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दृष्टांत क े. के जेम वैमूर्यादि रतनो समूह जेमां रह्यो रे, एवारत्नाकरने पामीने एटले रत्ननी खाण पामीने कांतिरहित एवो, अने वली अल्प मूल्यवालो वो काचोकको लेवो शुं तहारे घंटे के ? अर्थात् पूर्वे को एवा रत्नाकरनो त्याग करीने, तेने बदले काचनो कक्रमो लेवो; ते घटेज नहीं. तेम प्रतिशे प्रप ने तु एवा विषय सुखने अर्थे रत्नाकर समान जिनधर्मनो त्याग करवो, | ते पंकित पुरुषने घटे नहीं. वली जेसे धर्मकृत्य नथी करयुं, तेने परजवमां सं जमरूप जीवित मलतुंज नथी. वली गएला एवा, ने धर्मसाधन करवाने योग्य एवा, रात्री दिवस जे ते, तथा यौवनादिक काल इत्यादिक पाठां प्रावतां नथी, | केमके, इंशदिकनुं पण त्रुटेलुं आयुष्य पातुं संधातुं नथी. माटे एवं जालीने रा. श्री दिवस धर्मं आराधन कर ॥ ७३ ॥
हवे सर्व संसारी जीवने श्रायुष्यनुं अनित्यपणुं देखा बे. राजस्था अपि त्यजति मानवाः
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बालाः वृद्धाः च पश्यत ३ ७
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महरा बुढा य पासह | गजलावि चर्यंत मालवा ||
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