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hoi स्वर्ग एटले देवलोक अने अपवर्ग एटले मोक तेना सुखरूप ( फलाएं के ० ) फलनो (दाइगो के ) आपनारो बे ॥१००॥
जावार्थ - या जिनधर्मरूप कल्पवृक्त अपूर्व वे एटले प्रसिद्ध कल्पवृक्ष तो, फक्त या लोकने विषे रहेलां पुलिक सुखनेज आापनार बे. परंतु या धर्मरूप कल्पवृक्षतो, स्वर्गादिक फलने तथा मोह फलने आापनार बे. माटे अपूर्व कल्प वृक्ष को. एवं जाणीने तेनोज आश्रय करवो. ॥१००॥
धर्मः बंधुः सुमित्रं च धर्मः च परमः गुरुः
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४ ३ ६. ५ ७
धम्मो बंधु सुमित्तो य । धम्मो य परमो गुरु ॥
मोक्षमार्गवृतान धर्मः परमः स्वदनः रथः ११
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मुस्कमरपट्टा | धम्मो परमसंदणो ॥ १०१ ॥
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अर्थ-रे जीव ! (धम्मो के०) या जिनधर्म जे ते ( बंधु के ० ) बंधु (जाइ) स
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