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________________ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX (हु के) निश्चे (पुणो के) फरीथी (नियत्नंति के) पागं प्रावतां (न के) नथी. नावार्थ-एक कालरूप चंमाल , ते दिवस रात्री- जqावयूँ तेरूप, बैंक *ना लसरकावमे करीने मनुष्यना प्रानखारूप सूत्रना पिंझमे शीघ्रपणे केले . एटले आनखाने जलदी घटामे. माटे हे प्रात्मन् ! ते पाचखामांश्री गयेKाला रात्री दिवस कदिपण पाग आवता नथी. जेम आ मंथ उपावीने प्रसिप * यानी तिथि विक्रम संवत १७ ना कार्तिक शादि ५ (ज्ञान पांचम) ने सोम-1 वार हतो. हवे ते वर्षनी तेज तिथि, वार, पाखा जन्मारामां फरीथी पाववानो * नथी, तेम हे नव्य जीवो! आ गएला दिवस रात्री पण, तेनी पेठे पाग आव-1 वाना नथी. एटले गया ते तो गयाज!! एवं जाणीने या धर्मकार्य तो काले कर रीशुं, एम नही करतां, ते धर्मध्यान प्रमाद रहितपणे आजज करवू. ए उपदेश. ॥ नपजातिवृत्तम् ।। - यथा इहलोके सिंहः श्व मृगं गृहीत्वा मृत्युः नरं नयति निश्चयेन अंतकाले २. १३ ५ ६ ७ ए ११ ७. १० । जहे ह सीहो व मियं गहाय। मच्च नरं णेश हु अंतकाले ॥ KkKXXXXXXXXXX***** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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