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________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX** पुत्रो मे भ्राता मे । खजमो मे गृहकलत्रवर्गो मे ॥ शतिकृतमर्मशब्दं । पशुमिर मृत्युजन हरति ॥१॥ अर्थ-तुं रात्री दिवस एवं विचारे ले के, आमदारो पुत्र, आ महारो नाई, आ महारां स्वजन, आ महारूं घर, आ महारां स्त्रीआदिक वाल्हेशरी, परंतु ए प्रकारे बोलनारने जेम घातकी पुरुष, ३ ३ करता एवा बोकमाने हरण करे ; तेम मृत्यु जे ते, मे मे (महार महासे) करता प्राणीने पकीने ले जाय ॥ । माटे तेना उपर ममत्व करवायी नलटुं पाप बंधाशे, पण तेमांनु कोइ मरी जशे, त्यार तेमांधी को३ पण ते मरनारने राखवा समर्थ यतुं नश्री; एटज न हि पण, पोताना स्वार्थमां खामी आववाय), थोमा दिवस रुदन करी “गयेलाने जूली जg" ए रीवाज प्रमाणे तेज संबंधीयो तेने विसरी जाय जे. जेम पो. ताना वीश वर्षना पुत्रना मृत्यु समये फक्त मोहना नगलाश्री गाढ खरे लांबा रागे बुमो पामी) रुदन करनार अने गती कुटनार पिता, पोताना बीजा पुत्र* ना लग्न समये, ते मृत्यु पामनारने नूली ज३, वर्तमान समयना उत्साहमा पू- KXXXXXXXXXXXXXXXX*** १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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