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________________ ENYAKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | (नसहं के) औषध (नबि के नश्री. (तं केश) ते अर्थात् तेवं (किंपिक) कांश पण (विनाणं के) विज्ञान. अर्थात् शिल्प चातुरी (नवि के) नथी.अर्थात् प. मता शरीरनी रक्षा करे, एवी कोइ पण वस्तु नश्री.॥७॥ नावार्थ-काल रूप सर्प, या शरीरनुं नकण करी ले, ते कालरूप सर्पने * निवारण करे एवी कोइ पण कला नथी. तथा काल रूप सर्प मशेली कायार्नु मेर नतारवा समर्थ कोइ पण औषध नथी, तथा जगतमां अनेक प्रकारनी शि* *प चातुरी , पण कोई शिल्प चातुर्य एवं नश्री के, जेनी काल रुप सर्प, केर. * लागेज नहीं. माटे हे जव्य प्राणियो ! मोटा मोटा समर्थ पुरुषोनां बज समान शरीरने पण काल रूप सर्प गली गयो ; तो आपणा रांक जेवानी काची कायानो श्यो जरुसो ? माटे शीघ्रपणे धर्म कृत्य करी ल्यो.॥७॥ दीर्घफणींद्रपवनाले महीधराएवकेसरे दिशएवमहादले ४ दीहरफणिंदनाले । महिअरकेसर दिसामहदलिल्ले॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only Jraoalljainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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