________________
-
एवं
मनु नानां
जीवित
समयमपि हे गौतम मा प्रमादीः
*********************
एवं मणुप्राण जीवियं । समयं गोयम मा पसायए ॥७॥
अर्थ-(जह के) जेम (कुसग्गे के०) मानना अग्रनागने विषे (नसविंधए * के०) झाकलनो बिंदु जे ते (लंबमाणए के०) लांबो यतो सतो एटले वायुवके *
पमवानी तैयारीमा आवेलो (गोवं के) थोमो काल (चि के०) रहे . (एवं के०) ए प्रकारे (मगुाण के०) मनुष्य जे तेमनु (जीवियं के०) जीवित जे ते चंचल जाणवू. माटे श्री महावीरस्वामी गौतमस्वामी प्रत्ये* कहे के, (गोयम के०) हे गौतम! (समयं के) एक समय मात्र पण (मा पमायए के) प्रमाद न करीश. ॥ ७ ॥
नावार्थ-श्री महावीरस्वामी गौतम प्रत्ये कहे ने के, हे गौतम! एक सम____* आ वार्ता श्री नत्तराध्ययन सूचना दशमा अध्ययनमां ने. त्यांथी विस्तारना आर्थि पुरुषाए जाइ दे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org