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( १६२ ) — कृति में मुगलकालीन जैनाचार्यों की परम्परा और शासकों जन समुदायों पर उनके साधू-प्रभावों का व्यापक लेखा-जोखा है । अकबर तो मुगल सम्राटों में महान है ही इसलिये कि उसने सभी धर्मो को समाद र प्रदान किया था। उसकी धर्म नोति सहिष्णुता और संस्कृति पर क थी जिसकी कि चर्चा बहवधि पर्याप्त मिलती ही है। अकबर के अतिरिक्त जहाँगीर और शा जहाँ की नीतियों की चर्चा है। निष्कर्ष बहुत नवीन नहीं हैं, हाँ सामग्री और नवीन स्त्रोतों का अवश्य ही विपल समावेश कृति में है। वस्तुत: लेखिका का अध्यवसाय जितना इस कृति को पूर्णता प्रदान करता है उतना ही श्रेय श्री काशीनाथ सराक
और उनके शोध-संस्थान को भी दिया जाता है कि इतनी पठनीय और मननीय कृति प्रकाश में आ सकी है। आज के इस युग में जबकि जीवन मूल्यों का हनन सर्वत्र, सर्वभावेन हो रहा है, ऐसी कृतियों की प्रासंगिकता महत्वपूर्ण और महनीय है। क्या ही अच्छा ही देश के विभिन्न अंचलों क्षेत्रों में जो ज्ञान राशि का संचित कोष इतस्तत: बिखरा पड़ा है उसे नीनाजी जैसे साधक साधिकाएँ सहेजे सँवारे और प्रकाश में लाए।
दैनिक ब्रिगेडियर, उज्जैन
८ दिसम्बर, १९९१ ९. डॉ. कु नीना जैन ने अपने प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में मुगल सम्राट अकबर, जहाँगीर व शाहजहाँ की धार्मिक नीति का विवेचन करते हुए उक्त बादशाहों द्वारा जारी किये गये फरमानों तथा पालीताना, खम्भात, राणकपुर व पावापुरी के जिन मन्दिरों में लगे शिलालेखों एवं प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर प्रतिपादित किया है कि इन बादशाहों को धर्म सहिष्णु नीति अपनाने में श्वेताम्बर जैन आचार्यों व मुनियों विशेषकर होरविजय सूरिजी, शांति चन्द्रजी, भानुचन्द्रजी, विजयसेन सूरिजो, जिनचन्द्र सूरिजी आदि की प्रेरणा रही। इन जैन सन्तों के तप एवं ज्ञान से प्रभावित होकर बादशाह अकबर ने युद्ध बन्दियों को दास बनाया जाना बन्द कर दिया था तथा सैनिकों द्वारा बस्तियों को लूटे जाने की निषेधाज्ञा जारी कर दी थी। (सन् १५६२), हिन्दू तीर्थस्थलों पर यात्री कर समाप्त कर दिया था (सन् १५६३), गुजरात में जजिया कर समाप्त कर दिया था (सन् १५६४) तथा पर्युषण पर्व के १२ दिनों सहित वर्ष में छ: महीने छ: दिन पूरी सल्तनत में जीव हिंसा निषेध के फरमान जारी किये थे तथा उन दिनों में वह स्ययं भा माँसाहार नहीं करता था। जैन गुरुओं के प्रभाव में आकर बादशाह ने शिकार खेलना छोड़ दिया
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