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नश्री संचय कर्यो.अर्थात् पोताना प्रात्मामां जिनधर्म बरोबर उसाव्यो नथी. (ते के०) तेवा (वराया के०) रांक पुरुषो जे ते. एटले अज्ञान कष्टने करनारा पुरुषो जे ते (मरणंमि के०) मरण (समुवयिंमि के) प्राप्त श्रये सते (पिछा के) पठी (सोअंति के०) शोक करे . के अरेरे! आपणे कांइ पण धर्म साधन कर्या विना परलोकने विषे क्यांश्री सुखी अश्शु!! इत्यादिक घणोज पश्चाताप करे डे.॥५४॥
नावार्थ-हे जीव! जेवी जोइए तेवी तने धर्मसाधन करवानी सामग्री मली, तोपण कुगुरुना नपदेशथी जिनाज्ञा रहित अनेक प्रकारनां अज्ञान कष्ट करी, या लोक तथा परलोक ए प्रकारे वे खोकनु सुख हारी गयो. केम के, लो. कमां मनावा पूजावाना अहंकारश्री, समज्या विना अज्ञान कष्ट की, तेथी प लोकमां तने घणोज पश्चात्ताप थशे. माटे थोड़ें पण जिनाणा सहित धर्मसाधन करवामां प्रमाद रहित था. अर्थात् *पांच प्रकारना प्रमादना वशश्री विरा
* १ मद, २ विषय, ३ कषाय, ४ निशा, अन ५ विकथा.
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