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काः काः विमंबनाः वधबधनादिविगोपनाः न प्राप्नुयात् जासहंःखं याभ्यस्ताः
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का का विमंबणान ।न पावए सहउकान |
अर्थ-(घोरे के०) घोर (लयानक) एवं (संसारकाणणे के) संसाररूप मदावनने विषे (निय के) पोतानुं (कम्म के) ज्ञानावरणीयादिक कर्म, ते रूप I (पवण के०) वायु, तेणे करीने (चलिन के०) प्रेरणा कर्यो एवो, अर्थात् नमा
मयो एवो (जीवो के०) आ जीव जे ते (उसहरकान के०) दुखे करीने सहन Pall करवाने अशक्य ने पुःख ते जेनुं एवी (का का के०) केश केश (विमंबणान के
वध बंधनादिक विटंबना तेने (न पावए के०) नथी पामतो? अर्थात् सर्वे विटंबनानने पामे . ॥ ए॥
नावार्थ-कोर पुरुष पोतानो लीघेलो नियम (व्रत) को अल्प परिषहथी। मेघकुमारनी पेठे नागवाने तैय्यार थयो . पण तेणे विचारयु के, प्रा वार्ता *गुरुने निवेदन करीने पठी महारो नियम मूकुं, एम धारीने जेटलाकमां गुरु
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