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________________ ************* Jain Education Inte ********* ली या कुमार संसारना जये करीने उनि यो सतो एटले विरक्त मनवालो श्रयो सतो आापनी पासे दीक्षा लेवाने इसे बे. ते कारण माटे अमे आपने ग्रा शिष्य रूप जिका प्रत्ये श्रापीए बीए. आप पण आ शिष्यरूप जिक्षा प्रत्ये अंगी कार करो. त्यारे खामिए कहां, हे देवानुप्रियो ! जेम तमने सुख उपजे तेम, पण प्रतिबंध करशो नही, एटले ममता करशो नही. त्यार पी प्रतिमुक्तक कुमार जगवंतनुं वचन सांजलीने खुशी श्रयो सतो जगवंत प्रत्येत्रण प्रदक्षिणा करीने ने नमस्कार करीने उत्तर पूर्व दिशने विषे एटले ईशान कूणमां जश्ने पोतानी मैलेज आजरण माख्य अलंकार प्रत्ये मूकतो हवो. ते अवसरे माता, नज्व ल वस्त्रे करीने ग्रामरणादिक प्रत्ये ग्रहण करीने आंखो की प्रांसु मूक्ती की | अतिमुक्तक कुमारने ए प्रकारे कहती हवी. हे पुत्र ! पामेला एवा संजम जोगो ने विषे तहारे प्रयत्न करवो अने न पामेला एवा संजम जोगाने पामवाने घटना एटले रचना करवी. वली प्रवज्या पालवाने विषे पोताना पुरुषपणानो अ निमान सफल करवो अने प्रमाद तो करवोज नही. ए प्रकारे कही ने त्यार पी For Private & Personal Use Only *********************** jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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