SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX के०) केटला काल सूधी (कीलसि के०) क्रीमा कररीश ? (जन्न के) जे शरीररूपवाव्यने विषे (पश्समयं के०) समय समय प्रत्ये (कालरहढे घमीहि के) कालरूप रहेंटनी धमीयो वके (जीवियंनोहं के) जीवितरूप जलनो प्रवाह (सोसिज के) शोष पामे . अर्थात् सूका जाय . ॥ ए ॥ लावार्थ-जेम रहेंट मे वाव्यमांथी जेम जेम पाणी काढीए, तेम तेम से पाली नई अतुं जाय .तेम हे जीव! ते पण जेटलं आयुष्य बांधीने जन्म ली घोडे, ने तेमांधी जे जे समय जाय , तेटलुं आनखं न अतुं जाय . कहेव त के, मावाप जाणे के, महारो दिकरो महोटो थाय से; पण ते दिवसे दिवसे आनखं घटवाथी नहानो यतो जाय . ए प्रमाणे विचारतां तो, आनखानो अंत आवतां वार नहि लागे. केमके, समये समये घटवापणुं ले माटे.जेमके, कोइने शूली देवा लश् जाय , अने ते शूली सो मंगल छेटो . त्यारे ते माणस जेम जेम शूली सन्मुख पगलां नरे , तेमतेम तेने मृत्यु नजिक नजिक आवतुं जाय - .प्रमे ते वखत तेने खानपानादिक काश्पण गमतुंनश्री.केमके, एने मृत्यु नक्की । MARA Jain Education Ind i a For Private & Personal Use Only ENJv.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy