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संसारएवचारकोगुप्तिगृहं तस्मात् नच नजिते मूढमनमः
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__संसारचारगान । नय नविज्जति मूढमणा नए॥युग्मम्॥
अर्थ-(संसारे के०) ज्यारगतिरूप संसारने विषे (संसरंत के पर्यटन करता एवा (जिआ के) जीव जेते (जम्मजरामरण के०) जन्म जरामरणरूप (ति स्ककुंतहिं के०) तीक्ष्ण नालाये करीने असयं के०) वारंवार (विहिजता के | | विधाता सता घोरं के०) रौः (आकरा)एवा (जुहं के०) कुःखने (अणुहवंति के अनुत्नवे . ॥॥ (तहवि के) तोयपण एटले पूर्वे का तेवु पुःख लोगवे ने तोयपण (मूढमणा के०) मूढ जे मन ते जेमनुं एवा. अर्थात् मूर्ख एवा, अने (प्र नागनुयंगकिया के०) अज्ञानरूप सर्प मश्या एवा (जीवा के०) जीव जे ते (कयावि के०) को वखत पण (हु के निश्चे (संसारचारगान के०) संसाररूप बंधिखानाथी (खणपि के०) कणमात्र पण (नय नविनंति के) नहेग नथी पा मता. एटले वैराग्य नथी पामता! आते केटलुं बधुं आश्चर्य? ॥ नए ॥
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