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________________ बै० - ( घणकम्मपास के०) निविक कर्मरूप पसाए एटले गांव्योए बं घायेलो एवो (जीवो के०) जीव जे ते (जवनयर के०) संसाररूप नगरना (च२३ | उप्पहेतु के०) चौटाने विषे. अर्थात् घ्यार गतिरूप चौटाने विषे (विविहान के०) अनेक प्रकारनी दुःख दाइ एवी (विबलान के०) विटंबनाने (पाव के) पामे | बे. ए देतु माटे ( इ के०) ए संसारने विषे (से के) ते प्राणीने (को के) कोए (सरणं के०) रक्षण करनार बे ? अर्थात् कोइ पण नथी. ॥ १६ ॥ जावार्थ - हे प्राणिन् ! आा जीव घणां कर्मरूप पासबंधी बंधायेलो एवो स तो प्यार गतिरूप संसारना चोगानमां (चौटामां) अनेक प्रकारनी शरीरने त Marna खदायक बंधनादिरूप विटंबनाने पामे बे. त्या तने रक्षण करवा hi समर्थ! र्थात् ते जीवनी रक्षा करनार धर्म विना बीजुं कोई पण स |मर्थ नी ॥ १६ ॥ घोरे . ‍ ३ घोरं मिगप्रवास | कलम जंबाला सुइबीजचे ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education Inter *** गर्जना से जनरम्यसमूह एव जंवालः कर्दमस्तेन शुचिबीजत्से ४ ********** TO १३ ainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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