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( १२ )
'अश्वम् नैव गजं नैव सिंह नैव च नैव च ।
अजा सुतं बलिंदधात हा देवो दुर्बल घातकः॥ अर्थात आज तक किसी भी मानव ने देवों को घोड़े की बलि नहीं दी और न ही हाथी, सिंह आदि बलवान जानवरों की बलि तो नहीं दी और न ही उनका नाम लिया आश्चर्य तो इस बात का है कि गरीब, दुर्बल बकरी के बच्चे की आहुति और देवों को बलि दी जाती है । खेद है कि देवता भी दुर्बल पशुओं को बलि चाहते हैं।
सत्य तो यह है कि "देवोद्देशेन यथा विधी पूजोपहार त्यागो. बलि" अर्थात देवो के निमित्र से विधी पूर्वक पूजा की वस्तुओं का त्याग करना, उसी का नाम है बलि । अर्थात भक्त की ओर से देवी-देवता की प्रीति के लिये जो समस्त प्रकार की पूजा की वस्तुएं भेंट की जायें उसका नाम है बलिदान।
राजबोल पॉडेय ने तो यहां तक लिखा है कि स्वयं वेदों में देवताओं की शक्ति में अविश्वास किया गया है। उपनिषदों ने वेदों की गणना अपरा, (निचली) विद्या में की है और आत्मज्ञान के लिये त्रयी* (तीनों वेद) और कर्मकाँड को आवश्यक नहीं समझा है।"१
वेदों में जो यज्ञों के नाम पर पशु बलि देकर माँस खाने की छूट है उसका खण्डन तो मनुस्मृति में भी किया गया और वेदों के मानने वाले मनुस्मृति को झूठा नहीं मान सकते क्योंकि वेदों में मनु को काफी प्रशंसा की गयी है.। अब जो लोग यह तर्क देते हैं कि अविधि माँस नहीं खाना चाहिये परन्तु .. विधि माँस खाने में कोई हर्ज नहीं तो उनका यह कथन सर्वथा. अनुचित है । १. भारतीय इतिहास को भूमिका पृ० ९३ * प्राचीन काल में वेद तीन ही थे इसीलिये प्राचीन काल में वेदों को वेद त्रयी और वेद विद्या को त्रयी विद्या लिखा है। विशेषज्ञों का मत है कि अथर्व वेद की रचना तांत्रिक काल में हुई है।
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