SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *** ************ मरमी नांखी. माटे हे जव्य जीवो ! कहो ! ते पोपटनुं ज्ञान केंबुं कहेवाय ? तेम या सर्वे लोको मूखे एम बोले वे के, जीववुं जलना बिंदु जेवं चंचल बे. एवं बोले तोयपण, जीववाने माटे अनेक प्रकारना न करवाना योग्य एवा घणा | उपाय करे बे. अने वली एम बोले वे के, या संपत्तियो पण पालना तरंगनी पेठे अस्थिर बे, परंतु तेज संपत्तियोने राखवाने माटे. सन्मार्गने विषे वापरवामां घणुंज कृपणपणुं करे बे, घने वली एम बोले वे के, स्त्रीयादिकनो जे प्रेम बे, ते स्वप्न समान बे, एवी रीते बोले बे. परंतु ते स्त्रीयादिक पदार्थोनो ज्यारे नाश थाय बे, त्यारे खरा अंतःकरणमी लांबे रागे पोको मूकीने रुदन करे बे. माटे दे नव्यप्राणियो ! तमे विचारो के, श्री ज्ञान केवुं कहीए ? माटे ग्रंथकार एम कहे बेके, जो एम तमे जाणो बो, एटले, पूर्वे कहेली त्रण वस्तुने प्रतिशे जो चंच व जाणो बो, तो पूर्वेकहेला पोपटिया ज्ञानने मूकीने, तमे खरा अंतःकरणथी अनुभव ज्ञान करो एटले तमारा कह्या प्रमाणे तमे वर्त्तो, अर्थात् ते खोटाने खो ढुं जाणीने, अने एक जिनराजना वर्मने साचो जालोने, तेने विषेनद्यम करो. Jain Education International For Private & Personal Use Only ************************ www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy