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सालाए कां के, ए प्रमारा घरमां नीपजे बे. बनेवीए पूग्धुं, ते केवी रीते निपजे बे? त्यारे सालाए शेलकी वादवानो विधि देखाड्यो. पी कर्षणीए जाएयुं के,. महारे घेर पण हुं वावीश. एम निर्धार करी घेर यावीने प्रथम जे घनंनुं खेत्र वाव्यं हतुं, तेनें नमी नांखवा लाग्यो. त्यारे लोकोएक के, आ तुं शं करेंगे? तक के, हुं मां शैलमी वावीश. त्यारे लोको कहेवा लाग्या के, आदेशमां पाणी नथी, माटे शेलकी थशे नही, तेम बतां जो तने शेलकीज वावबानी होय तो. एकवार जे आ घनंनी खेती करेली के ते कपावी ले, पी शेल की बनावजे. एवं लोकोनुं कहेतुं तेणे मान्युं नदी, अने शेलकी वावी ते थोमी नगी, एटलामा कूवानुं पाणी खूटी पमयुं, तेथी जे नंगेली शेलकी हत्ती ते पण सुकाइ गर. त्यारे पश्चात्ताप करवा लाग्यो, तेम हे स्वामिन्! तमे पण तुं सुख मूकीने बीजा नवा सुखनी चाहना करोगे तो पढी पस्ताशो !! एवी स्त्री योनी वाणी सांजली जंबूकुमारे कयुं के, पूर्वोक्त दृष्टांते पश्चात्ताप नही करूँ. परंतु जो नही समजशो तो तमेज पस्तावो करशो. हुं तो ललितांग कुमारनी
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