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________________ बै० ୦୫ ******** ******* भावार्थ-रे मूढ प्रात्मन् ! अनंत दुःखनां कारण एवा, स्वजन, विजव, धन इत्यादि विषे ममत्व क मदोटा दुःखनो नार तुं मांथे नपाले बे. पण वर्त मानकालना वजनादिकने जो तुं नृपकारी जालीने ममत्व करतो होय तो, एवीरीतना नृपकार करनार तो, अनंता जवमां अनंतां स्वजनादिक थयां बे. | माटे ते खजनादिकने विषे तुं केम ममत्व नथी करतो ? अने ते स्वजनादिकना श्या हवाल थया हशे ? तेनो पण लगार मात्र विचार नथी करतो ! वली फक्त आज जवना स्वजनादिकने अर्थे राग द्वेषे करीने खेती, व्यापार, अने सेवादिक के, जमां प्राणीनो नपघात थाय, एवी न करवा योग्य क्रिया, श्रा जीवकर्या करे बे. जैम फरशुरामे अनंतवीर्य राजामां आसक्त बएली रेणुकानामे पोतानी मातानुं मां कापी नांख्यं. तथा तेज फरशुरामे पोताना पिता उपर राग हो - वाथी एकवीशवार नत्री पृथ्वी करी. वली कोशिक राजाये राज्यना लोने क रीने पोताना पिता जे श्रेणिक राजा, तेमने बंधी खानामां नांख्या, तेमज पोतानी मनोवृचि प्रमाणे चालवामां ग्ररुचण करनार जालीने, चूलली. राणी ये Jain Education International For Private & Personal Use Only ***** TO ११०४ www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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