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________________ श्री वीरस्वामीने पूठी निका लेवाने अर्को नगर मध्ये पाव्या, ते अवसरे बोकराउनी संगारे रमतो एवो अतिमुक्तक कुमार, गौतमस्वामीने देखीने ए प्र कारे पूडतो हवो के, “तमे कोण गे? अने केम फरो बो?" एम पूले सते गौ* नमस्वामीए कह्यु के, "अमे श्रमण बीए, अने जिक्षाने अर्थे फरीए बीये.” त्यारे कुमार बोल्यो. "हे पूज्य ! प्रायो, हुं तमने निका अपावु.” एम कहीने ते कुमार * गौतमस्वामीनी आंगलीए वलगीने पोताने घेर आव्यो. ते अवसरे श्रीदवी घणी खुशी यश्सती नक्तिये करीने गौतमस्वामीने नमस्कार करीने प्रतिलानतीनवी, एटले आहार पाणी प्या. त्यार पी अतिमुक्तक कुमार फरीने ए प्रकारे तो इवो के, “तमे क्या रहोगे?" त्यार पठी गौतमस्वामी कहेता इवा. * "हे लइ! जे नद्यानमां अमारा धर्माचार्य श्री वमानस्वामी वसे ले त्यां अमे* वतीए बीए.” ए, कह्यु, ते अवसरे ते कुमार बोल्यो. "हे स्वामिन् ! तमारी साथे श्री वीरस्वामीने वंदन करवा माटे हुँ श्रावं?" त्यार पनी गौतमस्वामी (************** K****XXXXXX ******** Jain Education in lahal For Private & Personal Use Only D iljainelibrary.org
SR No.600048
Book TitleVairagyashatakama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra D Shastri
PublisherRamchandra D Shastri
Publication Year
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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