्याग करवी घणी पुष्कर ले.अने| केटलाएक महा सत्ववाला सनत्कुमार चक्रवर्ती जेबा पुरुषो तो, रोगनी वेदना | यये मते पण देहने तथा आत्माने जुदो समजीने एवं विचारता के, आ महारं | करेलुं कर्म मने नदय प्राव्यु , माटे महारेज नोगवq पमशे. एवो निश्चय करीने समता सहित कर्म नोगवे . पण मनमांपीमा नुत्पन्न श्रवा देता ननीय र्थात् आध्यान रौध्यान ध्याता नथी. अने वली एवं विचारे ने के, ॥ शार्दूलविक्रीमितवृत्तम् ।। उतों यः स्वत एव मोहसजिलो जन्मालवालोऽशुनो। . रागषकषायसंततिमहानिर्विघ्नबीजस्तथा ॥ रोगैरङ्कुरितो विपत्कु सुमितः कर्मधुमः सांगतं । मोढा नो याद सम्यगेष फलितो अस्वैरघोगामिनिः॥१॥ अर्थ-आ कर्मरूप वृक्ष पोते पोताने दाज वाव्यो , ने तेमां मोहरूप पा| KKARXXXXXXXXXX************ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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