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________________ रनी पेठे नाश पामे तेवू दे. वली (जए के) जगत्ने विषे (जीअं के) जीवित शल जे ते (विद्युलयाचंचलं के) वीजली रूप लतानी पेठे चंचल ने. एटले जेम वी जली क्षणमात्र देखाइने पठी नाश पामे डे, तेम जीवित पण थोमा कालमां नाश पामे छे. अने (च के) वली (तारुनं के) जवानोपणुं जे ते (संझाणुरागसरिसं के०) संध्याकालना नाना प्रकारना रंग सरखं, एटले संध्याकाले आकाशमां पंचवर्णा अनपटलना रंग, उत्पन्न थाय . तेना जेवू (खणरमणीअं के) | कणमात्र सुंदर देखाय तेवू . ॥ ३६॥ लावार्थ-जेम संध्याकाले अनेक प्रकारना वादलांना रंग थाय , ते कण* मात्र देखाइने वायुना प्रयोगयी नाश पामे . वली जेम जलकमल (पुमरीका दि कमल) अने स्थलकमल (गुलाबनां फूल आदि) केवां सुंदर प्रफुलित देखाय ले? परंतु तेज फल, बेत्रण दिवसमां एवां करमाइ जाय ने के, तेनी कां पण शोना रहेती नथी; तेम जवानी अवस्थामां पण शरीर, पुष्पनी पेठे खीलेटु दे। खाय डे, अर्थात् मोहनुं कारण था पमे . परंतु तेनु तेज शरीर, वृक्षावस्थामा ५३ *skKXXXXXXXXXXXXXXXXXXX 11ZNZAZNZZ0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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