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(परिजावयामि के०) प्रावो विचार करूं के (जं के०) जे हुँ (धम्मरहिन के) धर्म रहित अयो सतो (दिअहा के०) दिवसोने (गमामि के०) 'फोकट केम गमावू .!!! अने वली (गेहे के) शरीररूप घर (पलित्ते के०) बलवा मांस ते (अहं के) हुं (किं के) क्या माटे (सुयामी के०) सूर रहुं बुं! अने (मनतं के) दामता एटले शरीररूप घरनी साये बल। मरता एवा (अप्पाणं के) आ मानी (उवस्कपामि के०) नपेक्षा केम करूं !!! अर्थात् देहनी साधे रहेला बलता प्रात्मान। हुँ रक्षा केम नथी करतो !! इत्यादि प्रात्मन्नावना तुं केम ना वतो नश्री ! ॥ ३॥ | नावार्थ-शास्त्रने विषे सर्व इत्यान करतां आत्म हत्या महोटो गणी के. ए Mil टले जागी जोइने प्रात्मानु बगाम, अर्थात् बती सामग्रीए पण आत्मसाधन
न करवं. अने रात्रि दिवस देहादिक परनावमांज रज्यु पच्यु रहेवू; ते शुं प्रा. मानी घात करी न कहेवाय ? अर्थात आत्महत्याज कद्देवाय !! माटे. बधो रात्रि दिवसतो संसारना वेगमा चढी जतां कांश पण विचार न आव्यो, पण पा
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