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अलबेली आम्रपाली ७ प्रस्तुत की कि वह अपनी रूपशालिनी कन्या को महान् नर्तकी बनाना चाहती
महानाम ने अपनी प्रियतमा की इच्छा को स्वीकार किया। पद्मा ने आम्रपाली को नर्तन-कला सिखानी प्रारम्भ की।
ज्यों-ज्यों आम्रपाली बड़ी होती गई, पद्मा ने संगीत, नृत्य-कला आदि में प्रवीण आचार्यों को अपने भवन में निवास स्थान देकर आम्रपाली को नयी-नयी तालीमें देने लगी।
दिन बीते। महीने बीते। वर्ष बीते। आम्रपाली बारह वर्ष की हो गई। इसके तेजस्वी नयन शुक्र तारा को भी लज्जित करते हैं, ऐसा सबको प्रतीत होने लगा। इसका अंग-प्रत्यंग नृत्यमय और संगीतमय बन चुका था। ___ आम्रपाली को श्रृंगार, नृत्य और संगीत की शिक्षा देने वाले सभी आचार्य अपने आपको धन्य मानने लगे।
शिष्य की प्रवीणता को देख, गुरु को अपनी कला मूर्त होती दीखती है । वे प्रसन्न होते हैं, यह देखकर कि उनकी कला रंग दिखा रही है और उनका प्रयत्न साकार हो रहा है ।
किन्तु विधि की विडम्बना ! पद्मा अपनी प्राणप्यारी पुत्री आम्रपाली का पूर्ण विकास नजरों से नहीं देख सकी। वह अचानक चल बसी। मात्र तीन दिन रोगाक्रान्त रहकर, वह उस भरे-पूरे भवन को छोड़कर चली गई।
आम्रपाली ने देखा, सुना। वह उस समय केवल बारह वर्ष की थी। वह मां के शव से लिपटकर रो पड़ी। उसके रुदन से सारा भवन प्रकम्पित हो गया । मानो कोई बड़ा भूचाल आया हो।
आम्रपाली मातृस्नेह से वंचित हो गई। महानाम के हृदय पर वज्र का-सा आघात लगा।
अब महानाम को दो कर्तव्य निभाने पड़ रहे थे। एक पिता का कर्तव्य और एक मां का कर्तव्य ।
जिसकी तलवार शत्रुओं के रक्त से अनेक बार स्नान कर चुकी थी, वही महानाम केवल कन्या के लिए अपने महान् दायित्व से निवृत्त हुआ था।
जब आम्रपाली चौदह वर्ष की हुई, तब महानाम को गणसभा का निर्णय याद आया और वह एक शल्य की तरह चुभने लगा। उसका हृदय टूक-टूक हो गया, शतखंड होकर बिखरने लगा। क्योंकि गणसभा के निर्णय को कोई भी व्यक्ति अस्वीकार नहीं कर सकता था।
दो वर्ष और बीत गए। ___ आम्रपाली का यौवन शरीर से फूटकर बाहर निकल रहा था। प्रत्येक व्यक्ति उसके यौवन की लालिमा से हतप्रभ हुए बिना नहीं रहता था।