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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ६. शुद्धि के १० भेद-१. आलोचना २. प्रतिक्रमण ३. तदुभय ४. विवेक ५. व्युत्सर्ग ६. तप ७. छेद ८. परिहार ९. उपस्थापना और १०. श्रद्धान।
७. संयम के १० भेद--५ प्रकार का प्राणी [एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों की रक्षा करना] तथा पाँचों इन्द्रियों को वश में करना ५ प्रकार का इन्द्रिय, इस प्रकार इन्द्रिय संयम के ५ भेद और प्राणी संयम के ५ भेद इस प्रकार कुल संयम के १० भेद ।
अथ सर्वातिचार-विशुद्धयर्थ रात्रिक ( देवसिक) प्रतिक्रमण क्रियायां, कृत-दोष निराकरणार्थ पूर्वाचार्यानुक्रमेण, सकल कर्म क्षयार्थ भाव पूजावंदना-स्तव समेतं आलोचना सिद्धभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।
अन्वयार्थ ( अथ ) इसके बाद ( अहं ) मैं ( सर्व अतिचार विशुद्ध्यर्थं ) समस्त अतिचारों की शुद्धि करने के लिये [ रात्रिक-दैवसिक प्रतिक्रमण क्रियायां ] रात्रि-दिन में होने वाली प्रतिक्रमण की क्रिया में ( वृत्त-दोष-निराकरणार्थं ) किटो दोषों के निराकरण के लियो ( पूर्वाचार्यानुक्रमेण ) पूर्ववर्ती आचार्यों के अनुसार से ( सकल-कर्म-क्षयार्थ ) सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करने के लिये ( भाव पूजा वन्दना स्तव समेतं ) भाव पूजा, वन्दना और स्तवन सहित ( आलोचना सिद्धभक्ति-कायोत्सर्ग ) आलोचना सहित सिद्धभक्ति पूर्वक ( कायोत्सर्ग ) कायोत्सर्ग को ( करोमि ) करता हूँ।
विशेष—प्रात:काल रात्रिक सम्बन्धी प्रतिक्रमण के लिये रात्रिक शब्द का प्रयोग करना चाहिये और अपराह्न में दिवस सम्बन्धी प्रतिक्रमण के लिये दैवसिक शब्द का प्रयोग करना चाहिये।
(इति प्रतिज्ञाप्य ) इस प्रकार प्रतिज्ञा करके, यहाँ नमस्कार कर तीन आवर्त और एक शिरोनति करके ( णमो अरहताणमित्यादि सामायिकदंडकं पठित्वा ) णमो अरहताणं आदि सामायिक दंडक पढ़कर ( कायोत्सर्ग कुर्यात् ) कायोत्सर्ग करें।
णमोअरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं । णमो उवमायाणं, णमो लोए सब्यसाहूणं ।।