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________________ - वै - रूपे. अने (य के) वली (जाया के) स्त्री जे ते, नवांतरे (माया के) मातारूपे, अने (य के) वली ( पिया केए) पिता जे ते, नवांतरे (पुत्तो के) पुत्ररूपे पण (जायर के) याय ले. अर्थात् प्रा जीवनी एक सरखी स्थिति नथी रहेती. इत्यादि अनवस्था जाणवी ॥ २ ॥ नावार्थ-हे जीव! संसारमा सर्वे जीव कर्मने वश . माटे तेमनुं स्वरूप सदाकाल एकरूपे रहेतुं नयी. एज संसारनो विषम वत्नाव जे. कारण के, जे मा *ता, ते नवांतरे मातारूपेज नथी थती, परंतु तेज माता स्त्रीरूपे पाय .अ ने जे स्त्री एटले पोतानी नार्या ले ते जवांतरे मातारूपे थाय . पण नार्यारूपे * नत्पन्न नश्री यती. अने जे पिता , ते नवांतरे पितारूपेज नथी अतो, परंतु पुत्ररूपे पण नत्पन्न श्राय रे. माटे. जेना नपर तुं आज प्रीति राखीने तहारो बधो । जन्मारो तेनुज नरण पोषण करवामां, पशुनी पेठे आ मनुष्यत्नवने एले गमा वे . पण एम विचार नधी करतो के, एज महारां केटलीएक वखत शत्रु परने तेनए मने छेदन, नेदन तामनतर्जन, घातपातादिक अत्यंत वेदना नपंजावी E***XXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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