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________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX* क वहालां पदार्थोने, अपश्चाए मूकीने मरण पामे . अने केटलाएक तो वृक्षा वस्थानां कुःख जोगवतां लोगवतां पराणे पराणे पग घशीने मरण पामे . व ली आं जग्याए मानव शब्द ग्रहण कर्यो , तेनु ए कारण के, नपदेश करवा योग्य होय, तेनेज मनुष्य कहीए. परंतु जे नपदेश देवा योग्य न होय, तेने तो मनष्यनी पंक्तिमां न गणवा, एम ग्रंथकारनो अनिवायचे. वली मनुष्यन आ-* युष्य अनेक प्रकारनां कारणो मलवाथी घगुंज चंचल , एम जगाववाने अर्थे सर्वे अवस्थामां मरण देखामयुं .वली श्री सूयगमांगसूत्रना प्रथम श्रुतस्कंधना बीजा वैतालीय अध्ययननी बीजी गाथानी दीपिकामांतया टीकामांकडं ने के, all त्रिपल्योपायुप्फस्यापि पर्यापत्येनन्तरमन्ममुहूर्तेनैव कस्यचिन्मृत्युरुपतिष्ठीति. अर्थ-त्रण पक्ष्योपमना आयुष्यवालाने पण, पर्याप्ति पाम्या पो अंतर्मुड़र्ने करीने कोश्क पुरुषने मृत्यु जेते प्राप्त प्राय .. वली श्री ठाणांगजी सूत्रना सातमा वाणामां कडं के, सत्त विहे आउ दे. पन्नत्तं तं जहा. *****XXXXXXXXXXXXXXXXXX --- - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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