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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अवस्थाएँ, चेतन व अचेतन २ प्रकार की स्त्री—इन सबका परस्पर गुणा करने से शील के १८००० भेद निकल आते हैं।
[ १०x१०४५४३४३४२४२-१८००० शील के भेद]
१३ प्रकार का चारित्र- पाँच महाव्रत, पाँच समिति और मन गुप्ति, वचन गुप्ति तथा काय गुप्ति-५+५+३-१३ ।
८४ लाख उत्तरगुण– हिंसादि के भेद २१, अतिक्रमादि ४, काय १०, धर्म १०, शील की विराधना के भेद १०, आलोचना के भेद १०, शुद्धि के भेद १० = २१x१४४ १०x१०x१०x१०x१०-८४००००० |
हिंसादि के २१ भेद....... मणीवध, : याद, . अल्लादान, ४. मैथुन, ५. परिग्रह, ६. क्रोध, ७. मान, ८. माया, ९. लोभ, १०. भय, ११. अरति, १२. जुगुप्सा, १३. रति, १४. मन दुष्टत्व, १५, वचन दुष्टत्व, १६. काय दुष्टत्व, १७. मिथ्यात्व, १८. प्रमाद, १९. पैशुन्य, २० अज्ञान और २१. इन्द्रिय अनिग्रहत्व ।
२. अतिक्रमादि ४.---१. अतिक्रम- मन की शुद्धि की हानि । व्यतिक्रम-शीलव्रतों का उल्लंघन । अतिचार-विषयों में एक बार प्रवृत्त होना और अनाचार—विषयों में अति आसक्ति । कहा भी है—
अतिक्रमो मानस-शुद्धि-हानि, यतिक्रमो यो विषयाभिलाषः । तथातिचारः करणालसत्वं, मंगो ह्यानाचार इह व्रतानाम् ।।
३. काय के दस भेद-१. पृथ्वीकायिक २. जलकायिक ३. अग्निकायिक ४. वायुकायिक ५. प्रत्येक वनस्पति ६. साधारण वनस्पति ७. द्वीन्द्रिय ८. त्रीन्द्रिय ९. चतुरिन्द्रिय और १०. पंचेन्द्रिय।।
४. शील की दस विराधना-१. स्त्री संसर्ग २. प्रणीत रस सेवन (सरसाहार ) ३. शरीर संस्कार ४. कोमलशयनासन ५. सुगन्ध संस्कार ६. गीत वादिन श्रवण ७. अर्थ ग्रहण ८. कुशील संसर्ग ९. राजसेवा और १०. रात्रिसंचरण।
५. आलोचना के १० दोष-१. आकम्पित दोष २. अनुमानित दोष ३. दृष्ट दोष ४. बादर दोष ५. सूक्ष्म दोष ६. छिन्न दोष ७. शब्दाकुलितदोष ८. बहुजन दोष ९. अव्यक्त दोष और १०. तत्सेवी दोष ।