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________________ न इतिपश्चातापे पिवति कालरवभ्रमरा जनाएवमकरंद पृथ्वीएवकमले र्न पीअ कालजमरो। जणमयरंदं पुहबिपनमे ॥७॥ अर्थ- के इति खेदे ! एटले पा घणी खेद कारक वार्ता ले. अर्थात् आ वात जे न जाणे तेने पश्चात्ताप घलो थाय ने. (काल नमरो के) काल रुप * मर जे ते (दीहर के०) दीर्ध एटले महोटुं (फणिंदनाले के०) शेषनाग रुप नालु ते जेनुं एवं, ने (महिअर केसर के) महिधर एटले पर्वत ते रूप ने केसरा ते जेने विष एवं, ने (दिसा महदलिल्ले के) दिशा रुप ले महोटां पत्र ते जेने विषे एवं पुहवि पनमे के) पृथ्वी रूप कमलने विषे (जणमयरंदं के) जनरुप मकरदने अर्थात् लोकरुप रसन (पीअर के) पीए ३.॥७॥ नावार्थ-लोकमां एवी प्रसिद्धि के, नमरो कमलमांयी एवी रीते रसले IA के, जेथी करीने ते कमलने लगार मात्र इजा न पाय, तेवी रीते पोताने खप जेटलोज-मधुरे स्वरे बोलीने श्रोमो योमोरस ले ने; परंतु आजग्याए तो तेना KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education in For Private & Personal Use Only Midw.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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