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________________ जूतभ्यो बलिरिव कुटुंबं प्रदिप्तं हातानेन श जूअबलिव कुमुबं । पस्कितं हयकयंतेण ॥४६॥ अर्थ-(इयकर्यतेण के निंदा करवा जोग्य एवा जे यमराज (मा कर्म) तेणे (कुडुवं के) आगल कहेश ऐवा, सर्व कुटुंबने (नअवलिब के०) नूतने जे | Ni म बलिदान प्रापे. एटले जेम बाकमा बुदा बुटा फेंके, तेम (सुआ के०) पुत्र पु. VE त्रीयोने (अन्न केए) अन्य गतिने विषे. तेमज (गेहिणी के०) बल्लन्न स्त्रीने पण A (अन्नब के) अन्यगतिने विषे. तेमज (परिअणोऽवि के) परिजनने. एटले प रिवारने पण (अन्नन के) अन्यगति प्रिये (पस्किन केय) पहोचालयां उ. अ. अर्थात् पुत्र, पुत्री, स्त्री, अने परिजनाविक ने जूदी जूदा गतिमा फेंकी दीधांजे. . भावार्थहे प्रात्मन् ! या संसाहस्थ चकमोल उपर बहीने, तुं एम वि. चार करे ले के, सघडं कुटुंव महारा सेगु सदायकाल एक स्थितिमा रहे. पण आ सर्व कुटुंबन्ये महारे कोई दिवस वियोग पके नही. एवा नपायमांत रात्री . . - - Jain Education Hil al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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