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________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX यएला एवा जीवाणके) जीवोने (संसारेके) संसारने विषे (जंकेजे संविहाणं | के) संविधान, अर्थात् एकेंशियादिक नेद (न संनवर के) प्राप्त श्रयेलो नश्री संत वतो एम, (तं नचिके) ते नथी. अर्थात् सर्वे एकेंशियादिक नेद ए जीवने थएला संनवे .॥ १०॥ | नावार्थ-काल, कर्म, जीव, अने संसार ए सर्वेनु अनादिपणुंडे, माटे आ *जीव कर्मना वशे करीने अनादि कालनो कालचक्रने विषे परिभ्रमण करतां क. रतां संसारने विषे सधला एकेंशियादिक नेदने पामी चूक्यो जे. पण एवं न कही शकाय के, अमुक नंद नश्री पाम्यो. माटे हे लव्य प्राणियो! आज तमे अ. हंकार करोडो, पण तमे तो केटलीएक वखत गधेमा पण श्रया गे, कूतरा पण | अया लो, अने बली ज्यारे बोर मूला मोगरी आदिकनी जातिमां नत्पन्न आया Pal त्यारे तो तमने न्हानां गेकरांए पण दाणा साटे वेचाथी लीधा, एटटुंज नही पण नपर माग्यामा पण गया; यावत् विष्टाने विषे कीमापणे पण नत्पन्न था चूक्या हो. तेना तेज तमे, आज शेर शाहूकार बनीने बेग गे. माटे तमे सर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only A jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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